‘चादर देखकर पाँव पसारना’ – यह मुहावरा आमदनी के अनुसार ख़र्च की क्षमता पर बात करता है। स्कूली जीवन में समझे इस मुहावरे का अर्थ होता है – “जितनी अपनी क्षमता हो, उतने में ही काम चलाएं।”
कहावतें और मुहावरे, सामाजिक व्यवहार पर हमारे पूर्वजों के गहरी रिसर्च का परिणाम है। अपने युवाकाल तक मैंने समाज के अधिकांश भाग को इन कहावतों पर अमल करते हुए पाया। आज भी समझदार लोग ऐसा करते हैं।
सदियों पहले स्थापित कर दी गई बात को मान लिया जाता रहा है। ऐसा करने का कारण भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसे मानने या ना मानने वालों के परिणाम, पीढ़ी दर पीढ़ी, एक बताए गए पैमाने के अनुसार मिल रहे है। मगर समय लगातार बदल रहा है। तारीख़ के बदलाव के साथ, जीवन को जीने के तरीकों में भी बदलाव आया है। सामाजिक व्यवहार और पारिवारिक संरचना भी लगातार बदल रही है। कमाई के पारंपरिक स्वरूप का स्थान नए-नए तरीकों ने लेना शुरू कर दिया है। इसीलिए कुछ मुद्दों पर बदलते समय के साथ नए सिरे से विचार करने की ज़रूरत होती है।
बात यह है कि यदि आप थोड़ा-बहुत रिस्क नहीं उठाएंगे तब तक नई मंज़िल की कल्पना भी नहीं कर सकेंगे। यदि चादर के भीतर पाँव रखना सही है तब हर तरह के बिजनेस की शुरूआत ही खटाई में पड़ जाएगी। आज का दौर स्टार्टअप का दौर है। अपनी पूंजी से व्यवसाय शुरू करना अक्लमंदी नहीं मानी जाता। बैंक लोन या अन्य साधन, नए हुनर के लिए रीढ़ की हड्डी साबित होते है।
इसी तरह अपने व्यक्तिगत जीवन में खाँचे से बाहर निकलने का प्रयास करें। बड़े-बड़े सपने देखें। उन सपनों को सच करने के लिए कड़ी मेहनत करें। अपनी चादर से “थोड़ा-सा” पैर बाहर निकालें। हर बार थोड़ी बड़ी चादर लेने के लिए मेहनत करें। उस चादर के मिलने पर कम्फर्टेबल ना हों। कुछ पलों की खुशी के बाद अगली बार के लिए फिर से “थोड़ी-सी बड़ी” चादर के लिए फिर से मेहनत शुरू कर दें। हर बार “थोड़ी सी ज्यादा” मेहनत थकाएगी नहीं। और इस ‘थोड़ी-सी ज्यादा’ मेहनत के परिणाम, आपमें जोश भी भरे रहेंगे। तो आइए आज ही ‘चादर से कुछ ज्यादा’ का प्रयोग शुरू करें।
वाह बेहतरीन आलेख
बधाई
धन्यवाद आलोक यात्री जी।
समय की नब्ज पर हाथ रखकर चलाई गई लेखनी।शालीन,बेहतरीन,अनुकरणीय,समादरणीय एवम अभिनंदनीय लेख।भविष्य में भी अभिप्रेरण हेतु सृजन की शुभाशंसा ।
जयशंकर जी इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार।