Sunday, October 6, 2024
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तोषी अमृता के निश्छल, शर्मीले, भोले मुक्तक

1
कुछ इतना क़रीब से छू कर गुज़रा तेरा अहसास
तन में हुई सिहरन, मन में जागी प्यास।
जानती हूं तुम दूर हो, बहुत दूर कहीं
दिल ये कहता है यहीं कहीं हो आस-पास।
2
तुम मुझे शबनम में नहाया नीलकमल कहते हो
प्यार से सराबोर इक रूमानी ग़ज़ल कहते हो।
अनकही चाहत की गर्मियां तो इधर भी कम नहीं
जब से मिली हैं नज़रें, मेरे दिल में रहते हो।
3
क़तरे शबनम के चूमते हैं अधखिली कलियों के लब
जूही, गेंदा, गुलाब, केतकी शाख़ों पे मुस्कुराए हैं।
हवा में सरग़ोशियां हैं, बहार आई है
दिल ये कहता है आप आए हैं।
4
तेरी आँखों में जो देखा उमड़ता हुआ सैलाब
बेसाख़्ता रोया मैं भी उस रात बेहिसाब।
तू पराई थी, पलकें चूमता कैसे तेरी
कुछ न पूछो कैसे संभाला दिले-बेताब।
5
उस नशीली रात की मीठी थकन नशा ख़ुमार
देर तक बजते रहे, मन वीणा के तार।
मदहोश कर गया संदली साँसों का स्पन्दन
यौवन की मादक अंगड़ाई, पहली छुअन पहला प्यार।
6
तपते अधरों का मधु-चुम्बन मेरे अधरों पर रहने दो
बरसों से संजोया प्यार अनकहा, आज सभी कुछ कहने दो
जितना भी चाहे प्यार करों, मनुहार करो प्रतिबन्ध नहीं
प्रियतम मुझको भी चंचल सरिता सी कलकल बहने दो।
7
दिल का मौसम बदल जाता है तेरे आने से
अस्थिर मन संभल जाता है तेरे आने से।
पवन चंचल दीवानी बह रही अठखेलियां करती
पुरवाई में चन्दन घुल जाता है तेरे आने से।
8
नहीं चाहिये मुझको जीवन-दर्शन की परिभाषा
दो जोड़ी नयनों ने पढ़ ली परिणय की भाषा।
इस दिल में उतर जाओ इक रोज़ बन के धड़कन
यही चाहत है ज़रूरत है और मेरी अभिलाषा।
9
तुम मेरी चाहत थे राहत थे मुहब्बत थे
मेरा हौसला, विश्वास, शान, मान, इबादत थे।
जान पाई हूं तेरे जाने के बाद
हमसफ़र ही नहीं, तुम तो मेरी ज़रूरत थे।
10
ज़िन्दगी तो वही थी जो गुज़री तुम्हारी बाहों में
फूल ही फूल मुस्कुराते हर सू हमारी राहों में।
बिन तुम्हारे क्या करूं निष्प्राण ज़िन्दगी को अब
उफ़्फ़ कितनी चाहत थी मेरे लिये तेरी निगाहों में।

 

तोषी अमृता, मोबाइलः 00-44-7434673981,

ई-मेलः [email protected]

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