Friday, May 17, 2024
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अनुजीत इकबाल की कहानी – नक्काशी

जीवन से बहुत अधिक अपेक्षा रखकर हमेशा अगर हम ये मानकर चलें कि जो भी होगा वो मुझसे है और सब कुछ नवीन और सहज होगा तो हमारी पूरी सोच और दृष्टिकोण रूपांतरित हो जाते हैं. जीवन को अपने हाथ में रखकर यदि आप सोचते हैं कि आप चमत्कारिक रूप से सब अपने हिसाब से कर लेंगे तो आपके हाथ केवल निराशा आएगी. जिंदगी को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करें, वरना गांभीर्य और बोझिलता बहुत बढ़ जाएगी और ये घाटे का सौदा है.”
अपनी डायरी में ये सब लिख कर मिस अनामिका उठीं और खिड़की पर गईं. मैक्लोडगंज अभी जाग रहा था. दूर धौलाधार की चोटियां आकाश को गहराई तक भेद रहीं थीं. उगता हुआ सूरज अपनी उच्चतम प्रकाष्ठा में, अपनी नरम किरणें पहाड़ों पर बिखेर रहा था. ठंडी और स्फूर्तिदायक हवा एकदम साफ थी. सड़कों पर लामा मठों की तरफ जा रहे थे. ये वही लोग थे जो बर्बर और असभ्य चीनीयों से बचते हुए इस क्षेत्र में आकर बस गए थे लेकिन ऐसा नहीं है कि ये सब भागकर आए थे, बल्कि इनके प्रशिक्षण और आस्थाएं ऐसी थी कि यदि जरूरत पड़े तो ये बर्बर यातनाएं भी सह सकते थे, पर कभी कभी पवित्र वस्तुएं, अभिलेख, गोपनीय लेखन और परंपरा को बचाने के लिए भागकर आने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. उनको ध्यान से देखती हुई मिस अनामिका अपने जीवन की घटनाओं को याद कर रहीं थीं. आखिर वो भी तो सब छोड़ कर……
सुबह के आठ बज चुके थे. वो दिन की शुरुआत चाय से करती हैं. उनको नॉर्लिंग रेस्तरां की चाय ही पसंद है, इसलिए वो अपने होम स्टे से निकलकर दस कदम दूर बने इस छोटे से रेस्तरां में गईं. मिस अनामिका को देखकर वहां के स्टाफ नेताशी डेलेकबोलकर उनका अभिवादन किया और चाय बनवाने चला गया. आज कल मिस अनामिका बहुत से प्रयोग कर रहीं थीं. परंपरागत भारतीय चाय को छोड़कर वह मक्खन वाली नमकीन तिब्बती चाय पीती हैं. अपने जीवन के साथ भी उन्होंने ऐसा ही कुछ प्रयोग किया है. वो पचपन साल की महिला हैं और तलाकशुदा हैं. अद्वितीय तेज और शीतलता की मूर्ति, जैसे सूरज और चंद्रमा एक हो गए हों. पांच साल पहले उन्होंने तलाक ले लिया था, जबकि घर परिवार और रिश्तेदार यह बात हजम नहीं कर पा रहे थे कि जब उस घर में सारी ज़िंदगी गुज़ार दी तो अब इस उम्र में तलाक लेने का क्या औचित्य था?
लेकिन मिस अनामिका एक प्रेम और सम्मान रहित रिश्ते को ढोती रहीं थीं. उस हद से ज्यादा अमीर व्यक्ति को, जिसे समाज उनका पति कहता था, उसे मिस अनामिका की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों का अहसास तक नहीं था और स्वभाव में क्रूरता और गुस्सा अलग से था. अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर मिस अनामिका ने बड़ा किया और जब वो विदेश चला गया तो मिस अनामिका ने खुद को उस सोने के पिंजरे से आजादी दिलाई, जिसमें उनका साथ सिर्फ उनके बेटे ने दिया था. तब से मिस अनामिकासोलो ट्रैवलरबनकर अकेली भारत दर्शन कर रहीं हैं और पिछले कुछ महीनों से यहां मैकलोडगंज मेंकुंगा होम स्टेमें रुकी हुई हैं. एक नया शौक उनमें जागा है और वो है फोटोग्राफी का. उनके बेटे ने अमरीका से ही निकोन का कैमरा भेजा है, जिसे मिस अनामिका खूब इस्तेमाल करती हैं. इतनी देर में चाय गई और मिस अनामिका भी अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर गईं। उनके पास वाली कुर्सी पर प्रोफेसर गुप्ता बैठे उनकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे. मिस अनामिका का कुछ झिझक गईं क्योंकि उनको नहीं पता चला कि प्रोफेसर गुप्ता कब से उनके पास बैठे थे.
प्रोफेसर गुप्ता दिल्ली यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड हैं. उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी, सब बच्चे शादीशुदा थे. अब जीवन के इस पड़ाव पर अपने अन्य दोस्तों की तरह उन्होंने घर में बैठने की अपेक्षायायावरीको चुना. वो पिछले कुछ महीनों से यहां मैक्लोडगंज में एक किराए के घर में रह रहे हैं. दोनों रोज इस वक्त चाय पीते हैं. इनकी मुलाकात इसी नॉर्लिंग रेस्त्रां में हुई थी.
प्रोफेसर गुप्ता अनामिका जी कोबंडल ऑफ कोनट्राडिक्शनकहते थे. उनके हिसाब से मृदु स्वभाव वाली मिस अनामिका के अंदर एक विद्रोही स्त्री भी रहती है.
प्रोफेसर गुप्ता ने मिस अनामिका के मौन को देखते हुए चुप रहना ही बेहतर समझा और चुपचाप कॉफी पीने लगे.
फिर मनचाहा विश्राम लेकर मिस अनामिका ने उनकी और देखा.
आपकी नक्काशी सीखने की क्लास कैसे चल रही है?” वो बोलीं.
अच्छी चल रही है, ये एक ऐसा विषय है जिसमें जिसे मैं पसंद करता हूं। तिब्बती लोगों में खास बात ये है कि लकड़ी को व्यर्थ बर्बाद नहीं करते। धारदार चाकू से लकड़ी काटकर सुंदर कलाकृति बनाना, कितना चमत्कारी है !”
जीवन भी तो ऐसा ही है प्रोफेसर गुप्ता. एक ऑब्जेक्ट पर दृश्य तत्वों की नियुक्तिऔर एक अप्रत्यक्ष वस्तु को खोजने के लिए उपक्रम करना…” मिस अनामिका कुछ गंभीर होकर बोलीं.
जीवन का इस तरह अन्वेषण करना एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक की यात्रा है अनामिका. बाकी सब कुछ निरर्थक ही नहीं बल्कि खंडित भी है. वास्तव में, जीवन जिया कैसे जाता है बेहतर दशाएं क्या हो सकती हैं, ये सब हमारे समाज ने हमें कभी सिखाया ही नहीं है. नक्काशी करना और जीवन को जीना एक बराबर है. बस दोनों को पूरी मर्यादा और गरिमा के साथ किया जाए तो अच्छा पैटर्न बनकर सामने आता है.
मिस अनामिका को प्रोफेसर गुप्ता ज्यादा ही प्रबुद्ध और और विनम्र लगते थे. छह फुट से भी लंबे प्रोफेसर गुप्ता पर्वत सामान अडिग गहन रूप से शांत और सहज प्रकृति के व्यक्ति थे. उनके स्वभाव में एक नरमी थी जो मिस अनामिका को अपनी शादीशुदा जिंदगी में कभी नहीं मिली थी.
और आज काथॉट ऑफ डेक्या है?” मिस अनामिका ने बात बदलते हुए मज़ाकिया लहज़े में पूछा.
आज लामा सोग्याल नक्काशी सिखाते हुए बता रहे थे कि एक महत्वपूर्ण सूत्र ये भी है कि अपने पूरे अस्तित्व के साथ संपूर्णता पाने का प्रयत्न करें, मतलब जीवन की अनंत एवं स्वाभाविक भव्यता के बीच जीने के प्रयत्न करना.”
हाँ, क्योंकि सब कुछ अस्थाई है प्रोफेसर गुप्ता.” अनामिका बोलीं.
बाहर सैलानियों की चहलकदमी बढ़ गई थी. कुछ विदेशी पर्यटक नॉर्लिंग में इकट्ठा होना शुरु हो गए थे. इस वक्त रेस्त्रां में जो इजरायली संगीत बज रहा था उसकी धुन मिस अनामिका को विशेष प्रिय थी. जब हम फुर्सत में होते हैं तो संगीत अपनी उपस्थिति बहुत अलौकिक तरीके से दर्ज करवाता है.
दोनों संगीत सुनते रहे और कुछ देर बाद आपस में विदा ली.
प्रोफेसर गुप्ता मिस अनामिका की आंखो की  तरलता देखते रहते थे और मन में सोचते रहते थे कि अनामिका जी जैसे सरल लोग बाहर से भी और भीतर से भी इतने सुन्दर क्यों होते हैं. मिस अनामिका इतनी अद्भुत थीं कि पिछले दो महीनों से हर पल उनको उन्हीं का ख्याल बना रहता था. अब तो नॉर्लिंग में सुबह की कॉफी पीने के लिए आना और अनामिका जी से बातें करना, जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन रहा था.
मिस अनामिका एक घंटे की ध्यान की क्लास के लिए वहां से दो किलोमीटर दूर धर्मकोट के तुषिता सेंटर जाती थीं. आज भी वो उस तरफ सड़क पर पैदल चलती जा रहीं थीं. ये इलाका भारत का हिस्सा तो बिल्कुल भी नहीं लगता था और यही बात इसको विशिष्ट बनाती थी. बीच बीच में मठों से घंटों की आवाज और हवाओं में लाल चंदन की धूप की खुशबू दिव्यता का अहसास करवाती
कुछ तिब्बती महिलाएं वहां से गुजर रहीं थीं, जो अब मिस अनामिका को पहचानने लग गईं थीं. सब उनकोताशी डेलेकबोल कर अभिवादन करती हुईं आगे गुजर रहीं थीं. तिब्बती महिलाएं भड़कीले लाल, नीले, पीले वस्त्र पहनती हैं, लाला मूंगा और हरे फिरोजा पत्थर की मालाओं के साथ, जो मिस अनामिका को बहुत पसंद थे
अब, मिस अनामिका तुषिता सेंटर के सामने थीं. बांसुरी, तुरही, घड़ियाल की आवाज रही थी इसका मतलब कि सुबह का ध्यान सत्र शुरू होने वाला था. आकाश नीला, विस्तृत और सुंदर दिख रहा था. बादल के छोटेछोटे टुकड़े तैर रहे थे जैसे किसी पेंटर ने एक बड़े कैनवास पर सफेद रंग का ब्रश फेर दिया हो. अंदर धातु के अगरदान रखे हुए थे, जिनसे तेज खुशबूदार धुआं ऊपर की ओर उठ रहा था. कुछ लोग प्रार्थना चक्र घुमा रहे थे, इस चक्र का प्रत्येक चक्कर एक हजार बार प्रार्थना को स्वर्ग की तरफ प्रेषित करता था. मिस अनामिका ने भी चक्र घुमाया और अंदर चलीं गईं.
अगले दिन प्रोफेसर गुप्ता नॉर्लिंग नहीं आए, ही उन्होंने फोन किया. मिस अनामिका उनका इंतजार करती रहीं और फिर सुबह के सत्र के लिए तुषिता की तरफ चली गईं. वापस आते वक्त वो प्रोफेसर गुप्ता को फोन मिलाने का सोचने लगीं लेकिन बाद में फोन वापस बैग में डालकर उनके घर की तरफ मुड़ गईं. मिस अनामिका को फोन का उपयोग असहज कर देता था, कारण उनको भी नहीं पता था. फोन उन्होंने सिर्फ अपने बेटे से बात करने के लिए ही रखा था.
 अंत में वो प्रोफेसर गुप्ता के घर के सामने खड़ी थीं. दरवाजा उनके तिब्बती सहायक जामयांग ने खोला और मिस अनामिका सीधे प्रोफेसर गुप्ता के कमरे की तरफ चली गईं. कमरे के अंदर चीजें व्यवस्थित थीं. फर्श और दीवारों पर लकड़ी का काम था और अनेक मक्खन के दिए चल रहे थे. सब कुछ साफ , सुंदर और रोशन.
प्रोफेसर गुप्ता कोई किताब पढ़ रहे थे और वो भी इतने ध्यान से की उनको मिस अनामिका के वहां होने तक का एहसास नहीं हुआ. वहां तरह तरह की किताबें थीं, दि सर्मन ऑन दि माउंट, राबियाबसरी के गीत, मैडम ब्‍लावट्स्‍की की सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि इत्यादि। दुसरी तरफ टेबल पर नक्काशी का समान छेनी, गोज और कुछ अलग अलग आकार के लकड़ी के टुकड़े पड़े थे। बहुत ही कलात्मक और बौद्धिक शौक थे प्रोफेसर गुप्ता के.
प्रोफेसर गुप्तामिस अनामिका जी धीमे से बोलीं.
प्रोफेसर गुप्ता एकदम से चौंक गए. उनको विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मिस अनामिका उनके कमरे में उनके सामने खड़ी थीं.
मिस अनामिका को सही से पता था कि प्रोफेसर गुप्ता उनको किस रूप में देखते हैं, लेकिन फिर भी प्रोफेसर गुप्ता के सानिध्य में जो नरमी और आत्मीयता उनको मिलती थी वो बहुत अमूल्य और अनोखी थी. चट्टान जैसे मजबूत लेकिन जल की तरह तरल प्रोफेसर गुप्ता के मन में कई बार मिस अनामिका का हाथ पकड़ कर बैठने की इच्छा उठती थी, लेकिन उन्होंने कभी कोशिश ही नहीं की, वैसे भी प्रेम कोई निश्चित प्रयास नहीं है, इसमें सहज भाव से डूबना होता है, समाहित होना होता है.
आप आज आए नहीं, मैं इंतजार कर रही थी….”
ओहमेरा इंतजार…. दरअसल मैं आज नक्काशी की क्लास भी नहीं गया। कोई खास वजह नहीं है, बस मन ही नहीं था.”
क्या पढ़ रहे थे आप?”
आजकल विश्व साहित्य पढ़ रहा हूं. सुबह से निज़ार कब्बानी की कविताओं में डूबा हुआ था. “
अच्छा…. लेकिन मैंने कभी उनके बारे में नहीं सुनाआप उन की कोई पंक्ति सुनाइएजो आपको सबसे ज्यादा पसंद हो.”
हां, जरूर अनामिका.” 
इतनी देर में जामयांग चाय लेकर गया और वो दोनों वहीं डाइनिंग टेबल पर बैठ गए. प्रोफेसर गुप्ता ने एक घूंट चाय का पीया और कविता कहनी शुरू की
मैं कोई शिक्षक नहीं हूं, जो तुम्हें सिखा सकूं कि कैसे किया जाता है प्रेम. मछलियों को नहीं होती शिक्षक की जरुरत, जो उन्हें सिखाता हो तैरने की तरकीब और पक्षियों को भी नहीं, जिससे कि वे सीख सकें उड़ान के गुर…. तैरो ख़ुद अपनी तरह से, उड़ोख़ुद अपनी तरह से, प्रेम की कोई पाठ्यपुस्तक नहीं होती…..”
अनामिका जी कहीं खो गईं थीं और प्रोफेसर गुप्ता एकदम चुप हो गए.
बहुत ही सुन्दर है. कविताओं के सम्मोहन उनके काम आते हैं जिनको उनकी जरूरत है. लेकिन ज्यादातर लोग तो अंधी दौड़ में शामिल हैं ..” अनामिका जी कुछ सोचते हुए बोलीं.
जरूरत से ज्यादा बौद्धिकता और आधुनिकता ने हमारे स्वाभाविक मृदु भाव छीन लिए हैं, अनामिका.”
जी, समाज हर बात कोइंटेलेक्चुअल लैंससे ही देखता है और भाव जगत को देखने समझने की कोशिश कोई नहीं करता.”
प्रोफेसर गुप्ता मिस अनामिका को ध्यान से देख रहे थे और उनकी आंखों में जो गूढ़ सांकेतिक भाषा थी, मिस अनामिका समझ पा रही थीं.
भाव जगत एक विस्तृत विषय हैएक आदिम अवस्थासामाजिक तो बिलकुल भी नहीं…” प्रोफेसर गुप्ता चाय पीते हुए बोले.
और, शब्द केवल संकेत दे सकते हैं.. प्रेम जैसे विस्तृत विषय को केवल जिया जा सकता है, जाना नहीं जा सकता.” मिस अनामिका बोलीं.
प्रोफेसर गुप्ता जैसे किसी नए लोक में थेयथार्थ और स्वप्न के पार की कोई दुनियादोनों एक दूसरे को देख रहे थे और जामयांग उन दोनों को। वो खाने में त्सम्पा बनाकर लाया था.
प्रोफेसर गुप्ता कुछ सहज हुए और मज़ाक में बोले कि तिब्बती लोग जीवन के पहले खाने से अंतिम खाने तक त्सम्पा और चाय पर ही निर्भर रहते हैं. उसके बाद दोनों घंटों बैठे बातें करते रहे और मिस अनामिका वापस होम स्टे गईं.
प्रोफेसर गुप्ता को लेकर मिस अनामिका के विचार उदार थे और वो ये भी जानती थी कि प्रोफेसर का उन के प्रति आकर्षण स्वाभाविक और विशुद्ध है. प्रेम सामाजिक नहीं अस्तित्वगत हैइतना व्यापक कि हर रूप में बांटा जा सकता है. जीवन और प्रेम भी कभी तार्किक हुए हैं भला?
उन दोनों का ऐसे ही मिलना चलता रहा और हिमपात के दिन गए. पूरी धौलाधार हिमपात के दिनों में बर्फ की चमकती पोशाक पहन लेती थी. जीवन में पहली बार रुई जैसी नर्म ताजा बर्फ के फूल आसमान से झरते हुए अनामिका जी देख रहीं थीं और खुद को अकल्पनीय दुनिया में पा रहीं थीं. उस दिन मिस अनामिका कुदरत के इस तिलस्म को देखने दूर तक चली गईं और धर्मकोट के ऊपरी शिखर पर जाकर अचंभित हो गईं. बर्फबारी रूकी हुई थी और बहती हुई ठंडी हवा के शोर में एक नई आवाज भी सुनाई दे रही थी, मठों से संगीत की आवाजप्रार्थना ध्वज जोर जोर से लहरा रहे थे. दूर की पहाड़ियों के भ्रुवों पर जो दरारें थीं, उनमें बर्फ ऐसे भर गई थी जैसे घाव भरते हैं.
मिस अनामिका ने खूब तस्वीरें लीं और प्रोफेसर गुप्ता के घर की तरफ चल पड़ी. प्रोफेसर गुप्ता स्वास्थ्य कारणों से बर्फबारी के कारण बाहर नहीं रहे थे. पिछले तीन चार दिनों से वो घर में ही थे. उनके पास जाते ही अनामिका पहाड़ों और बर्फ की सुंदरता का बखान करने लगीं और गर्मजोशी से प्रोफेसर गुप्ता को तस्वीरें दिखाने लगी. वो पचपन साल की महिला नहीं बिल्कुल बच्चे जैसी लग रहीं थीं और प्रोफेसर गुप्ता उनको अनवरत देखते, सुनते जा रहे थे, जबकि खोए वह अपने ख्यालों में थे.
प्रेम में दूसरा ही सब कुछ हो जाता है, खुद से भी  ज्यादा महत्वपूर्ण. “मैंका विसर्जन हो जाता है बचता है सिर्फहोना”, प्रोफेसर गुप्ता यह महसूस कर पा रहे थे. उनकी आंखें अप्रत्याशित कारणों से नम हों उठीं और उन्होंने मिस अनामिका के कंधे पर हाथ रख दिया. ये पहली बार हुआ था. इस छुअन से मिस अनामिका अपनी तिलिस्मी दुनिया से बाहर यथार्थ में गईं और उनकी सिसकी निकल गई. ये वो आत्मीय स्पर्श था, जो उन्हें आजीवन नहीं मिला था. वह दोनों देर तक चुपचाप बैठे रहे. मिस अनामिका जान चुकी थीं कि जीने के लिए नियम या सामाजिक बंधन नहीं बल्कि अनाम प्रेम चाहिए.
प्रोफेसर गुप्ता के हाथ उनके सिर और कंधे को सहलाते रहे और मिस अनामिका देर तक रोती रहीं. तीस साल की चट्टान जैसी कठोर शादीशुदा जिंदगी की दुखद, निरर्थक और भयावह यादें आज स्वयं को प्रत्यक्ष रूप से उद्घाटित कर रहीं थीं.
यदि मेरे साथ चलने पर तुम्हारी जिंदगी में कोई खुशी सकती है तो मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं अनामिका. हम अगला आने वाला जीवन एक साथ….”
मिस अनामिका कुछ संभली और उन्होंने अपने आंसू पोंछे.
वो मुस्कुराते हुए बोलीं,”प्रोफेसर गुप्ता, मैं सारा जीवन खंडित वार्तालाप करती आई हूं लेकिन अब इतने सालों बाद मुझे मेरे अंदर के स्वर स्पष्ट भाषा में निर्देश दे रहें हैं कि अब मुझे किसी भी तरह के बंधन की नहीं बल्कि स्वतंत्रता की जरूरत है। मैं आपके प्यार के साथ मुक्त हो कर जीना चाहती हूं…. जैसे एक दिन आपने कविता में बोला था कि तैरो खुद अपनी तरह से, उडो खुद अपनी तरह से….”
प्रोफेसर गुप्ता चुप रहे. उनको ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उन दोनों के मध्य असंख्य धवल वर्तुल प्रकट हो रहे थे और दोनों के हृदयों का संयोग करवा रहे थे. बहुत गरिमा के साथ उन्होंने मिस अनामिका की बात को मुस्कुराते हुए मौन समर्थन दिया. जीवन की वास्तविकता एक हद पर जाकर हमसे शब्द छीन लेती है. विशुद्ध प्रेम के उज्ज्वल प्रकाश में निराशा का एक कतरा भी नहीं रहता और एक गहरी समझ का उदय होता है.
उस दिन मिस अनामिका ने अपनी अगली ट्रैवल डेस्टिनेशन के बारे में भी बात की. हिमाचल के पहाड़ों पर लंबा समय गुजार देने के बाद अब वो जंगलों की तरफ जाना चाहती थीं और अंततः एक महीने बाद वह चलीं भी गईं.
इस बात को एक साल बीत चुका था और मिस अनामिका इन दिनों सुंदरवन के जंगलों में फोटोग्राफी कर रहीं थीं. प्रोफेसर गुप्ता और वो लगातार फोन और चिट्ठियों के माध्यम से संपर्क में बने रहते थे और एक बार दोनों की मुलाकात जिम कार्बेट में हुई थी, जब मिस अनामिका ने प्रोफेसर गुप्ता को जंगल सफारी के लिए बुलाया था. पत्रों में वो प्रोफेसर गुप्ता को अपने नए नए अनुभव बतातीं और प्रोफेसर गुप्ता उनकोथॉट ऑफ डे’.
आज प्रोफेसर गुप्ता अपनी किताबों में डूबे हुए थे कि जामयांग उनके पास एक कोरियर लेकर आया. प्रोफेसर गुप्ता खुशी से उछल पड़े, ये मिस अनामिका ने भेजा था. जल्दी जल्दी उन्होंने खोला तो उसमें प्रोफेसर गुप्ता की जिम कार्बेट वाली एक फ्रेमड़ तस्वीर निकली, जो प्रोफसर गुप्ता को भी याद नहीं था कि मिस अनामिका ने कब खींची थी और साथ में एक पत्र और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से एक एंट्रीपास था. बिना वक्त गंवाए प्रोफेसर गुप्ता ने चिट्ठी पढ़नी शुरू कि तो पता चला कि इस साल काएमेच्योर फ़ोटोग्राफ़र ऑफ़ ईयरका पुरस्कार मिस अनामिका को मिलने जा रहा था और मिस अनामिका ने उनको उस कार्यक्रम के लिए अगले हफ्ते दिल्ली बुलाया था.
प्रोफेसर गुप्ता की आंखों में चमक गई. वो सोचने लगे कि अनामिका ने स्वतंत्र जीवन की अमर और अंतहीन प्रकृति को पा लिया था. सालों की गहन विनयशीलता, कष्ट, सादगी और संयम मनुष्य की मनोवृत्ति की नक्काशी करके कैसे बदल देते हैं, मिस अनामिका को देखकर समझ रहा था.
उपनिषदों में इसको ही चेतना का रूपांतरण कहा गया है.
अनुजीत इक़बाल
देश विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कविताओं का प्रकाशन, जिनमें हिंदवी, स्त्री दर्पण, गृहशोभा, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की “स्त्रवंति”, भारतीय भाषा परिषद की “वागर्थ”, गर्भनाल पत्रिका, शुभ तारिका, जानकीपुल, पोषम पा, विभोम स्वर, नवभारत टाईम्स, हम हिंदुस्तानी अमेरिका, हिंदी अब्रॉड कैनेडा, साहित्य कुंज कैनेडा इत्यादि..
फोन नम्बर – ९९१९९०६१००
पता – 4, राम रहीम स्टेट, मलाक रेलवे क्रॉसिंग के पास,
नीलमथा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश –
२२६००२
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2 टिप्पणी

  1. अनुजीत जी! काफी अच्छी लगी आपकी कहानी।कथानक का केन्द्रीय भाव महत्वपूर्ण है।हर रिश्ते की अपनी कुछ अपेक्षाएँ होती हैं। दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य स्थापित करना सहज हो अगर पति-पत्नी एक दूसरे की कद्र करें। प्रेम कोई वस्तु नहीं जो बाजार से खरीद सकें।कितना अजीब है न कि जहाँ प्रेम को होना चाहिये वह रिश्ता प्रेम के अभाव में रेगिस्तान सा रह जाता है और जहाँ कोई रिश्ता ही नहीं होता वहाँ अंतर्मन की आर्द्रता में प्रेम अपने लिये जगह तलाश अंकुरित होने लगता है। नई सुबह की नयी किरण के साथ यह प्रेम निस्वार्थ रूप से पल्लवित होता है।
    शनिवार को हमने किसी महिला कवि की एक छोटी सी कविता पटल पर डाली थी –
    एक रिश्ता….
    बेनाम सा….
    ना हासिल….
    ना जुदा…..
    ना खोया ….
    ना मिला….
    फिर भी….
    करीब सा…
    मोहब्बत तो नहीं…..
    पर “मोहब्बत” सा…..
    जरूरत भी नहीं….
    पर जरूरी सा…..
    बस..आपकी कहानी को पढ़कर यह कुछ ऐसा ही लगा।
    जीवन के उत्तरार्द्ध में, एकाकीपन की दुरूहता में, यह स्थिति प्राण वायु सी ऊर्जा देती है।
    बढ़िया कहानी के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ आपको। आभार पुरवाई।

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