खाक हो कर भी तुम्हें हम याद आएंगे
गर शहादत की कभी चर्चा चलेगी
राख के उस ढेर में अब तक दबी चिंगारियाँ हैं
शांत सी बहती पवन के साथ रहती आँधियाँ हैं
हम शहीदों के बुझे दीपक जलाएंगे
गर बग़ावत की कभी चर्चा चलेगी
बाँटते हैं प्यार लेकिन हम कभी बटते नहीं हैं
मुश्किलें बढ़ती रहें पर हौसले घटते नहीं हैं
हम नहीं करते कभी ईमान का सौदा
गर तिजारत की कभी चर्चा चलेगी
दोस्ती या दुश्मनी हो, आग से ठंडी बरफ से
हम नहीं करते किसी पर वार पीछे की तरफ से
बस तुम्हारे सामने तुम को उठाएंगे
गर हिमाकत की कभी चर्चा चलेगी
हैं नहीं मोहताज मंदिर मस्जिदों गिरिजाघरों के
नित्य अर्पित प्रार्थना विश्वास अनबोले स्वरों के
हम तराशे पत्थरों में प्राण लाएंगे
गर इबादत की कभी चर्चा चलेगी
क्या जरूरी बात करने के लिए संवाद ही हो
आँख से आँसू निकलने की वजह अवसाद ही हो
जो कभी हम लिख न पाए तुम उसे पढ़ कर सुनाना
गर इबारत की कभी चर्चा चलेगी
खाक हो कर भी तुम्हें हम याद आएंगे
गर शहादत की कभी चर्चा चलेगी
विनिता शर्मा
ICRISAT Colony phase 1
Akbar Road Tarband
Secunderabad 500009 Telangana
आदरणीय विनीता जी!आपकी कविता बहुत ही अच्छी है!कल ही भगत सिंह की पुण्यतिथि थी और आपकी इस कविता ने आज द्रवित कर दिया। शहादत कभी भी भुलाई जाने वाली बात है ही नहीं ।
शहीदों की चिताओं पर
लगेंगे हर बरस में मेले
वतन पर मिटने वाले का
यही बाकी निशां होगा।
बहुत ही सुंदर। शहीदों को बारंबार नमन।