Sunday, October 6, 2024
होमकवितामंजुल सिंह की तीन कविताएँ

मंजुल सिंह की तीन कविताएँ

1 – मानव सभ्यताएं 
उसकी आँखे खुली थी या बंद
ये कह पाना मुश्किल सा ही था
क्योकि उसकी आँखो के बाहर
बड़ी बड़ी तख्तियां लटक रही थी
जिस पर लिखा था मानव सभ्यताएं
उसकी नाक के नथुने इतने बड़े थे
कि पूरी पृथ्वी समां जाये
उसका मुँह ऐसा
जैसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सभ्यताओं
को यही से निगला गया हो
आप उसकी गर्दन को लम्बा कहेंगे
तो आपको नर्क भेजा जायेगा
और छोटा कहेंगे तो भी
आप उसके कंधे देख चढ़
कर कुलांचे भरना चाहेंगे
पर वो जगह
मानव सभ्यता के अनुकूल नहीं
आप उसकी छाती देखकर
खेत बनाना चाहेंगे
पर वहाँ पर्वतों के अलावा कुछ नहीं,
आप उसके पेट पर बनी
नाभि को देखकर नाभि को
ब्रह्माण्ड का केंद्र मान लेंगे
आप उसकी कमर देखकर
उसके चारो ओर
पक्की सड़क बनाना चाहेंगे
उसकी जाँघे आपको
सभी नदियों का
उद्गम स्थल लगेगी
उसकी पिंडलिया आपको
हवा से बाते करती झरनों सी लगेगी
उसके पैर आपको गाँधी की
अहिंसा से भी ज्यादा
मुलायम महसूस होंगे
जिसके नीचे दफ़न है
न जाने कितनी सारी
मरी और सड़ी मानव सभ्यताएं!

2 – रंडी

ईश्वर ने तुम्हे
प्रकृति की नज़र से
बचाने के लिए
दिया ठोड़ी पर काले
तिल का डिठौना,
और दो काली आँखें
तुम्हारे प्रेमी ने
समाज की नज़र से
तुम्हे बचाने के लिए
दी काली गाली-
रंडी थी साली
रंडी चौराहे पर लगी
कोई साफ़ सुथरी मूरत नहीं
और न ही
किसी कोठे पर लेटी
तुम्हारे फारिक होने के इंतज़ार में,
रंडी कोई भी हो सकती है
रंडी तुम्हारी माँ भी हो सकती है
तुम्हारे बाप की गाली में
तुम्हारी बहन भी रंडी हो सकती है
प्रेमी के साथ बिस्तर में होने के बाद
जैसे तुम्हारी प्रेमिका हो गयी थी
तुम्हारे साथ के बाद
रंडी तुम्हारी पत्नी भी हो सकती है
एक दिन खाने में नमक ज्यादा होने पर
रंडी तुम्हारी बेटी भी हो सकती है?
जैसे सारी रंडिया होती आयी हैं।
3 – पागल लड़की
तुम चीजों को
ढूंढ़ने के लिए रोशनी का
इस्तेमाल करती हो
और वो गाँव की पागल लड़की
चिट्ठी का
वो लिपती है
नीले आसमान को
और बिछा लेती है
धूप को जमीन पर
वो अक्सर चाँद को सजा देती है
रात भर जागने की
वो बनावटी मुस्कान लिए,
नाचती है
जब धानुक बजा रहे होते है मृदंग
वो निकालती है कुतिया का दूध
इतनी शांति से की बुद्ध ना जग जाएं
और पिला देती है
नींद में सोई मछलियों को
उसने पिंजरे में कैद कर रखे है
कई शेर जो चूहों से डरते हैं
वो समझती है
नदी को किसी वैश्या के आंसू
इसलिए वह बिना बालों के धुले
अपनी बकरी को डालती है
मांस के टुकड़े
और मेरी कविता सुनाती है
जिसमें मैंने औरत की देह से
उसके हाथ काट कर
अलग नहीं किये थे!
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest