कभी पहाड़ हुए आत्मीय महकती बहारों से
जब वसंत की खनक में गर्मी ने ली अंगड़ाई
रेशम की दूप से ढकी खिली नटखट प्रकृति
मीलों ख़ुशगवार हरियाली, मैं करता इंतज़ार
आभास में तुम्हारा रेशमी बदन लेता अंगड़ाई
पीली धूपों से चुरा रंग बहारें ओढ़ाएँगी तुम्हें
कैसा होगा आलम सूरज का देख मेरी प्रियतमा
तुम शरमाकर हँस पड़ोगी ग़म देख सूरज का
ख़्वाब थे मैं मोहब्बत के परचम फहराऊँगा हरदम
फ़ना हो जाऊँगा, किसी ग़म को तुझे छूने से पहले
मैं करता था ग़रूर तुम्हारे हुस्न और मेरे इश्क़ पर
मन की पगडडियाँ बेदम हो चलीं वक्त में फ़ना
दम भर थम गई पुरवाई साँसों की, बरहम हम
दम-ख़म जिस्मों का टूटता, मौत के पैग़ाम से
चंचलता खो गई मौन में, टूटे थे ख़्वाब मेरे
मातम में नम नयन प्रकृति के, झरे शबनम आसमानों से
रंग बदल-बदल आसमान हुआ शामल, नभ घन काले
गंभीरता ओढ़ी प्रकृति ने, ऋतु आती-जाती न होश में हम
ख़ामोशी से उन्स हुई ऋतुएँ झुर-झुर धुंध में ढक खुद को
उनके चमकते चहेरे धुँधले,पीली धूप का रंग हुआ गुलाबी
एक पल चुरा कर सिहरती प्रकृति ने भर मुठ्ठी में
इश्क़ के पैग़म्बर को पैगाम भिजवाया,हाल-ए-दिल सुनाया
फरिश्तों का प्यार जिस्मों से आगे रूहों का सफ़र है
आ लगा मन को मरहम बोला पैग़म्बर
आशिक मन का फ़कीर, इस सर्दी मन को बना कबीरा
ताहम खोल दे दरवाज़े, खोल दे खिड़कियाँ मन की
बन जा रसिक जीवन की सर्दी ढलने से पहले
कर स्वागत तू भी, यहाँ इश्क़ का गुलाबी है मौसम
खुल गए दरवाज़े, खुल गई खिड़कियाँ
प्रकृति में शीतल शीत के स्वागत में
मेरा मन भी इंतज़ार में खुल रहा तुम्हें समेटने
देखो न ठहर दम भर रहा जाड़ों की आगोश में
बादलों ने ओढ़ा दिया कम्बल प्रकृति को
मरहम लगाते उसे, यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
राहें खिलीं हैं, झड़ पत्ते शहीद हैं, उन्स हम भी इश्क़ को !