राजा मेहदी अली ख़ान
जब भारत का बंटवारा हुआ तो बहुत से मुसलमान भारत से पाकिस्तान के लिये सपरिवार निकल पड़े और अधिकांश हिन्दू पाकिस्तान से नये भारत के लिये। मगर एक ऐसा भी इन्सान था जो था तो मुसलमान और पैदा भी उस इलाक़े में हुआ था जो अब पाकिस्तान का हिस्सा बन रहा था, मगर उसने बंटवारे के समय अपनी पत्नी ताहिरा के साथ पाकिस्तान से भारत में आना बेहतर समझा। इस महान् इन्सान का नाम था राजा मेहदी अली ख़ान जिसने हिन्दी सिनेमा के लिये कुछ अद्भुत गीतों का सृजन किया। 
राजा मेहदी अली ख़ान का जन्म 23 सितम्बर 1915  में झेलम ज़िले के एक ऊंचे घराने में हुआ। (कुछ लोगों का दावा है कि जन्म 1928 में हुआ था)। इनके पिता बहावलपुर स्टेट के प्रधान मन्त्री थे। अभी राजा मेहदी केवल चार वर्ष के ही थे जब इनके पिता का देहान्त हो गया। इनकी माँ हेबे साहिबा स्वयं एक शायरा थीं। कहा जाता है कि ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा’ लिखने वाले शायर अल्लामा इकबाल भी हेबे साहिबा की शायरी को सम्मान की नज़र से देखते थे।
मुंबई में एस. मुखर्जी किसी नये गीतकार की तलाश कर रहे थे। मन्टो ने राजा मेहदी को एस मुखर्जी से मिलवाया। एस. मुखर्जी ने उन्हें अपनी फ़िल्म ‘दो भाई’ के गीत लिखने की ज़िम्मेदारी सौंप दी। 1947 में जब यह फ़िल्म रिलीज़ हुई तो इसके दो गीतों ने तहलका मचा दिया – ‘मेरा सुन्दर सपना बीत गया’ और ‘याद करोगे, याद करोगे, इक दिन हमको याद करोगे।’
राजा मेहदी अली ख़ान ने दिल्ली के ऑल इंडिया रेडियो में काम करना शुरू कर दिया। यहाँ उनकी मुलाक़ात हुई उर्दू के बड़े लेखक सआदत हस मन्टो से। दोनों में दोस्ती होने के कुछ ख़ास कारण भी थे कि दोनों पंजाबी थे; दोनों को ही ह्यूमर पसन्द था; दोनों को पढ़ने का शौक़ था; और शाम को दोनों को बोतल की दरकार होती थी। 
मन्टो उन्हें बम्बई ले गये। मुंबई में मन्टो, एक्टर श्याम और राजा मेहदी अली ख़ान एक ही घर में रहते थे। उस वक़्त के बारे में मन्टो कहते हैं, “बंटवारे के कुछ ही महीने पहले श्याम भी हमारे साथ ही रहने आ गया। ये कड़की का ज़माना था। हमारे पास पैसे नहीं होते थे मगर दारू का दौर चलता रहता था। राजा (मेहदी) को स्प्रिंग वाली मैट्रेस वाले पलंग पर सोने की आदत नहीं थी। श्याम ब्राण्डी का एक पटियाला पैग बना कर राजा को देता और कहता, “इसे चढ़ा जाओ, बस उसके बाद तुम घोड़े बेच कर सो जाओगे।” 
मुंबई में एस. मुखर्जी किसी नये गीतकार की तलाश कर रहे थे। मन्टो ने राजा मेहदी को एस मुखर्जी से मिलवाया। एस. मुखर्जी ने उन्हें अपनी फ़िल्म ‘दो भाई’ के गीत लिखने की ज़िम्मेदारी सौंप दी। 1947 में जब यह फ़िल्म रिलीज़ हुई तो इसके दो गीतों ने तहलका मचा दिया – ‘मेरा सुन्दर सपना बीत गया’ और ‘याद करोगे, याद करोगे, इक दिन हमको याद करोगे।’ दोनों ही गीत गीता दत्त ने गाये थे। संगीतकार थे सचिन देव बर्मन। यानि कि पहली ही फ़िल्म ने राजा मेहदी अली ख़ान को ऊंची ब्रेकेट में ला खड़ा किया था।
वैसे राजा मेहदी ने 1946 की अशोक कुमार अभिनीत फ़िल्म ‘8-डेज़’ में अभिनय भी किया था। 
 1948 में रिलीज़ हुई दिलीप कुमार, कामिनी कौशल एवं चन्द्रमोहन अभिनीत फ़िल्म में ग़ुलाम हैदर के संगीत में राजा मेहदी अली खान ने  उस साल का सबसे बड़ा देशप्रेम का गीत लिख कर तहलका मचा दिया। भारत के बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर था – ‘वतन की राह में, वतन के नौजवाँ शहीद हों।’ इस गीत का अन्तरा पूरी तरह से साहित्यिक था – ‘शहीद तेरी मौत ही तेरे वतन की ज़िन्दगी / तेरे लहू से जाग उठेगी इस चमन की ज़िन्दगी / खिलेंगे फूल उस जगह कि तू जहां शहीद हो।’ इसके बाद राजा मेहदी अली ख़ान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
फिर एक दिन मन्टो ने मन बना लिया कि वह पाकिस्तान चला जाएगा। वह श्याम और राजा को अकेला छोड़ कर चला भी गया। दोनों को मन्टो की बहुत याद आती थी। मगर राजा के लिये यह बहुत क्रिटिकल समय था। उसने तय कर लिया कि दोस्त को मिस करके दिल ख़राब करने से बेहतर है कि काम में दिल लगाया जाए।
वैसे उन्होंने मन्टो पर एक लेख भी लिखा था – ‘मैं, मन्टो, काली शलवार और धुआं’। और फिर उसकी याद में एक कविता भी लिख डाली – ‘जन्नत से मन्टो का एक ख़त’।
राजा मेहदी अली ख़ान की श्रेष्ठ फ़िल्मों में शामिल होंगी – वो कौन थी, मेरा साया, अनपढ़, दो भाई, शहीद, जाली नोट, नीला आकाश, दुल्हन एक रात की, आप की परछाइयां, एक मुसाफ़िर एक हसीना, जब याद किसी की आती है, अनिता, नवाब सिराजुद्दौला आदि। 
राजा मेहदी अली ख़ान रहते भी राजाओं की तरह थे। धीमी आवाज़ में बात करते थे, उनके रहने का अंदाज़ और बढ़िया खाने के लिये ललक उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थे।  पाठकों को जानकर आश्चर्य हो सकता है लेकिन एक ऐसा भी ज़माना था जब कॉमेडियन महमूद राजा मेहदी अली ख़ान की कार के श्योफ़र (ड्राइवर) हुआ करते थे। 
वैसे तो राजा मेहदी अली ख़ान ने सचिन देव बर्मन, ग़ुलाम हैदर, इक़बाल कुरैशी, सी. रामचन्द्र, चित्रगुप्त, एस. एन. त्रिपाठी, ओ.पी. नैय्यर, कल्याण जी आनन्द जी, लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जैसे बहुत से संगीतकारों के साथ काम किया। मगर उनका श्रेष्ठ्तम लेखन ग़ज़लों के बादशाह मदन मोहन के साथ हुआ। इन दोनों ने मिल कर हिन्दी सिनेमा को कुछ अविस्मरणीय गीत दिये – लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो, जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यों रोये, नैनाँ बरसे रिमझिम रिमझिम, तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा, झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में, आप के पहलू में आकर रो दिये, आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे, है इसी में प्यार की आरज़ू, नैना बरसें रिमझिम रिमझिम… सूची और भी लम्बी हो सकती है। 
मदन मोहन और राजा मेहदी अली ख़ान की मुलाक़ात 1950 में हुई थी। फ़िल्म मदहोश मदन मोहन की संगीतकार के तौर पर पहली फ़िल्म थी। उसके गीत राजा साहब ने लिखे थे।  और उसके बाद तो हिन्दी सिनेमा को जैसे दो हीरे एक साथ मिल गये थे। लता मंगेश्कर मदन मोहन और राजा मेहदी अली ख़ान दोनों को राखी बान्धा करती थीं। वे राजा मेहदी अली ख़ान को राजा भैय्या कहा करती थीं। लता जी का कहना है, “राजा भैया के गीतों में सोच की पवित्रता महसूस होती है और उनके केन्द्र में मानवीय संवेदना की शिद्दत महसूस की जा सकती है।”
राजा साहब के बेहतरीन गानों में से एक लग जा गले का एक दृश्य
बात 1966 की है जब राज खोसला फ़िल्म मेरा साया बना रहे थे। उन्होंने मदन मोहन से कहा कि वे फ़िल्म की हिरोइन साधना पर एक क्लासिकल गाना फ़िल्माना चाहते हैं। ऐसा शायद पहले कभी नहीं हुआ था कि साधना पर क्लासिकल गीत फ़िल्माया जाए। मदन जी ने राजा साहब और लता जी को घर बुलाया। उस दिन राजा मेहदी अली ख़ान को थोड़ा बुख़ार था। फिर भी वे आए और क़रीब दस मिनट तक आँखें बन्द कर के बैठ गये। और बोले, “मदन जी… ‘नैनों में बदरा छाए… बिजली सी चमके हाये…’ कैसा रहेगा?” मदन भाई तो उछल गये, “अरे भाई… क्या बात कह दी… आगे चलो !”
अख़्तर-उल-ईमान मेरा साया के संवाद लिख रहे थे। उन्होंने एक दिन कहा, “ये राजा खेल खेल में ही क्या ग़ज़ब लिख देता था। हमें जगह चाहिये, तनहाई चाहिये और सोच के लिये वक़्त चाहिये। राजा का दिमाग़ इन्सानी तजुरबात का वस्सी समन्द्र था।”
राजा मेहदी अली ख़ान रहते भी राजाओं की तरह थे। धीमी आवाज़ में बात करते थे, उनके रहने का अंदाज़ और बढ़िया खाने के लिये ललक उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थे।  पाठकों को जानकर आश्चर्य हो सकता है लेकिन एक ऐसा भी ज़माना था जब कॉमेडियन महमूद राजा मेहदी अली ख़ान की कार के श्योफ़र (ड्राइवर) हुआ करते थे। 
राजा मेहदी अली ख़ान के गीतों को लता मंगेश्कर, मुहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले, तलत महमूद, मन्ना डे, किशोर कुमार, गीता दत्त, मुबारक बेग़म, सुधा मल्होत्रा, हेमन्त कुमार और महेन्द्र कपूर जैसे तमाम बड़े गायकों ने आवाज़ दी। वहीं पर्दे पर उनके गीतों को दिलीप कुमार, देव आनन्द, धर्मेन्द्र, मनोज कुमार, सुनील दत्त, जॉय मुखर्जी, मीना कुमारी, मधुबाला, कामिनी कौशल, साधना, माला सिन्हा जैसे कलाकारों पर फ़िल्माया गया। 
यह तो सच है कि राजा मेहदी अली ख़ान के श्रेष्ठ गीतों की एक लम्बी सूचि बन सकती है। फिर भी यदि दस पंद्रह गानों की सूचि बनाई जाए तो कुछ ऐसी बनेगीः-
  1. मेरा सुन्दर सपना बीत गया (दो भाई – 1947)
  2. वतन की राह में वतन के नौजवाँ शहीद हो (शहीद -1948)
  3. मेरी याद में तुम ना आँसू बहाना (मदहोश – 1951)
  4. पूछो न हमें हम उनके लिये (मिट्टी में सोना – 1960)
  5. आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे (एक मुसाफ़िर एक हसीना – 1960)
  6. मैं प्यार का राही हूं (एक मुसाफ़िर एक हसीना – 1960)
  7. आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे (अनपढ़ – 1962)
  8. है इसी में प्यार की आबरू वे जफ़ा करें मैं वफ़ा करूं (अनपढ़ – 1962)
  9. लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो (वो कौन थी – 1964)
  10. नैना बरसें रिमझिम रिमझिम (वो कौन थी – 1964)
  11. आख़री गीत मुहब्बत का सुना लूं तो चलूं (नीला आकाश – 1965)
  12. तूं जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा (मेरा साया – 1966)
  13. झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में (मेरा साया – 1966)
  14. इक हसीं शाम को दिल मेरा खो गया (दुल्हन एक रात की – (1966)
  15. तुम बिन जीवन कैसे बीता पूछो मेरे दिल से (अनिता – 1967)
राजा मेहदी अली ख़ान के दो कविता संग्रह भी प्रकाशित हुए – अन्दाज़-ए-बयां और, तथा मिज़राब। उनकी कौई औलाद नहीं थी मगर उनका स्वभाव बहुत मीठा और मज़ाकिया था। 
राजा मेहदी अली ख़ान ने 29 जुलाई 1966 को अपना नश्वर शरीर त्याग दिया। अपने पीछे वे अविस्मरणीय गीतों का एक ख़ज़ाना छोड़ गये। अपनी अंतिम साँस तक वे उत्तम क्वालिटी की कविताएं एवं गीत रचते रहे। 1966 में उनकी दो बेहतरीन फ़िल्में प्रदर्शित हुईं थीं – मेरा साया और दुल्हन एक रात की। शब्दों के इस राजा ने पहले ही कह दिया था, “मेरी याद में तुम ना आँसू बहाना, ना जी को जलाना मुझे भूल जाना।” मगर क्या राजा मेहदी अली ख़ान और उनके गीतों को भुलाना इतना ही आसान है?
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

2 टिप्पणी

  1. नमन, गीतकारों पर समग्र पढ़कर ,ख़ुशी होती है ,और पुराने नग्मे
    ताज़ा हो जाते हैं।
    आभार
    प्रभा

  2. “इक दिन हमको याद करोगे”….. ठीक ही तो कहा था शब्दों के इस जादूगर ने। राजा मेहदी अली ख़ान का कोई भी ऐसा गीत नहीं है जो मुझे पसंद नहीं है। उनके शब्दों की कशिश उन्हें अपनी माँ से विरासत में मिली, वह कितने सौभाग्यशाली थे।
    अप्रतिम गीतों के मसीहा को हृदय से नमन।

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