विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्मित एव निर्देशित फ़िल्म दी कश्मीर फ़ाइल्स पर हमे लखनऊ से प्रतिष्ठित युवा उपन्यासकार बालेन्दु द्विवेदी की लिखी समीक्षा प्राप्त हुई है। बालेन्दु के दो उपन्यास ‘मदारीपुर जंक्शन’ और ‘फुरस्तगंज’ पाठकों और आलोचकों में बहुत लोकप्रिय हुए हैं। आमतौर पर पुरवाई में सामग्री रविवार सुबह अपलोड होती है। मगर हमने एक पोस्ट के ज़रिये अपने पाठकों से आग्रह किया था कि यदि आपने फ़िल्म सिनेमा हॉल में देखी है तो उस पर अपनी समीक्षा लिख कर भेजिये। हम दि कश्मीर फ़ाइल्स पर प्राप्त होने वाली समीक्षाएं प्रतिदिन अपलोड किया करेंगे। पाठकों से निवेदन है कि पुरवाई के ईमेल editor@thepurvai.com पर अपनी समीक्षा भेजें।
बालेन्दु द्विवेदी
अच्छी टिप्पणी है बालेंदु द्विवेदी की ! मैं कल शाम ही पत्नी के साथ सिनेमा हॉल में था। वे फिल्म के कई दृश्यों को देखकर इतना दहल गई थीं कि मुश्किल से ही अंत तक देख पाईं। फिल्म थोड़ी लंबी हो गई है और बीच-बीच में थोड़ी धीमी भी। सबसे अधिक बेनकाब होता है जेएनयू जिसे इस देश ने ही कथित उच्च शिक्षा के नाम पर पनपाया है। प्रांत और केंद्र सरकार की अतिनपुंसकता हैरान ही नहीं, परेशान भी करती है। क्या ही अच्छा हो कि इस फिल्म के बाद एक उच्च स्तरीय जांच समिति बने और उस समय के दोषी और ज़िम्मेदार लोगों को चुन-चुनकर सजा दिलाई जाय। आख़िर इतने लोगों की जान लेने वालों को बख़्शा ही क्यों जाय? फ़िल्म लगातार विश्वास खोते देशी-विदेशी मीडिया और कथित बुद्धिजीवियों को और भी अविश्वसनीय बनाती है। कुल मिलाकर इस फिल्म को देखे बिना उस दौर के रक्तरंजित कश्मीर और कश्मीरी पंडितों की मर्मांतक व्यथा को नहीं समझा जा सकता !