सरल, सरस भावों की धारा,
जय हिन्दी, जय भारती ।
शब्द शब्द में अपनापन है,
वाक्य भरे हैं प्यार से,
सबको ही मोहित कर लेती
हिन्दी निज व्यवहार से,
सदा बढ़ाती भाई-चारा,
जय हिंदी, जय भारती ।
नैतिक मूल्य सिखाती रहती,
दीप जलाती ज्ञान के,
जन -गण -मन में द्वार खोलती
नूतनतम विज्ञान के,
नव-प्रकाश का नूतन तारा,
जय हिन्दी, जय भारती ।
देवनागरी, भर देती है
संस्कृति की नव-गंध से,
इन्द्रधनुष से रंग बिखराती
नव-रस, नव-अनुबंध से,
विश्व-ग्राम बनता जग सारा,
जय हिन्दी, जय भारती ।
हिंदी पर आपकी कविता अच्छी है आदरणीय त्रिलोक जी! जितना भी कहा जाए हिन्दी के लिए उतना ही कम है।
हार्दिक धन्यवाद, नीलिमा जी।