देश विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविताओं का प्रकाशन, जिनमें हिंदवी, स्त्री दर्पण, गृहशोभा, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की “स्त्रवंति”, भारतीय भाषा परिषद की “वागर्थ”, गर्भनाल पत्रिका, शुभ तारिका, जानकीपुल, पोषम पा, विभोम स्वर, नवभारत टाईम्स, हम हिंदुस्तानी अमेरिका, हिंदी अब्रॉड कैनेडा, साहित्य कुंज कैनेडा इत्यादि..
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अनुजीत जी! काफी अच्छी लगी आपकी कहानी।कथानक का केन्द्रीय भाव महत्वपूर्ण है।हर रिश्ते की अपनी कुछ अपेक्षाएँ होती हैं। दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य स्थापित करना सहज हो अगर पति-पत्नी एक दूसरे की कद्र करें। प्रेम कोई वस्तु नहीं जो बाजार से खरीद सकें।कितना अजीब है न कि जहाँ प्रेम को होना चाहिये वह रिश्ता प्रेम के अभाव में रेगिस्तान सा रह जाता है और जहाँ कोई रिश्ता ही नहीं होता वहाँ अंतर्मन की आर्द्रता में प्रेम अपने लिये जगह तलाश अंकुरित होने लगता है। नई सुबह की नयी किरण के साथ यह प्रेम निस्वार्थ रूप से पल्लवित होता है।
शनिवार को हमने किसी महिला कवि की एक छोटी सी कविता पटल पर डाली थी –
एक रिश्ता….
बेनाम सा….
ना हासिल….
ना जुदा…..
ना खोया ….
ना मिला….
फिर भी….
करीब सा…
मोहब्बत तो नहीं…..
पर “मोहब्बत” सा…..
जरूरत भी नहीं….
पर जरूरी सा…..
बस..आपकी कहानी को पढ़कर यह कुछ ऐसा ही लगा।
जीवन के उत्तरार्द्ध में, एकाकीपन की दुरूहता में, यह स्थिति प्राण वायु सी ऊर्जा देती है।
बढ़िया कहानी के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ आपको। आभार पुरवाई।
बहुत सुंदर। प्रेम और स्वतंत्रता दोनो के लिये छटपटाता स्त्री।
अनुजीत जी! काफी अच्छी लगी आपकी कहानी।कथानक का केन्द्रीय भाव महत्वपूर्ण है।हर रिश्ते की अपनी कुछ अपेक्षाएँ होती हैं। दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य स्थापित करना सहज हो अगर पति-पत्नी एक दूसरे की कद्र करें। प्रेम कोई वस्तु नहीं जो बाजार से खरीद सकें।कितना अजीब है न कि जहाँ प्रेम को होना चाहिये वह रिश्ता प्रेम के अभाव में रेगिस्तान सा रह जाता है और जहाँ कोई रिश्ता ही नहीं होता वहाँ अंतर्मन की आर्द्रता में प्रेम अपने लिये जगह तलाश अंकुरित होने लगता है। नई सुबह की नयी किरण के साथ यह प्रेम निस्वार्थ रूप से पल्लवित होता है।
शनिवार को हमने किसी महिला कवि की एक छोटी सी कविता पटल पर डाली थी –
एक रिश्ता….
बेनाम सा….
ना हासिल….
ना जुदा…..
ना खोया ….
ना मिला….
फिर भी….
करीब सा…
मोहब्बत तो नहीं…..
पर “मोहब्बत” सा…..
जरूरत भी नहीं….
पर जरूरी सा…..
बस..आपकी कहानी को पढ़कर यह कुछ ऐसा ही लगा।
जीवन के उत्तरार्द्ध में, एकाकीपन की दुरूहता में, यह स्थिति प्राण वायु सी ऊर्जा देती है।
बढ़िया कहानी के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ आपको। आभार पुरवाई।