Friday, October 4, 2024
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दाऊजी गुप्त : एक बहुआयामी सिद्धान्तों वाला व्यक्तित्व

Jai Verma with Dauji and Lilitamba
फरवरी 2019 में मैं भारत में थी। एक दिन अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति से डॉ.प्रवीन गुप्ता का फ़ोन आया कि आगरा में सम्मान समारोह के उपलक्ष्य में आपको निमंत्रित किया जा रहा है। बाबू गुलाबराय स्मृति संस्था के अध्यक्ष डॉ. श्री भगवान शर्मा जी ने आपको आमंत्रित किया है। यह संस्था आपको सम्मानित करना चाहती है। आप हमें भारत का अपना आवासीय पता भेज दीजिए, ताकि हम कार्यक्रम हेतु आपके जाने-आने  का प्रबंध कर सकें। मैंने अपनी बहन के नोएडा वाले घर का पता उन्हें भेज दिया।
डॉ. श्री भगवान शर्मा जी को 9वें विश्व हिंदी सम्मेलन, जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) एवं 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल में मैं और डॉ. वर्मा दोनों मिल चुके थे। उनके साथ एक आत्मीयता का रिश्ता बन चुका था। अतः प्रवीन जी के कहने पर मैं आगरा जाने के लिए तैयार हो गई। प्रवीन जी ने कहा कि हम सुबह के 7 बजे नोएडा पहुँच जाएँगे। मैंने सम्मेलन में जाने से पूर्व ही सम्पूर्ण तैयारी कर ली। कड़ाके की सर्दी में मैंने सोचा सलवार कमीज पहनना उचित रहेगा, किन्तु अंत में सांस्कृतिक परिधान के अनुसार साड़ी पहनना ही ठीक समझा।
जब मुझे लेने आने वाली बड़ी कार का मैंने दरवाज़ा खोला  तो मुझे डॉ. दाऊजी गुप्त आगे वाली सीट पर बैठे हुए दिखाई दिए। उनको देखकर मन बहुत प्रफुल्लित हुआ। मैंने उन्हें तुरंत प्रणाम किया और प्रवीन जी से कहा कि मुझे पूर्व ही दाऊजी के बारे में क्यों नहीं बताया गया कि आज उनके साथ यात्रा का सौभाग्य मिल रहा है ? दाऊजी मुस्कुराए और बोले कि हम आपको सरप्राइज़ देना चाहते थे। दाऊजी से मैं अनेकों बार पहले भी इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका, अमेरिका एवं भारत में मिल चुकी थी।
डॉ. दाऊजी गुप्त जी की साहित्यिक रुचि से प्रेरणास्वरूप हमारे हृदय में भी एक नई स्फूर्ति का संचार हुआ। उनका व्यक्तित्व शालीन एवं बुद्धिमान तो था ही साथ ही साथ उनके अंदर कोई अहंकार की भावना कहीं नहीं थी। उनका हँसमुख चेहरा नवजात शिशु की कोमल तनाव-रहित मुद्रा के समान आज भी स्मृतियों में कौंध जाता है।              
इंग्लैंड में डॉ. दाऊजी गुप्त का अक्सर आना होता था। इनके सुपुत्र डॉ. पद्मेश गुप्त से हमारा परिचय  सन् 1999 से है। पद्मेश जी के साथ अनेक साहित्यिक कार्यक्रमों को आयोजित करने एवं यात्रा करने का सुअवसर मुझे प्राप्त हो चुका है।
मई 2009 में डॉ. दाऊजी गुप्त डॉ. मेहता के घर पर न्यूयॉर्क में मिले। वहाँ पर गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय के साथ हम लोग अमेरिका एवं कनाडा गए थे। न्यूयॉर्क में डॉ. मेहता के घर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था। डॉ. दाऊजी गुप्त इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे। दाऊजी ने अपनी कविता सुनाई और हमारी सबकी कविताएं भी प्रेमपूर्वक सुनीं। उनकी कविताओं का पाठ अनुपम था। नवंबर 2009 में  लखनऊ की प्रसिद्ध संस्था “अखिल भारतीय मंचीय कवि पीठ” द्वारा मुझे ‘जीवन उपलब्धि सम्मान’ से सम्मानित किया गया था। इस अवसर पर डॉ. दाऊजी गुप्त से भेंट करने एवं उनका वक्तव्य सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने भाषण से लखनऊ की तहज़ीब और ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डाला और उसके उपरांत सम्पूर्ण विश्व के संदर्भ में वक्तव्य प्रस्तुत किया। दाऊजी के  द्वारा लिखी गई महात्मा गांधी तथा मार्टिन लूथर किंग एवं अम्बेडकर तथा लोहिया पर आधारित पुस्तकें ज्ञान का भंडार हैं। इनकी सांस्कृतिक चेतना का आलोक इनकी मुख वाणी से स्पष्ट नि:सृत होता है। 
 वर्ष 2012 में विश्व हिंदी सम्मेलन, जोहान्सबर्ग में  दाऊजी के साथ भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ था। यह यादगार पल था। अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति, दिल्ली के वे अध्यक्ष थे, उनके करकमलों से वर्ष 2013 में मुझे सम्मान प्राप्त हुआ था। 
 सितम्बर 2018 में डॉ. वर्मा की स्मृति में ‘काव्य रंग’ संस्था ने उनके नाम पर ‘डॉ.महिपाल सिंह वर्मा काव्य रंग सम्मान’ देना प्रारंभ किया। डॉ. पद्मेश गुप्त को वार्षिक कवि सम्मेलन में ‘डॉ.महिपाल सिंह वर्मा काव्य रंग सम्मान’ से सम्मानित किया गया। उस दौरान डॉ. दाऊजी गुप्त कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नॉटिंघम आए थे। डॉ.दाऊजी गुप्त जी ने कार्यक्रम में अपना ज्ञानवर्धक वक्तव्य दिया और डॉ. वर्मा को श्रद्धांजलि दी।
 वर्ष 2019 की यात्रा में नोएडा से आगरा जाने वाली कार में मैंने देखा कि मॉरीशस सचिवालय की पूर्व महासचिव श्रीमती विनोद बाला अरुण तथा उनके पति राजेन्द्र जी जो मॉरीशस में रामायण केंद्र के संस्थापक थे, वे कार की पिछली सीट पर बैठे हुए थे। दाऊजी गुप्त आगे की सीट पर बैठे हुए अपने जीवन के अनुभव हमें सुना रहे थे। हमलोग एक परिवार की भाँति अनौपचारिक बातें करते हुए आगरा पहुँचे। रास्ते में दाऊजी के बारे में अनेकानेक बातें एवं उनके बहुआयामी सिद्धान्तों से परिचय हुआ। इस दैरान ही जानकारी प्राप्त हुई कि दाऊजी को 16 से अधिक भाषाओं का ज्ञान था। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उन्हें तमिल भाषा का भी सम्मान प्राप्त हुआ था। 
वे अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति के अध्यक्ष थे तथा अखिल विश्व हिंदी समिति, अमेरिका एवं कनाडा के संस्थापक एवं अध्यक्ष थे। ‘सौरभ’ हिंदी पत्रिका के प्रमुख संपादक रहे। दाऊजी गुप्त के साथ देश-विदेश और बौद्धिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक बातें करते हुए रास्ता कब बीत गया, मालूम ही न चला। दाऊजी चलते-फिरते ‘एनसाइक्लोपीडिया’ थे। 
दाऊजी तीन बार लखनऊ के महापौर रह चुके थे और साथ ही उन्हें ‘लोकतंत्र सैनानी’ का ख़िताब भी मिल चुका था। उन्होंने नागपुर से लेकर मॉरीशस तक सभी ग्यारह विश्व हिंदी सम्मेलनों में सक्रिय सहभगिता की थी। वे एक ऐसे उत्कृष्ट हिंदी साहित्यकार थे जो अनवरत राजनीतिक रहकर भी किसी की आलोचना में सम्मिलित नहीं हुए। उनका संकल्प हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए प्रशंसनीय है। वे भारतीय दर्शन से ओत-प्रोत थे तथा बौद्ध धर्म के ज्ञाता थे। दाऊजी के सानिध्य में मुझे यात्रा करने से प्रतीत हुआ कि मानों घर के बुजुर्गों का आशीर्वाद मिल गया। वे एक गुणी अभिभावक की भाँति कारयात्रा में आगरा तक बात करते रहे। रास्ते में हमने एक रेस्तराँ में अल्पाहार किया। हमलोगों ने चाय और कॉफ़ी पी, लेकिन दाऊजी ने चाय की बजाय डाइट कोक लेना ही पसंद किया। 
जब हम सब सम्मान समारोह में आगरा पहुँचे तो वहाँ गरिष्ठ भोजन का प्रबंध था। ऐसे में दाऊजी ने स्वयं दो थालियाँ अरुण बालाजी और मेरे लिए अपने हाथों से लाकर हमें प्रेम पूर्वक दिया और कहा “लेडीज़ फर्स्ट”। सम्मान समारोह के उपरांत प्रवीण गुप्ता हम लोगों को वृन्दावन ले गए। वहाँ हम लोगों ने बाँके बिहारी और गरुड़ गोविंद मंदिर के दर्शन किए। 
वृन्दावन की संकीर्ण गलियों में चलते-चलते मेरे पैर थकने लगे थे। वहाँ मुझे एक इलेक्ट्रिक रिक्शा दिखाई दिया। रिक्शा देखकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने कहा कि मैं तो रिक्शा में ही बैठूँगी। दाऊजी मुस्कुराते हुए बोले कि हम भी आपके साथ ई-रिक्शा में ही चलेंगे। उनकी मुस्कुराहट ने सारी थकान दूर कर दी और हम दोनों रिक्शा में बैठकर कर पार्किंग तक पहुँचे। उसके बाद हम वापस नोएडा आ गए। इस लंबी यात्रा के बावजूद भी दाऊजी के चेहरे पर कोई थकान नहीं थी। मेरा मानना है  कि ऐसा सार्थक जीवन जीने वाले दाऊजी सच्चे अर्थों में ‘सामाजिक विश्व पुरुष’ थे…। मई 2021 में दाऊजी का साया हमपर से उठ गया। वे हमारी स्मृतियों में सदैव अमर रहेंगे…  
जय वर्मा
जय वर्मा
नॉटिंघम एशियन आर्ट्स काउंसिल की निदेशक एवं काव्य रंग की अध्यक्ष. वरिष्ठ लेखिका. संपर्क - [email protected]
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