• त्रिवेंद्र कुमार पाठक

क्या बताएं किसी को कि क्या हालत है?
या कहें कि नादाँ दिल की शरारत है,
गुमसुम है दिल, अरमान है बहके बहके से,
और “पाठक” है खामोश, ये भी तो शराफत है…
समंदर में आये तूफान तो लोग कहते है आफत है
और दरिया मचल भी जाए तो भी नजाकत है
उसने हमें याद भी न किया और हम जिन्दा है
क्या बताएं किसी को कि क्या हालत है?
पाठक” तो तन्हाई में भी बहुत माकूल रहते हैं
फिर किसी के साथ की क्या जरुरत है
पर इस नादाँ दिल को कौन समझाए
शरारतें ही तो इस दिल की बुरी आदत हैं…

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