होम कविता हूबनाथ की कविताएँ कविता हूबनाथ की कविताएँ द्वारा Editor - October 30, 2022 71 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet बापू बुनियादी रूप से हिंसक थे वे सभी जिन्हें पढ़ा रहे थे आप पाठ अहिंसा का जनमजात झुट्ठे थे वे सभी जिन्हें चला रहे थे आप सत्य की राह पर और वे हँस रहे थे आपकी बेवकूफ़ी पर मन ही मन आपके अपरिग्रह के पिछवाड़े वे जुटा रहे थे संपत्ति सात पीढ़ियों के लिए आपकी अजीबोगरीब सनक कइयों को लगा था आदमी अजीब है पर काम का हो सकता है इसीलिए वे लगे हुए थे पीछे-पीछे जैसे जैसे आज़ादी करीब आती गई लोग आपसे दूर होते गए आज़ादी की चौखट पर आपके अहिंसा की निर्मम बलि दी गई इतनी हिंसा तो दोनों महायुद्धों में भी नहीं देखी थी आपने यह था उनका असली चेहरा जो आपको पूजते थे देवता की जगह इन्सानों में नहीं मंदिरों और तस्वीरों में होती है कितनी जल्दी आपके चाहनेवालों ने तस्वीर में बदल दिया आपको अभी तो ठीक से सुबह भी नहीं हुई थी आपके सपनों का भारत सपने में ही दम तोड़ चुका था आपके जीते जी अब तो आप मर चुके हो बापू जिन्हें शक़ होता है वे आपके पुतलों को भूनते हैं गोलियों से और पुरस्कृत होते हैं आपकी निर्लज्ज संतानें सरे आम दे रही हैं गालियाँ आपको आपको पिता मानने से कर रही हैं इन्कार उन्हें शर्म आ रही है आपको बाप कहते हुए फ़िलहाल वे नए बाप की तलाश में व्यस्त हैं तब तक आप चाहो तो मुस्कुरा सकते हो तस्वीरों में दीपावली मुबारक वह रोज़ मनाता है दीपावली आसमान की दहलीज़ पर रोज़ टाँक देता है एक सूरज जलते दिये – सा मीठी-मीठी धूप से भर देता है पूरी कायनात को हर ओर रौशनी का पर्व खिलखिलाता है हर रोज़ दिया बुझने बुझने को हो तो पूरे आँगन में सजा देता है छोटे छोटे रंगबिरंगे करोड़ों-अरबों दिये बहुरूपिये चाँद के संग रातभर झरता है अमृत सारे आसमान से सभी पर कोई भी नहीं वंचित न कोई अछूता उसकी दीपावली सबकी है हर रोज़ पर कितने हैं जो मना पाते हैं दीपावली उसके साथ और कितने हैं जो करते हैं इंतज़ार अपनी दीपावली का जो होती है सिर्फ़ अपनी और सिर्फ़ अपनों की जिसमें कोई जगह नहीं दूसरों के लिए मारे जाएँगे (प्रिय कवि राजेश जोशी से प्रेरित) जो बोलेंगे वे तो मारे ही जाएँगे वे भी मारे जाएँगे जो चुप रहेंगे जो गाएँगे विरुदावलियाँ पढ़ेंगे क़सीदे चाटेंगे तलवे बचेंगे वे भी नहीं आग की दुकान खोले बसे हैं बीच बजार एक हों या हों हज़ार जलेगी उनकी भी होली विवेकहीन होती है आग कुछ मरेंगे जलकर कुछ मारकर जलाए जाएँगे जो जुलूस में शामिल हैं वे तो मरेंगे ही जो छिपे आरामगाहों में एक रोज़ वे भी मारे जाएँगे मारे जाने से ठीक पहले कुछ लोग होंगे ज़िंदा पर जो पहले से ही मरे हैं वे भी मारे जाएँगे हूबनाथ, Email: hubnath@mu.ac.in संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं लता तेजेश्वर ‘रेणुका’ की कविता – समुद्री उफान अमित ‘अनहद’ की कविताएँ हरदीप सबरवाल की कविताएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.