एक दूसरे से जलता है क्यो,
कोने में मन के दीप जला ले ।
भीड़ लोभ की खड़ी मुँह पसारे,
खोने से पहले दीप जला ले ।
लक्ष्य भेदने तू चलेगा नया,
झाड़ कांटो के डग में मिलेगे ।
आखों से आलस हटा कर बढ़ो,
सोने से पहले दीप जला ले ।
स्वयं से मिलो अकेले में कभी,
भ्रम द्वेष के टूट ही जाऐगे ।
सींच रे मन बीज तत्व ज्ञान का,
बोने से पहले दीप जला ले ।
बाँट दे अंजुलि दान अनाज का,
आया याचक देखता द्वार पर ।
भूख से आहत न रोये कोई,
रोने से पहले दीप जला ले ।
कौंधती आंख क्रोध से जल रही,
डरे देख ये अपने ही तुझ से ।
दृष्टि शीत सी उठा कर देखना,
खोने से पहले दीप जला ले ।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.