ज़किया ज़ुबैरी ब्रिटेन की अग्रणी हिन्दी कथाकार ही नहीं बल्कि लंदन के बारनेट क्षेत्र की पहली और एकमात्र मुस्लिम महिला काउंसलर हैं। वे आजतक इस सीट से पांच चुनाव जीत चुकी हैं। ज़किया जी की अम्मी उन्हें हमेशा 1942 की चिंगारी कहा करती थीं, क्योंकि 1 अप्रैल 1942 को ही उनका जन्म लखनऊ में हुआ था। ज़किया जी की शुरूआती शिक्षा आज़मगढ़ के सरकारी कन्या विद्यालय में हुई। सेकण्डरी शिक्षा इलाहाबाद से हुई और उन्होंने बी.ए. की डिग्री बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राप्त की।

ज़किया जी के अब्बा हुज़ूर अपने ज़माने के सर्जन थे। ज़किया जी की मातृभाषा हिन्दी है। उन्होंने उर्दू लंदन में सैटल होने के बाद सीखी। उनका कहानी संग्रह साँकलराजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की हिन्दी जगत में ख़ासी चर्चा हुई।

ज़किया जी को भारतीय उच्चायोग, लंदन ने समय समय पर हिन्दी गतिविधियों के लिये सम्मानित किया है। हाल ही में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित ‘हंसराज कॉलेज’ द्वारा विज्ञान भवन मे आयोजित दो दिवसी अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनमें ‘महात्मा हंसराज अंतरराष्ट्रीय हिंदी शिखर सम्मानप्रदान किया गया। यह सम्मान उन्हें भारत के केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी के हाथों लेने का सौभाग्य मिला ।

कथा यू.के. परिवार और ब्रिटेन का हिन्दी जगत आदरणीय ज़किया जी को उनके जन्मदिवस की बधाई और शुभकानाएं प्रेषित करता है। इस अवसर पर कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ, व्यंग्यकार-संपादक डॉ. हरीश नवल, एवं संपादक-कवि-कहानीकार डॉ. महेन्द्र प्रजापति ने फ़ेसबुक पर अलग अलग पोस्ट डालीं। लीजिये तीनों पोस्ट आप सबके अवलोकन के लिये हाज़िर हैं।

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Post 1: Manisha Kulshreshtha (01 April 2020 at 13:58 hours)

आज ज़किया ज़ुबैरी जी का जन्मदिन है, उनको हार्दिक शुभकामनाएं। मैं उनसे हुई दो मुलाक़ातों को कभी नहीं भूल पाती। एक बार साहित्य अकादमी में, एक बार हाल ही में लंदन में। 

जीवन और स्नेहिल कोमलता से भरा उनका व्यक्तित्व सबको समेट लेता है। बहुत नफ़ीस लिबास, चश्मे से झांकती तरल आंखें, हमेशा होंठों पर बनी रहने वाली मुस्कान। बात करने का लहज़ा। आप उनके मुरीद हुए बिन नहीं रह सकते।  उस पर उनकी जीवन के अनुभवों से भरी कलम, भाषाई नज़ाकत के साथ कहां नहीं लिए जाती है।…

Post 2: Dr. Harish Naval (01 April 2020 at 19:02 hours)

प्रिय दोस्तो आज इंगलैंड की प्रख्यात हिन्दी लेखिका जकिया जुबेरी जी का ७८वाँ शुभ जन्मदिन है । इंग्लैंड की ही एक अन्य साहित्यिक विभूति , मेरे आत्मीय मित्र तेजेंद्र शर्मा के द्वारा उनसे परिचय हुआ था।यूँ जकिया जी के साहित्य से मैं बख़ूबी परिचित था और उनका कहानी संकलन ‘साँकल’ मुझे प्रिय है । प्रस्तुत चित्र हंसराज कॉलेज का है जहाँ यशस्वी प्रिन्सिपल डॉक्टर रमा द्वारा आयोजित एक साहित्यिक संगोष्ठी में वे तेजेंद्र शर्मा जी के साथ पधारी थीं । 

जकिया जुबेरी जी को जन्मदिन की मुबारकबाद ,वे स्वस्थ रहें उनका यश निरंतर बढ़ता रहे तथा उनकी लेखनी हिंदी साहित्य की वृद्धि करती रहे ; यही शुभ कामना है…

Post 3: Dr. Mahendra Prajapati (02 April 2020)

ज़किया ज़ुबैरी होने के मायने…

कल ज़किया ज़ुबैरी जी का जन्मदिन था। फेसबुक की वॉल उनको बधाई देने वालों से भरी हुई थी। मैंने सोचा कि बधाई मैं भी दे ही दूं लेकिन फिर सोचने लगा कि क्या जैसे हम फेसबुक के याद दिलाने पर सबको बधाई देते हैं वैसे ही ज़किया जी को बधाई देना ठीक होगा? इसके लिए ना मन तैयार हुआ, ना बुद्धि ना ही हृदय। 

जब मैंने प्रवासी साहित्य को समझने का प्रयास किया तो सबसे पहले मुझे तेजेन्द्र जी जुड़ने का अवसर मिला। हिंदी साहित्य के मुख्य धारा में प्रवासी रचनाकार के रूप में जो ख्याति तेजेन्द्र शर्मा ने अर्जित की वह शायद ही किसी को मिली हो और यह ख्याति, मान, सम्मान, पुरस्कार, अपनापन जो तेजेन्द्र शर्मा को मिला उसके वे हकदार भी हैं। उनकी रचनाधर्मिता की गंभीरता, विषय वस्तु और शिल्प का नयापन इन सबपर अपना वाजिब अधिकार रखते हैं। 

वर्ष 2012 में कथा यूके द्वारा यमुनागर में आयोजित प्रवासी साहित्य पर केन्द्रित सेमिनार में पहली बात में ज़किया जी मिला। सौन्दर्य और शालीनता का जो वैभव उनके व्यक्तित्व में दिख रहा था वह आकर्षित करने वाला था। हालाकि मेरे बहुत प्रिय कहानीकार अजय नवारिया जी और मेरे शोध निर्देशक पितातुल्या सत्यकेतु जी के स्नेह के कारण मैं उस सेमिनार में वक्ता के रूप में शामिल हुआ था लेकिन जो परिचय और सम्मान वहां ज़किया जी का दिया गया उससे मैं एक दूरी बनाकर ही उन्हें बस देख लेता था। 

पराए देश में जाकर हम अपनी जीविका के संसाधन जुटा लें और बेहतर जिंदगी जी लें यही बहुत बड़ी बात होती है लेकिन यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि ज़किया जी केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि लंदन की राजनीति में भी सम्मानित पद पर है। अपने देश और समाज की संस्कृति, सभ्यता और रहन- सहन से उनका जो अनुराग है वह हम जैसे लोगों में उनका कद बड़ा कर देता है। 

ज़किया ज़ुबैरी होने का अर्थं भारतीय समाज में स्त्री की उस मजबूत छवि का होना है जो घर की दहलीज और और विदेश के बीच पुल का काम करती हैं। उनके चेहरे पर खेलती मधुर मुस्कान और हृदय का तरल भाव किसी को भी अपना बना सकता है। मैं कुछेक उन भाग्यशाली लोगों में हूं जिन्हें साहित्य और समाज के वरिष्ठ लोगों का अपार स्नेह मिला। जकिया जी उन्हीं में से एक हैं। उनसे जब परिचय हुआ तो पता चला कि वह मेरे आजमगढ़ से हैं लेकिन उनके स्नेह का आधार यह नहीं है उनके स्नेह का आधार उनके हृदय की उदारता है। 

मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में हूं जिन्हें ज़किया का प्रेम और स्नेह अतिरिक्त मिला। अंकिता को वह अपनी बहू कहती हैं। मुझसे जब भी मिलती हैं, उनका पहला सवाल यही होता है – बहू कहां है? पिछले दिनों जब रमा जी के निर्देशन में संपन्न विज्ञान भवन के सम्मेलन में वह मिलीं तो अम्मा बाऊ जी भी साथ थे। उनसे वह ऐसे मिली जैसे कोई अपने परिवार के किसी सदस्य से वर्षों बाद मिलकर खुश हो जाता है। उस समय उनका यह प्यार पाकर मैं सच में अभिभूत था। इस अपनेपन के लिए उनका आभार भी नहीं कर सकता क्योंकि यह सब कुछ अनायास नहीं है। 

जैसे एक घने फलदार पेड़ से हम केवल लेते हैं वैसे ही ज़किया जी ने हमेशा मुझे कुछ ना कुछ दिया ही है। कभी फोन अा जाता है तो एक – एक चीज के बारे में पूछती हैं। खूब सारी दुवाएं देती हैं। बहुत सारा आशीर्वाद देती हैं। यह एहसास दिलाती रहती हैं कि मैं उनके बेटे जैसा हूं। उनके अंदर एक बहुत भावुक और भावविभोर कर देने वाला कवि मन है। साधा हुआ कहानीकार है। उनका कहानी संग्रह सांकल जो कि राजकमल से प्रकाशित हुआ, बहुत चर्चित रहा। स्त्री विमर्श की नई व्याख्या और पुनर्पाठ इस कहानी संग्रह की विशेषता है। आदरणीय सत्यकेतु सर ने उसपर शोध भी करवाया। 

कुछ लोग कम लेकिन बेहतरीन लिखते हैं। बल्कि उनसे कह कर लिखवाया जाता है। ज़किया जी ऐसी ही कम लेकिन बेहतरीन और शानदार लिखने वाली साहित्यकार हैं। उनके स्नेह और प्रेम के उनके द्वारा किए गए सहयो गों के लिए उन्हें अपने जीवित रहने तक याद रखूंगा। 

अंत में उनसे एक अनुरोध करना चाहूंगा, चाहे तो वह इसे सुझाव भी मान लें। उनके पास साठ वर्षों से अधिक का साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अनुभव है। इन अनुभवों को कलमबद्ध करें तो निश्चित रूप से वह हिंदी की अमूल्य धरोहर होगी। यह काम तेजेन्द्र जी भी कर सकते हैं अगर ज़किया जी अस्वस्थ होने के कारण नहीं लिख पा रही हों तो तेजेन्द्र जी उनकी जीवनी लिखें। तेजेन्द्र जी लिखेंगे तो कमाल ही लिखेंगे। अगर यह पुस्तक किसी भी सूरत में लिखी गई तो ज़किया जी के अनुभवों और संघर्षों के कारण पठनीय होगी, यह तय है।

2 टिप्पणी

  1. जाकिया ज़ुबैरी जी को आत्मीय बधाई। पुरवाई ने महत्त्वपूर्ण सामग्री दी है। भाई तेजेन्द्र जी को धन्यवाद।

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