किसी की याद में दुनिया को हैं भुलाए हुए
ज़माना गुज़रा है अपना ख़्याल आए हुए….
बॉलीवुड सिनेमा के स्वर्णकाल में मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेन्द्र, शकील बदायुनी और साहिर लुधियानवी का समकालीन एक ऐसा गीतकार भी हुआ है जो केवल गीत नहीं लिखता था बल्कि पटकथा और संवाद में भी माहिर था। उस गीतकार ने करीब 300 हिन्दी फ़िल्मों के लिये गीत लिखे और 100 से अधिक फ़िल्मों के संवाद और चित्रपट कथा का लेखन किया।
इस गीतकार का जन्म जलालपुर जटन (जटाँ) (पँजाब – आज का पाकिस्तान) में 6 जून 1919 को हुआ था। इस बालक ने दुग्गल ख़ानदान में जन्म लिया था और इसका नाम था राजेन्द्र कृष्ण दुग्गल। वैसे फ़िल्मों में इन्हें केवल राजेन्द्र कृष्ण के नाम से जाना जाता था।
राजेन्द्र कृष्ण को बचपन से ही शायरी का शौक़ था उस समय वे शायद आठवीं कक्षा के छात्र रहे होंगे। वे अपना लेखन उर्दू लिपि में किया करते थे। पंजाबी औऱ हिन्दी भी उर्दू ही लिपि में लिखी जाती।
इस लेख में लिखी गयी बहुत सी बातें तो राजेन्द्र कृष्ण के टीवी इंटरव्यू से पता चली हैं। यानि कि उनकी ज़बानी सुनी हैं। एक ख़ास इंटरव्यू विविध भारती पर भी मौजूद है। वे बताते हैं कि जब वे “पांचवी या छटी जमात में पढ़ते थे तो रात के समय लालटेन के सामने किताब लेकर बैठते थे। वो किताब तो सिर्फ़ माँ बाप को दिखाने के लिये होती थी, उस किताब के अन्दर कोई मैगज़ीन कोई रिसाला होता था। और उसमें हम ग़ज़लें, नज़में और अफ़साने पढ़ा करते थे।… उसके बाद वो जो शेरो शायरी का कीड़ा था वो बढ़ता बढ़ता साँप बन गया। तो 15 बरस की उम्र तक तो मैंने अच्छे अच्छे मुशायरों में पढ़ना शुरू कर दिया था।”
फिर वे बताते हैं कि वे शिमले में नौकरी करने लगे थे – संभवतः 1942 के आसपास। शिमले में हर साल एक भव्य मुशायरा होता था जिसकी याद लोगों के दिलों में बरसों रहती। इस मुशायरे में बहुत नामचीन शायर भाग लिया करते थे। उस मुशायरे में जब मैंने पहली ग़ज़ल पढ़ी तो उस पर कुछ ऐसी दाद मिली कि उसके बाद शायरी का दामन हाथ से छूटा नहीं।
जब राजेन्द्र जी से गुज़ारिश की गयी कि उस ग़ज़ल में से चन्द शेर सुनाएं, तो वे कह उठे, “फ़िल्मी गीत लिखते लिखते आदमी शायरी भूल जाता है।… फिर भी एक शेर याद है जिसके बाद मुझे झोलियाँ भर भर दाद मिली। ‘कुछ इस तरह वो मेरे पास आए बैठे हैं / के जैसे आग से दामन बचाए बैठे हैं।’ और मज़ेदार बात यह रही कि उस्ताद शायर जिगर मुरादाबादी मुशायरे में थोड़ी देर से पहुंचे, तो आयोजकों ने उनसे कहा कि आप एक बेहतरीन शेर सुन नहीं पाए। और मुझे दोबारा वो मतला सुनाने को कहा गया। जिस तरह जिगर मुरादाबादी ने सिर हिला कर दाद दी, वो मेरे लिये किसी ईनाम से कम न था।”
इन मुशायरों में शामिल होने के बाद राजेन्द्र कृष्ण को महसूस होने लगा कि वे म्यनिसिपल कॉर्पोरेशन में कलर्की के लिये नहीं बने। उन्हें अपनी छवि और कैरियर एक शायर के तौर पर बनाना है। और वे चल पड़े अवसरों के शहर बम्बई की ओर। उन्होंने अपने सरनेम दुग्गल को त्याग दिया।
एक तरफ़ भारत को स्वतन्त्रता मिली और वहीं दूसरी ओर राजेन्द्र कृष्ण को अपनी पहली फ़िल्म ‘जनता’ की पटकथा लिखने का काम मिल गया। उसी साल उन्हें ‘ज़ंजीर’ के लिये गीत लिखने का अवसर भी मिला। यानि कि एक शुरूआत हुई… अब बहुत से आसमाँ सामने दिखाई दे रहे थे।
अपने फ़िल्मी लेखन के बारे में राजेन्द्र कृष्ण का कहना है, “आम तौर पर एक फ़िल्म में छः या सात गीत होते हैं। जिसमें रोमांटिक सिचुएशन ज़्यादा होती है। उसमें तो कोई पैग़ाम नहीं दिया जा सकता। मगर क्योंकि मैं स्क्रिप्ट राइटर भी हूं, संवाद भी लिखता हूं तो इसलिये कोई न कोई सिचुएशन ऐसी निकाल लेता हूं जिस में देश भक्ति, भजन, या समाजवाद की बात हो या ग़ज़ल हो जाए।”
30 जनवरी 1948 को महात्मा गान्धी की हत्या हुई और राजेन्द्र कृष्ण के क़लम से नग़मा निकला, “सुनो सुनो ऐ दुनियां वालो बापू जी की अमर कहानी…” यह उनका पहला गीत भी था जिसे लोकप्रियता मिली। इस गीत में बापू की पूरी जीवनी लिखी गयी थी। पूरा भारत की आँखें इस गीत को सुन कर नम हो गयीं। इस गीत ने पूरे भारत की चेतना को झकझोर डाला। और हर साल 30 जनवरी को यह गीत रेडियो पर सुनने को मिलता है।
1948 में ही ‘हार की जीत’ फ़िल्म में सुरैया की आवाज़ में ‘तेरे नैनों ने चोरी किया, मेरा छोटा सा जिया, परदेसिया”। 1949 में बड़ी बहन के गीत – चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है, पहली मुलाक़ात है जी पहली मुलाक़ात है – ने राजेन्द्र कृष्ण को एक बड़े गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया।
राजेन्द्र कृष्ण इतने ऊंचे दर्जे के गीतकार थे कि उनकी एक एक फ़िल्म में इतने अच्छे गीत होते थे कि श्रेष्ठ गीत चुनने में बहुत कठिनाई हो जाती है। जैसे अदालत में ‘उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते;’ ‘जाना था हमसे दूर बहाने बना लिये’; ‘ज़मीं से हमें आसमाँ पर बिठा के गिरा तो न दोगे’; या फिर ‘यूं हसरतों के दाग़ मुहब्बत में धो लिये’। इसी तरह फ़िल्म नागिन में ‘मन डोले, तन डोले, मेरे दिल का गया क़रार रे’; ‘मेरा दिल ये पुकारे आजा’; ‘जादूगर सैयां छोड़ मोरी बैयां’; ‘तेरे द्वार खड़ा इक जोगी’; ‘ओ ज़िन्दगी के देने वाले, ज़िन्दगी के लेने वाले’। इसी तरह अनारकली, जहाँआरा, पड़ोसन जैसी बीसियों फ़िल्में हैं जिनमें एक से बढ़ कर एक गीत सुनने को मिल जाते हैं।
ऐसे महान गीतकार के दस श्रेष्ठ गीतों की सूची बनाना उसके साथ नाइन्साफ़ी तो होगा, मगर फिर भी मैंने प्रयास किया है –
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पल पल दिल के पास तुम रहती हो… (ब्लैक मेल – 1973)
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ये ज़िन्दगी उसी की है, जो किसी का हो गया (अनारकली – 1953)
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फिर वही शाम वही ग़म वही तनहाई है (जहाँआरा – 1964)
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जादुगर सैंया छोड़ मोरी बैयां, हो गई आधी रात… (नागिन – 1954)
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यूं हसरतों के दाग़ मुहब्बत में धो लिये… (अदालत – 1958)
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इतना न मुझ से तू प्यार बढ़ा … (छाया – 1961)
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मेरे सामने वाली खिड़की में इक चान्द का टुकड़ा… (पड़ोसन – 1968)
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चल उड़ जा रे पंछी, कि अब ये देस हुआ बेगाना… (भाभी – 1957)
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कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिये (देख कबीरा रोया – 1957)
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ऐ दिल मुझे बता दे, तू किस पे आ गया है (भाई भाई – 1956)
बहुत उत्तम जानकारी राजेन्द्र कृष्ण जी के बारे में आपने दी।आपका हार्दिक आभार।
गीतकार राजेंद्र कृष्ण मेरे पसंदीदा गीतकार रहे हैं। हिंदी फिल्मों के सुनहरे दौर में उनका योगदान बतौर गीतकार बेमिसाल रहा है। ऐसे गीतों के रचेता, जिनके गीतों को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनेगी और गुनगुनायेगी। इससे पहले मैंने आजतक इससे बेहतर और विस्तृत आलेख कहीं नहीं पढ़ा। आपको साधुवाद
आदरणीय, नमन ,राजेन्द्र कृष्ण पर यह लेख एक शोध की
परिणिति है ।किसी लेखक के सामाजिक, आर्थिक ,और उसके
मानवीय मूल्यों पर इतना अच्छा और व्यवस्थित लिखने के लिए
आभार
प्रभा
राजेन्द्र कृष्ण जी के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी। उनके गीतों के बोल वाकई बहुत सहज सरल हैं। नई पीढ़ी भी उनके कालजयी गीतों को गाती-गुनगुनाती है। उन्हें इन गीतों के रचयिता के बारे में जानने का मौक़ा मिलेगा।
wow thanks for such a detailed account of Rajendra Krishna ji ‘s professional journey . A recall of such beautifully writen songs was very nostalgic. It is such an eye opener for many like me who merely enjoy the melodious songs and gey swayed with caring to give credit to its owners and makers.
He is certainly immortal.
Many thanks Tejinder ji.
आपके माध्यम से हम जान पाए कि राजेंद्र कृष्ण जी कितने अच्छे गीतकार थे। उनके गीतों को तो हमने बहुत सुना, सराहा
आपने राजेंद्र कृष्ण जी को महान श्रद्धांजलि दी है।
आपने दस गीतों का चुनाव बहुत सुंदर किया है…
महान् गीतकार राजेन्द्र कृष्ण के अमर गीतों का मेरा पूरा परिवार दीवाना रहा है। सामाजिक सरोकार से जुड़ कर अपने लेखन में जीवनमूल्यों की स्थापना करने वाला यह रचनाकार कालजयी है।
राजेन्द्र कृष्ण तमिल भाषा के भी विद्वान् थे, यह आपके इस शोधपूर्ण आलेख से ही ज्ञात हुआ। आपकी मेधा भी मेरा प्रणाम स्वीकारे।
फिल्मी मैगजीन हमने बचपन से पढ़ी हैं और इस लेख जैसे लेख तो अपने समय की पत्रिका – माधुरी, सुषमा, फिल्मी दुनियां आदि आदि में भी नहीं मिलते थे ।
राजेन्द्र कृष्ण जी के सभी गीत एक से बढ़कर एक रहे है तभी आज भी हम उनको गुनगुनाते है। आप एक एक करके विभिन्न गीतकार उनके गीतों और जीवन पर लिखते है यह बहुत बड़ा काम हो रहा है।
बहुत ही ज्ञानवर्धन लेख l