एक लड़की
एक लड़की शरमाई सी
अल्हड़ बौखलाई सी
सपनों में डूबी वो अपने
कभी हंसती कभी मुस्काई सी
सपने नये नये बुनती
चूल्हे के आगे बैठे बैठे
दूध भी उफना दिया खोये खोये
जाने क्या सोचती है वो चुपचाप
आइने में मुख अपना देख कर
कभी बढती तो कभी थम जाती धड़कन
फिर याद आता टीचर का झिड़कना
काम क्यों नहीं करती समय पर
क्या कहे क्या ना कहे
अल्हड़ नदिया सी बहती जाती
अपनी धुन में
एक लड़की शरमाई सी
कुछ घबराई सी कुछ डरी डरी
इतने बड़े गगन में छोटी चिड़िया सी
उड़ती फिरती अपनी मस्ती में
कभी घास के फूलों को देख मुस्काती
कभी गुलाब की पंखुड़ियों सी बिखर जाती
एक लड़की शरमाई सी
कोई कहे बाबली कोई कहे पहेली
गुड्डी गुड्डो में मन नहीं लगाती
कभी चुन्नी लपेटती कभी जाने क्या खोजती
पता नहीं क्या क्या लिख जाती
एक लड़की शरमाई सी
अल्हड़ बौखलाई सी