(1) – हँसो
और लोग हँस रहे हैं
जिसे हँसी नहीं आती वह भी हँस रहा है
जिसे हँसी आती है वह बहुत बहुत हँस रहा है
मुफलिसी में हँसने से भूख नहीं लगती
मुफलिसी में हँसने से घर के बर्तन भी हँसने लगते हैं
चूल्हा इतना हँसता है कि उसे हँसते देख
आग के पेट में बल पड़ जाते हैं
और वह जलना भूल जाता है
चूहे खाली बर्तन बजा रहे हैं और हँस रहे हैं
हँसो हँसो खूब हँसो
इससे दिल मजबूत होता है
हत्यारों को सुविधा है कि वे हँसने के शोर में
तुम्हारे अन्दर के हरे पेड़ों की हत्या कर दें
तुम्हारे दिमाग में उड़ती चिड़िया के पर काट लें
तुम्हारे हिस्से में आयी तलुवे भर जमीन
से तुमको बेदखल कर दें
राजा को सुविधा है कि जनता बेहद खुश है
कि वह सो सकता है अगले कई वर्षों तक आराम की नींद
कि हत्यारा उसकी नींद में इस तरह चहलकदमी करता है
कि एक अच्छे सपने की मजबूत आधारशिला रख सके
कि एक अटूट राज्य का फीता काटने में
सहायक बन सके
धर्माचार्यों को सुविधा है कि समझा सकें
रोना नास्तिकों का सुरक्षा कवच है
इसलिए भी हँसो कि हँसना पहाड़ जैसे दुख को
राई में बदलना है
हँसो कि जितनी तुम्हारी उम्र है उतने लम्बे दुख से
पागल बनकर ही सही
एक पल के लिए छुटकारा पा सको
हँसते हँसते जबतक तुम्हारी आँखों से
खून के आँसू न निकलने लगें
हँसो
(2) – अपने नागरिक होने का फर्ज अदा करें
ठीक वैसा ही नहीं होता है
जैसा हम सोचते हैं
हम सोचते हैं अब मछलियाँ मछुवारों के जाल में
फँसने से इन्कार कर देंगीं
और मछुवारे हमारे सोच को ही फँसा लेते हैं
अपने जाल में
कि सरहद पर कोई नौजवान मारा नहीं जाएगा
और मारा जाता है
अब कोई हवा किसी फूल या खुशबू को
इतना परेशान नहीं करेगी कि वह आत्महत्या कर ले
कि अब कोई लाचार बुजुर्ग यह नहीं कहेगा कि अगर
यही दिन देखना था तो हम निःसन्तान होते
तो ही अच्छा था
कि अब एक लड़की रात को अकेले करेगी यात्रा
और सुरक्षित पहुँच जाएगी अपने घर
अब बच्चे नहीं मरेंगे किसी बुखार या बीमारी से
होता नहीं है वैसा जैसा हम सोचते हैं
बच्चे मर रहे हैं
हम सोचते हैं कि अब किसी पेड़ को
बिजली का तार गुजारने के लिए काटा नहीं जाएगा
वह स्वतन्त्र होगा बेरोक-टोक बढ़ने के लिए
उसे पृथ्वी से इतना पानी जरुर मिलेगा
कि उसकी बाँछे खिल सकें
और हम सिर्फ सोचते रह जाते हैं
साथी! विनम्र निवेदन है कि अब
इस विषय पर कविता लिखना बन्द करें
मत करें विलाप कि होता नहीं है वैसा
जैसा हम सोचते हैं
वक्त है कि अपने नागरिक होने का फर्ज अदा करें
कविता के बाहर
(3) – कुत्ते
कुत्ते के नाम के साथ गाली कब जोड़ी गयी इसके बारे में
कुत्ते के पुरखे भी नहीं जानते होंगे
चल हट! कुत्ते कहीं के या तुम पूरे कुत्ते हो जैसी गाली
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सड़क पर आवारा फिरते कुत्तों को
देखकर ही बनायी गयी
कुत्ता कुत्ता होता है चाहे वह आवारा हो या पालतू
फर्क सिर्फ इतना है कि पालतू कुत्तों को
वफादार की श्रेणी में रखा गया
और मनुष्य ने उसे अपनी विरादरी से जुड़ा कोई नाम दे दिया
कुछ घरों में तो उसे किसी दुश्मन के नाम से सिर्फ इसलिए जोड़ा गया
कि अपरोक्ष रुप से दुश्मन को
कुत्ता कहकर बुलाया जा सके
एक मशहूर कुत्ता प्रेमी सज्जन ने बताया कि
कुत्ता चाहे कितना भी वफादार हो अपने जीवन काल में
मालिक को एक बार काटता जरुर है
हालाँकि इस बारे में मतभेद है
यह बात अलग है कि मालिक उसके काटने को हलकी सी
खरोंच मानते हुए मालिक के प्रति
उसका दुलार मानता हो
मालिक को विश्वास है कि वह उसका कुत्ता है
इसलिए इतना वफादार है कि
कभी काट ही नहीं सकता
कुत्ता चाहे कितनी भी गहरी नींद में हो
एक हल्की सी आहट पर जाग जाता है
क्या हमने उसे इतना असुरक्षित कर दिया है कि
भले वह पालतू हो इसके बावजूद
अपने मालिक तक पर उसे कोई भरोसा नहीं
शायद इसीलिए अपने जीवन काल में
कम से कम एक बार काटकर या खरोंच लगाकर ही वह
अपने अहं को तुष्ट कर लेता है
कुत्ते अगर रोते हैं तो हँसते भी जरुर होंगे
हालाँकि उन्हे खिलखिलाकर हँसते हुए नहीं देखा किसी ने
हो सकता है वे उस समय हँसते हो जब उनके बच्चे उन्हे गुदगुदी करते हों
या आपस में प्रेम करते समय जब ठिठोली करते हों
हम सबकी नजर बचाकर
हमने उन्हे इतना अपमानित किया है कि वे खुलकर
रो भी नहीं सकते
उनका रोना भी हमें अपशकुन जैसा लगने लगता है
बहुत सँभव है जब हम किसी को देते हैं गाली
और कहते हैं कुत्ते कहीं के
कुत्ते खूब खूब प्रसन्न होते होंगे कि चलो किसी भी तरह
उन्होने मनुष्य को अपनी विरादरी में
शामिल तो कर लिया है
सम्प्रति- नारायण महाविद्यालय,शिकोहाबाद के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष प्रकाशित कृतियाँ- 1-चलो कुछ खेल जैसा खेलें(कविता संग्रह-राधाकृष्ण प्रकाशन,नयी दिल्ली) 2-18 वर्षों बाद दूसरा सँग्रह छाया का समुद्र(कविता संग्रह-सेतु प्रकाशन, दिल्ली, 3- पत्थर-राग(काव्य संग्रह) शीघ्र प्रकाश्य. संपर्क - maheshalok@gmail.com

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