Saturday, July 27, 2024
होमकवितापद्मा मिश्रा की कविता - अपनी भाषा हिंदी

पद्मा मिश्रा की कविता – अपनी भाषा हिंदी

जग में वन्दित,जन में पूजित,
यह अपनी भाषा है हिंदी.
जन-गन-मन का विश्वास लिए,
सपनों की आशा है हिंदी.
मैथिल कोकिल बन इतराई,
यह देवनागरी की भाषा,
तुलसी के मानस में गूंजी,
‘अवधी’ की पावन अभिलाषा.
‘ब्रज’ के करील कुंजों में थी,
यह वंशी कृष्ण कन्हैया की,
कण कण में गूंजी थी वाणी,
यमुना तट के नचवैया की.
‘गुरु नानक ओउर कबीर संग,
‘मीरा’ के सपनों का गिरिधर,
जो ‘घनानंद’ की पीर बनी,
और ‘पद्मावत ‘का प्रेम सुघर.
यह देश प्रेम का गीत मधुर,
रस बरसाती  रसखान बनी.
जो जली ‘दीप की शिखा विरल,
और माटी की पहचान बनी.
जो गाँधी के सपनों में थी,
और थी सुभाष की आजादी,
अपनी धरती का गौरव है,
भारत माँ  की यह शहजादी.
यह ‘पन्त’, ‘निराला ‘की कविता,
और ‘महादेवी की है ‘यामा”
यह ‘कामायनी’ प्रसाद की है,
यह ग्राम घरों की है भाषा.
फिर क्यों भूले हम आज इसे?
क्यों रही उपेक्षा की शिकार?
क्यों अपसंस्कृति की छाँव तले,
मन में भरते दूषित विचार.
आओ कुछ ऐसा कर जाएँ,
यह बने पूजिता विश्वमना …
यह श्रेष्ठ बने, विश्वस्त बने,
अधिकार भरें इस पर अपना
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest