सोनिया आज बेहद खुश नजर आ रही थी। सर्वश्रेष्ठ रैंक लेकर कोर्स भी पूरा कर लिया था उसने।
आज पापा से जो मिलेगी स्वदेश जाकर..पूरे चार बरस के बाद।
केदारनाथ की भीषण बाढ़ ने पूरे परिवार को  लील लिया था कुसमय में।बस वही बच गई थी घर में एकाकी।लंदन के इस प्यारे से टाउन ‘शेफील्ड’ में पढ़ाई जो कर रही थी।माॅम और ग्रैंड मां को कितना शौक था पूजा-पाठ का।ग्रैंड पा तो खेतों में नई कृषि- तकनीकों के प्रयोगों को लेकर व्यस्त रहा करते थे।चाचू के फोन से खुशखबरी मिलते ही उड़ान भरने की तैयारी कर ली थी उसने।
मां की पहली ही तीर्थ यात्रा में त्रासदीपूर्ण दर्दनाक दुर्घटना…ओफ्फ..प्लेन के ठंडे परिवेश में भी वह पसीने-पसीने होने लगी थी सोचकर।
पापा के साथ खेतों में जाने का लोभ-संवरण
नहीं कर सकी वह।दूर तलक बसंती फूलों से पटा खेत,हरी-भरी वसुंधरा, झील में नौका सैर सभी शैशव की याद दिला रहे थे।
पर्वतों से फूटते अजस्र स्रोत, घाटियों की ओर झांकता गगनराज रवि का अप्रतिम ताप दुःख के जमे हुए बर्फ को पिघला रहा था मानो।
अपने रेशमी बालों को प्यार से सहलाते हुए पापा की गोद में सिर रखकर सोनिया अनिवर्चनीय सुकून महसूस कर रही थी।
हवा का झोंका माॅम के स्पर्श सा  राहत दे रहा था। मेघों से भी दादी की परीकथाएं झांक रही थीं।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.