मरा-मरा जिसने रटा, उसने पाया राम।
मैं मूरख सीधा चला, ‘माया मिली न राम’।।
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मैला  ढोने  की  प्रथा, कहाँ  हुई  है  बंद।
नदियों के सिर कर दिया, हमने अपना गंद।।
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मर जाएँगे पेड़ जब, लगा गले में फाँस।
लिए कटोरा घूमना, माँगा करना साँस।।
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कटे हुए हर पेड़ से, चीख़ा एक कबीर।
मूरख कल को आज की, आरी से मत चीर।।
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भूखी-नंगी झोंपड़ी, मन ही मन हैरान।
पिछवाड़े किसने लिखा, मेरा देश महान।।
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हार न मानी वक़्त से, रहा भले मजबूर।
रहा हमेशा जूझता, मालिक से मज़दूर।।
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हर झंडा कपड़ा फ़क़त, हर नारा इक शोर।
जिसको भी परखा वही, औना-पौना चोर।।
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ख़ुद में ही जब है ख़ुदा, यहाँ-वहाँ क्यों जाउँ।
अपनी पत्तल छोड़ कर, मैं जूठन क्यों खाउँ।।
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पाप न धोने जाउँगा, मैं  गंगा  के  तीर।
मजहब अगर लकीर है, मैं क्यों बनूँ फ़क़ीर।।
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जब से फेंके तोड़ कर, गंडे औ’ ताबीज़।
धूप-हवा आने लगी, मेरी भी दहलीज़।।
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चॉक्लेट तो हूँ नहीं, और  न  आइस्क्रीम।
उतरा विरलों के गले, मैं वो कड़वा नीम।।
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वो कूड़े के ढेर से, बीन रहा था ख़्वाब।
क़िस्मत लाख सवाल थी, वो था एक ज़वाब।।
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बाराती लौटे सभी, भर-भर अपना पेट।
कुत्तों के सँग मुफ़लिसी, जूठन रही समेट।।
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थू थू ऐसी प्रगति पर, थू शहरों की ज़ात।
चिड़ियों का कलरव हुआ, बीते दिन की बात।।
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कवि ! कविता के नाम पर, यूँ मत करो प्रपंच।
‘गटर’ न बन जाए कहीं, ये कविता का मंच।।
प्रतिष्ठित कवि, दोहाकार, शायर, नुक्कड़ नाट्य कर्मी, समीक्षक और संपादक। विभिन्न विधाओं में 7 कविता संग्रह प्रकाशित, 6 पुस्तकों का संपादन। हिंदी अकादमी , दिल्ली सरकार का साहित्यिक कृति सम्मान ; वातायन ( लंदन ) का अंतरराष्ट्रीय कविता सम्मान ; कविता का प्रतिष्ठित 'परम्परा ऋतुराज सम्मान' देश-विदेश में अनेक कविसम्मेलन, संगोष्ठियों, विश्व हिंदी सम्मेलनों में भागीदारी। सलाहकार सदस्य : फ़िल्म सेंसर बोर्ड, सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार। संपर्क - नरेश शांडिल्य सत्य सदन, ए 5 , मनसा राम पार्क, संडे बाज़ार रोड, उत्तम नगर, नयी दिल्ली 110059 9868303565 nareshshandilya007@gmail.com

2 टिप्पणी

  1. सशक्त दोहों की सुंदर प्रस्तुति के लिए नरेश शांडिल्य जी को बधाई और पूर्वी जी को साधुवाद।

  2. गहरी बात को कम शब्दों में बेबाकी से कहने की एक बहुत असरदार विधा को दोहा है, और कवि नरेश शांडिल्य इस विधा के अग्रणी साहित्यकार हैं।उनका एक एक दोहा चिंतन,मनन को विवश करता है, साधुवाद…

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