कौन हो तुम?
बांध रही हो मुझे
अपने नयन के डोर से।
मै विजेता हूं
हारा नहीं कभी,
मेरे भुज बल से
कांपता है सकल चराचर
किन्तु तुम को देख कर ही
हार गया तन मन समूचा।
कौन हो तुम?
जो बने हो
मार्ग में अवरोध मेरे
बिन उठाए ही खड्ग
तुमने दिया है घाव मुझको
मेरे उर पे तुम्हारा
हो गया अधिकार जब से,
मैं खड़ा सम्मुख तुम्हारे
हार कर सर्वस्व अपना।
कौन हो तुम?
जो मुझे बंदी बनाकर
रख लिए हो निज हृदय में
मैं विफल हो देखता हूं
तेरे अधरों की हँसी
जो मुझे मजबूर करता,
हार जाने के लिए।।

योगेन्द्र पाण्डेय की कविता - कौन हो तुम...? 3

योगेन्द्र पाण्डेय
सलेमपुर, देवरिया
उत्तर प्रदेश
7683047756

4 टिप्पणी

  1. बहुत सुन्दर रचना! योगेन्द्र पांडेय(कवि) एवं पुरवाई के सम्पादक मंडल को बधाई!

  2. डॉ पल्लवी सिंह 'अनुमेहा ' लेखिका एवं कवयित्री ,बैतूल मप्र

    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

  3. डॉ पल्लवी सिंह 'अनुमेहा ' लेखिका एवं कवयित्री ,बैतूल मप्र

    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति योगेंद्र पांडेय जी

  4. डॉ पल्लवी सिंह 'अनुमेहा ' लेखिका एवं कवयित्री ,बैतूल मप्र

    खूबसूरत अभिव्यक्ति योगेंद्र पांडेय जी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.