एक बया अपने नन्हे-नन्हे  बच्चों के साथ बड़ी-शान्ति से और प्रेम से अपने घोंसले में रहती थी । वह एक कुशल एवं व्यवस्थित गृहणी की भाॅंति जीवन-यापन करती थी । तल्लीनता से एक-एक तिनका बीनकर सुरक्षित नीड़ बनाना उसकी प्राथमिकता दी । उसके संतोषजनक व्यवहार और स्वभाव से परिचित एक नाग ने सोचा कि मुझे इसका ठिकाना प्राप्त हो जाए तो कितना अच्छा होगा ? मैं कभी अपने बिल में, तो कभी घोंसले में सरपट दौड़ लगाऊॅंगा, सबको अपनी शक्ति और सामर्थ्य से अवगत करवाऊॅंगा ।
नाग तो नाग -ही था, अपनी मंशा, अपने आस-पास के नातेदारों को बताया करता था । कुछ बुद्धिजीवियों ने उसे चेताया कि तुम्हारी प्रजाति के लिए ऊपर वाले ने बिल की व्यवस्था की है । किसी का नीड उजाड़ना अशोभनीय है, निंदनीय है, किन्तु उसे अपनी क्रूरता का दंभ था । भला वह किसकी सुनने वाला था । पूरी तैयारी से बया के घर पहुॅंचा और उसमें ज्यों -ही प्रवेश करने लगा,बया वहाॅं आ धमकी, उसने दोनों ओर दृष्टिपात किया । एक ओर उसकी असमर्थ दो नन्हीं जान और दूसरी ओर कुकर्मियों की फौज उपस्थित थी । बया ने बड़ी चतुराई से अपने दो मुखी घर में प्रवेश किया और ओट में बैठे हुए अपने दोनों जीवाक, परों में दबा लिए और बाहर निकली, पूरी शक्ति से पंजों पर फुदकती हुई इस डाल से उस डाल पर, इस तरह डालियों पर छुपते-छुपाते, पातों के झुरमुट में साॅंस ली । नाग फन फैलाए उसे निरंतर ढूॅंढ रहा था । बया के बच्चे अभी उड़ने में सक्षम नहीं थे । फुदकते-फुदकते बया हाॅंफने लगी । उसने अपने बच्चों को पत्तों के सहारे टिकाकर अपने चोंच में भरे हुए दानों को, उनकी चोंच में डालकर उनकी क्षुधा शांत की । उसने उझक कर देखा, तो नाग उसके घोंसले पर बन फैलाए इधर-उधर बया की ताक में  था । बया ने कई दिन इसी तरह लुका-छिपी करते पातों के झुरमुट में निकाले, किन्तु निरंतर पाॅंख में बच्चों को लेकर फुदकने से बया थककर चूर हो चुकी थी । उड़ती तो बच्चे धरती पर गिर जाते, दम तोड़ देते । एक दिन वह इतनी थक गई कि वह बच्चों को संभाल न सकी और वह गिर गए । बया -भी घबराकर उड़ी, किन्तु दूसरी डाल पर रुक गई । उसने देखा कि उसके बच्चे कलाबाजियां कर रहे हैं, उड़ने का प्रयास कर रहे हैं । बया की थकान और बच्चों की मुस्कान ने उसे विजयी किया । बच्चों का सतत् प्रयास उन्हें बराबर वाले वृक्ष पर ले गया । बया अब निश्चिंत थी, उसके बच्चे सुरक्षित थे । बया को अपनी चिंता नहीं थी । दूर बैठे नौनिहालों के करतब देख-देखकर उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न था ।
दो- चार दिन बाद अचानक उसके प्राण-प्यारे उड़ान भरते हुए, अचानक उसके पास आए और बोले माॅं आप भी हमारे साथ चलो, हम दूर तक उड़ना चाहते हैं । बया उन्हें क्या कहती ? अब-तक वह अपने उड़ने की शक्ति खो चुकी थी ।
उसने बच्चों से कहा- हमारे घर पर नाग का कब्जा है, तुम्हें सुरक्षित स्थान पर अपने लिए घोंसला बना लेना चाहिए । मेरे पंख पुराने हो चुके हैं, जब-तक मेरे नये पंख निकल आएंगे, फिर हम एक साथ दूर की यात्रा पर चलेंगे और चैन से अपने घर में रहेंगे । बच्चों ने कहा-माॅं आप चिन्ता न करें हम अपना नया नीड़ बनाएंगे और आपको ले जाएंगे । दोनों बच्चे  मिलकर एक-एक तिनका बीनकर लाते और अपना घर सजाते । सुबह-शाम अपनी माॅं के भोजन-पानी की व्यवस्था करते । धीरे-धीरे समय निकाला, बया के पंख झड़ गए । जब बच्चों ने देखा कि माॅं के पंख नहीं हैं, तो पूछा- माॅं यह क्या हुआ ? आपने तो कहा था, नये पंख आएंगे, आपके तो पुराने भी चले गए ? बया बोली- जब नये आते हैं, तो पुराने झड़ जाते हैं । कुछ दिन और रुको मेरे नये पंख अवश्य आएंगे ।
एक दिन बच्चों ने अपनी माॅं जैसा सुघर नीड़ तैयार किया और माॅं को लेने चल दिए । दोनों ने आपस में विचार किया कि हम दोनों मिलकर माॅं को किसी भी तरह यहाॅं लाएंगे,वो यहाॅं विश्राम करेंगी तो जल्दी पंख आ जाएंगे ।  उन्हें डाल पर बैठे हुए बहुत समय हो गया, वह उड़-भी नहीं सकतीं । अब तो उनका फुदकना भी बंद हो गया है ।
वहाॅं बया के बैठने की शक्ति भी जाती रही, वह स्वयं को संभाल न सकी और गिर गई । ज्यों-ही भूमि पर गिरी उसके प्राण निकल गए । उसका अंतिम दुःख था कि उसके बच्चे बहुत रोयेंगे । मरते-मरते ईश्वर से प्रार्थना की भगवान मेरे बच्चे न रोयें । उसी समय नाग की दृष्टि बया पर पड़ी उसने बया को अपना ग्रास बना लिया ।
बया के बच्चे खुशी-खुशी उस डाल पर आये और माॅं को खोजने लगे । माॅं-माॅं ,इधर-उधर पुकारने लगे, किन्तु उन्हें माॅं कहीं दिखाई नहीं दी । बया के दुःखद अंत का प्रत्यक्षदर्शी एक बूढ़ा बाज पीपल के वृक्ष से यह सब देख रहा था । बच्चों की पुकार सुनकर उसने बच्चों को अपने निकट बुलाया और पूछा-तुम क्यों शोर कर रहे हो ?
बच्चों ने कहा-हमारी माॅं कहीं दिखाई नहीं देती, क्या आपने उन्हें देखा है ? बाज ने कहा-तुम्हारी माॅं के नये पंख निकले थे । कदाचित् वह उड़ते-उड़ते कहीं दूर निकल गई है । तुम व्यर्थ चिंता मत करो । जब वह वापस आएगी, तो तुम्हें स्वयं खोज लेगी । जाओ तुम अपने नीड़ की ओर चलो , यदि नाग ने तुम्हें कोई चोट पहुॅंचाई, तो तुम्हारी माॅं को कष्ट होगा । बच्चों के जाने के बाद बाज से वहीं पर बैठे दूसरे पक्षी ने कहा-मित्र तुमने झूठ क्यों बोला ? बाज ने उत्तर दिया, सत्य के दुःख से, झूठी आशा सुखदाई होती है मित्र ।
बच्चे प्रतिदिन झाॅंककर अपनी माॅं के आने की राह देखते और कहते हमारी माॅं स्वयं उड़कर आएगी, अब हमें उनको उठाकर नहीं लाना पड़ेगा ।

2 टिप्पणी

  1. हार्दिक आभार नहीं आपका असीम स्नेह बड़े भैया
    भारतीय को घर बैठे इंग्लैंड की सैर करा दी
    नववर्ष व चैत्र नवरात्र प्रतिपदा मङ्गलमय हो
    हार्दिक शुभकामनाएं

  2. पुरवाई एक महत्वपूर्ण, जरूरी पत्रिका। तेजेन्द्र जी सहित टीम का श्रम परिलक्षित।
    लघुकथाएँ, कथाएँ, कविताओं का चयन उत्तम
    ज्वलंत विषयों पर संपादकीय बेजोड़

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