न जाने क्यों लोग नारी को अबला कहते है, भला कैसे कमजोर कहते है! यह जो समाज जिंदा हैं आखिरकार किसके बलबूते पर? अगर नारी न होती उसका त्याग न होता उसकी सहनशीलता व स्नेह न होता तो क्या होता?
जरा उस समाज की कल्पना तो करें चारों तरफ पतझड़ ही पतझड़ होता, अतृप्त हृदय हरदम बेचैन ही रहता, हर घर केवल मकान होता। नींव को खून की मजबूती न मिलती ईंट-ईंट बीच जुड़ाव जरूर होता , पर लगाव न होता ।
घर-बाहर की दोहरी जिम्मेदारियों से हमेशा वह धिरी रहती हैं, फिर भी प्रफुल्लित रहकर खुशी खुशी सारे कर्तव्य निभाती हैं। नौ महीने अपने अंदर हांड़ मांस के पुतले को अति सुंदर आकार देती हैं। अपने लहू से उसे सींचती है, अच्छी सोच से, संस्कारों से, गर्भावस्था से ही शिक्षित करती हैं।
तब भी आराम नहीं करती, अंतिम घड़ी तक गतिशील रहती हैं, फिर भी यह पुरुष प्रधान समाज उसे बेचारी समझता है। वह समझता है, नर के बिना नारी एक कदम नहीं चल सकती, नर के बिना वह अधूरी है। सच तो यह है नारी के बिना, यह समाज, यह सृष्टि, यह प्रकृति, सभी के सभी अधूरे हैं। आज जीवन का कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां उसका परचम नहीं?
उसके त्याग को कमजोरी मत समझो किसी भी नारी की अवहेलना मत करो उसके साथ कोई दुर्व्यवहार मत करो। हां, शारीरिक रूप से है वह कोमल पर मन से वह मक्कम-मजबूत है, फिर किसी के साथ निर्भया जैसा अपराध-अन्याय-पाप मत करो।
हर नारी में देवी-माता-बहन-बेटी के दर्शन करो, वह पूजनीय है, उसकी पूजा करो, उसके अधिकारों का हनन मत करो ।
अगर समाज को क्षीर सागर बनाना हैं, इस खुबसुरत दुनिया को विश्वास लायक बनाना है तो हर नर को नारी का सम्मान करना होगा, हर नारी को दूसरी नारी का आधार बनना होगा, नर-नारी हर कदम हमराह बनकर जीवन की राह पर चले, कोई किसी से कम नहीं, इस मंत्र को आत्मसात करना होगा।