पुस्तक – आदमी की नब्ज़ लेखक- राम गोपाल भावुक प्रकाशक- लोक मित्र दिल्ली मूल्य- 225 रुपए
समीक्षक
सूर्यकांत शर्मा
भारतीय समाज अब अपनी आधी शक्ति/आधी आबादी यानी नारी की महत्ता को समझने लगा है।साहित्य में भी स्त्री विमर्श जैसे विचारोतेजक पड़ाव आए और साहित्य में एक अलग सा सृजन हुआ। जिसने स्त्रीयों के पक्ष को मजबूती से उकेर कर समूचे समाज को सोचने पर मजबूर किया कि हाशिए की आधी आबादी वस्तुतः सृष्टि और हमारे समाज का आधार या मूलभूत सरंचना है।
रामगोपाल भावुक ने अपनी नव प्रकाशित पुस्तक आदमी की नब्ज़ में नारी-विमर्श आयाम को अपनी कहानियों के माध्यम से बेहद संवेदनशीलता एवं नैसर्गिकता से प्रस्तुत किया है। कुल चौदह कहानियों से सृजित यह बगीचा पाठकों को समाज में व्याप्त रीति नीति कुरीति की बेबाक और खरी खरी व्याख्या करता है।प्रत्येक कहानी अपने आप में एक यक्ष प्रश्न है जो बड़ी ही कुशलता और सहजता से बुनी गई है और वह भी आस पास के परिवेश स्थिति व परिस्थिति के घालमेल में गड्डमुड्ड!!?
पहली ही कहानी जोकि इस कहानी संग्रह का शीर्षक भी है।समीचीन संदर्भ और नारी,आदिवासी और कामगारों के यक्ष प्रश्न से परिचय कराती चलती है।राजनीति में क्या कैसे हो रहा है उसका स्पष्ट चित्रण यहां पढ़ा जा सकता है।इसी क्रम को और गहन पड़ताल के आईने में पाठक कहानियां यथा आंगन की दीवार तथा बेहतर उम्मीद में स्त्री को देख सकता है।यहां स्त्रीयों की पीड़ाओं को दर्शा कर पुरुष के साथ साथ आधी आबादी की भी मानसिकता को बंया किया गया है।कहानी रिश्ता तो बेहद माइक्रो यानी सूक्ष्म अंदाज़ से हमारे मध्य और निम्न आय समूह की मनः स्थिति की तफ्तीश ही कर देती है।इसमें विवाह को केंद्र में रखकर सुंदर ताना बाना बुना गया है।
बाज़ार और बाज़ारबाद कितने गहन या सघन रूप से हमारे देश में व्याप्त हो गया है और वह भी इस सीमा तक कि विवशता और विद्रूपता जुगलबंदी में मानवीयता को बस निगला ही चाहती हैं यही है कहानी चाइना बैंक में।पड़ोसी देश सदैव मीडिया की सुर्खियों में रहता है,और आम आदमी चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पानी की असह्य वेदना को सफलता और सहजता से पाठकों को संवेदित करती है,यही रचना।
ग्लोकल से ग्लोबल होते भारतीय समाज और उसकी परंपराएं प्रवृत्तियों पर एक लैंस सा रखकर पाठकों को बहुत कुछ समझाती है कहानी,,,,,,।इंडिया से भारत की यात्रा अब दृष्टिगोचर हो रही है,परंतु अभी भी दलित वर्ग की स्थिति और चुनिंदा वर्ग विशेष की सामंती सोच और वह भी हमारे ग्रामीण भारत में,उसी को सजीवता से प्रस्तुत करती है,कहानी मिश्री धोबी फागो जो पाठकों को हमारे समाज के और करीब ले जा कर समाज की कड़वी हकीकत से रू ब रू करती है।
भारतीय समाज अब एक बड़े परिवर्तन के दौर में जा चुका है, जहां से ना पीछे लौटते बनता है और न ही पुरानी पीढ़ियों की मान्यताएं या उनकी पालित पोषित व्यवहार संस्कृति को अपनाते,इसी द्वंद को बेहद खूबसूरती से बयां किया गया है,रचना नंदी के वंशज में।
हमारा समाज लगभग पुरुष प्रधान रहा है,इसमें संस्कृति भक्ति अध्यात्म का भी मजबूत पुट रहा है।कहानी पति के पांव में इसकी दमदार नज़ीर देखी जा सकती है।
कहते है कि साहित्य ही सर्वाकार है और सृजन के सारे आयाम या कविता की भाषा में कहें तो इंद्र धनुष,तो इसी से यानी साहित्यकार की सोच और फिर कलम से निसरत हुए और कहानी एक सटीक और समीचीन संदर्भ में सर्वथा उपयुक्त विधा है। कोरोना महामारी आने वाली पीढ़ी के चेतन और अवचेतन मन मस्तिष्क में एक बुरे स्वप्न के रूप में पंच विकारों की मानिंद विद्यमान रहने वाली है। कोरोना से युद्ध रत स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के दर्द को बंया करती है कहानी सेफ डिस्टेंसिंग।इस कहानी संग्रह की मुख्य/शीर्षक की कहानी के अतिरिक्त कहानियां यथा आज की स्त्री,ठसक, टूटता तारा और विजया ,,,स्त्री समस्याओं के वैभिन्न्य को पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी से प्रस्तुत करते हैं।आज की स्त्री की नायिका खूबसूरत पढ़ी लिखी और कामकाजी है परंतु उसे अल्प शिक्षित, उथली पुरुष मानसिकता और सामंती व्यवस्था में बांध कर उसके दर्द को बखूबी बताया गया है और साथ ही साथ मौका मिलते ही नायिका का अपने सहकर्मी की बाइक पर बैठ कर मुखरित हो कर काम पर चले जाना उसके साहस और निर्णय शक्ति का परिचय देते हुए कहानी एक सकारात्मक परंतु व्यवहारिक मोड़ पर समाप्त होती है।
ठसक में दलित महिलाओं की कठिनाइयों और दैहिक शोषण के प्रति मुखर विरोध का मुद्दा बेहद संवेदनशीलता के पाठकों के सामने प्रस्तुत किया गया है।
टूटता तारा कहानी में लेखक ने बड़ी हिम्मत से पुरुष की थोथी और थोपने वाली मानसिकता को उकेर कर शठम शठे की तर्ज का बोल्ड समाधान कहानी की नायिका के माध्यम से प्रस्तुत किया है,जो आज के समीचीन संदर्भ में संभव है,,,ठीक है की स्वीकार्यता की परिधि में आता है।कहानी संग्रह की अंतिम कहानी विजया,आज के युवा की स्वेच्छाचारिता पूर्ण आचरण और धोखा खाने और फिर दुराचारी धोखेबाज को ललकारने में न्याय व्यवस्था और परिवार के सहयोग का मिश्रण है। यह कहानी संग्रह बहुत दूर तक देर तक पाठकों के साथ और उनकी बुक शेल्फ में रहेगा।