यात्रा…….
जिसका नाम आते ही मन में  अजीब सी तरंगे  उसने लगती है।  एक  उत्साह  ,एक  जोश उत्पन्न हो जाता है  कि  लगातार  एक ही तरह की  दैनिक जीवन से  नया  कुछ हटकर  देखने को,  घूमने को,  सीखने को मिलेगा।जहां हम स्वच्छंद होंगे , पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ  शायद  कुछ कम होगा। जहां अपनी भावनाओं को, अपने सपनों को,  आपकी इच्छाओं को  जीने का  एक अवसर मिलेगा।  इसी के साथ- साथ  अपने अनुभवों को,  अपनी यादों को,  अपने आनंद को  हम कैमरे के माध्यम से  एक अनंत ख़ज़ाने के रूप में अपने साथ लेकर आएंगे । यही है एक यात्रा  की सुखद अनुभूति।  इन  यात्राओं के  स्मृति चित्रों को दोबारा जब भी हम देखते हैं तो जैसे एक फिल्म की भांति  पूरी यात्रा हमारी आंखों के सामने से  गुजर जाती है  और  हमें एक नई  ताज़गी,  जीने की प्रेरणा फिर से दे जाती है और  यदि यह यात्रा  किसी धार्मिक स्थल,  तीर्थ स्थल  और ऐतिहासिक  होने के साथ-साथ  प्रकृति से भी जुड़ी हो  तो क्या बात है।
हम हमेशा से ही सपने देखते हैं। पर यह सपने ऐसे होते हैं जिन्हें किसी के साथ शायद ही साझा कर पाएं। कोई भी चित्र देखकर, कोई फिल्म देखकर, कोई दृश्य देखकर या किसी की बातें सुनकर, वृत्तांत सुनकर हमारे मन में भी कहीं ना कहीं एक इच्छा, एक हूक सी उठती है कि हमें भी उस विशेष स्थान को देखना है, उसकी यात्रा करनी है  जीवन में कभी न कभी तो ऐसा मौका जरूर मिलेगा। हम सभी के जीवन में यह पल जरूर आते हैं जब  हमारी दबी हुई इच्छाएं साकार रूप ले लेती है ।जब हमें उनको पूरा करने का कोई कारण कोई, हेतु प्राप्त होता है।
कोई भी यात्रा अपने आप में अनोखी ही होती है और इसके साथ यह भी उसके चित्र भी पास में हो तो वह अविस्मरणीय बन जाती है। यदि इस यात्रा के अनुभव चित्र सहित हम दूसरों के साथ साझा करते हैं तो वह संस्मरण बन जाती है। वैसे तो जीवन भी एक लंबी यात्रा ही है जिसमें विभिन्न प्रकार के पड़ाव आते हैं सुख-दु:ख ,हानि- लाभ, मिलन – जुदाई जीवन की यात्रा के कुछ अविस्मरणीय ,अवश्यम्भावी पड़ाव होते हैं जो सभी के जीवन में एक अलग अनुभव और सीख ले कर आते हैं। जब इन्हीं अनुभवों को  यदि शब्द प्रदान कर दिए जाते हैं तो वह ‘रचना’ बन जाती और शब्द ब्रह्म है इसलिए वह अमर हो जाती है।
बचपन में से लेकर मैं कभी भी खजुराहो के बारे में, उसके मंदिरों इत्यादि के बारे में कोई भी कार्यक्रम, मैगजीन इत्यादि  में देखती थी तो मन में इच्छा जरूर होती थी कि जीवन में एक बार तो यहां की यात्रा करनी है। न जाने कब ये इच्छा पूरी  होगी।
ये अवसर मुझे 1 फरवरी 2020 को खजुराहो में ESW ( Environment and Social welfare Society) सोसाइटी की तरफ से 2 दिवसीय अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी में जाने का सुवसर प्राप्त हुआ।
मेरी खजुराहो की यात्रा के पीछे की एक महत्वपूर्ण कारण था ।
मेरा मन अति प्रसन्न हुआ और मैंने जल्द से जल्द ट्रेन की टिकट रिज़र्व करवा लिए कि मुझे समय पर खजुराहो पहुंचना है। निश्चित समय पर मैं खजुराहो पहुंच गई।  मन में बहुत उत्साह था कि आज बचपन का सपना सच होने जा रहा था। सबसे पहले संगोष्ठी में उपस्थित रहना भी आवश्यक था इसीलिए नियत समय पर संगोष्ठी प्रारंभ हो गई।
 वहाँ पर मेरे द्वारा डॉ देवी शंकर सुमन जी ,साइंटिस्ट मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज गवर्नमेंट ऑफ इंडिया, डॉ उलरिच वर्क, प्रेसिडेंट जर्मन एसोसिएशन ऑफ होम थेरेपी का स्वागत का विधिवत स्वागत किया गया। ।
बहुत ही सुंदर संगोष्ठी और पर्यावरण पर आधारित विषयों के साथ सभी ने अपने रिसर्च पेपर (पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन ) प्रस्तुत किए जिनसे बहुत कुछ सीखने, जानने का मौका मिला ।डॉ उलरिच जो कि जर्मनी से थे उन्होंने हवन थेरेपी पर बहुत सुंदर प्रेजेंटेशन प्रस्तुत की ।उन्होंने बताया कि किस प्रकार से हवन हमारे पर्यावरण के लिए, हमारे अस्तित्व के लिए, हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। यह विडंबना ही कहेंगे कि हम अपनी सभ्यता ,संस्कृति को भूलते जा रहे हैं जो कि हम पश्चिमीकरण की तरफ बढ़ते जा रहे हैं ,कुछ समय की मांग है और कुछ मजबूरी कही जा सकती है। जबकि  प्राचीन काल से हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा कोई भी शुभ कार्य हवन ,यज्ञ इत्यादि से प्रारंभ किया जाता था जिससे न केवल वातावरण शुद्ध होता था बल्कि हर तरफ एक आध्यात्मिक, सात्विक ऊर्जा का संचार होता था जो हमारे मन मस्तिष्क तथा विचारों को भी सात्विकता प्रदान करती थी ।परंतु आज जहां हर तरफ प्रदूषण का ही बोलबाला है तो इस तरह का कार्य बहुत सही दिशा में काम करेगा।
 कुल मिलाकर संगोष्ठी का अनुभव बहुत ही अच्छा रहा, स्मरणीय रहा।
ये तो संगोष्ठी से संबंधित कुछ अनुभव थे।
फिर मैंने अपना शोधपत्र वाचन किया।
इसके पश्चात मैं निकल गई अपनी खजुराहो की यात्रा पर। इसके लिए मैंने एक टैक्सी किराए पर ली ताकि कम समय में मैं अपनी यात्रा पूरी कर सकूं।
खजुराहो के मंदिर अपने आप में ही अपनी मिसाल हैं। खजुराहो के मंदिरों को चंदेल वंश के राजाओं ने बनवाया था। यहां 85 मंदिर थे, जिनमें से सिर्फ़ 20 ही बचे हैं। खजुराहो के मंदिरों की बाहरी दीवारों की कामुक मूर्तियां विश्वप्रसिद्ध हैं और यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की लिस्ट में शामिल हैं।
सभी मंदिरों के बारे में एक साथ बताने की बजाय मैं एक एक मंदिर की विशेषता और उसके बारे में कुछ स्मृतियां आपके साथ बांटना चाहती हूं।
खजुराहो कि मंदिर अपने आप में अद्वितीय हैं। यहां हर पत्थर पर जीवन दिखाई देता है ।प्रत्येक मंदिर अपने आप में भव्यता का सबसे बड़ा नमूना कहा जा सकता है। यहां की स्थापत्य कला, शिल्प कला देखते ही बनती है ।प्रत्येक मंदिर के द्वार पर अर्ध चंद्र या सूर्य के चित्र बने हुए हैं जिसके दोनों ओर शंख दिखाई देते हैं। सभी मंदिर अपने आप में भव्यता लिए हुए हैं जिनका अलग अलग महत्व है। यहां पर सभी मंदिर सूर्योदय पर खुलते हैं और सूर्यास्त पर बंद हो जाते हैं। यही सिस्टम रखा हुआ है यहां पर जिसका पालन बहुत ही सख्ती से किया जाता है ।एक मंदिर में रात को लाइट एंड साउंड शो होता  है जिसकी टिकट ढाई सौ रुपए रखी गई है। यह लगभग सवा घंटे का शो होता है जिसमें मंदिरों के बारे में बहुत विस्तार से बताया जाता है साथ में उनके इतिहास तथा इन मंदिरों के निर्माण के पीछे जो कथाएं किवदंतियां हैं उनके बारे में विस्तार से सूचना दी जाती है। खजुराहो के मंदिर चंदेल वंश के द्वारा बनाए गए हैं। इन सभी मंदिरों में जीवन के सभी पड़ावों पर प्रकाश डाला गया है। मंदिर में जाने से पहले वहां पर अप्सराओं की मूर्तियां है जो नारी सौंदर्य को उजागर करती हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि हमें जीवन में इस तरह के अवसर मिलते रहेंगे जब विषय वासनाएं हमें अपनी और आकृष्ट करती हैं ।हमें फिर भी स्वयं पर संयम रखते हुए अपना कर्म करते रहना है। यह अप्सराएं विभिन्न मुद्राओं में दिखाई देती हैं जिनमें दैनिक जीवन से संबंधित कार्यकलाप भी सम्मिलित हैं। इसके बाद गृहस्थ धर्म, प्रेम, समर्पण भाव भी दिखाया गया है। अभी तक हम लोग यह सोचते थे कि खजुराहो के मंदिर केवल स्त्री पुरुष के मिलन, कामशास्त्र की गाथा का वर्णन करते हैं। वहां पर अंतरंग चित्र अधिक दिखाई देते हैं। प्रेम संबंधों को बहुत सूक्ष्मता से दिखाया गया है। परंतु इनके पीछे जो इतिहास है और जो भावनाएं हैं वह अलग है। यहां पर प्रेम प्रदर्शन के साथ इन मूर्तियों के चेहरों के भावों पर कहीं भी वासना या उत्तेजना नहीं दिखाई देती है। उनके चेहरों पर एक दिव्यता ,एक समर्पण ,एक संतुष्टि, एक तेज दिखाई देता है जो  गृहस्थ धर्म  के स्तंभ माने गए हैं। यही प्रेम संबंध ,समर्पण सृष्टि चक्र का आधार है। यहीं से एक औरत मां बनने का सौभाग्य प्राप्त करती है और मां बनना पूर्णता को प्राप्त करना है। प्रसव पीड़ा का आनंद और उसके बाद का फल क्या होता है इसके बारे में शब्दों में बता पाना संभव नहीं है। ईश्वर की प्राप्ति का हेतु हमारा शरीर और मन ही है। हम अपने शरीर ,अपने मन के द्वारा संतुष्टि को प्राप्त करने के बाद ईश्वर की ओर अधिक  दृढ़ता पूर्वक कदम बढ़ाते हैं। तृप्ति भी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। शरीर और आत्मा तृप्त होने के बाद हम एक दूसरे पायदान पर चलते हैं जहां पर हमें दिव्यता, भव्यता और स्वार्गिक आनंद की प्राप्ति हो सकती है क्योंकि इन सब के लिए हमारे चरित्र में बहुत सी चीजों की आवश्यकता है। कुल मिलाकर आज मेरा भ्रम भी दूर हो क्या कि खजुराहो के मंदिर केवल प्रेम, संबंधों पर ही आधारित नहीं है। यहां पर बहुत कुछ देखने, बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जैन धर्म के मंदिर में जहां बहुत से पुराने चित्र दिखाई दिए जिनमें शोध की बहुत से संभावनाएं नजर आई ।
यहां पर एक शिवलिंग है जिसमें 108 छोटे-छोटे शिवलिंग बने हुए हैं ।यह शिवलिंग केवल शिवरात्रि पर ही पूजा के लिए उपलब्ध हो पाता है यानि इसके कपाट केवल शिवरात्रि पर ही खुलते हैं। कहा जाता है यहां पर सुहागिने अपने पति की लंबी आयु के लिए वर मांगती हैं। इस मंदिर का नाम दुल्हादेव मंदिर इसलिए पड़ा है कि एक बार एक बारात जा रही थी तो दूल्हे की तबीयत अचानक से खराब हो गई और वह परलोक सिधार गया तो इसी मंदिर में उसकी पत्नी ने आकर पूजा की तो उसे पुनः जीवनदान मिल गया। इसलिए इस मंदिर का नाम दुल्हादेव मंदिर है। बहुत ही शांत तथा स्वच्छ निर्मल वातावरण। अविस्मरणीय अनुभव
 प्रस्तुत चित्र मंतेश्वर महादेव मंदिर का है। यहां पर प्रात:काल सभी भक्तजन पूजा करने आते हैं जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि खजुराहो में मंदिर सूर्योदय के समय खुलते हैं और सूर्यास्त पर बंद हो जाते हैं। प्रस्तुत मंदिर में लगभग 18 फुट लंबा शिवलिंग एक बहुत बड़े चबूतरे पर स्थित है। मैंने अभी तक कि अपनी जिंदगी में इतना बड़ा शिवलिंग नहीं देखा है। अद्भुत, अद्वितीय और आकर्षक भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग अनंतता, विशालता लिए हुए हैं जिसे देख कर आत्मिक शांति और एक सात्विक ऊर्जा का संचार हुआ। वहां पर पंडित जी ने बताया कि यह शिवलिंग फुट कुल 18 फुट का है जिसमें 9 फुट ऊपर और 9 फुट नीचे है ।शिवलिंग के नीचे एक बहुमूल्य मणि चंदेल वंश के राजाओं के द्वारा दबाई गई है कि वह मणि सुरक्षित रह सके। शायद उस मणि का यह प्रभाव है कि अभी तक यह शिवलिंग कहीं से खंडित नहीं नजर आता। बहुत ही सुंदर नजारा ।मैं अपने आप को भाग्यशाली समझती हूं कि मैं यहां पहुंचकर इस शिवलिंग के दर्शन कर पाई।
खजुराहो के जैन मंदिर जहाँ पर शाकाहार परोपकार ,पर्यावरण संरक्षण इत्यादि के बारे में कितने सुंदर संदेश दिए हुए हैं। इसी के साथ यहां पर पौराणिक भारतीय सभ्यता के बारे में बहुत सुंदर वर्णित चित्र भी प्रस्तुत थे जिन्हें मैं सहेज कर अपने पास ले आई तथा आप सबके साथ साझा करना चाहती हूं। कृपया आप भी देखिए कितना विशाल है हमारा भारत देश और उसका धर्म ,उसकी संस्कृति, उसकी विरासत ।गर्व है हमें हमारे भारतीय  होने पर ।
जय मां भारती।
 खजुराहो के  मंदिरों की श्रृंखला में आज हम बात करते हैं ‘कंदरिया महादेव’ मंदिर की ।सभी मंदिरों की तरह यह मंदिर भी बहुत भव्य तथा मनमोहक है। यहां की शांति और सौम्यता में तो देखते ही बनती है।
कंदरिया महादेव मंदिर पश्चिमी समूह के मंदिरों में विशालतम है। यह अपनी भव्यता और संगीतमयता के कारण प्रसिद्ध है। इस विशाल मंदिर का निर्माण महान चन्देल राजा विद्याधर ने महमूद गजनवी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में किया था। लगभग 1050 ईसवीं में इस मंदिर को बनवाया गया। यह एक शैव मंदिर है। तांत्रिक समुदाय को प्रसन्न करने के लिए इसका निर्माण किया गया था। कंदरिया महादेव मंदिर लगभग 107 फुट ऊंचा है। मकर तोरण इसकी मुख्य विशेषता है। मंदिर के संगमरमरी लिंगम में अत्यधिक ऊर्जावान मिथुन हैं। अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार यहां सर्वाधिक मिथुनों की आकृतियां हैं। उन्होंने मंदिर के बाहर 646 आकृतियां और भीतर 246 आकृतियों की गणना की थीं।
अंदर मंडप में जाने के लिए प्रवेश द्वार पर अर्धचंद्र तथा शंख के चित्र बनाए गए हैं ।उसके बाद अंदर रोशनी का प्रबंध इस प्रकार से किया गया है कि आर पार आने वाली रोशनी का केंद्र सामने पड़ी मूर्ति पर बिल्कुल स्पष्ट रूप से दिखाई दे। यह जो चित्र दिखाई दे रहे हैं यहां पर कोई भी कृत्रिम रोशनी का प्रबंध नहीं है क्योंकि जैसा भी कि मैंने पहले भी कहा है कि यहां मंदिर सूर्य उदय पर खुलते हैं और सूर्यास्त पर बंद हो जाते हैं तो अधिकतर कृत्रिम रोशनी की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। परंतु मंदिरों के अंदर भी वास्तु कुछ इस प्रकार से है कि रोशनी को मुख्य मंदिर की मूर्ति तक केंद्रित किया गया है ताकि भगवान के दर्शन बहुत स्पष्ट और सुंदर तरीके से हो सके ।यह जो चित्र लिए गए हैं  मोबाइल के कैमरे से लिए गए हैं और देखिए कितने स्पष्ट, सुंदर हैं। इसी के साथ मंदिर के मंडप में जाने से पहले दाएं तरफ एक लिपि अंकित की गई है जिसमें प्रथम “ओम नमः शिवाय” बिल्कुल स्पष्ट दिखाई दे रहा है उसके बाद शायद हम पढ़ पाने में संभव नहीं हो पाए। परंतु इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय भी यह सब कुछ इतना उन्नत था और लिपियां आसानी से पढ़ी और समझी जा रही थी तभी तो वह पत्थरों पर उकेरी गई ।यहां की शिल्प कला बहुत ही अद्वितीय है। पत्थरों पर अंकित मूर्तियां अपने आप में इतनी सौम्य और सुंदर है कि उनको शब्दों में अभिव्यक्त कर पाना शायद मेरे बस में नहीं है ।
खजुराहो के मंदिर की श्रृंखला में दूसरा मंदिर है विश्वनाथ मंदिर। इसमें भगवान विश्वनाथ यानी शिवलिंग रूप में विराजमान है। प्रत्येक मंडप में यहां बहुत सुंदर चित्रकारी और शिल्प कला, नक्काशी देखने को मिलती है ।नंदी मंडप में जब मैंने देखा तो नंदी जी की इसने विशाल प्रतिमा कि मन गदगद हो गया। बहुत सुंदर शांत वातावरण ऐसा लगता है जैसे ईश्वर का साक्षात्कार हो गया हो। यहां के मंदिरों की विशेषता यह है कि एक ही पत्थर के बनाए गए हैं और पता नहीं उन में कौन सी धातु मिलाई गई है कि अभी तक इतने मजबूत और चिकने है के सभी लोग, पर्यटक दांतो तले उंगली दबा लेते हैं। यहां की भव्यता सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर के कक्ष में जहां विश्वनाथ जी, की शिवलिंग की स्थापना है वहां पर रोशनी का इस तरह से प्रबंध किया गया है कि क्रॉस वेंटीलेशन के तहत बिना किसी रोशनी के अंदर आते ही शिवलिंग के दर्शन बहुत ही सुंदर प्रकार से हो जाते हैं क्योंकि दोनों तरफ की रोशनी शिवलिंग पर दिखाई देती है ।हर प्रकार के मंदिर के दरवाजे के बाहर अर्धचंद्र या सूर्य का बिंब पूर्ण गोला बनाया गया है। उसके दोनों तरफ शंख हैं। विश्वनाथ मंदिर के  मंडप के बाहर एक लिपि का चित्र भी दिखाई दिया जहां पर ओम नमः शिवाय बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा है। यानी तब तक हम यह लिपियां और भाषा बिल्कुल सही से पढ़ने और लिखना सीख गए थे। अनुसंधान का विषय है ।
देवी जगदम्बा मंदिर
कंदरिया महादेव मंदिर के चबूतरे के उत्तर में जगदम्बा देवी का मंदिर है। जगदम्बा देवी का मंदिर पहले भगवान विष्णु को समर्पित था और इसका निर्माण 1000 से 1025 ईसवीं के बीच किया गया था। सैकड़ों वर्षों पश्चात यहां छतरपुर के महाराजा ने देवी पार्वती की प्रतिमा स्थापित करवाई थी इसी कारण इसे देवी जगदम्बा मंदिर कहते हैं। यहां पर उत्कीर्ण मैथुन मूर्तियों में भावों की गहरी संवेदनशीलता शिल्प की विशेषता है। यह मंदिर शार्दूलों के काल्पनिक चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। शार्दूल वह पौराणिक पशु था जिसका शरीर शेर का और सिर तोते, हाथी या वराह का होता था।
कुल मिलाकर इस मंदिर की यात्रा भी अविस्मरणीय रही। खजुराहो में जो बात सबसे अच्छी लगी वह यह कि यहां पर किसी भी प्रकार के किसी पुजारी के दर्शन बहुत कम हुए और कहीं भी किसी ने दान- दक्षिणा के लिए मजबूर नहीं किया जैसा कि ज्यादातर हिंदू तीर्थों पर आजकल होता है कि आप को दान- दक्षिणा के लिए मजबूर किया जाता है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो तरह-तरह की बातें बनाई जाती हैं और हमारी श्रद्धा और आस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है। मैं यह पूछना चाहती हूं कि यदि जो लोग पैसा नहीं दे सकते या नहीं देते हैं क्या उनमें श्रद्धा नहीं है, ईश्वर में आस्था नहीं है? वे लोग इतनी दूर यदि इतना सब कुछ खर्च करके,अपने पीछे से हर तरह से व्यवस्था करके आए हैं तो क्या बिना आस्था ,बिना श्रद्धा के आए हैं? और यदि हम 50 ₹100 चढ़ा दे तो क्या वह श्रद्धा जाग जाएगी ?
इस तरह के कार्यकलापों से मन दु:खी हो जाता है ।पर यहां ऐसा कुछ नहीं था जिसे देख कर मन को सुकून मिला।
बस इसके बाद वापसी का समय हो गया और वैसे भी खजुराहो के सभी मंदिरों के दर्शन ईश्वर की असीम कृपा से मैंने कर ही लिए थे। यह एक ऐसा वृतांत है जो मन में बहुत शांति, श्रद्धा और एक नई चेतना लेकर आया था। ईश्वर का बहुत-बहुत धन्यवाद इतने पवित्र स्थल के दर्शन मैं कर पाई। बहुत ही अविस्मरणीय यात्रा ।इस यात्रा के लिए मैं उस असीम शक्ति का हृदय से धन्यवाद देती हूं। इसी के साथ-साथ मन में बहुत कुछ और भी जागृत हो गया है कि काश कभी, मदुरै, तमिलनाडु, तिरुचिरापल्ली  के भी मंदिर एक बार देखने का सौभाग्य प्राप्त हो? देखते हैं यह इच्छा कब पूरी हो पाती है ,सब कुछ प्रभु के हाथ है। जब प्रभु इच्छा………
जितना मिला है उसमें भी  संतोष करना चाहिए। बस इससे अधिक और क्या लिखना है…

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