लीलाधर मंडलोई जी की कविता ‘साथ न दे कोई तब भी’ कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की ‘जोदि तोमार डाक न सुने केउ तो तुमि एकला चोलो रे’ की तरह एक प्रेरक व आह्वानपरक कविता है। ‘कागा जब बोलता है मुंडेर पर/ मैं खिड़की नहीं दरवाज़ा खोलता हूं’ कविता-पंक्ति में अब भी गांव की स्मृति, संस्कार, संस्कृति व सरोकार बचे हुए हैं। अन्य
कई बातें भी मार्मिक हैं। बधाई। — डाॅ. रवीन्द्र प्रसाद सिंह ‘नाहर’, दिल्ली
बहुत सुंदर! बहुत सुंदर!
लीलाधर मंडलोई जी की कविता ‘साथ न दे कोई तब भी’ कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की ‘जोदि तोमार डाक न सुने केउ तो तुमि एकला चोलो रे’ की तरह एक प्रेरक व आह्वानपरक कविता है। ‘कागा जब बोलता है मुंडेर पर/ मैं खिड़की नहीं दरवाज़ा खोलता हूं’ कविता-पंक्ति में अब भी गांव की स्मृति, संस्कार, संस्कृति व सरोकार बचे हुए हैं। अन्य
कई बातें भी मार्मिक हैं। बधाई। — डाॅ. रवीन्द्र प्रसाद सिंह ‘नाहर’, दिल्ली