प्रिय नदिया किनारे चलो न जहां पर हैं लहराती धाराएं
उमड़ेगे घूमड़ेंगे आवारा घन-घटा हैं सुरभित फ़िजांएं
बाग पुराना जहाँ पर खग चहचहाते हैं पीपल बट पर
नीम के पौधे कुछ रोपेंगे हम भी चलें सरिता के तट पर
पर्यावरण संतुलित सुरक्षित करने को चलो पौध लगाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो न जहां पर हैं लहराती धाराएं
तट पर वहाँ सांसों का विस्तार करते घने मिलेंगे तरुवर
ये कुदरत के उपहार हैं हर्षोल्लास हम में भरेंगे प्रियवर
सरिता की लहरों सा उन्मुक्त हम निज खुशी ये सजाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो न जहां पर हैं लहराती धाराएं
जहाँ झूमती शाखाएं हैं वृक्षों की करती ये हंस हंस बात
जहाँ आनंद अलौकिक आत्म सुख से होती मुलाकात
गर्मी दोपहरी में बागीचे शीतल गुलजार रहती फ़िज़ाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो न जहाँ पर हैं लहराती धाराएं
मिलें कहाँ हंसते बच्चे आम जामुन शज़र बढ़ते बच्चे
बिछी चारपाई बगीचे में सोते बुजुर्ग खेलते पढ़ते बच्चे
हंसी खुशी फिर लौटेगी पर्यावरण हम सुरक्षित बचाएं
प्रिय नदिया किनारे चलो ना जहां पे हैं लहराती धाराएं
वाह! बहुत सुन्दर.. नमन..
वाह तारा जी बेहतरीन कविता