मेरे मित्र प्रो. अजय नावरिया ने अपनी एक फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा है, “हिन्दू धर्म के सब लोग अच्छे होते हैं – अंधभक्ति। सब मुस्लिम खराब हैं – अंधविरोध। अच्छे-बुरे लोग सब में हैं – मध्यमार्ग, संतुलित सोच।” दरअसल यह मध्यमार्गीय सोच ही हमें सच बोलने से रोकती आई है। यदि किसी मनुष्य या जमात ने कोई ग़लत काम किया है तो हमें बिना यह सोचे कि वो किस ज़ात या धर्म का है उसकी आलोचना करनी होगी। हम यह नहीं कर सकते कि किसी काम के लिये ब्राह्मण की आलोचना करें और उसी काम के लिये दलित के लिये कुतर्क ढूंढना शुरू कर दें।

आज के नाज़ुक समय में डॉक्टरों का काम कोरोना मरीज़ों की जान बचाने का है और पुलिस कर्मियों का काम है सरकार की घोषणाओं को क्रियान्वित करवाना और इन देवदूतों की जान बचाना।

इससे पहले मुझे अपने जीवन में कभी ऐसे दृश्य देखने को नहीं मिले कि जो लोग हमारी जान बचाने के लिये अपनी जान को दांव पर लगा रहे हों, उन्हीं पर हम अपनी नफ़रत और हिंसा का वार कर दें। 

यदि इन देवदूतों पर यह हिंसा किसी एक इलाक़े में हुई होती तो कहा जा सकता था कि इक्का दुक्का प्रतिक्रिया हो गयी। मगर ऐसा नहीं हुआ। यह निंदात्मक और हिंसात्मक रवैया देश के बहुत से राज्यों के बहुत से क्षेत्रों में देखा गया। इससे लगने लगा है कि यह कोई तत्क्षण प्रतिक्रिया नहीं बल्कि कोई सूझी बूझी योजना है। सरकार के कोरोना कार्यक्रम को पटरी से उतारने और भारत में इस वायरस को आम आदमी में फैलाने की योजना।

सवाल यह उठता है कि ऐसी आत्मघाती सोच के पीछे कारण क्या हो सकते हैं। क्या एक व्यक्ति के प्रति नफ़रत पूरे राष्ट्र को तहस नहस करने का उन्माद दिल में भर सकता है। याद रखना होगा कि नरेन्द्र मोदी भारत नहीं हैं। जब ऐसे भयानक समय में हम डॉक्टरों ओर पुलिस कर्मियों पर हमला करते हैं तो हम अपने भारतवासियों की जान को ख़तरे में डालते हैं। 

मेरे मित्र प्रो. अजय नावरिया ने अपनी एक फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा है, “हिन्दू धर्म के सब लोग अच्छे होते हैं – अंधभक्ति। सब मुस्लिम खराब हैं – अंधविरोध। अच्छे-बुरे लोग सब में हैं – मध्यमार्ग, संतुलित सोच।” दरअसल यह मध्यमार्गीय सोच ही हमें सच बोलने से रोकती आई है। यदि किसी मनुष्य या जमात ने कोई ग़लत काम किया है तो हमें बिना यह सोचे कि वो किस ज़ात या धर्म का है उसकी आलोचना करनी होगी। हम यह नहीं कर सकते कि किसी काम के लिये ब्राह्मण की आलोचना करें और उसी काम के लिये दलित के लिये कुतर्क ढूंढना शुरू कर दें। 

जब गायिका कनिका कपूर ने ग़ैर ज़िम्मेदाराना हरकत की और कोरोना पॉज़िटिव होने के बावजूद पार्टियों में शिरकत करती रही, तो सबने एक सुर में उसकी हरकत की आलोचना की। किसी ने भी हिन्दू या मुसलमान बन के नहीं सोचा। आज अपनी पांचवीं रिपोर्ट में वह कोरोना वायरस से बच कर निगेटिव घोषित हो चुकी है। मगर इससे उसकी बेवक़ूफ़ी कम नहीं हो जाती। वह ग़ैर-ज़िम्मेदार अवश्य थी मगर उसकी मन्शा भारत को हानि पहुंचाना नहीं थी। फिर भी पूरे भारत ने उसकी जम कर आलोचना की थी। 

तबलीगी जमात का एक एजेण्डा है। उसके सदस्यों नें सोची समझी प्लान के तहत भारत देश को नुक़्सान पहुंचाने का प्रयास किया है। डॉक्टरों पर थूका है, हस्पताल की रेलिंग पर अपना थूक लगाया है; अश्लील हरकतें की हैं, और पूरे भारत में कोरोना फैलाने के लिये निकल पड़े हैं। हमें अपने निजी विचारों और मज़हब से ऊपर उठ कर उनकी मज़म्मत करनी ही होगी ताकि कोई और इस तरह की हरकत दोबारा ना कर सके। इन सब पर होमीसाइड की धारा के तहत मुकद्दमा चलना चाहिये। सरकार से भी प्रार्थना है कि इसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास ना करे। बस इनको मुजरिम माने और न्यायिक प्रक्रिया शुरू करे। 

इन्दौर में जिस प्रकार डॉक्टरों पर हमला हुआ वो जानलेवा भी हो सकता था। पुलिस पर जगह जगह हमले हो रहे हैं। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश ने ऐसे हमलावरों पर रासुका लगाने की घोषणा की है। यही पूरे भारत में होना चाहिये। जो इस भीषण महामारी के काल में देश का अहित करने की सोचे उस पर रासुका के तहत ही कार्यवाही होनी चाहिये।

ब्रिटेन में एक बात देखने को मिली कि कभी भी किसी प्रकार की इमरजेन्सी में विपक्ष और सत्तापक्ष एक ही सफ़े पर खड़े दिखाई देते हैं। काश यह भारत में भी हो पाता। इस महामारी के दौर में राजनीतिक पार्टियों को अपने अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर देश के बारे में सोचना होगा।  

एक सलाह टीवी चैनलों के लिये भी – “चिल्लाना बन्द कीजिये। आप जिस प्रकार के एक्सपर्ट अपने दंगल और बड़ी बहस के लिये बुलाते हैं, उनकी शक्ल और नाम देख कर ही पता चल जाता है कि वे क्या बोलने वाले हैं। इस चिल्ल पौं से हमें मुक्ति दिलवाइये। हर कुतर्क करने वाले की बात मानने वाले की एक फ़ौज होती है। वह अपनी बात टीवी के ज़रिये अपने चाहने वालों तक पहुंचा कर, कॉलर ऊपर करता हुआ स्टूडियो से बाहर निकल लेता है और भारत एक बार फिर हार जाता है।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

3 टिप्पणी

  1. apआपका संपादकीय पढ़ा। निश्चित रूप से जिस समय संपूर्व विश्व में मानवीय आधार पर डॉक्टर तथा उनके सहयोगी अपनी जान जोखिम में डालकर कार्य कर रहे हैं। ऐसे में इन देवदूतों पर आघात करना और इन पर थूकने जैसे कृत्य अत्यंत ही निंदनीय हैं। अपने गंभीर चिंतन द्वारा इस विषय पर जो तथ्य रखे वह अत्यंत प्रासंगिक और विचारणीय हैं। साधुवाद।
    हरीश अरोड़ा

  2. 5 अप्रैल के सम्पादकीय में टीवी चैनलों को दी गयी सलाह वाक़ई लाजवाब है।

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