नाईट ड्यूटी से आने के बाद स्नान-पूजा-नाश्ता कर समाचार-पत्र के पन्ने को पलटते हुए मैंने टी. वी. देख रही अनन्या से कहा “ अनु ! रात में माँ का फोन आया था। किसी भी तरह एक हप्ता की छुट्टी ले घर आने के लिए कह रही थी। बता रही थी कि एक मौलवी का पता चला है ; उस पर नबी रसूल की रहमत बरसती है – – – अल्लाह के फ़जल से हर तरह के मर्ज का समाधान करता है। गाँव-जवार के बहुतों का कोख भरा है – – – – – माँ तो कह रही थी कि कोई भी करा-धरा हो – – – कैसा भी करश्मा हो – – – – काला जादू हो – – – – सब के सब उसके छुते ही छू-मंतर हो जाता है। वह तो – – यदि चुड़ैल है तो चोटी – – – और यदि भूत-प्रेत, मनुषदेव , जिन्न-जिन्नात है तो मूँछ – – – – काला कपड़ा के नीचे – – -साफ-साफ दिखा-बता देता है। किसी भी तरह आने के लिए कह रही है – — — – चलो शायद हम लोगों का भी ….. ।‘’
अनन्या ने अपने हाथ से टी. वी. का रिमोट नीचे रख दिया। उसके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई – – – – अनन्या के शादी का आठवाँ साल चल रहा है। पति अनिमेष आनंद भारतीय वायु सेना में हैं । पंद्रह साल की नौकरी में यह उनकी चौथी पोस्टिंग है दिल्ली में आयानगर। आर. आर. आर्मी हॉस्पीटल, दिल्ली में इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए कम्पशनेट ग्राउंड पर यहाँ पोस्टिंग मिली है तीन साल के लिए। यहाँ आए हुए उन्हें दो साल हो चुके हैं। आर. आर. में उसका इलाज चल रहा है – – लेकिन अभी तक कुछ भी तो नहीं – – — यहाँ तक की तीन बार आई. वो. वाई. और पिछले महीने तो आई. वी. एफ. भी हुआ – – – लेकिन – – – ।‘’
“ बार- बार जाकर क्या फायदा ? यहाँ तो इलाज चल रहा है – – – वहाँ जाकर — – ।‘’ अनन्या के स्वर में उसके भीतर की पीड़ा उभर आई थी।
“ अनु ! तुम्हें याद है न आई. वी. एफ. फेल होने के बाद डॉक्टर कर्नल शर्मा ने कहा था “ सब ऊपर वाले की मर्जी है – – बेटी- – हमलोग तो केवल प्रयास करते हैं – – – सफलता-असफलता तो वही देता है — – – कौन जाने कही इस मौलवी के जरिये हमारे ऊपर भी ऊपर वाले की कृपा हो जाए – – – ।‘’ अनन्या की तरफ देखते हुए अनिमेष ने ठंढ़ी साँस लेते हुए कहा।
मैं कैम्पस के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के साइबर कैफे रिजर्वेशन कराने के लिए चल दिया। अनन्या के दिलो-दिमाग में पति के कहे हुए शब्द गूँजने लगे। वह बीते वर्षों के यादों के भँवर में डूब गई —- – – – – छुट्टी के दौरान ससुराल से मायके जा रही थी। बस से उतरते ही अनिमेष ने रिक्शा ले लिया था। रिक्शावाला नाटे कद का साँवले रंग का पैतालिस-पचास साल का मेहनत-कश आदमी माथे पर तिलक-भभूत लगाये हुए था। रास्ते में बातचीत में पता चला कि उसे जलंधर नाथ का इष्ट है। उसने अपने आप को सिद्ध बताया था । मेरा उदास चेहरा और खाली गोद देखकर कहा “ शादी को कितने साल हुए , साहेब ! ‘’
“ छ: साल हो गए हैं — – यह सातवाँ है – -क्या बात है भाई ? ‘’
“ नहीं-नहीं – – कुछ नहीं साहेब ! – – – बाबा जलंधर नाथ को सुमिर रहा था – – – सोचा – – -कि – — -।‘’
“ क्या — – मतलब ? ‘’
“ यही की बाबा की कृपा हुई तो मैडम जी की गोद – – साल के अंदर भर जायेगी- – । ‘’
मैंने आशाभरी दृष्टि से रिक्शे के पायडिल को तेजी से चला रहे लाल लुंगी और केसरिया बनियान पहने उस साँवले आदमी को देखा।
“ इसके लिए क्या करना होगा भाई – – ? ‘’ अनिमेष ने धीरे से पूछा था।
“ ज्यादा कुछ नहीं साहेब ! — – बाबा जलंधर नाथ और पंच माई को पाँच चीजें चढ़ानी होगी —- – -।‘’
“ ये पंच माई क्या हैं- – –? ‘’
“ये पंच माई हम सिद्धों के पाँच माई हैं — – पाँच पदारथ इनको चढ़ते हैं – – – – मांस, मदिरा, मछरी, मुइदरा और मुथईन —- – ये पंच माई के पाँच पदारथ हैं —- । जाने — कि — साहेब ! —- संझा गाया जाता है और पाँच पदारथ पंच माई को चढ़ता है —- वही पाँचों पदारथ फिर जलंधर बाबा को अर्पित किया जाता है — – — अरे साहेब ! बड़ा मजमा लगता है —– जिस दिन संझा की स्वर लहरी आकाश में गूँजती है —- पंच माई को —- — सुअरी का मांस, महुआ का मदिरा, मांगुर मछरी मेहतरीन के साथ गुफा में मुथईन करते हुए महमुदरा बना कर चढाते है — — तब जाकर बाबा परसन्न होते है — – जाने आप साहेब कि बड़ी ही अगम-अघोर साधना है —- — हम लोग सिद्ध हैं सिद्ध – – – सिरी परबत असाम में सिद्धी पाई है हमने —- असाम में — – साहेब ! ‘’
“ क्या मेरा गोद भर जाएगा , भैया — । ‘’ मैंने धीरे-से कहा था।
“ काहे नहीं — मेम साहेब ! पंच माई को पाँच पदारथ चढ़ाना होगा – बस— ।‘’
“ क्या खर्च होगा —- ? ‘’ अनिमेष ने पुछा था।
“ ज्यादा नहीं — – बस पंद्रह सौ— साहेब ! ‘’
तब तक रिक्शा घर के सामने पहुँच चुका था। अनिमेष ने उसको बीस रुपये भाड़ा के साथ पाँच-पाँच सौ के तीन नोट और एक कागज पर पुरा नाम-पता भी लिख कर थमाया था।
तीन महीने बाद फिर हम लोग छुट्टी गए थे। मायके आने के बाद भाभी के साथ हम दोनों फिल्म देखने जा रहे थे। रास्ते में वह रिक्शावाला मिल गया। अनिमेष ने उसे रोक लिया था। हम लोग उसके साथ वापस आ गए थे। उसने कहा कि “ जलंधर बाबा ने निगाह फेरी तो है लेकिन जो साया मैडम के ऊपर है , जरा भी गफलत होता है , चहेटा कर देता है – – – इसके लिए ताबीज बनाना होगा — -अभी मैं यहाँ अनुष्ठान कर ताबीज बना दूँगा – – –फिर सब फतह हो जायेगा – — ।‘’
उसने अनिमेष से पाँच अड़हुल की कली , पाँच लवंग , पाँच मुट्ठी अरवा चावल, भखड़ा सिंदुर, लोहबान आदि की व्यवस्था करने कहा था। उसने गाय के गोबर से लिपे हुए जमीन पर पहले पाँच लवंग को रखा फिर पाँचों कलियों को रखकर उन्हें सिंदुर का टिका लगाया। इसके बाद एक-एक मुट्ठी चावल हरेक लवंग पर चढ़ाया और सामने पलथी मार कर बुदबुदाने लगा –
जय – सरहपा — जय लुईपा — जय लीलापा—
जय डोम्भिपा — – जय विरूपा – जय शबरपा
जय तंतिपा — – जय चमरिपा — जय कण्हपा
जय—जय – जय — – जलंधर पा — जय- जय –
भवहिन जुत्ता — — भवहि पुलित्ता —-
एक्क ण किज्जइ मंत्र ण तंत्रा–
गंगा जउँना माझे बहइ रे नाई —
नगर बाहिरे डोंबी तोहरि कुडिया छई –
कागा तरुवर पंच विडाल —
दुखिया को बाबा दे दे लाल –
जय – सरहपा — जय लुईपा — जय लीलापा—
जय—जय – जय — – जलंधर पा — जय- जय –
अब उसके शरीर में तरह-तरह के हरकत होने लगे थे। कभी जम्हाई लेता , कभी उँबासी लेता तो कभी अपने दोनों हाथों को जमीन पर पटकता — -।
उधर मेरी माँ और भाभी सशंकित थी कि कही मुहल्ले की भीड़ इक्कट्ठी हो गई तो बड़ी बदनामी होगी। दस मिनट तक वह बुदबुदाता रहा और तरह-तरह के शारीरिक हरकत करता रहा। फिर अपने माथे को पाँचों कलियों के सामने टिका दिया। उसने पाँचों लवंगों को उठाया और फूँक कर मुझे देते हुए कहा कि इन्हें मैं तुरंत पानी से घोट जाऊ। उसने अपने अस्त-व्यस्त हुए बालों को ठीक करते हुए अनिमेष से कहा कि भंगी साह पंसारी के यहाँ से पाँच चीजें ले आए , ताबीज बनाना है – बाघ का नाखुन, सुअर का बाल, बिलाई का पुरइन , उलटा सरसों का दाना और काली हल्दी — । अनिमेष स्कूटर से सारे सामान लाए थे। उसने काले कपड़े मे ताबीज बनाया और लोहबान की धुनी देकर मेरे बाये बाजू में बाँध दिया था। जाते समय उसने अनिमेष से मिले गांधी छाप नोट को अपने अंडरवीयर के पॉकेट में सम्भाल कर रख लिया था।
“ चलो सब हो गया ; इसी शुक्रवार को रिजर्वेशन भी मिल गया और सेक्शन आई. सी. से छुट्टी की बात भी हो गई।‘’ अनिमेष की आवाज सुन अनन्या वर्तमान में लौट आई थी।
हाथ-पैर धो आज का अखबार हाथ मे लिए मैं बेड पर लेट गया। मैंने अखबार को उलट-पुलट कर देखा और उसे बिछावन पर ही रख सोने का प्रयास करने लगा। लाख कोशिश के बाद भी नींद नहीं आई ; मैं अतीत के धुधलकों मे खो गया —- — ——– गाँव का लड़कों के साथ डाइंग मास्टर का काम सीखने छोटा भाई ब्रजेश बी. ए. का परीक्षा देने के बाद कुरुक्षेत्र, हरियाणा गया था। उस मनहूस काली रात की याद आते ही वह काँप उठता है। गाँव का लड़का रोहित का फोन आया था कि ब्रजेश का एक्सीडेण्ट हो गया है — — फिर थोड़ी देर बाद उसके मृत्यु की खबर आई थी। रोते-बिलखते कुरुक्षेत्र गया था — – अपने इकलौते सहोदर भाई का अंतिम संस्कार कर – — घर पहुँचा तो वहाँ माँ- पिताजी की हालत देख मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे ?— — खैर किसी तरह भाई का तेरहवी की विधि पूरा किया था – —— ब्रजेश के आकस्मिक मृत्यु की खबर से पूरा गाँव सन्न था। मेरे ऊपर भय, वहम और अंधविश्वास इस प्रकार तारी था कि शाम को मृतात्मा के लिए दीप जलाने एवं पीपल के पेड़ पर टंगे घण्ट में पानी देने में भी डर लगता — — वहम होता मानो भाई ब्रजेश आकर कह रहा हो — “भैया ! मैं यहाँ हूँ —– – भैया ! आओ मुझसे बात करो — – मेरे पास आओ —- – मुझे घर ले चलो — —‘’ डर कर घर की तरफ तेजी से पैर बढ़ा भागने लगता।
तेरहवी के तीसरे दिन शाम को चार बजे मैं माँ-पिताजी और पत्नी के साथ चाय पी रहा था तभी एक बाबा काँधे पर झोला टाँगे आते दिखाई दिए। उनके सथ पड़ोसी रणविजय सिंह भी थे।
“ भैया ! भट्टार बाबा आज गाँव में पूरब टोला विंध्वेश्वर सिंह के पत्नी को देखने आए थे – मुझे मिल गए तो कहा कि ऐसी-ऐसी बात हो गई है — — जरूर कोई ऊपरी करश्मा है — तो बाबा चले आए — – ।‘’ रणविजय सिंह ने पिताजी की तरफ मुखातिब होकर कहा।
बाबा को देखते ही माँ उनके चरणों पर गिर कर रोने लगी थी — — और पिताजी ने डबडबाई आँखों से देखते हुए हाथ जोड़ लिया था।
“ अब आपलोग मत रोइए —- जो होना था वह हो चुका — अब सब कामरू कामख्या माई की कृपा से ठीक हो जायेगा— – – जय माई कामख्या वाली —– – -।‘’ बोलते हुए बाबा ने हल्की-सी जम्हाई ली थी ।
बाबा ने झोली में से एक बीत्ते के बराबर कोई चीज निकाला जिसपर ढेर सारा लाल कपड़ा लपेटा हुआ था। उसे हाथ में ले वे पूरे घर में घुमे फिर बोले “ कल शुक्रवार है —- आ जाना माई के थान पर — – – है तो भारी चीज — – बड़ा ही जब्बर मनुषदेव है — — साथ-साथ और भी हकड़ा- हकड़ा बतुस है — खैर माई की दुहाई — – कोई नहीं छुटेगा — सबको बाँध देंगे — – आ जाना कल — जय माई कामख्या वाली—–।‘’
भट्टार बाबा के थान पर हरेक शुक-सोमार को देवी कामख्या माई की असवारी आती है , पूरे इलाके में चर्चा थी। रणविजय चाचा बताए कि दो साल पहले की घटना है। उन्ही के गाँव की एक हरकाशिन डायन ने अपना मूठ बाबा पर चला दिया था। — — फिर क्या —- बाबा ने उसे मशान में नंगा नचवाया था। गाँव-जवार में यह भी सुनने में आता है कि बाबा ने एक डायन को कुछ कहा था लेकिन वह नहीं मानी — तो बाबा ने उसे पगला दिया — वह रास्ते में नंग-धड़ंग घुमती है —- उसे न कपड़ा का सउर रहता है और न शरीर का —- – । बाबा के थान पर शुक्र – सोमार को दुखिया-दुखियारिनों का मजमा लगता है। बाबा के थान से कभी कोई निराश नहीं लौटता है।
मैं रणविजय चाचा के साथ साइकिल से सुबह छ: बजे ही निकल पड़ा था। पिताजी ने घर के चारों कोणों की मिट्टी और सात लवंग भखड़ा सिन्दुर में डूबो कर अनन्या के सिर के चारों तरफ से फिरा कर दे दिया था। आते वक्त कहा था “ सब पूछकर – समझ-बुझ कर आना कि क्या बात है ? आगे क्या किया जाए कि सब भला हो ?
रास्ते में रणविजय चा ने बताया कि बाबा जब चौदह बरस के थे सातवीं में फेल हो गए थे —- उनके पिताजी ने गड़ासी के उल्टे तरफ से इतना पीटा की घर छोड़ कर भाग गए — फिर चौदह साल बाद आए तो साथ में एक असामीन भी लेकर आए थे। लोग कहते हैं कि इसी असामीन की माँ ने इन्हें सिद्ध बनाया था।
बारह किलो मीटर साइकिल चलाकर हम लोग भट्टार बाबा के थान पर पहँचे। खपरैल मकान का ओसारा – -आगे नीम का पेड़ – उसके नीचे एक चौरा बना था — वहाँ लोहबान जल रहा था — – सात-आठ अड़हुल की कलियाँ — उसके ऊपर सिंदुर का टीका और लवंग रखा हुआ था। बाबा चटाई बिछाकर आसन जमाए हुए थे। भक्तों की हुजुम — ज्यादातर महिलाएँ — सब मुट्ठी में रुपये रखे हाथ जोड़े बाबा की ओर एकटक देख रहे थे। कुछ महिलाएँ हल्के-हल्के अपना सिर भी हिला रही थी। बाबा ने झोली में से एक बीत्ते के बराबर लाल कपड़े में लिपटा हुआ कुछ निकाला , कपड़े के लपेटे को हटाने लगे — लगभग पाँच मीटर लाल कपड़ा हटाने के बाद छ: इंच का हड्डी निकला। उसे उन्होंने माथे लगाया। फिर एक पीढ़े पर रख कर उसको सिंदूर से सात बार टिका। उसके बाद सात लवंग चढ़ाया और धूपदानी में जल रहे लोहबान को उसके चारों तरफ फिराया। फिर एक जोर की जम्हाई ली और जय हो कामख्या माई कह कर दोनों हाथों को धरती पर पटक माथे को हड्डी से टिका दिया और मंत्र बुदबुदाने लग़े — – – मंत्र साफ तो नहीं सुनाई दे रहा था लेकिन — कुछ- कुछ सुनाई दे रहा था —-
जय मशानवाली – – – –
तेरा वार – न जाये खाली —
— — कर- कर- दे –-
– -फट—फट– — फट —
प्रज्वल – प्रज्वल- – –
ओम् – – ह्रीं – – – श्रीं – –
— ठं – – ठं – – ठं – –
– मम – – सर्वकार्याणि – — साधय – –
– – मा – – रक्ष – – मा – – रक्ष – –
कुरु- – कुरु – – निरवाय- – – स्वाहा —-
एक- एक कर लोग आगे आते हैं – – – बाबा ने हड्डी उठाया और फरियादी के माथे से सटाया – — – फिर उसे अपने दोनों हाथों से चार-पाँच बार मसला और फूँक मारा – – – अब उसे कान के पास ले गए – – –“ तुम्हारा घर पूरब रोख का है — – तुम्हारे दो बड़े भाई मरे हैं — – – वहीं मनुषदेव बने हैं – – – उनकी पूजाकर – – पूजा – – नहीं तो सब भस्म हो जायेगा — ‘’
“ बाबा ! कुछ उपाय – – –‘’
“ माई ! कुछ करी – – बड़ा दुखिया है – – – बोली माई – — बोली — ‘’
बाबा कान में हड्डी को दो मिनट तक लगाये रहे फिर बोले “ माई ! कह रही हैं कि करेंगी रक्षा – – – – घर बाँधना पड़ेगा – – – मोटहन खरच आएगा – -।‘’
“ ठीक है बाबा ! अब आप ही आसरा है —- ।‘’ कह कर वह आदमी बाबा के पैरों पर गिर पड़ा।
“ अरे ! अरे ! धीरज रखो भाई — – – देख रहे हो न जमावड़ा – –भीड़ छटने दो — -फिर माई से बात करते हैं — — – । ‘’
अगला- – – अगला – – आओ- – – इस तरह एक-एक कर भक्त बाबा के सामने जाने लगे – – – मुट्ठी का रुपया वहीं चौरा पर रखकर — – बाबा के सामने बैठते जाते – – बाबा सबका समाधान माई से पूछ कर करने लगे – -।
एकाएक बाबा बोले “ कट गया – – कनेक्शन कट गया – – – माई से कनेक्शन नहीं मिल रहा है – – – – अब थोड़ा रुकना पड़ेगा – – – । तब तक मैं गाँजा पी लेता हूँ। ‘’
एक भक्त चीलम बोझ कर लाया। आधा घण्टा चीलम का दौर चला। फिर से बाबा ने कनेक्शन की कोशिश की । अब मेरा नम्बर आने वाला था — खैर कनेक्शन हो गया था बाबा का माई से — — मेरे माथे से हड्डी सटा कर बाबा ने उसे चार-पाँच बार मसला फिर कान से लगाकर बोले “ तुम्हारा मकान पूरब रोख का है — ? ‘’
“नहीं- – बाबा ! उत्तर रोख का है ।‘’
“ ओह ! नादान हो तुम — तुम नहीं समझोगे — जमीन तो पूरब-पश्चिम ही है न– ।‘’
“ हाँ — है — ।‘’ मैंने न चाहते हुए भी धीरे से कहा।
“ तुम्हारे दो भाइयों को डायन ने मार लिया है — – वही डायन अब तुम्हारी आगे की बढ़न्ती रोकने के लिए उन दोनों को लगाया है — – -भारी – – – बड़ा भारी संकट – – – – जबरदस्त कर्कशा गुणिया है — — — ।‘’
“ फिर क्या करे बाबा ! ‘’ मैंने रुआसा होते हुए कहा ।
“ चलो – – देखो – माई से निहोरा करते हैं —— ।‘’
बाबा दो-तीन मिनट तक मंत्र बुदबुदाते रहे। मंत्र तो समझ में नहीं आ रहा था — लेकिन बीच-बीच में सुनाई दे रहा था —
रक्षा माई — — रक्षा
दोहाई – – माई – – दोहाई
दुखिया — — दुखिया —
राउर — आसरा — माई
रक्षा — – – रक्षा —
“माई बोली है — — रक्षा तो कर देगी — सब ठीक भी हो जायेगा– – तुम्हारा खानदान भी आगे बढ़ेगा — — लेकिन खर्चा आयेगा — खर्चा– – ।‘’ गांजा के नशा से चढ़ी हुई लाल-लाल आँखों को नचाते हुए बाबा ने कहा।
मैंने कहा “ ठीक है — बाबा ! — करेंगे खर्चा — -।‘’
“ तो जाओ – अगले शुक्रवार को आना माई के थान पर — – — जय – माई – कामख्या वाली — । ‘’ बाबा ने मुझे एक तरफ करते हुए कहा।
बाबा के नए भक्त अब-तक निपट चुके थे । बाबा अब पुराने और जंखार फरियादियों की ओर मुखातिब हुए। उसमे ज्यादातर महिलाएँ थीं। उस समय नीम के पेड़ के नीचे छ:-सात महिलाएँ जमीन पर बैठी अपने सिर को हिला-डुला रही थीं — — उन सबकी उम्र बीस से तीस के बीच थी —- किसी को संतान नहीं था —- – तो किसी को प्रेत परेशान कर रहा था — – – तो किसी के ऊपर जिन्न असवार था — –। बाबा के पास आते ही उन स्त्रियों ने अपना सिर जोर-जोर से हिलाना शुरु कर दिया — – सबके बाल खुले हुए थे — — सब स्त्रियाँ अपने शरीर को मरोड़ रही थी —- – बाहों को ऊपर उठा झुम रही थीं — – उनके बाल हवा में लहरा रहे थे —- वे अनाप-शनाप बक रही थीं — — चिख-चिल्ला रही थी —- कभी रोने लगतीं — — तो कभी लाल-लाल आँखें निकाल बाबा पर झपटतीं — अजीब-सा नजारा था – – – कोई-कोई तो अंट-शंट बकते-बकते मुँह से झाग फेकने लगतीं – – – तो कुछ सिर जोर-जोर से हिलाते-हिलाते धरती पर पटकने लगतीं और बेहोश होकर गिर पड़तीं — — और बाबा बीच में खड़ा हो — हाथ में अक्षत लेकर उनके ऊपर डालते जाते – – – – अक्षत पड़ते ही वे और जोर से चिखने-चिल्लाने लगतीं — — बाबा बीच-बीच में —- – – जय माई कमख्या वाली का जयकारा लगाते— — अक्षत को फेकते जाते– -अपनी लाल-लाल आँखें उन पर फेरते और बोलते — – आ जाओ – सब खुल के माई के दरबार में — — — जय माई कामख्या वाली— तेरा वार न जाये खाली — — । ‘’
लगभग दो घंटे तक इन अबलाओं का हृदय विदीर्ण करनेवाला करतब चलता रहा। धीरे-धीरे जमीन पर माथा टिका सब शांत हो गई।
मैं जब घर के लिए चलने लगा तो एक भक्त ने बताया कि इनमें से कुछ महिलाएँ रात में भी रुक जाती हैं कभी-कभी कामख्या माई की कृपा पाने के लिए। जिस रात कोई जवान स्त्री रुकती उसके अगले दिन असामीन ( बाबा की पत्नी) की गालियों से मुहल्ला गुलज़ार हो जाता ।
भट्टार बाबा के यहाँ से घर आते-आते शाम हो गया था। मेरी छुट्टी भी अब तीन दिन ही बची थी। रात को पिताजी की तबियत ज्यादा ही बिगड़ गई। माँ और छोटी बहन अपर्णा दोनों रोने लगे थे। पड़ोस के डॉक्टर ताहिर हुसैन आए थे। उन्होंने ने बताया कि घबराने की बात नहीं है — कालाजार की दवा का कोर्स पूरा नहीं हुआ है, इस कारण बुखार आ गया है । उन्होंने जिला अस्पताल के डॉक्टर नागमणि दुबे का पर्चा देखा और उसमें लिखे इंजेक्शन को मँगाने के लिए कहा। मोटर साईकिल से उनका कम्पाउंडर तहसील मुख्यालय स्थित बाज़ार से इंजेक्शन लाया था। इंजेक्शन लगाने के बाद उन्होंने कहा “ अविनाश ! ऐसा क्यों नहीं करते , इनको अपने साथ ले जाओ जोधपुर — -वहीं मिलिटरी हॉस्पीटल में बढ़िया इलाज हो जायेगा।‘’
मैंने कहा “मैं भी यहीं सोच रहा हूँ।‘’
पिताजी का जोधपुर में इलाज चला था। वे पूरी तरह ठीक हो गए थे। दो महीने बाद ही पिताजी को घर की याद सताने लगी थी। वे घर जाने की बात करते। मेरी सारी छुट्टी खत्म हो चुकी थी। सेक्शन से छुट्टी मिलनी भी मुश्किल थी। मेरे ही सेक्शन के सीवान के रहने वाले मनमोहन शर्मा छुट्टी जा रहे थे। मैंने उन्हीं के साथ पिताजी का भी रिजर्वेशन करा दिया। पिताजी को जब मैं घर जाने के लिए स्टेशन छोड़ने जा रहा था तो मैंने उन्हें क्वाटॅर की तरफ एकटक से देखते देखा था। फिर उन्होंने मुझे प्यार भरी निगाहों से ऊपर से नीचे तक देखा था और पास आकर मेरे माथे पर प्यार से अपना हाथ रख दिया था मानों वे अंतिम विदा ले रहे हो।
पिताजी के जाने के आठवें दिन ही उनके हॉस्पीटलाइज होने की खबर आई थी। मैं सीधे पटना, पी. एम. सी. एच. के लिए चल पड़ा था। मुझे पूरा विश्वास था कि मैं पिताजी को बचा लूँगा लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था। पटना जंक्शन पर ही मुझे पता चल गया था कि पिताजी मुझे छोड़ कर सदा के लिए चले गए हैं। तेरहवीं के दिन श्राद्ध सम्पन्न होने के बाद मुझे पगड़ी बाँधी गई थी। पगड़ी बँधने का मतलब घर का मालिक होना। मुझे पिताजी की बहुत याद आ रही थी। मेरे आँखों में आँसू थे — और सिर पर थी बँधी हुई पगड़ी।
अगले दिन भाई का भोज हुआ था। मैं शाम को बैठका में बैठा पिताजी की यादों में खोया हुआ था, तभी “ अनी ! अनी ! ‘’ की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ। सामने देखा जटाजूट बढ़ाये — गले में चार-पाँच रूद्राक्ष की माला पहने — – -माथे पर त्रिपुण्ड लगाये कोई बाबा मुझे मुस्कुरा रहे हैं। फिर बाबा ने बगल में पड़ी हुई कुर्सी पर बैठते हुए कहा “ अनी ! — यार— तुमने मुझे पहचाना नहीं — ?
मैंने बाबा को ध्यान से देखा — — अपने बचपन के दिन में लौट गया था मैं — — अरे ! — यह तो मेरे बचपन का साथी सत्येंद्र ठाकुर है — – — फिर मुझे याद आया बचपन की वह शरारत जो अपने साथियों के साथ इस गोरे-गोरे –फूले-फूले गाल वाले —- कमर लचका कर लड़की की चाल चलने वाले —- – इस सत्येंद्र के साथ हम करते थे——- – सत्येंद्र अपनी कमर लचकाते हुए चलता तो हम लोगों मे से कोई उसके पीछे-पीछे ऐसे चलने लगता जैसे बकरी के पीछे बोका चलता है– — — फिर क्या — – हम लोग पीछे से बोलते — – -बो—- बो— – बो— — पीछे-पीछे चल रहा लड़का अपना नाक सत्येंद्र की लचकती कमर के इर्द-गिर्द घुमाने लगता — – – – इसके साथ ही हमलोगों की—- – बो— – बो— –बो– — की आवाज तेज हो जाती।
मैंने सत्येंद्र के दोनों बाँहों को पकड़ते हुए कहा “ सत्येंद्र ! तुम तो बिल्कुल पहचान में ही नहीं आ रहे हो — – – पूरे के पूरेसिद्ध बाबा बन गए हो।‘’
“हाँ अनी ! मैं तुम्हारे एयर फोर्स ज्वाइन करने के एक साल बाद ही — कलकत्ता चला गया था – – – – वहाँ काली थान में रहा — – – पूरे पाँच साल — – – – फिर गुरु की कृपा ( गुरु शब्द के साथ उसने अपना कान पकड़ लिया था ) से कालिका माई की सिद्धि मिली — – –इसके साथ ही उसने “ जय माँ भगवती — – जय माँ काली— कलकत्ते वाली ‘’ का जयकारा लगया।
“ हाँ— यार ! —- बिल्कुल – तुम्हारा तो बाना ही बदल गया है —– — ये लम्बी – लम्बी जटाएँ — – – गले में पड़ी हुई मोटी-मोटी रुद्राक्ष की मालाएँ — – ।‘’ मैंने अचरज भरी निगाहों से उसके लम्बी खुली हुई जटाओं और गले की मोटी-मोटी मालाओं को देखते हुए कहा।
“ यह सब माई की कृपा है , मेरे भाई — – – तुम्हारे पिताजी और भाई के बारे में सुन कर बहुत दु:ख हुआ —– – – और – सुना है कि तुम्हें भी अभी तक कोई बाल— बच्चा — – – – — ।‘’
मैंने ठंढ़ी साँस लेते हुए कहा “ हाँ – – भाई ! — – – सब ऊपर वाले की लीला है —- ।‘’
“ ऊपर वाले की लीला नहीं — मेरे दोस्त ! सब करमशा – करमशा — कर-धरा हुआ है – – – तुम नहीं जानते उस— – हड़कासिन को — – -लेकिन — दोहाई — — – कलकत्ते वाली कालिका माई की — – बस — – तीन रात आ जाओ भाभी को लेकर मेरे चौरा पर— – – माई की कृपा से — — भगवती की चौरा से कोई खाली नहीं गया है — – – मेरे दोस्त ! ‘’ उसने अपनी जटाओं को बाये हाथ से सहलाते हुए कहा।
मैंने कहा “ सत्येंद्र ! बात तो तुम्हारी अपनी जगह — – ठीक है — लेकिन आजकल मेरा हाथ खाली है — – ।‘’
“ ज्यादा खर्च नहीं है – – – एक जनावर (सुअर) काल भैरव के लिए और सातों बहिना (देवी) के लिए सात कबूतर—— — मेरे दोस्त ! — – तुम मेरे बचपन के साथी हो — – मुझे कुछ मत देना — – बस— ।‘’ अपनी हाथों को लड़की की तरह नचाते हुए उसने कहा।
“ठीक है — भाई ! — सोचूँगा — – ।‘’ मैंने धीरे से कहा।
“ सोचूँगा नहीं मेरे दोस्त ! — — आज ही आ जाओ — – – – कल मैं पूजा का सब सामान व्यस्था करवा दूँगा – – – मत चूको- – – – मत चूको — — – नहीं तो बाद में मैं भी कुछ नहीं कर पाऊँगा – – – – क्योंकि माई की आज्ञा से ही मैं आया हूँ — मेरे – भाई — – जय भगवती — – जय माँ काली कलकत्ते वाली— — ।‘’
सत्येंद्र के जाने के बाद मैं खाना खाकर सोने अपने कमरे में गया। तकिया पर रखते ही अपने बचपन के दिनों में खो गया — –तब मैं आठवीं कक्षा में था। मेरे मुहल्ले के साथी संजय ने बताया कि सत्येंद्र की गरभू साह के बेटे पुआली के साथ गाढ़ी छन रही है । एक दिन उड़ती-उड़ती खबर मिली थी कि बाँध के उस पार उजाड़ पड़े मैया स्थान के भीतर पुआली ने एक मलिया करुवा तेल चटा दिया था। गुची-गुची के खेल में सत्येंद्र का पैण्ट के पीछे का हिस्सा तेल से चटचटा गया तो पुआली के लुंगी के आगे तेल का दाग साफ दिख रहा था।
अनन्या ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा “ क्या सोच रहे हैं — – – कहाँ खोये हुए हैं – – – – ।‘’
“नहीं—नहीं – कुछ नहीं – मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।
“ कोई—न – कोई बात तो है जरूर – – – बताइए — – न– – ।‘’ उसने मेरे तरफ देखते हुए कहा।
“अरे ! मेरे बचपन का साथी है न वह सत्येंद्र—- , आजकल दसकोश-चौफेरा में जटहवा बाबा के नाम से जाना जाने लगा है। कह रहा था कि तुम्हारे घर पर कराया-धराया हुआ है—- – — उसे कलकत्ता के काली माई की सिद्धि है — – – सब ठीक कर देगा — – – – एक साल में ही तुम्हारा गोद भर जायेगा – – – – बस एक जनावर और सात कबूतर – – – — भैरो बाबा और माई को चढ़ाना होगा — – – – और तीन रात — – तुझे उसके चौरा पर — — – — ।‘’ मैं एक ही रौ में बोल गया।
“ तीन रात चौरा पर — — — — याद है न पिछली छुट्टी में जब हम आए थे — – गर्दनी बाग वाले मौलवी की — – – गज़ब का नौटंकीबाज था —– – हम लोगों के आते ही —– उसे फोन आ गया था जयपुर से ——- फोन पर कोई कह रहा था कि —– हमल रह गया है — – – — उसने अपने अधपके दाढ़ी के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा — – – ला— इले – इलाही —- रहमत खुदा की — — —- फिर मुझें सामने बिठा कर उस उचक्के ने ऊपर से नीचे तक घूरा था — — फिर कहा था —- – काला जादू किया हुआ है – – – – इक्कीस सांझ सामने वाले मस्जिद में दीया जलाना होगा — — — अकेले — — आना— — होगा — नबी पाक की करम से — – हमल रह जायेगा — — और अपने पान से लाल जीभ को होठों पर फेरा था — —- — चलो अच्छा हुआ कि आपका लीव एक्टेंशन ग्रांट नहीं हुआ — — नहीं तो —— ।‘’ उसके स्वर में कसक और डर समाया हुआ था।
“ वह तो गारंटी के साथ कह रहा है कि —- – – कलकत्ते वाली कालिका माई की कसम खा कर कह रहा था — ।‘’ मैंने उसके चेहरे को ध्यान से देखते हुए कहा।
“ आप भी न —- इतना होते भी बखेरा पालने से बाज नहीं आते – – — — वहीं सत्येंद्र न जिसके बारे में आपने बताया था — — – – बो—- बो— बो— ।‘’ उसने चादर पैर पर डाल लेटते हुए कहा।
“ हाँ— हाँ — वहीं — लेकिन आजकल पूरे जवार में कहकहा देवी-भगत माना जा रहा है — ।‘’ मैंने हौले से कहा और चादर से सिर ढ़क लिया।
लगभग पंद्रह मिनट बाद मैंने अपना सिर चादर से बाहर निकाला था। मैंने अनन्या की ओर देखा —– लालटेन के पीले प्रकाश में उसका चेहरा और पीला दिख रहा था —– चेहरे पर गहरी चिंता झलक रही थी —- बुझी-बुझी आँखों में हताशा थी – – – वह अपने पैरों को समेटकर निस्पंद पड़ी हुई थी — -मैं भीतर तक हिल गया था।
मुझे स्मरण होने लगा — वह मुझे जगाने के लिए सुबह-सुबह मेरा पैर दबाती—– — कमर दबाती —- — कहती उठिए —“मोर्निंग ड्यूटी है — – लेट हो जायेंगे — ।‘’ लेकिन जैसे ही मैं आँखें खोलता वह अपना मुँह ढक कर सोई हुई मिलती। एक बार उसने कहा था कि सुबह उठते ही फले-फूले हरे-भरे पेड़-पौधों को देखना चाहिए —- — —- और —- — —– वह ओ पेड़ थी जिसमें अभी तक फल-फूल कुछ भी नहीं लगा था —— ।
अनिमेष अतीत के समुंद्र में गोते लगाये जा रहा था — – – – — अनन्या ने उसके हाथ में मोबाइल पकड़ाते हुए कहा “ सेक्शन से फोन है — — वारंट ऑफिसर राय सर हैं — – कह रहे हैं — 04.15 पी.एम. में पी. टी. है — — आपको भी जाना है— ।‘’
“जय हिंद — – सर ! — —।‘’ अनिमेष ने मोबाइल हाथ में लेतेहुए कहा।
“ सार्जेंट अनिमेष ! आपको पी. टी. में जाना है —- 04.15 फालिंग है — ।‘’ उधर से स्वर उभरा था।
“ राइट सर ! — चला जाऊँगा — — सर— — ओ. के. — – जय हिंद — सर—- ।‘’ अनिमेष ने फोन काट दिया।
मेरे घर पहुँचने के अगले दिन ठीक सुबह आठ बजे मौलवी अशफाक उल्ला रहमत कुरैशी को उनका साला मोटरसाइकिल से मेरे घर छोड़ गया। मेहंदी से रंगे हुए बाल और दाढ़ी, भीतर तक भेदने वाली कंजी आँखें, नुकीली नाक, होठों पर पान की लाली, सफेद लक-दक पजामा-कुर्ता पर सफेद साफा और पैरों में नोक वाला जूता – – – – । आते ही उन्होंने एक नज़र मेरे घर के चारों तरफ दौड़ाया। मैंने उन्हें प्रणाम कर बरामदे में कुर्सी पर बिठाया और भीतर जाकर माँ को बताया। माँ ने आते ही मौलवी साहेब को पहचान लिया और अंदर चलने को कहा। मौलवी साहेब ने माँ से एक कोरा हाँड़ी माँगा। संयोग से घर में कोरा हाँडी पड़ा था। चौकी पर कम्बल बिछा कर वे बैठ गए और हाँड़ी के सामने मुझे बैठने को कहा। उन्होंने मेरा सिर हाँड़ी में डाल ऊपर से काले कपड़े से ढक दिया। फिर मुझे जोर-जोर से फूँक मारने को कहा। फूँक मारते-मारते जब मैं थक गया तो उन्होंने मेरा सिर ऊपर उठाया और अपने हाथों में लिए हुए काले कपड़े को उस हिस्से को ऊपर से टटोलने के लिए कहा जो थोड़ा उभरा हुआ था।
“ मौलवी साहेब ! — ये तो दो चोटियाँ लग रही हैं — ।‘’ मैंने उखड़े साँस को सम्भालते हुए कहा।
“ सही— बिल्कुल — सही — कह रहे है जनाब—- — यह चुड़ैल थी जो आप को परेशान किए हुए थी — — और —- यह काला जादू है — — आप और आपकी पत्नी दोनों पर किया हुआ है ——- – -बड़ा सरकस —टोना है——– बंगाल के सिद्ध किसी तांत्रिक का बाण है ——- — उल्टा रस्सी बटकर फेका गया है—- — खुदा का शुक्र कहिए जनाब कि —- आप की मुझसे भेट हो गई — नहीं तो—- — एक-दो साल के अंदर सब —- -आपका सब कुछ स्वाहा हो जाता – – – — आपके पूरे परिवार का नामों-निशान मिटाने पर तुला हुआ है कोई – — — -खैर——- पैगम्बर रसूल की कसम – – – – सबको — – एक- – -एक कर उतार लूँगा—- इस हाँड़ी में — ।‘’ मौलवी की बातें सुन माँ हाँ — हाँ— कह गरदन हिलाते हुए हाथ जोड़ने लगी।
अगली बार जब मेरा थका हुआ चेहरा ऊपर आया और मौलवी ने कपड़े को टटोलने को कहा तो मैंने कहा “ मौलवी साहेब ! — इस बार तो बड़ा सिर और मूँछ प्रतीत हो रहा है – — ।‘’
“ हाँ— हाँ — जनाब – – – – यह जिन्नात है —- — – मसान जगाकर भेजा गया है——— – – अरे – यह तो हम हैं कि इसे वश में कर लिए ——– इस्लामी आयतों के बल पर — – – – नहीं तो यह हिंदुआनी मंत्र-तंत्र के वश का नहीं——- – – यहाँ तक की कामरू कामख्या का सिद्ध तांत्रिक भी नहीं टिकता इसके आगे — – – — या खुदा —- परवर दिगार —- नबी रसूल तेरी रहमत ——- – – बंदे पर अपनी करम बख्श- – – – – आमीन– ।‘’
बीच-बीच में मौलवी अशफक उल्ला रहमत कुरैशी पान की डिबिया से पान निकाल कर मुँह में दबा लेते और पान चबाते हुए कमरे के चारों तरफ नज़र दौड़ाते रहते। आयतों को मुँह में बुदबुदाते हुए सामने बैठी अनन्या को देखकर सिर को ऊपर-नीचा करते और पान से लाल हुई अपनी जीभ को होठों पर फिराते। हाँड़ी में सिर डालकर काले कपड़े से ढकना फिर मेरा जोर-जोर से फूँक मारना, मौलवी द्वारा मेरा सिर ऊपर उठाया जाना और फिर मौलवी के हाथ के कपड़े को टटोलना– – ऐसा पन्द्रह बार हो चुका था। हर बार काले कपड़े के अंदर कोई न-कोई चुड़ैल या जिन्न-जिन्नात जरूर होता। बार-बार जोर-जोर से फूँक मारते-मारते मैं निढ़ाल हो चुका था।
अब मौलवी रहमत कुरैशी ने अनन्या की ओर देखते हुए कहा “ इनको छोड़कर घर के बाकी सभी सदस्य इस कमरे से बाहर चले जाए —— — मुझे—इनके ऊपर के जंजाल को हटाना है — – – – ध्यान रखिएगा —- जब-तक मैं दरवाजा ना खोलूँ—- – कोई नहीं आएगा दरवाजे के पास – – — – नहीं तो बहुत बड़ा खतरा हो जायेगा – – -अगर अल्लाह ने चाहा तो —- – -काम बन जायेगा —- – – और खुशखबरी साल-भीतर ही आ जाएगी- – – ।‘’
लगभग बीस मिनट बाद मौलवी साहेब ने दरवाजा खोला। उनके चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी। उन्होंने माँ से कहा कि उनका फीस दे दे , अब वे चलेंगे। माँ ने पाँच-पाँच सौ रुपए के दो नोट उनके हाथ में रख दिया। मौलवी साहेब ने उन रुपयों अनमना-सा पकड़ते हुए कहा “ मैं कही भी जाता हूँ तो पच्चीस सौ से कम नहीं लेता— ।‘’
माँ ने पाँच सौ का एक और नोट देते हुए कहा “ मौलवी साहेब ! खुशखबरी होगी तो पजामा-कुर्ता, साफा, जूता के साथ-साथ पाँच हजार रुपए भी देगी — फिलहाल इतना रख लीजिए —–।‘’ उन्होंने माँ के जुड़े हुए हाथ को देखा और रुपए को अपने झोली में डाल लिया।
मौलवी साहेब अपना झोला लटकाये इधर-उधर देखते हुए आँगन से बाहर निकले। मैंने उन्हें अपने साइकिल के कैरियर पर बिठाया। साइकिल के बढ़ने के साथ ही बातों का सिलसिला भी चल पड़ा। साइकिल अब बाँध पर चल रहा था। गोधुलि वेला — – -सूरज डूब रहा था। उसकी लालिमा धरती पर फैल रही थी। मैंने कहा “ मौलवी साहेब ! – देखिए – कितना सुंदर लग रहा है भगवान् भास्कर का पश्चिम में डूबना — ।‘’
“ हाँ— हाँ — — अनिमेष बाबू —— — आपके पश्चिम के जिक्र से याद आया – – — बड़ा ही पाक दिशा है – – पश्चिम – – हमारे पैगम्बर मोहम्मद साहेब की जन्मस्थली मक्का है —- वहाँ — ।‘’ उन्होंने अपने दोनों हाथों को इबादत के लिए फैलाया और प्यार से चूम लिया।
“ हमारे धर्म में सूर्य को भगवान् माना गया है। आखिर पूरा विश्व तो उन्हीं से ऊर्जा और शक्ति पाता है। अक्षय ऊर्जा के भण्डार हैं — भगवान् सूर्य — ।‘’ अपनी धुन में बोल गया था मैं।
“ ये सूरज आप देख रहे हैं इसके जैसे न जाने कितने सूरज — चाँद —- सितारे – खुदा ने बनाया है — – यह जो सूरज आपके आँखों के सामने चमक रहा है — वह अल्लाह के नूर का एक छोटा-सा कतरा है — — छोटा-सा कतरा — ।‘’ मौलवी साहेब ने अपने दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।
रास्ते में मौलवी साहेब जिन्न-जिन्नात की बातें और अपने करिश्माई-कारस्तानियों की कहानियाँ सुनाते रहे। बातों ही बातों में गहरी साँस लेकर छोड़ते हुए उन्होंने कहा “बड़ा ही सरकस जिन्न का साया है आपने मोहतरमा के ऊपर — — उन्होंने हर तरह से कोशिश की थी —– – लेकिन दाँव पर नहीं ला सके — । ‘’ उन्होंने अपने करिश्मा से गाँव के कई बाँझ स्त्रियों की कोख भरी है — — इसका भी जिक्र किया —- – – । ऐसा कहते हुए वे अपने मेहंदी से रंगी दाढ़ी को बार-बार अपने बायें हाथ से फेर रहे थे।
उनके ससुर जी का गाँव आ चुका था। मैंने साइकिल रोकते हुए कहा “ मौलवी साहेब ! वह रहा आपके ससुर जी का मकान — — कहें तो घर तक छोड़ दूँ — ।‘’
“नहीं— – नहीं — – अनिमेष बाबू —- – अब चला जाऊँगा — – लेकिन कल बस से अपने घर जाना है —– — बस — का — किराया — – ।‘’
“ बस का किराया —- – मतलब — ?’’
“ बस का किराया दे दीजिए — – । ‘’ उन्होंने जमीन की तरफ देखते हुए कहा।
“हाँ — हाँ — चलिए — ठीक है — ।‘’
मैंने पर्स में से सौ का नोट निकाल उन्हें थमाते हुए कहा “ अब – — तो ठीक है – न — – मौलवी साहेब — ।‘’
“ हाँ— हाँ – अब ठीक है — –जब भी जरूरत हो जरूर याद कीजिएगा — जनाब — — अच्छा— – – खुदा हाफिज — ।‘’ उनके पाँव गली में दिख रहे मकान की ओर बढ़ने लगे थे।
घर आने के बाद मैंने अनन्या से कहा “ मौलवी साहेब — कह रहे थे कि ऐन मौके पर यदि जिन्न नहीं आया होता तो आपका काम बन गया था– – -एक साल के भीतर आप अपने गोद में बच्चा खेलाते – – – — – अल्लाह कसम यह जिन्न बड़ा सरकस है — – वश में नहीं आया — – ।‘’
“ हाँ — – हाँ — – बिल्कुल ठीक कहा — मौलवी ने —- – क्योंकि ऐसे नरपिशाचों से बचने लिए सरकस जिन्न को लाना ही पड़ता है —- अनिमेष — – – लाना ही पड़ता है — — -।‘’
वह मेरे छाती से चिपक कर फफक-फफक कर रोने लगी।