होम ग़ज़ल एवं गीत राजेश सलूजा की तीन ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत राजेश सलूजा की तीन ग़ज़लें द्वारा Editor - October 30, 2022 122 2 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 अपने ज़ख्मों को हम कहाँ कहाँ रखते तेरे शहर में ज़ख्मों को तन्हा नहीं रखते तेरे वादे का एतबार करने का गुनाह सही इधर इंतजार की कोई इन्तेहा नहीं रखते वो जो रुसवा हुए तेरी महफिल मेँ अगर फिर दुबारा कदम हम वहाँ नहीं रखते अब फिज़ा साँसों के मुनासिब न सही लेकिन हम भी फिर ख्वाबों में ऐसे जहां नहीं रखते पत्थरों से हो गए जब ताल्लुक़ अपने फिर ऐसे हालात में आइने दरम्या नहीं रखते 2 मेरे रगों में क्या जम गया है लहू जो बहता था थम गया है मेरी आंखों में बसी हैं नफ़रत अब के कैसा ये मौसम गया है दर्द कुछ और ही शक्ल ले बैठा जाने कैसी दे वो मरहम गया है सब सलामत था तेरे बग़ैर फिर जाने क्यों बांट वो वहम गया है वो लेते रहे तलाशी सब्र की क्यों फिर हाथ तेरा सहम गया है क्या ज़रूरत किसी खंजर की क्या ज़हर कुछ कम गया है 3 भीड़ में खुद की तलाश करते हैं झूठ में सच की तलाश करते हैं हवा ले गई कहाँ रिश्ते अपने अब भी आहट की तलाश करते हैं जाने कहाँ से गुजर गया बचपन अपना अब भी उस चौखट की तलाश करते हैं घर के अंदर ही बने कई घर अब तो अपने घर की अब तलाश करते हैं कितने किरदारों में बंट गया अब तो आदमी में आदमी की तलाश करते हैं। राजेश सलूजा, संयुक्त आयुक्त (जी.एस.टी), इंदौर मोबाइलः 00-91-8085657571 संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं दीपावली पर विशेष : वशिष्ठ अनूप का गीत कमलेश कुमार दीवान का दीपावली पर एक गीत – आओ अंतर्मन के दीप डॉ. रूबी भूषण की दो ग़ज़लें 2 टिप्पणी उम्दा ग़ज़ल है Dr Prabha mishra जवाब दें धन्यवाद प्रभा जी। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
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