Tuesday, October 15, 2024
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मंजीत सिंह की दो कविताएँ

मंजीत सिंह फ़रीदाबाद (हरियाणाभारत) के निवासी हैं। काका हाथरसी हास्य रत्न सम्मानसे सम्मानित मंजीत सिंह ने मंच पर हास्य कवि के रूप में वैश्विक ख्याति अर्जित की है। उनकी अब तक 9 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 2000 में उन्होंने पहली बार विदेश (थाइलैंड) में कविता पाठ किया था। अब तक वे साठ से अधिक विदेश काव्य यात्राएं कर चुके हैं। सरदार मंजीत सिंह की मातृभाषा पंजाबी है। उन्होंने अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में कई वर्षों तक शिक्षा विभाग में सेवा दी है। लेकिन उन्होंने अपनी रचनाएं प्रमुखता हिंदी में ही लिखी हैं। मंजीत सिंह फरीदाबाद में उप जिला शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।

1. भारतीय द्युतशाला में नारी
ऐ, मेरे प्यारे देश की प्यारी बेटी-
अधरों के ताले तोड़ोगी
मुस्का के तब गा पाओगी
हाथों को बांधे रखोगी
केवल अबला कहलाओगी।
उस धर्मराज ने ही तुमको
जुए पर दांव लगाया था
दुःशासन ने पल्लू खींचा
पतियों ने शीश झुकाया था
युधिष्ठिर को गर उसी रोज़
तुम मौत की नींद सुला देती
औरत सौदे की चीज़ नहीं
संसार को सबक सिखा देती
अब वस्त्र-विहीना होकर भी
तुम कृष्ण भुला ना पाओगी।
नन्हीं कलियों के खिलने पर
कीकर हिल-हिल हर्षाता है
कन्या के पैदा होने पर
क्यों मुख मां का मुरझाता है
नन्हीं कलिका के खिलने पर
टहनी जो अश्रु बहायेगी
पतझर उपवन को डस लेगा
पत्ती-पत्ती जल जाएगी
मौसम से भीख भले मांगो
ऋतुराज को ला न पाओगी ।
कुछ लोग परेशां होते हैं
क्यों कोयल कू-कू गाती है
मुस्लिम महिला तो परदे में
हर रोज सिमटती जाती है
शौहर को है अधिकार यहां
नित नया निकाह रचाने का
कलियों को रोज मसलने का
हर रोज तलाक़ सुनाने का
इस चक्रव्यूह में पड़ी रही
पग-पग पर ठोकर खाओगी
भटके क्या राह दिखाएंगे
खुद अपनी राह बनाओ तुम
सीता-सावित्री की छोड़ो
अब रणचंडी बन जाओ तुम
नागिन जैसा फुफकारोगी
न पास नेवला आएगा
गर डंक मारना भूल गई
चूहा तुम को खा जाएगा
गल माल में होंगे असुर मुंड
मां काली सी पुज जाओगी।
2. लोहे का पुल
ठेकेदार ने
पुल
नहर की बजाय
कागज़ पर बनाया
सीमेंट इंजीनियर पी गया
लोहा ठेकेदार निगल गया
शेष विभाग वालों ने पचाया।

पांच साल बाद
रंग रोगन करने वाला
ठेकेदार
हो गया परेशान
उसे न तो पुल मिला
न हीं उसका कोई निशान।
पता करते करते वो
पुल बनाने वाले ठेकेदार के घर आया
वो बेहोश होते होते बचा
जब उसे पता लगा कि
ठेकेदार ने
तो नहर पर
पुल ही नहीं बनाया।

पुल वाला ठेकेदार
पेंट वाले से बोला-
तुम ठेकेदार अभी कच्चे हो
इस फील्ड में बिल्कुल बच्चे हो
राष्ट्र के निर्माण में
तुम भी
अपना हाथ बंटाओ
लोहे का पुल
हमने खा लिया है
पेंट तुम पी जाओ।

मंजीत सिंह
Mobile: +91 98103 72543
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3 टिप्पणी

  1. मंजीत सिंह जी की कविता भारतीय द्युतशाला में नारी,,,नारी की अकल्पनीय पीड़ा को बेहद नैसर्गिक अंदाज़ ए बयां से उकेरती है।
    दूसरी रचना लोहे का पुल बेहद मार्मिक रूप से भ्रष्टाचार जनित पीड़ा को बताती हैं।
    बधाई हो।

  2. आपकी दोनों कविताएं अच्छी हैं।वैसे नारी अब जाग रही है। सुधार नजर आ रहे हैं।
    लोहे का पुल कविता अधिक प्रभावशाली लगी। भ्रष्टाचार की अति को दर्शाती हुई यह कविता किसी तीखे व्यंग्य से कम नहीं ।

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