होम कविता हरिहर झा की कविता – पाषाण-जगत में कविता हरिहर झा की कविता – पाषाण-जगत में द्वारा हरिहर झा - September 12, 2021 204 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet पाषाण-जगत में संवेदन का, छींटा कभी न आ पाया धुँआ-धुँआ, जग बना अखाड़ा कीट-राजा का आया दूत मुस्कानो पर अट्टहास का डर अंतस्तल में घनीभूत मृदुल भाव संग भीनी गंध, क्या समझे, रस ले, जड़ काया चीखों में कोयल की कू कू ताल, लय गया, सभी सुरों का शिशु के भोले से क्रंदन को दबोचता गर्जन शेरों का – फैंका दूध पकड़ पंजे में माखन स्निग्ध कुचल कर खाया न्याय की देवी ना शरण दे पीती मदिरा खाती काजू पट्टी आँखो पर बरसों तक बोला कुछ भी नहीं तराजू चुप्पी तोड़ी, पटक दिया सच, गीत नराधम का ही गाया जीवन टूटे यन्त्र सा चला, मर मर उमर गई खपने में मौत मिली ना, जड़ सी मूर्छा चेतन बहक रहा सपने में जीजिविषा से गुत्थमगुत्था, कुटिल प्रेत की गहरी छाया उँगली श्रम में व्यस्त नहीं तो हाथ उठाये देती गाली विलास में डूबा जीवन बस तैर रहा खोखला खाली सुविधाभोगी, दर्द डराये, खण्डित हो जाना ही भाया संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – फुदकती चिड़िया कुसुम पालीवाल की कविता – चाँद को देखूँ या देखूँ रोटियाँ ज़मीन पर सरोजिनी पाण्डेय की कविता – फागुनी धूप कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.