Saturday, July 27, 2024
होमग़ज़ल एवं गीतराजेश सलूजा की तीन ग़ज़लें

राजेश सलूजा की तीन ग़ज़लें

1
अपने ज़ख्मों को हम कहाँ कहाँ  रखते
तेरे शहर में ज़ख्मों को तन्हा नहीं रखते 
तेरे वादे का एतबार करने का गुनाह सही
इधर  इंतजार की  कोई इन्तेहा नहीं रखते    
वो जो रुसवा हुए तेरी महफिल मेँ अगर
फिर दुबारा कदम हम वहाँ नहीं रखते 
अब फिज़ा साँसों के मुनासिब न सही लेकिन
हम भी फिर ख्वाबों में ऐसे जहां नहीं रखते 
पत्थरों से हो गए जब ताल्लुक़ अपने फिर
ऐसे हालात में आइने दरम्या नहीं रखते 
2
मेरे रगों में क्या  जम गया है
लहू जो बहता था थम गया है
मेरी आंखों में बसी हैं नफ़रत
अब के कैसा ये मौसम गया है 
दर्द कुछ और ही शक्ल ले बैठा
जाने कैसी दे वो मरहम गया है 
सब सलामत था तेरे बग़ैर फिर
जाने  क्यों बांट वो  वहम गया है
वो लेते रहे तलाशी सब्र की
क्यों फिर हाथ तेरा सहम गया है
क्या ज़रूरत किसी खंजर की
क्या ज़हर कुछ कम गया है
3
भीड़ में खुद की तलाश करते हैं
झूठ में सच की तलाश करते हैं 
हवा ले गई कहाँ रिश्ते अपने
अब भी आहट की तलाश करते हैं 
जाने कहाँ  से गुजर गया बचपन अपना
अब भी उस चौखट की तलाश करते हैं 
घर के अंदर ही बने कई घर अब तो
अपने घर की अब तलाश करते हैं 
कितने किरदारों में बंट गया अब तो
आदमी में आदमी की तलाश करते हैं।

राजेश सलूजा, संयुक्त आयुक्त (जी.एस.टी), इंदौर
मोबाइलः 00-91-8085657571
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest