होम कविता सत्यम सोलंकी की तीन कविताएँ कविता सत्यम सोलंकी की तीन कविताएँ द्वारा सत्यम सोलंकी - February 7, 2021 31 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1- प्रेम हो तुम मैंने प्रेम किया तुमसे अपने विवादित व्यक्तित्व के साथ और छूट गई मुझसे मेरी रहस्मयी प्रवृतियाँ मैं बिखरा हुआ आया था तुमने मुझे समेट दिया अधूरा था जिसे तुमनें पूरा किया निरंतर होती रही हमारी वाद – विवाद फिर इक रोज तुमनें हाँ कहा और बंध गई मेरे पैरों में तुम्हारे प्रेम की जंजीरें मिल गई मेरी देह को तुम्हारी देह की महक तुम्हारा मुझसे मिल जाना सुंदरता को परिभाषित करने जैसा लगा और सब बदल गया … अब मैं विवादित नही रहस्यमयी नही बन गया बस एक ” प्रेमी ” जो प्रेमी ” कवि ” बना अपनी कविताओं के लिए और वो कविताएँ हो तुम मेरा प्रेम हो तुम | 2- सूर्यमुखी का प्रेम पौधा जब असमंजसों की बारात लेकर तुम मुझसे मिलती थी अपनी देह की पकड़ से मेरे प्रेम का परिचय लेती थी मैं चंचल भौंरे सा तुम्हारे देह में अपने हिस्से का प्रेम श्रृंगार खोजता था वात्सल्य के लोभ में रोते बच्चे सा तुम्हारे कंधों को टटोलता था तुम्हारे स्पर्शों ने गंगाघाट पर मेरे प्रेमघाट को छुआ था मैं उसी पल तुम्हारा सम्पूर्ण हुआ था प्रेम हमारा इतना पावन था गगन भी हमारे प्रेम के जलन से व्याकुल था संबंध हमारा इतना गहरा था सूर्यमुखी का प्रेम पौधा उसी क्षण हमारे बीच जन्मा था 3- प्रेम के पर्याय प्रेम के अनेक पर्यायवाची हैं और उन सभी को मिलाकर अनेक शब्दों का एक शब्द “ज़िन्दगी” हो तुम मेरे हिस्से क्या आएगा तुम्हारी तरफ से ये कभी मैंने सोचा ही नही बनना चाहा तुम्हारी आरती की थाली का जलता कपूर जो तुम जलाती हो शुद्ध होकर और जिसकी गंध तुम्हें आनंदित करती है | संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं समृद्धि जैन की कविता – बदल गई ये दुनिया कृष्ण कांत पण्ड्या की कविता रश्मि पाण्डेय की कविता – अधूरे सपने Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.