आओ… खेलो होली…
लगाओ रंग.. ……
होली खेलना चाहते हो….
आओ…. होली खेलने
शीरो कैफे में…
.खेलो रंग.. हमारे संग…..
अरे रे रे रे
क्या हुआ? … डर गए? ….
हमारे चेहरे देख कर….
जी मितला गया…न… न भागो नहीं… सुनो…..
हम…हम भी…रंगों से ज्यादा रंगीन होना चाहती थी…
इन्द्र धनुष के रंगों को मात देने की चाहत थी हमारी..
रंग बिरंगे सपने ले
उम्मीदों के आस्मां में
सफेद कबूतरों सी
पंखों से गतिमान …पर
चेहरे से शांतचित्त…!
हम गौरैया थी अपने
बाबा के आंगन की.. ..
कुछ नहीं मांगा …कुछ नहीं छीना … कुछ चाहा भी नहीं
संगदिल समाज से…
फिर क्यों ??
कमजर्फ दरिंदे ..
नकारा नंपुसक..
टपोरी कचरों ने
कर दी बहती आग की बारिश…
पिघल गए हमारे रंग… …
झुलस गए सुनहरी छवि…
.. मद्धम पड़ गया लावण्य.
… बेरंग काले कैनवास से ….
स्याह कोटरों में रह गए बस आंसू.. जिनका कोई रंग नहीं होता…
तुम्हारी होली के रंग भी हो चुके बेकार हमारे लिए…
मैं रितु यह नगमा,
वह सीमा और रूहा..
यह मानिनी और मौसमी..
सब के अपने रंग थे…
चटख.. दमकते हुए…
सोख लिए विकृत मानसिकता ने ..रौंद दिए इन्द्र धनुष
धुंधला गए तितलियों के पंख ….
सुनो …जाओ
उन नरपिशाचों को बता दो…
… कहीं नहीं गए हमारे रंग..
हमने जहर को धारण कर कंठ में
नील कंठ को बनाया है अपना आदर्श…
हम शी हीरोज़ कैफे की
झिलमिलाती रंगीनियाँ
अब सर्व करतीं हैं आप को
जिंदगी के सारे रंग….
आओ ….आज हम तैयार हैं फिर से खेलने को होली…
स्वागत है आपका शीरोज़ में…
आगरा हो या लखनऊ..
या नोयडा स्टेडियम…
हम तेजाब पिए हुए चेहरे .
फिर से केसर बन तैयार हैं
होली खेलने को…
जीवन की रंगीन होली.. दमदार होली.. यादगार होली।
डॉ किरण खन्ना, अध्यक्ष हिंदी विभाग
डीएवी कालेज, अमृतसर, पंजाब।
Kirankhanna517@gmail.com
MB 9501871144
क्योंकि अब शीरो कैफे की सच्चाई जान गये हैं इसलिए कविता को बेहतर समझ पाए किरण जी।सच पूछा जाए तो यहाँ आकर कलम की धार कुंद हो जाती है। समझ ही नहीं आता कि क्या कहा जाए । दरिंदों के लिये बद्दुआ भी कमतर है। पर उनके लिये प्रार्थना ही कर सकते है।
इंदौर में अपना स्वीट्स करके एक मिठाई की दुकान है रैस्टोरैंट भी, वो २६जनवरी पर जिस चौक पर ध्वजारोहण करवाते थे, तब इसी प्रकार विशेष लोगों को आमंत्रित करते थे। उस समय हमारा बड़ा बेटा राहुल करैया इंदौर आज तक में था। वह इसमें सहयोग करता था।तब लक्ष्मी अग्रवाल थी शायद जिसे बुलाया था। उस पर तो शायद पिक्चर भी बनी है।
कविता पढ़कर उनकी पीड़ा व संवेदनाएँ महसूस हुईं।
बेहद संवेदनशील व मार्मिक सर्जन है आपका।
हृदय को झकझोरने वाली मर्मस्पर्शी कविता —
निरपराध सौंदर्य को आजीवन दंड भोगने के लिए विवश करनेवाले , क्रूरता की सीमा का अतिक्रमण करने वाले नर पिशाच के अक्षम्य अपराध के लिए दंड संहिता में कड़ी से कड़ी सजा भी कम है। अति
संवेदनशील विषय को सकारात्मक सोच और नवीन ऊर्जा से भरने के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
क्योंकि अब शीरो कैफे की सच्चाई जान गये हैं इसलिए कविता को बेहतर समझ पाए किरण जी।सच पूछा जाए तो यहाँ आकर कलम की धार कुंद हो जाती है। समझ ही नहीं आता कि क्या कहा जाए । दरिंदों के लिये बद्दुआ भी कमतर है। पर उनके लिये प्रार्थना ही कर सकते है।
इंदौर में अपना स्वीट्स करके एक मिठाई की दुकान है रैस्टोरैंट भी, वो २६जनवरी पर जिस चौक पर ध्वजारोहण करवाते थे, तब इसी प्रकार विशेष लोगों को आमंत्रित करते थे। उस समय हमारा बड़ा बेटा राहुल करैया इंदौर आज तक में था। वह इसमें सहयोग करता था।तब लक्ष्मी अग्रवाल थी शायद जिसे बुलाया था। उस पर तो शायद पिक्चर भी बनी है।
कविता पढ़कर उनकी पीड़ा व संवेदनाएँ महसूस हुईं।
बेहद संवेदनशील व मार्मिक सर्जन है आपका।
आभार नीलिमा जी
हृदय को झकझोरने वाली मर्मस्पर्शी कविता —
निरपराध सौंदर्य को आजीवन दंड भोगने के लिए विवश करनेवाले , क्रूरता की सीमा का अतिक्रमण करने वाले नर पिशाच के अक्षम्य अपराध के लिए दंड संहिता में कड़ी से कड़ी सजा भी कम है। अति
संवेदनशील विषय को सकारात्मक सोच और नवीन ऊर्जा से भरने के लिए बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
आभार नीलिमा जी
Very Touching and realistic poem
….expressed very well…. Nice