Sunday, May 19, 2024
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डॉ. फतेह सिंह भाटी की कलम से – हमने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू…!

हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने घोषणा की कि अभिनेत्री वहीदा रहमान को 2023 के दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा | देवानंद की सौवीं जयंती पर यह घोषणा अनायास नहीं सायास ही की गई होगी | हिंदी फिल्मों में देव आनंद और वहीदा रहमान की जोड़ी बेहद कामयाब रही थी | उन्होंने 1956 में गुरुदत्त द्वारा निर्मित अपनी पहली हिंदी फिल्म ‘सी.आई.डी.’ देवानंद के साथ की थी, जिसमें वे खलनायिका की भूमिका में थीं | उन दोनों ने सोलहवां साल, काला बाज़ार, बात एक रात की, जैसी अनेक यादगार फ़िल्में तो की ही हैं, ‘गाइड’ जैसी कालजयी फिल्म भी अभिनीत की है । 
फिल्म गाइड में राजू गाइड के रूप में देवानंद की भूमिका बेहद सशक्त थी और उनका अभिनय भी | उनके अभिनय का प्रभाव दीर्घकाल तक दर्शकों के मानस पटल पर रहता है | ‘गाइड’ में उतना ही महत्वपूर्ण किरदार वहीदा  ने निभाया है | उस जमाने में भारतीय समाज के लिए यह बात पचानी बेहद मुश्किल थी कि कोई स्त्री अपने प्रेम और पैशन के लिए पति को थप्पड़ मारकर चली जाए | तत्कालीन सामाजिक मूल्यों के विपरीत होते हुए भी वहीदा द्वारा निभाए गए  रोजी के चरित्र को दर्शकों द्वारा सराहा जाना और फिल्म का सुपरहिट होना वहीदा के बेहतरीन अभिनय को साबित करता है | अभी फाल्के पुरस्कार की घोषणा पर दिए एक साक्षात्कार में वहीदा ने उस दृश्य को याद कर कहा कि जब संसद में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023’ पेश हो रहा है तब फिल्म गाइड और अधिक प्रासंगिक हो जाती है | पहले भी उन्होंने कई बार कहा है कि अगर उन्हें मौका मिले तो वे ‘गाइड’ जैसी फिल्म फिर से करना चाहेंगी |   

भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला यह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के लिए किसी व्यक्ति को दिया जाता है | इस पुरस्कार का प्रारम्भ दादा साहब फाल्के के जन्म शताब्दि-वर्ष 1969 से हुआ | पहली बार यह सम्मान अभिनेत्री देविका रानी को दिया गया था | 2022 में आशा पारेख को और 2023 में छह दशक से अधिक समय तक 90 से भी अधिक फिल्मों में श्रेष्ठ अभिनय से जादू करने वाली 85 वर्षीय अभिनेत्री वहीदा रहमान को | जो कि इस पुरस्कार को पाने वाली आठवीं महिला कलाकार है | इस पुरस्कार के तहत एक ‘स्वर्ण कमल’, 10 लाख रुपए नकद, एक प्रमाण पत्र, रेशम की एक पट्टिका और एक शॉल दिया जाता है |
हालाँकि उन्होंने कहा है कि यह पुरस्कार मिलने पर मुझे बेहद ख़ुशी हुई है लेकिन यह कोई उन्हें मिलने वाला पहला पुरस्कार नहीं है | पुरस्कारों की बारिश उन पर सदैव होती रही है | 1966 में गाइड फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार,1967 में तीसरी कसम को बंगाल फ़िल्मी संघ पुरस्कार,1968 में नीलकमल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार,1971 रेशमा और शेरा फिल्म में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 1972 में नागरिक सम्मान पद्म श्री,1994 फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, 2006 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा एनटीआर राष्ट्रीय पुरस्कार, 2011 में नागरिक सम्मान पद्म भूषण जैसे महत्वपूर्ण सम्मान से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है | 
वहीदा रहमान का जन्म तमिलनाडु राज्य के चेंगलपट्टू में 3 फरवरी 1938 को एक सुशिक्षित तमिल-मुस्लिम परिवार में हुआ था | उनके पिता अब्दुल रहमान जिला कमिश्नर थे | माता मुमताज़ बेगम | 1948 में उनके पिता नहीं रहे | पिता की मृत्यु के सात साल बाद माँ भी नहीं रही | वहीदा रहमान का सपना डॉक्टर बनने का था लेकिन नियति को मंजूर नहीं था | वे ठीक से अपनी शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाईं | वे भरतनाट्यम में प्रवीण हो गई थीं | दुर्योग से माँ-पिता नहीं रहे लेकिन दोनों के इस दुनिया से विदा होने के बाद संयोग से 1955 में उन्हें एक के बाद एक करके दो तेलुगू फ़िल्मों में काम करने अवसर मिल गया | तेलुगु फिल्म ‘रोजुलु मरई’ में बाल कलाकार की भूमिका के साथ सिने जगत में कदम रखा | इसी दौरान भरतनाट्यम की वह कुशल नृत्यांगना हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त के संपर्क में आईं और सिनेमा के रुपहले परदे पर छा गईं |
1957 में गुरुदत्त और वहीदा रहमान की क्लासिक फिल्म ‘प्यासा’ रिलीज़ हुई | फिल्म हिट हुई लेकिन उससे अधिक हिट गुरुदत्त-वहीदा की प्रेम कहानी हुई | ‘12 ओ’ क्लॉक’ (1958) ‘चौदहवीं का चाँद’ (1960) ‘फुल मून’ (1961) ‘साहिब, बीबी और गुलाम’ (1962) इसी जोड़ी की हिट फ़िल्में हैं | भाग्य से उनकी फ़िल्में खूब चलीं लेकिन दुर्भाग्य से उनकी प्रेम कहानी लंबी नहीं चल पाई | ‘कागज़ के फूल’ (1959) उन दोनों के असफल प्रेम कथा पर आधारित थी फिल्म थी | 
अतीत को हम लिखते हैं तो लगता है किसी के जीवन में सब कुछ सहज रूप से घटता गया और वह शिखर की तरफ बढ़ता गया लेकिन असल में किसी का भी जीवन इतना सीधा सहज सरल होता नहीं | जीवन हरेक को बहुत कुछ देता है तो आग की भट्टी में तपाता भी है | बिना तपाये कुछ भी नहीं देता और ऐसा ही इस खूबसूरत अभिनेत्री के साथ भी हुआ | प्रेम ने उसको भी झुलसाया | प्रेम की बिछड़न में उसने भी न जाने कितने ही तकिये भिगोए | पहले गुरुदत्त से दूरी और फिर कभी न पाटी जा सकने वाली दूरी | 10 अक्टूबर 1964 को गुरुदत्त ने आत्महत्या कर ली  | प्रेम की पीड़ा में दहकती वहीदा अकेली रह गयी | लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी | नियति के सामने पराजय स्वीकार नहीं की | अपने फिल्मी करियर पर ध्यान दिया | गुरुदत्त से अलग होने के बाद 1962 में निर्माता-निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म ‘अभिजान’ में अभिनय किया | फिल्म ‘बीस साल बाद’ भी उसी वर्ष रिलीज़ हुई | जो सुपरहिट रही | 1964 में फिल्म कोहरा रिलीज़ हुई |1965 में फिल्म ‘गाइड’ के बाद तो वह फिर से शिखर छूने लगी |1967 में ‘राम और श्याम’ और ‘पत्थर के सनम’ | सुनील दत्त के साथ एक फूल चार कांटे, मुझे जीने दो, मेरी भाभी और दर्पण रिलीज़ हुई तो अमिताभ बच्चन के साथ ‘अदालत’ (1976) व ‘त्रिशूल’ (1978) |

गुरुदत्त और उनकी की टीम को छोड़ने के बाद वहीदा रहमान ने 1964 में ‘शगुन’ फिल्म की | कमलजीत सिंह जिनका असल नाम शशि रेखी था, वे उसमें सह-कलाकार थे | अकेलेपन से उबी हुई वहीदा उनसे प्रेम कर बैठी | 1974 में दोनों ने शादी कर ली | कमलजीत सिंह फिल्मों से सफल नहीं हुए तो पुनः अपना व्यवसाय संभालने मुंबई छोड़ बंगलौर चले गए | वहीदा करियर के शिखर पर होते हुए भी मुंबई को विदा कहकर उनके साथ चली गई | बंगलौर रहते हुए उन्होंने फिल्मों से दूरी बनाए रखी | हालाँकि 1976 से 1994 के बीच कहने को उन्होंने 24 फ़िल्में की थीं लेकिन वे छोटी छोटी भूमिकाएँ थीं | वर्ष 2000 में पति के बीमार होने से इलाज के लिए वे फिर से मुंबई लौट आई | लेकिन 21 नवम्बर 2000 कमलजीत सिंह ने इस दुनिया से विदा ले ली | नियति ने एक बार फिर से वहीदा के साथ छल किया | अपने को व्यस्त रखने के लिए वे फिर से फिल्मों में सक्रिय हुईं और वाटर, रंग दे बसंती, दिल्ली 6 जैसी बेहतरीन फ़िल्में दीं | एक दीर्घ अंतराल के बाद कमल हासन निर्देशित फिल्म विश्वरूपम 2 में भी हमें देखने को मिलेंगी |
1950 से 1970 के दो दशक हिंदी सिनेमा का स्वर्ण काल था और 1960 का दशक वहीदा के लिए | लगभग दो दशक तक उन्होंने अपनी खूबसूरती, मासूमियत, अदाओं और अभिनय के तिलिस्म से दर्शकों को जकड़े रखा | यही कारण है कि उस समय के सुपरस्टार भी उनके साथ काम करने को ललचाते थे तो डायरेक्टर प्रोडूसर भी अपनी फिल्मों में उन्हें लेना कहते थे | 
हालाँकि ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ और ‘प्रेम पुजारी’ आलोचकों द्वारा सराही जाने के बाद भी फ्लॉप रहीं | ऐसे ही 1966 में राजकपूर के साथ ‘तीसरी कसम’ और 1971 में ‘रेशमा और शेरा’ भी सशक्त अभिनय के बावजूद बॉक्स-ऑफिस पर असफल रहीं | धर्मेन्द्र के साथ आईं वहीदा की फ़िल्में भी खामोशी से उतर गईं लेकिन फिल्म ‘ख़ामोशी’ ने तहलका मचा दिया | 
फिल्म खामोशी में उनका अभिनय इतना अद्भुत था कि उस समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना और धर्मेन्द्र जैसे सशक्त अभिनेताओं के बावजूद दर्शकों के मन को खामोशी से वहीदा रहमान हर लेती हैं | यह उनकी अभिनय प्रतिभा का ही कमाल था | उस फिल्म में दोनों अभिनेता प्रेम में असफल होने पर अवसाद ग्रसित होकर मानसिक उपचार के लिए आते हैं | वहीदा उनकी सेवा-सुश्रुषा में लगी है | इसे संयोग ही कहेंगे कि रियल लाइफ में प्रेम न पा सकने वाली यह नायिका इस समय रील लाइफ में किताबों में प्रेम ढूंढती हुई कालिदास की मेघदूत पढ़ रही होती है | असली जीवन में प्रेम को खो देने वाली वहीदा के मन में अभिनय में ही सही पर प्रेम की कोंपलें फूटने लगती हैं | वे हरीभरी होकर लहलहाना चाहती हैं | एक दृश्य में वे धर्मेन्द्र के प्रेम में पड़ जाती हैं | वे उन्हें देने के लिए मेघदूत लेकर उनकी तरफ बढ़ती है, तभी अतीत के प्रेम में उलझे धर्मेन्द्र के होंठ गुनगुना उठते हैं और वह समझ जाती है कि उसे भ्रम हुआ है | रील लाइफ में भी उसके साथ छल हुआ है | धर्मेन्द्र उसके प्रेम में नहीं बल्कि उसे देखकर धर्मेन्द्र को अपनी प्रेमिका याद आ रही है | वह लौट आती है और किताब को रख देती है | 
इसी फिल्म के एक दृश्य में वह और आराधना से करियर शुरू करने वाले सुपरस्टार राजेश खन्ना एक नाव में होते हैं | राजेश खन्ना गीत गा रहे होते हैं और वे कहीं खोयी हुई-सी लगती हैं | ऐसा लगता है जैसे वे वहां हो ही नहीं | शायद गुरुदत्त के प्यार में खोई हैं, जो खो गया था | प्रेम चाहे हाथ में हो या छूट गया हो वह हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता | वह मन के किसी कौने में ताउम्र रहता है | लेकिन दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है | इंसान प्रेम के उन अहसासों को जीवन भर महसूस तो करना चाहता है लेकिन फिर से प्रेम में पड़ने से डरता है | यह सोचकर कि फिर से कहीं टूट गया, किरच किरच बिखर गया तो समेट नहीं पाएगा | फिर यह जीवन भी हाथ से जाएगा | नाव में बैठी वहीदा रहमान के चेहरे के भाव कुछ ऐसे ही लगते हैं | फिल्म ‘खामोशी’ के एक गीत में भी कुछ ऐसे ही ख़ूबसूरत और प्यारे बोल हैं:
  
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं
एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है
ना ये बुझती है ना रुकती है, ना ठहरी है कहीं
नूर की बूंद है सदियों से बहा करती है
सिर्फ एहसास है ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो
हम ने देखी है इन आँखों की महकती खुशबू 
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो 
हमने देखी है…
वस्तुतः वहीदा का मतलब ‘अद्भुत’ होता है और उन्होंने ऐसा कर दिखाया है|

सम्प्रति: सीनियर प्रोफेसर, एनेस्थीसियोलोजी एंड क्रिटिकल केयर, डॉ.एस.एन.मेडिकल कॉलेज, जोधपुर |
कथादेश, अहा! ज़िंदगी, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, सहित देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी और आलेख प्रकाशित तथा आकाशवाणी से प्रसारित |
प्रकाशित पुस्तकें:
1.कहानी संग्रह ‘पसरती ठण्ड’ ( हिन्द युग्म प्रकाशन )
2.उपन्यास: ‘उमादे’
(प्रथम संस्करण: जनवरी 2022, भारतीय ज्ञानपीठ)
(द्वितीय संस्करण: अप्रेल 2022, भारतीय ज्ञानपीठ-वाणी प्रकाशन)
3.उपन्यास: कोटड़ी वाला धोरा (वाणी प्रकाशन)
साझा कहानी संग्रह:
4.     21 श्रेष्ठ युवामन की कहानियाँ, राजस्थान (प्रकाशक: डायमंड बुक्स)
5.     रेड लाइट एरिया ( प्रकाशक: प्रलेक प्रकाशन, संपादन: जयंती रंगनाथन)
सम्मान:
  1. हास्य-व्यंग्य विधा के लिए ‘मीरा भाषा सम्मान’ 2020-21
  2. आध्यात्मिक क्षेत्र पर्यावरण संस्थान द्वारा अपने संरक्षक पूर्व मारवाड़ रियासत के पूर्व महाराजा सम्मानीय गजसिंह जी के हाथों से ‘स्वर्ण पदक’ से सम्मानित किया, 5 जून 2023
  3. उपन्यास ‘उमादे’ को जयपुर साहित्य संगीति का अखिल भारतीय ‘सर्वोत्कृष्ट कृति साहित्य सम्मान” 2021-22
  4. उपन्यास ‘उमादे’ को अखिल भारतीय ‘शिक्षाविद पृथ्वीनाथ भान साहित्य सम्मान” 2022
  5. उपन्यास ‘उमादे’ को अखिल राजस्थान ‘आचार्य लक्ष्मीकांत जोशी सम्मान’ 2022
  6. उपन्यास ‘उमादे’ को आचार्य रत्न लाल विद्यानुग स्मृति अखिल भारतीय ‘शब्द निष्ठा पुरस्कार’ 2023
  7. उपन्यास ‘उमादे’ को भाषा एवं पुस्तकालय विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा ‘हिन्दी सेवा पुरस्कार – 2023’
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