
घर के पिछवाड़े के छपरे पर पड़ी
टूटी एटलस साइकिल को
देख-देखकर मुझे
बहुत पुरानी स्मृतियाँ याद हो आती.
आज से सातेक वर्ष पहले
बापू नें ये साइकिल मेरे लिए खरीदी थी.
उन दिनों मै घुंघराले बालों को
अंगुलियों से संवारकर
जेंटलमैन बनकर
साइकिल पे जा बैठता
और फिर:,थार के
धड़कते लोक गीत गुनगुता
मानों कि-मेरे होंठों से
फोग,खींप आदि की सुगंध सिमटी हो.
साइकिल के जोर-जोर से पेंडल मारता हुआ
उस ढ़ाणी के ठीक सामने जा पहुँचता
जिसमें-साँवली,
दुबली-सी लड़की रहती
और साइकिल की घंटी बजाता
तब तक बजाता रहता
जब तक वो मेरी साइकाल पे आकर बैठ न जाती.
हम दोनों:,साइकिल पे सवार होकर
सरकारी स्कूल जाते
बीच राह में
वो मुझसे ढ़ेरों बातें साझा करती
कि कल रात रोटी सेंकते वक्त
माँ की तवे से उंगुली जल गयी,
भूंगरकी भेड़ बया गयी
जो कि,मेमने की आँखें
तेरी आँखों की तरह दिखती है,
और सुन.. तो..
परसों रात का रूठा हुआ चांद
कल रात फिर से राजी हो गया है.इत्यादि बातें।
एक दिन हम स्कूल से आ रहे थे
कि बीच राह में
साइकिल का चेन टूट गया
जब मैंने-
उसके गालों पर चिकोटी काटता हुआ पूछा,
“काळती.!अब क्या करें.?”
तब उसने कहा,
“मैं साइकिल की चेन बन जाऊँगी।अरे..बुद्धू इतना-सा भी नहीं समझ पाया,
तू साइकिल पर बैठ मैं धक्का लगाती हूँ,और सड़क की ढ़लान आते ही बैठ जाया करूँगी.!”
पाँच वर्ष तक हम साथ-साथ रहे
हँसते-खिलते,रूठते-मनाते
गिरते-उठते
मरुधर,दरखतो को हरखते
और एक दूसरे से कुचरणी करते हुए
ढ़ाणी पहुँच जाते
फिर अगली सुबह का इंतज़ार करनें लगते.
एक दिन वो मुझे थार के इस विशाल समुंदर पर
नितांत अकेला छोड़ चली गयी
आज सुबह बापू के क्या जी में आयी
कि साइकिल कबाड़िये को तुला दी
मै खड़ा-खड़ा देखता रहा
पर उन्हें रोक न पाया
साँवली लड़की:,
तुम्हारी यादें कबाड़िया तोलकर ले गया.!
तुम्हारे और मेरे हाथों में
तुम्हारे गोरे नाज़ुक
मेंहदी लगे हाथों में
एक प्रेमी का
बेहद भारी,गर्म हाथ है.
और
मेरे फटे हाथों में
बेरोजगार
ठंडी कलम
व भूखे रोते हुए
कुछेक सफ़ेद काग़ज है।
प्यासी की प्यासी रह गई
मेरी आँखों से आँसू बहकर
गालों के मार्ग से होकर
जा पड़े
मरुधर की छाती पर
चूस गई
फिर पड़े
चूस गई
फिर पड़े
चूस गई
इस तरह-
मेरी आँखों का घट
समूचा रीत गया
पर मरुधर
प्यासी की प्यासी रह गई.!