Saturday, July 27, 2024
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पद्मा मिश्रा की दो कविताएँ

1 – सूरज के स्वागत में 
शीत  से कांपती सहमी दीवारों पर
धूप के नन्हे नन्हे टुकड़े
चितकबरे से,,
जैसे खेलते लुकाछिपी का खेल
कुछ शरारती बच्चे,,
झर रही है नीम की पत्तियां,
सर सर मर मर‌,,,,
बदलते मौसम के गीत गाती धरती
करती है स्वागत-नये सूरज का,
और भावनाओं का तपता सूरज
उतर रहा धरती के हरित अंचल पर
धीरे ,,,धीरे,, धीरे,,!
पिघलती,,बिखरती धूप के मृगछौने,
बतिया रहे हैं,, जहां तहां,,
और थरथराती शीत गुम हो रही है
धरती कुछ और संवरती
गुनगुनाती सी,,तप‌ उठती है
युगों से वहीं खड़ी,, प्रिय सूरज के
स्वागत में
युगों से,, युगों तक?
(2) – मेरे सपनों का आसमान
मेरे जीवन का सुनहरा फलक है
मेरे सपनों का आसमान!!
बिखरे हैं जहां मन की विविधताओं के रंग
प्यार ,स्नेह,गरिमा, हर्ष और विषाद,
जीवन के रंगों में घुलता जहान,
मेरे सपनों का आसमान!!
तुमसे मिलने का अनुरागी लाल रंग
और बिछुडने का श्वेत-श्याम,
फूलों की मधुरिमा लिए
बगिया का मुस्काता मौसम,
बूंद बूंद रस बरसाता ,
खुशबुओं का करता रसपान
मेरे सपनों का आसमान!!
पतझड़ की सूखी, रंगहीन उदासी,
पलकों पर सोए आंसुओं की नमी भी
बह रही है नदी सी,
इस नीले समंदर में
और उमड़ता है भावनाओं का तूफान
मेरे सपनों का आसमान!!
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