Friday, October 11, 2024
होमकविताडॉ. तारा सिंह अंशुल की कविता - घन-घटा हैं सुरभित हवाएँ

डॉ. तारा सिंह अंशुल की कविता – घन-घटा हैं सुरभित हवाएँ

प्रिय नदिया किनारे चलो न जहां पर हैं लहराती धाराएं
उमड़ेगे  घूमड़ेंगे  आवारा घन-घटा हैं सुरभित फ़िजांएं
बाग पुराना जहाँ  पर खग चहचहाते हैं पीपल बट पर
नीम के पौधे कुछ रोपेंगे हम भी चलें सरिता के तट पर
पर्यावरण संतुलित सुरक्षित करने को चलो पौध लगाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो न जहां पर हैं लहराती धाराएं
तट पर वहाँ सांसों का विस्तार करते घने मिलेंगे तरुवर
ये कुदरत के उपहार हैं हर्षोल्लास हम में भरेंगे प्रियवर
सरिता की लहरों सा उन्मुक्त हम निज खुशी ये सजाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो न जहां पर हैं लहराती धाराएं
जहाँ झूमती शाखाएं हैं वृक्षों की करती ये हंस हंस बात
जहाँ  आनंद अलौकिक आत्म सुख से होती मुलाकात
गर्मी दोपहरी में बागीचे शीतल गुलजार रहती फ़िज़ाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो न जहाँ पर हैं लहराती धाराएं
मिलें कहाँ हंसते बच्चे आम जामुन शज़र बढ़ते बच्चे
बिछी चारपाई बगीचे में सोते बुजुर्ग खेलते पढ़ते बच्चे
हंसी खुशी फिर लौटेगी पर्यावरण हम सुरक्षित बचाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो ना जहां पे हैं लहराती धाराएं
डॉ. तारा सिंह अंशुल
डॉ. तारा सिंह अंशुल
विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मानों से नवाजी़ गयी वरिष्ठ कवयित्री , लेखिका , कथाकार , समीक्षक , आर्टिकल लेखिका। आकाशवाणी व दूरदर्शन गोरखपुर , लखनऊ एवं दिल्ली में काव्य पाठ , परिचर्चा में सहभागिता। सामाजिक मुद्दे व महिला एवं बाल विकास के मुद्दों पर वार्ता, कविताएं व कहानियां एवं आलेख, देश विदेश के विभिन्न पत्रिकाओं एवं अखबारों में निरन्तर प्रकाशित। संपर्क - [email protected]
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest