Saturday, July 27, 2024
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ज्योत्सना सिंह की लघुकथा – बंजारन

“सस्ते में लो महँगी चीज़,अपनी क़िस्मत पढ़वा लो।”
इधर कुछ दिनों से एक बंजारन यह कहते हुये बस्ती के चक्कर बराबर लगा रही थी।औरतें उसकी आवाज़ सुन उसे बुला लेतीं। उसे अपनी हथेलियों की लकीरें दिखा अपने भाग्य के बारे में जानने को आतुर हो उठतीं।आज वह घर आई थी। उसने मुझे देखते हुये अम्मा से कहा- “तू छोरी पर कड़ी निगाह रख कोई है जो इस पर अपनी निगाहें लगाये बैठा है।” उसकी बात मुझे बहुत बुरी लगी। जानती थी। अब अम्मा कॉलेज नहीं जाने देंगी। वह मानव को लेकर शक़ करेंगी। जबकि मानव और मेरे बीच में बस दोस्ती है। फिर लगा इसे पता कैसे चल गया? मुझे तो यह लकीरों का पूरा खेल ही ढकोसला लगता है।
मैंने उसका पीछा किया और अगली गली में उसे घेरकर पूछा-“क्यों लोगों के घर में आग लगाती फिरती हो?”
“आग लगा नहीं रही हूँ। तुझे आग से बचा रही हूँ। चल मेरे साथ दिखती हूँ।” वह मुझे ऊँचे टीले के पीछे लेकर गई। वहाँ कई युवाओं के साथ मानव भी नशे के धुएं में मदहोश था। मुझे यह सब दिखाकर वह बोली-“बंजारन नहीं हूँ,नशा मुक्ति की एक मुहिम से जुड़ी हूँ। एक एंजीयो के लिये काम करती हूँ।इस बस्ती में बहुत गहराई में नशे ने अपने पाँव जमा रखें हैं।कई बार इसके साथ तुम्हें देखा था। तभी तुम्हारी माँ को आगाह करने गई थी। कल जो च्‍युइंगगम उसने तुमको  दिया था। वह भी नशे का ही था। अब उसके मर्तबान से उठते धुएं से कहीं ज़्यादा मेरा दिल सुलग रहा था।
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3 टिप्पणी

    • अच्छी रचना,,,ऐसे एंजियो के लिए प्रेरित करती रचना,,समाज में होने चाहिए ऐसे लोग

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