जाते – जाते रह गया घर
घर पर कोई नहीं था
जैसे हिमालय पर अकेला बर्फ
बर्फ के नीचे कोई जरुर होगा
घर जाते आते वक्त पर भी कोई जरुर होगा
बर्फ नही होगी
तो हवा होगी
आग होगी
पानी होगा
जाते- जाते सबकुछ होगा
और कुछ नहीं तो
मेरा दिल होगा
आत्मा होगी
बर्फ जैसी सफेद चादर होगी
मेरे दिल का कोई रंग होगा
हवा नहीं होगी तो बर्फ कहां से होगी
ठंढ कहां से पडे़गी
हवा ही बर्फ पर जाते- जाते रुकेगी
जाते- जाते घर की ओर रुक जाऊंगा
हर जगह हवा होगी
हर मनुष्य के पास बर्फ नहीं होगी
सिर्फ बर्फ होने से हवा नहीं होगी
हवा होने से ही बर्फ होगी
हमारा घर होगा…!
हवा होगी
2) साड़ी की सलवटें
मुझे सब अच्छे लगते हैं
तुम्हारी मुस्कान से लेकर तुम्हारी अदा तक
घर से बधार तक
सब सुंदर लगते हैं
बिन मेकअप वाली बीबी भी जब स्नान कर गुजरती है बगल से एक गंध को साथ लेकर
उसे नहीं पता न उसके खुले बाल को
सिर्फ हवा को पता है
मुझे ज्ञात है और मेरे मन को लगभग तीस साल से
कोई ग़ज़ल गाती दक्खिन की मंजरी सी औरत
जिसकी साड़ी की सलवटें मेरी आंँखो को
सुकून पहुंँचा रही है
जैसे एक किसान खेत को आरी- पगारी काटकर साफ किया हो
पनवट के लिए…!
3) आज पृथ्वी उदास है
पृथ्वी को रोज़
खोदते हैं ,कोड़ते हैं
उदास होकर भी हंसती है
हम क्यों गुस्सा करते हैं
हमें फूल फल मिलता है
हम रोज़ गंदा करते हैं
इससे पृथ्वी नहीं
हम गंदे होते हैं
जहां रोज़ एक जोड़ा पंक्षी प्यार करते हैं
और मनुष्य हत्या करने पर उतारु है
पृथ्वी हिलेगी और
हम एक दिन पेड़ की तरह गिर जाएंगे
बिन बताए
आज पृथ्वी उदास है
4) सबके माथे पर
भला कौन नहीं जानता ईश्वर को
लोगो ने मिलकर
ऐसा ईश्वर क्यों गढा़
जो सबके माथे पर चढा़
ईश्वर को तो चलना चाहिए
मनुष्य की तरह
साथ – साथ
5) इस बार छठ में
(नरेश सक्सेना के लिए)
इस बार नाक तक सिंदूर लगाए औरतें कम दीख रही हैं
छठ में
मां को सजाते थे
जैसे ही पाउडर और काजल के बाद
सिंदूर की डिबिया हाथ में लेते थे
वो कसकर डांटती थी
खुशी कम नहीं होती थी
तुरंत
पिता याद आते थे
पिता केले और फल लाने अख्तर हुसैन के पास जाते
सही रेट लगाकर देते थे
आज का फलवाला दोस्ती ज्यादा दिखाता है
और ज्यादा काट लेता है
इस बार छठ में ईख ज्यादा लिया
गन्ने के रस में खीर तो बनी नहीं
गोबर की कमी से
इस बार मिट्टी का लेप लगाया पूजा घाट पर
भीड़ बढ़ती जा रही है
लोटा थाली घटता जा रहा है
पान का पत्ता खूब है
पानी खराब है
नहीं डूब है
इस भोर में ठंड नहीं है
पटाखे छोड़े जा रहें हैं
पैरों में आलत्ता
और नाखून पर नेलपॉलिश है
ठीक खरना के दिन
पेट में
गैस नहीं बनने की दवा खा लेनी है
इस बार पोखर में नहाना नहीं है समरशेबूल चलाकर डाइरेक्ट अर्घ्य देना है
इस बार फूल महंगे हैं
सूप दौउरा सब महंगे हैं
कोहड़ा भी सस्ता नहीं है
इस बार सब जगह मुस्लिम भाई दुकानदार हैं
सूर्य का प्रतीक महावर
रुई का भी वही बनाते हैं
छठ वाकई महान पर्व है
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अरुण शीतांश
जन्म 02.11.1972
अरवल जिला के विष्णुपुरा गाँव में
शिक्षा -एम ए ( भूगोल व हिन्दी)
एम लिब सांईस
एल एल बी
पी एच डी
*कविता संग्रह*
१. एक ऐसी दुनिया की तलाश में
(वाणी प्र न दिल्ली)
२. हर मिनट एक घटना है (बोधि प्र जयपुर)
३.पत्थरबाज़(साहित्य भंडार , इलाहाबाद)
४.समकाल की आवाज (पचास चयनित कविताएँ)न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन,नई दिल्ली
५.एक अनागरिक का दुःख (वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली)
*आलोचना*
५.शब्द साक्षी हैं (यश पब्लि नई दिल्ली)
६.सदी की चौखट पर कविता (अमन प्रकाशन कानपुर)
*संपादन*
७.पंचदीप (बोधि प्र,जयपुर )
८.युवा कविता का जनतंत्र
( साहित्य संस्थान ,गाजियाबाद )
९.बादल का वस्त्र(केदारनाथ अग्रवाल पर केन्द्रित( (ज्योति प्रकाशन , सोनपत,हरियाणा)
१०.विकल्प है कविता
(ज्योति प्रकाशन,सोनपत, हरियाणा)
११. अंधकार के उस पार,(मुक्तिबोध पर केंद्रित , आनंद प्रकाशन, कोलकाता).
१२. लोक सत्ता के प्रहरी (सुरेश सेन निशांत पर केंद्रित, शिल्पायन प्रकाशन नई दिल्ली)
१३.जहाँ कोई कबीर जिंदा है (कुमार नयन पर केंद्रित), न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन नई दिल्ली
१४. *सम्मान*-
क) शिवपूजन सहाय सम्मान
ख)युवा शिखर साहित्य सम्मान
ग) कुमार नयन स्मृति सम्मान-२०२२
*पत्रिका*
सुंदर कविताएँ