अध्ययन में अधूरा लेकिन ज्ञान में गहन था वह ऋषि। विनम्र इतना कि कोई भी उनका मुरीद हो जाए और मुखर इतना कि किसी की भी ख़बर ले ले ।उनके इस स्वभाव से ट्विटर पर उनके ३.५ मिलियन फोलोवर बेहतर तरीक़े से वाक़िफ़ है।अपने घर की बात हो या मन की बात; ऋषि सहज भाव से इसे दुनिया के सामने रख देने के मामले में ऋषियों की ही तरह निर्लिप्त, निर्द्वंद्व और निर्भीक थे।’
अपनी जीवनी ‘खुल्लम खुल्ला’ में ऋषि कपूर ने जो भी लिखा वह मानो इस भाव से लिखा कि ‘कहना था सो कह दिया अब कुछ कहना नाहीं’। बॉलीवुड के शोमैन का लड़का जन्मना ही नहीं शौक़ और संस्कार से भी पंजाबी था। तीन सदस्यों के परिवार वाले ऋषि के घर की रसोई इतनी बड़ी है कि आप इसके अन्दर वॉलीबॉल खेल सकते हैं । खाने-खिलाने और पीने -पिलाने का ये शौक़ एक तरफ़ जहां ऋषि के जीवन को आलीशान बनाया वहीं अंत में यह उनके स्वास्थ्य का हंता भी बन गया। नामुराद कैंसर कपूर परिवार का तीसरा चिराग़ ले गया। ये आसमान में कैसी बिजली कौंधी कि दो दिन में ही दो सितारे लील गई।’
जब वह बॉबी का राज बने तो बॉलीवुड में पहली बार टीन एज लव को बड़े पर्दे की अभिव्यक्ति मिली। 21 वर्षीय ऋषि अगले 30 वर्षों तक भारतीयों के लिए प्रेम की पाठशाला बने रहे।
‘102 नॉट आउट’ के रील लाइफ़ का 76 साला बाबूलाल भले ही लगभग 10 साल पहले ही आउट हो गया लेकिन 67 साला आयु वाले ऋषि ने अपना 64 साल रील लाइफ़ को दिया। इसलिए ऋषि की आयु भले ही कुछ कम पड़ गई पर बॉलीवुड में उनका योगदान पर्याप्त, उल्लेखनीय, स्पृहणीय, आदरणीय और अनुकरणीय है।
जब ये जोकर बन पहली बार पर्दे पर आए तो बड़े पर्दे पर पहली बार एक स्कूली छात्र का अपनी शिक्षिका के प्रति क्रश को अभिव्यक्ति मिली। कला मानव के अंतर्मन की अभिव्यक्ति मात्र नहीं होती, बल्कि इसके माध्यम से कलाकार अपना अनुभव साझा कर लोगों का सत्य से साक्षात्कार कराते है और जीने की राह भी बताते हैं ।
आगे चलकर बॉलीवुड में इस विषय पर कई फ़िल्में बनी। जब वह बॉबी का राज बने तो बॉलीवुड में पहली बार टीन एज लव को बड़े पर्दे की अभिव्यक्ति मिली। 21 वर्षीय ऋषि अगले 30 वर्षों तक भारतीयों के लिए प्रेम की पाठशाला बने रहे।
1970 के बाद बॉलीवुड ने एक तरफ़ जहां अमिताभ के माध्यम से युगीन मोहभंग और आक्रोश को अभिव्यक्त किया वहीं ऋषि आज़ादी के बाद जन्म लेने और युवा होने वाली पहली पीढ़ी के प्रेम और स्टाइल का आयकॉन बन गए। ऋषि के माध्यम से ही गिटार पहली बार भारतीय संगीत और स्टाइल का लोकप्रिय हिस्सा बना। वास्तव में यह कहा जा सकता है कि ऋषि ने क़र्ज़ फ़िल्म में जब अपने उमर के नौजवानों का आवाहन किया तो गिटार बैठकर परफ़ॉर्म करने की परम्परागत भारतीय पद्धति से अलग आज़ाद ख़्याल भारतीयों की प्रदर्शन कला का प्रतिनिधि उपकरण बन गया।
यह भी कह सकते हैं 1905 की कला की स्वदेशी धारा लगभग 75 वर्षों के बाद पश्चिम के साथ तालमेल की ओर मुड़ी। संगीत के मामले में ऋषि राज कपूर का वास्तविक अंश थे। गिटार के साथ ही ‘दर्दे दिल दर्दे जिगर’ के माध्यम से वायलिन को भी ट्रेंडी बनाने में ऋषि का अहम योगदान रहा। ऋषि कपूर ने सरगम में डफली पर जो रंग जमाया उसे देखते हुए आज भी कई लोग यह कहते हैं कि उनके जैसी डफली और कोई नहीं बजा सकता ।यह चर्चा तब फिर गर्म हो गई थी जब उन्होंने कोरोना वारियर्स के सम्मान में थाली बजाया था ।

ध्यातव्य है कि ऋषि ने प्रेम के सिर्फ़ स्टाइलिश स्वरूप को अभिनीत नहीं किया। बॉबी भारतीय सिनेमा में वर्ग बनाम प्रेम के संघर्ष का ट्रेंड भी सेट किया। बॉबी आज भी रूस में सबसे ज़्यादा देखी गई 20 फ़िल्मों में से एक है। लैला मजनू में इश्क़ मिज़ाजी इश्क़ हक़ीक़ी में तब्दील होते नज़र आती है।प्रेमरोग में प्रेम एक ही साथ वर्गीय ,सामन्ती एवं पुरूषवादी तीनों ही सत्ताओं से टकराता है।
पारिवारिक फ़िल्मों पर भी ऋषि कपूर की विशेष छाप रही। भाई, मित्र, पुत्र, पिता और पति सभी स्तरों पर ऋषि ने परिवार के मूल्य एवं ढाँचा और सत्ता की शक्ति के मामले में द्वन्द्व उपस्थित करने वाली फ़िल्मों में काम किया। सही अर्थों में कहें तो ऋषि कपूर की फ़िल्मों ने मध्य एवं निम्न मध्य वर्गीय भारतीय परिवार से जुड़े कई मूलभूत प्रश्नों को उठाया और इसका समाधान भी देने का प्रयास किया।
हिना में प्रेम खोने और पाने की तमाम सीमाओं से दूर घृणा की स्याही से खींची राजनीतिक लकीर को मिटाते हुए शहीद हो जाता है और अंत में शक्ति और सत्ता के विरुद्ध एक प्रश्नचिन्ह बन जाता है।
सरगम मे प्रेम सादगी सात्विकता और समर्पण का आदर्श लेकर आया था नगीना का प्रेम किट्स की ‘लाम्या’ की तरह स्वच्छंदतावादी है जिसमें पुरुष नागिन में भी अपनी प्रेमिका देखता है और भारतीय प्रेम का आदर्श अपने वैचारिक वितान का विस्तार करते हुए किट्स से आगे बढ जाता है ,जिसमें नागिन भी प्रेम करने लगती है।
प्यार की ऐसी ही कई और परतें छिपी हैं जिसका उद्घाटन इस संक्षिप्त आलेख में सम्भव नहीं है।मोटे तौर पर ऋषि कपूर को एक तरफ़ जहां अमिताभ के युग की वैकल्पिक धारा कह सकते हैं वहीं उन्हें बॉलीवुड की दीर्घ क़ालीन परम्परा के एक पड़ाव की तरह भी देख सकते हैं जिसकी पिछली कड़ी राजेश खन्ना से जुड़ती है और अगली कड़ी शाहरुख़ खान से।

पारिवारिक फ़िल्मों पर भी ऋषि कपूर की विशेष छाप रही । भाई, मित्र, पुत्र, पिता और पति सभी स्तरों पर ऋषि ने परिवार के मूल्य एवं ढाँचा और सत्ता की शक्ति के मामले में द्वन्द्व उपस्थित करने वाली फ़िल्मों में काम किया। सही अर्थों में कहें तो ऋषि कपूर की फ़िल्मों ने मध्य एवं निम्न मध्य वर्गीय भारतीय परिवार से जुड़े कई मूलभूत प्रश्नों को उठाया और इसका समाधान भी देने का प्रयास किया।
इसमें नायिका प्रधान फ़िल्मों में ऋषि की भूमिका सशक्तिकरण की ओर बढ़ती भारतीय महिलाओं के प्रति पुरुषों की सहायक भूमिका का प्रतिनिधित्व करती है। दामिनी से लेकर घर घर की कहानी या बड़े घर बेटी तक ऋषि ने ऐसी ही भूमिका निभाया। ऋषि ने इसी तरह की भूमिका ‘एक चादर मैली सी ‘से लेकर ‘मुल्क ‘तक में भी निभाया । इस दौर में एक तरफ़ अमिताभ ने जहां पिंक बनाया वही ऋषि कपूर ने मुल्क।
जीवन कई परतों के आवरण में छुपी हुई मृत्यु ही तो है ।मनुष्य प्रति पल उसी दिशा में जाता रहता है।इसी क्रम में बचपन के बाद जवानी आती है और इसके बाद बुढ़ापा द्वार खटखटाता है।बॉलीवुड पर इसकी मार प्रायः ज़्यादा चोट करने वाली रही है क्योंकि 50 की अवस्था के बाद ज़्यादातर स्टार रिटायर्ड या लगभग रिटायर्ड की भूमिका में चले गए ।लेकिन इस मोर्चे पर भी ऋषि कपूर अमिताभ बच्चन की ही तरह उल्लेखनीय है।
नगीना का प्रेम किट्स की ‘लाम्या’ की तरह स्वच्छंदतावादी है जिसमें पुरुष नागिन में भी अपनी प्रेमिका देखता है और भारतीय प्रेम का आदर्श अपने वैचारिक वितान का विस्तार करते हुए किट्स से आगे बढ़ जाता है, जिसमें नागिन भी प्रेम करने लगती है।
Bahut hi shandaar lekh he Gurudev