मै विजेता हूं
हारा नहीं कभी,
मेरे भुज बल से
कांपता है सकल चराचर
किन्तु तुम को देख कर ही
हार गया तन मन समूचा।
कौन हो तुम?
जो बने हो
मार्ग में अवरोध मेरे
बिन उठाए ही खड्ग
तुमने दिया है घाव मुझको
मेरे उर पे तुम्हारा
हो गया अधिकार जब से,
मैं खड़ा सम्मुख तुम्हारे
हार कर सर्वस्व अपना।
कौन हो तुम?
जो मुझे बंदी बनाकर
रख लिए हो निज हृदय में
मैं विफल हो देखता हूं
तेरे अधरों की हँसी
जो मुझे मजबूर करता,
हार जाने के लिए।।
योगेन्द्र पाण्डेय
सलेमपुर, देवरिया
उत्तर प्रदेश
7683047756
बहुत सुन्दर रचना! योगेन्द्र पांडेय(कवि) एवं पुरवाई के सम्पादक मंडल को बधाई!
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति योगेंद्र पांडेय जी
खूबसूरत अभिव्यक्ति योगेंद्र पांडेय जी