हे सूर्य! देव हे जगपालक !
तव चरणों में मैं नमन करूँ ,
तुम कश्यप और अदिति के सुत
हो जवाकुसुम -सम नभ स्थित
तुमसे है जीवन धरती पर,
हैं सभी नखत तुमसे भासित,
तुमसे ऋतु आती जाती हैं,
फसलें तुमसे लहराती हैं,
आयु का निर्धारण तुमसे
तव सुत ‘यम’ की मृत्यु दासी है
होकर सवार स्वर्णिम रथ पर
उदयाचल से तुम आते हो ,
है अरुण तुम्हारा रथ चालक
अस्ताचल तक तुम जाते हो,
बादल का स्वामी’ इंद्र ‘सही
पर बादल तुम उपजाते हो,
भरकर मेघों में जीवन -जल
वन -उपवन हरित बनाते हो,
जिन लोगों ने पूजा तुमको
सभ्यता उन्हें की अमर हुई
ऊंचे ये पिरामिड इजिप्ट के
तुम से ही इनकी ख्याति हुई,
हैं अमृतमय किरणें तेरी
रोगों से मुक्ति देती हैं
तन स्वस्थ करें मन उत्फुल्लित
सब में नवजीवन भरती हैं ,
हे हिरण्यगर्भ! हे रवि ,दिनकर!!
कितने नामों का जाप करूँ!!
कण -कण आलोकित है तुमसे
तव चरणों में मैं नमन करूं!!
हे सूर्यदेव,!हे जगपालक !
तव चरणों में मैं नमन करूँ!!!!
भक्तिमय सुंदर कविता