आज मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के शिवाजी सभागृह में भाटिया आंटी के कहानी संग्रह “पेइंग गेस्ट” का लोकार्पण समारोह है। हिंदी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे और मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे वरिष्ठ कथाकार दीनानाथ चौबे जी। मैं और मोहिनी पुस्तक पर चर्चा करेंगे। मोहिनी और मैं कल ही नीमच से भाटिया आंटी के घर पर आ गये थें। मेरी आँखों के सामने इंदौर में गुजरे पिछले चार साल और भाटिया आंटी का अपनत्व, स्नेह एक सिनेमा की रील की तरह घूम जाता है।
दो वर्ष के प्रोबेशन पीरियड के बाद मेरी पहली पोस्टिंग बैंक की पत्रकार कॉलोनी शाखा, इंदौर में हुई थी। मैं अपने रहने के लिए शाखा के आसपास ही मकान देख रहा था। मुझे अभी तक कोई ढंग का मकान नहीं मिला था। एक दिन मैं शाखा प्रबंधक के केबिन में बैठा हुआ एक लोन की फ़ाइल पर डिसकस कर रहा था, तब एक महिला शाखा प्रबंधक के केबिन में आकर शाखा प्रबंधक को विश कर उनके केबिन में बैठ गई। शाखा प्रबंधक ने मेरा परिचय उस महिला से करवाया और बताया कि मिस्टर शुभम ने परसों ही यहाँ ज्वाइन किया है और इन्हें रहने के लिए मकान की तलाश है। ये बैचलर है और ये अकेले ही रहेंगे। अपने आसपास के एरिया में कोई खाली मकान हो तो बताएगा। वे भाटिया मैडम थी और बैंक की पुरानी ग्राहक थी। वे लॉकर ऑपरेट करने आयी थी।
वे मेरी ओर मुखातिब हुई और बोली “कहाँ के रहने वाले हो?”
मैंने कहा “मैडम, मैं नाशिक का रहने वाला हूँ।”
“महाराष्ट्रियन हो?”
“जी, महाराष्ट्रियन ब्राह्मण हूँ।”
“नॉन वेजीटेरियन हो क्या?”
“नहीं, मैं वेजेटेरियन हूँ।”
“मेरा मकान यहाँ पास में साकेत में है। मेरे यहाँ पेइंग गेस्ट के रूप में रह सकते हो? मैं अकेली रहती हूँ।हर माह तुम्हें 20000/- रूपये किराया देना होगा जिसमें चाय, नाश्ता, दोनों समय का खाना-पीना और रहना शामिल है।”
“जी, मैं पेइंग गेस्ट के रूप में आपके यहाँ रहने को तैयार हूँ।” मेरे चेहरे पर कृतज्ञता भरी मुस्कान छा गई।
“मिस्टर शुभम बहुत मिलनसार और हँसमुख है। आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा। मैडम, शुभम के साथ आपकी केमिस्ट्री अच्छी बैठेगी क्योंकि शुभम की भी साहित्य में रूचि है।” शाखा प्रबंधक ने भाटिया मैडम को आश्वस्त करने की कोशिश की।
वे बैग से पानी की बोतल निकाल कर कुछ घूंट गले से नीचे उतारती हैं। पांच मिनट के संक्षिप्त वार्त्तालाप में भाटिया मैडम की अनुभवी आँखों को मैं शालीन और शांत लगा। वे शीघ्र लॉकर ऑपरेट कर के आ गई। मैं उनकी गाड़ी में उनके साथ उनके बंगले पर चला गया। बंगला बहुत बड़ा था। ग्राउंड फ्लोर पर वे रहती हैं। उनके पास तीन बेड रूम, एक ड्रॉइंगरूम, एक डाइनिंग रूम, एक किचन, बाहर की साइड एक पोर्च और एक बड़ा सा बग़ीचा और हरी-हरी घास। कोने में एक विशाल नीम का पेड़ है और बगीचे के बीचों-बीच हरसिंगार। ड्रॉइंगरूम बड़ा ख़ूबसूरत है। बढ़िया सोफ़े। दो तरफ़ स्टाइलिश दिवान पड़े हैं जिस पर मोटे मैट्रेस और गाव तकिए लगे हुए हैं। कोनों पर स्टाइलिश तिपायों पर कलाकृतियाँ, खिड़कियों पर भारी, महरून कलर का पर्दा है। छत के बीचों-बीच बड़ा सा झूमर लगा है। चारों दिवारें और छत अलग-अलग कलर से पेण्ट की गई हैं। सभी कलर एक ही फ़ैमिली के हैं। कलर कॉबिनेशन बहुत ही ख़ूबसूरत है। कई पेंटिंग भी हैं जो मैटफ़िनिश गोल्डन कलर के फ्रेम में मढ़ी हैं। ये सभी पेंटिंग भारतीय कलाकारों की हैं। इनमें मुख्यतः राजा रवि वर्मा, मंजीत बावा, अमृता शेरगिल, जतिन दास है। मैडम को पढ़ने लिखने का शौक़ है। उनके एक बेड रूम में पुस्तकों की लाइब्रेरी है। मेरे रहने के लिए फर्स्ट फ्लोर पर वन बेड रूम विथ अटैच लेट बाथ, वन डाइनिंग रूम और किचन है। मकान फूल फर्निश्ड है। भाटिया मैडम के पास बेशुमार दौलत है। मैडम के घर में विकराल अकेलापन व्याप्त था। बर्तन और झाड़ू-पोंछा के लिए एक बाई और खाना बनाने के लिए एक बाई आती थी। मुझे मैडम का बंगला बहुत पसंद आया। मैं 20000/- रूपए भाटिया मैडम को देकर शाखा में आ गया। मैडम बोली मैं कल आपके ऊपर के कमरों की सफाई अपनी कामवाली से करवा लूंगी। ऐसा कीजिए आप कल शाम को अपना सामान लेकर आ जाइए। यहां रहने की कुछ शर्तें और अनुशासन है। मैं आपको कल बता दूँगी। मैंने शाखा प्रबंधक से कहा “मुझे मकान पसंद आ गया है और मैंने मैडम भाटिया को एडवांस भी दे दिया है।” शाखा प्रबंधक ने कहा “साकेत इंदौर का पॉश इलाका है और हमारी शाखा से नजदीक है। तुम्हें आने जाने में परेशानी नहीं होगी।”
वे होल्कर साइंस कॉलेज में केमिस्ट्री की प्रोफेसर है। उन दिनों वे सख़्त और कठोर प्रोफेसर के रूप में जानी जाती थीं। स्टूडेंट्स जिनसे बात करते डरते थें। अनुशासन को लेकर भी वे सख़्त ही थीं। एक रोबीली प्रोफेसर के दायरे में उन्होंने ख़ुद को क़ैद कर लिया था। जिससे बाहर वे न स्वयं जाना चाहतीं। न ही कोई भीतर प्रवेश कर सकता था। किसी को आज्ञा नहीं थी। मजाल है कोई विद्यार्थी उनसे फ़ालतू प्रश्न कर ले। ज़रा-सी बात पर ग़ुस्से में पूरी कक्षा को खड़ा करना जैसे उनकी आदत बन गयी थी। गब्बर सिंह उनके पीठ पीछे ऐसे ही थोड़ी कहते थे उन्हें। पर जैसे अपनी छवि उन्होंनेकॉलेज में बनायी थी उसके ठीक उलट वे बाहर से गरम अंदर से नरम थी। किसी नारियल की भाँति। वे हर काम योजना बनाकर करती रही हैं। उनकी सफलता का राज भी यही है। उनकी उम्र वैसे 63 के आसपास थी पर उनके चेहरे की कशिश और सुगठित काया देख कर ऐसा लगता कि उनकी उम्र 55 वर्ष होगी। उनकी 2 साल की और नौकरी बची थी।
मैं अगले दिन शाम को होटल सूर्या का रूम खाली कर के अपना एक सूटकेस लेकर भाटिया मैडम के बंगले पर पहुँच गया। आज मैडम ने यहाँ रहने की सारी शर्तें बता दी। “यहाँ अनुशासन में रहना होगा। अपने दोस्त लोगों को लाकर हो हल्ला नहीं करोगे। रात को दस बजे से पूर्व घर पर आ जाओगे, यदि किसी कारण से देर होती है तो फोन से मुझे सूचित करोगे। आवारागर्दी नहीं करोगे। जब भी घर से बाहर जाओगे, मुझे बता कर जाओगे। सब्जियाँ तुम्हारी पसंद की और मेरी पसंद की तुम लाओगे।” मैंने कहा “मैडम, आपकी सारी शर्तें मुझे मंजूर है। यदि मुझसे कोई भूल हो जायेगी तो आप मुझे डांट सकती है,” मैं बेधड़क होकर बोला। शुद्ध पंजाबी खाने की ख़ुशबू से महक रहा था डायनिंग हाल। खाना बनाने वाली बाई बोली, “बाबूजी, आज बहुत दिनों बाद मैडम का चेहरा खिला हुआ है।” भाटिया मैडम का बंगला मन को तसल्ली देने वाला और उल्लास भर देने वाला था। शाम होते ही हरसिंगार की भीनी-भीनी ख़ुश्बू से पूरा बंगला नहा उठता था और सुबह होते ही फूलों की चादर बिछ जाती थी बगीचे में।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। भाटिया मैडम का व्यक्तित्व एक पुस्तक की तरह, हर रोज़ एक नये पन्ने की तरह खुलता गया। भाटिया मैडम के हरे भरे परिवार पर भी एक दिन समय की ऐसी गाज गिरी कि उनके परिवार की नींव हिल कर रह गई थी। 5 साल पहले उनके पति मिस्टर भाटिया की मृत्यु एक एक्सीडेंट में हो गई। मैडम को एक बेटी और एक बेटा है। दोनों की शादी हो चुकी है। बेटी अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में और बेटा कनाडा के टोरंटो शहर में है। मैडम दोनों के पास एक बार जा चुकी है लेकिन मैडम को अपना इंदौर शहर ही अच्छा लगता है। मैडम अपने नाती, पोते और बच्चों से स्काइप पर कुछ दिनों के अंतराल से बातचीत करती रहती है। एक दिन शाम को जब मैं बैंक से घर आया तो मैंने देखा आंटी पुरानी तस्वीरों को पलटने में लगी हुई थी। कितना सुकून मिलता है इन कैद किये लम्हों को देख के। बुढ़ापे में इनसान के पास अतीत की स्मृतियाँ ही शेष रह जाती है। मैडम भाटिया के सामने से पिछला चालीस साल का जीवन फ़्लैशबैक की तरह गुज़र गया। न जाने वे कब सुदूर भूतकाल में भटक गई, जहाँ रह-रहकर अनेक स्मृतियाँ उनके मानस पटल पर उभरतीं और उन्हें बैचेन कर जातीं। मैडम के जीवन में पति के न रहने के बाद बड़ी एकांगिता आ गई थी। वह अपने मन की पीड़ा सिर्फ़ अपनी बेटी से कहती थी इससे उनके दिल का बोझ कुछ हल्का हो जाता था। एलबम के आख़िरी फ़ोटो तक पहुँचते-पहुँचते मैडम बिलख-बिलख कर रो पड़ी थी। मैडम के धैर्य का बाँध जो वर्षों से उन्होंने किसी तरह संभालकर रखा था वह भावावेग की नदी सा बह निकला ओर सारी सीमाएँ तोड़कर बह चला। उनकी आवाज पहली बार संजीदा होने लगी थी। मैडम मेरे से बोली “जब घर एकदम ख़ाली हो गया, कोई काम ही नहीं रह गया, तो घर का सन्नाटा मुझे तोड़ने, डराने लगा। इससे बचने के लिए मैं आए दिन, ड्यूटी के बाद कॉलेज की लायब्रेरी में बाक़ी समय भी बिताने लगी।” लेकिन मेरे आने के बाद भाटिया मैडम का अकेलापन दूर हो गया था।
दिन पंख लगाकर उड़ रहे थे कि चीन के वुहान शहर से आये कोरोना वायरस ने मार्च 2020 में हमारे पूरे देश में तहलका मचा दिया था।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 महामारी को रोकने के प्रयास में 25 मार्च से पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन लगा दिया था। सड़कों पर सन्नाटा पसरा था। सड़कों पर पुलिस थी। यदि कोई आदमी किसी काम के लिए घर से निकल भी जाता तो पुलिस की लाठियों से हाथ पैर तुड़वाकर ही घर लौटता। मंदिर, स्कूल, कॉलेज और कोचिंग, दुकानें सब बंद हो चुके थें। खुले थे तो सिर्फ़ अस्पताल। सेठ, नाई, कारीगर, मज़दूर सब का काम ठप्प हो गया। ग़रीब तो परेशान थे ही, पैसे वाले भी सामान न मिलने से परेशान थे। बैंक बंद नहीं हुए थें। मैं रोज बैंक जा रहा था। इस महामारी के फैलने के बाद उससे बचने के लिए, जो कुछ मैं जानता-समझता, सुनता वह सारी सावधानी पूरी सख़्ती से बरत रहा था।सेनिटाइज़र, मास्क के बिना मैं बाहर क़दम नहीं रखता था। कोरोना के मामले में हर एक का संक्रमण से बचा रहना, सबके बचे रहने के लिए जरूरी था। सब काम वाली बाइयों ने आना बंद कर दिया था। बर्तन और झाड़ू-पोंछा मैं कर लेता था। मुझे भोजन बनाना नहीं आता था। नाश्ता और भोजन बनाने का काम मैडम करती थी। मैं चाय और कॉफ़ी बना लेता था। कपड़े धोने के लिए आटोमेटिक वाशिंग मशीन थी। मैं छुट्टी के दिन इकट्ठे कपड़े धो लेता था। लॉक डाउन के दिनों में मैं सुबह नाश्ता कर के बैंक चला जाता था। मेरे लिए लंच शाखा प्रबंधक जोशी जी लाते थें। शाम का डिनर मैडम मेरे लिए भी बना लेती थी। लॉक डाउन के दिनों में बैंक में काम ज्यादा नहीं था, अत: बैंक का पूरा स्टाफ किराना सामान, सब्जी, फल, खाने पीने की चीजों के जुगाड़ में लगा रहता था। बैंक में आने वाले व्यापारी लोग इन सारी चीजों की व्यवस्था कर देते थें। इसलिए लॉक डाउन में मुझे और मैडम को खाने पीने की तकलीफ़ नहीं हुई। मैं लॉक डाउन के समय में बैंक से घर जल्दी आ जाता था। इस पहले लॉक डाउन में मैं थोड़ा बहुत भोजन बनाना सीख गया। लॉक डाउन में मुझे और मैडम को पढ़ने लिखने के लिए पर्याप्त समय मिला। मैडम कहानियाँ लिखती थीं और मैं भी कहानियाँ लिखता था। छुट्टी के दिन मैं और मैडम कुछ समय के लिए साहित्यिक चर्चा करते थें।
स्पेन, इटली में डॉक्टर, स्टॉफ़ सुबह-शाम हॉस्पिटल की गैलरी में इकट्ठा होकर मरीज़ों और अपनी रक्षा के लिए रोज़ दस-बारह मिनट तक वैदिक मंत्रों का जाप कर रहे थें। “रूस, फ्रांस, जर्मनी हर जगह यह हो रहा था। दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका अपनी संसद में वैदिक मंत्रोचार से रक्षा की कामना कर रहा था। हमें भी बचाव के जो भी रास्ते थें, उसे अपनाने में लगे हुए थें। वैदिक मंत्र एक वैज्ञानिक आधार लिए हुए हैं। इनके उच्चारण से उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगें, बहुत बड़ी पॉज़िटिव एनर्जी जनरेट करती हैं। जिनसे आदमी स्वस्थ भी हो रहा था। मैं और मैडम सुबह छत के ऊपर वाक करते थें और उसके बाद योगातथा ॐ नम: शिवाय का जाप करते थें।
जनवरी 2021 में आई तीसरी लहर में कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया। पूरी मानवता ख़तरे में पड़ी हुई थी। लोग कीड़े-मकोड़ों की तरह मर रहे थें। रेलवे की बोगी, पानी के जहाज़, हवाई जहाज़, होटल सब हॉस्पिटल में बदले जा रहे थें। रोज़ाना हज़ारों लाशें अस्पतालों से जाने लगी। बढ़ता संक्रमण, बढ़ती मौते, वेंटीलेटरों, पी.पी. किटों, ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी, भूख़ और भदहाली की डरावनी घटनाएँ फ़िज़ाओं में थी। वायरस पर किसी का वश नहीं चल रहा था। कोरोना की तीसरी लहर के दौरान अप्रैल 2021 में एक दिन भाटिया मैडम को खांसी की शिकायत हुई थी। दूसरे दिन से उनको खांसी के साथ तेज बुखार आने लगा था। फिर उन्हें सांस लेने में भी परेशानी होने लगी थी। मैडम कोरोना पॉजिटिव हो गयी थीं। वे सहम-सी गयी थी।
“मैडम, आप घबराइए मत, आप जल्दी ठीक हो जायेगी।” मैंने मैडम को आश्वस्त करने की कोशिश की। मैंने तुरंत मैडम को सिनारेस्ट टेबलेट दे दी थी। मेरे नानाजी आयुर्वेदिक वैद्य है। मैं पिछली बार नाशिक गया था तो उन्होंने मुझे कोविड बीमारी की दवाइयाँ दे दी थी। मैंने मैडम को आयुर्वेदिक दवाइयाँ भी देना शुरू कर दी थी। मैं मैडम को सिनारेस्ट टेबलेट दिन में दो बार देता था। यह टेबलेट मैंने उन्हें 10 दिनों तक लगातार दी। दो दिन बाद ही मैडम का बुखार उतर गया था। भाटिया मैडम की घबराहट, पसीना, आँखों में आँसू देख कर मैंने उन्हें समझाया, “ऐसे परेशान न हो। सकारात्मक सोच के साथ सब-कुछ करती रहो, सब अच्छा ही अच्छा होगा। यह भी एक स्थिति है, जैसे आई है, वैसे ही गुज़र भी जाएगी।” मैंने ताज़े फलों का इंतजाम कर दिया था और मैडम को मैं फलों का जूस प्रतिदिन देता था। मैं पूरी एतिहात बरत रहा था। मैंने बैंक से एक सप्ताह की छुट्टी ले ली थी। मैडम को अस्पताल में एडमिट नहीं करवाना पड़ा और मैडम घर पर ही पूरी तरह से ठीक हो गयी। उनके मुँह का स्वाद कसैला हो गया था। झाड़ू, पोंछा, बर्तन, कपड़े, चाय, नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन जैसे-तैसे मैं कर रहा था। मैं पूरे घर को रोज़ सैनिटाइज़ करता था। मन से भाटिया मैडम इतनी बुझी हुई सी हो गई थी कि किसी भी चीज़ के लिए उनके मन में जोश-उमंग, उल्लास कुछ रह ही नहीं गया था। कोविड की लंबी ताला बन्दी के बाद ज़िन्दगी अपने पुराने ढर्रे पर आ रही थी। मेरी बातें उन्हें हमेशा मज़बूत बनाती थीं, मैं उनकी हताशा-निराशा को दूर कर उनमें नई एनर्जी भरता था।
भाटिया मैडम अब काफी बदल चुकी थी। झल्लाहट, चिड़चिड़ापन, तुनक का नामोनिशान भी अब नज़र नहीं आता था उनके व्यवहार में। एक रविवार के दिन वे चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करती हुई बोलीं, आज हमारे यहाँ मेरे मित्र मिस्टर भार्गव, मिसेज भार्गव और उनकी पेइंग गेस्ट मिलने आ रहे हैं। मैं बाजार से फल और मिठाई ले आया था और हमारी भोजन बनाने वाली सावित्री बाई ने गरम गरम समोसे और चटनी बना ली थीं। मिस्टर और मिसेज भार्गव आ गये थें और उनके साथ एक चोवीस-पच्चीस साल की किशोरी थी। लम्बा छरहरा बदन, गोरा रंग, आकर्षक चेहरा, सलीक़े से कढ़े बाल और हिरन जैसी बड़ी-बड़ी आँखें। जब वह हँस रही थी तो उसके गालों में डिम्पल पड़ रहे थे। गुलाबी सलवार सूट में वह बहुत सुन्दर लग रही थी। मैं सम्मोहित सा उसे देर तक देखता ही रहा। मैं उसकी नैसर्गिक सुंदरता में खो गया था। मैडम ने मेहमानों का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया। मैडम भाटिया ने मेरा परिचय इन मेहमानों से करवाया और दिल खोलकर मेरी प्रशंसा की। मिसेज भार्गव ने भी अपनी पेइंग गेस्ट मोहिनी का परिचय हमसे करवाया। मैडम ने मोहिनी को कनखियों से देखा। मानो मोहिनी का आना सार्थक हो गया। ड्राइंग रूम में हम सब गरमा गरम समोसे खाते हुए गुफ़्तुगू में लग गए। मोहिनी के व्यक्तित्व के साथ एक सौम्यता जुड़ी हुई थी जो उसके आचरण से झलक रही थी। सादगी की उस प्रतिमा पर मैं दिल हार गया था। पहली ही नज़र में मेरा व्यक्तित्व और व्यवहार मोहिनी को भी प्रभावित कर गया था। इस पहली मुलाक़ात बाद से ही मैं और मोहिनी अच्छे मित्र बन गए। मोहिनी को भी पढ़ने-लिखने का शौक है। मैं अगले दिन बैंक पहुँचा तो मेरे दिमाग में मोहिनी का ख्याल रह रह कर आ रहा था। समय बीतता गया, मेरे और मोहिनी के बीच नज़दीकियाँ बढ़ती गई। बैंक की सारी बातें एक दूसरे से साझा करना, छोटी-बड़ी सभी बातों पर एक दूसरे की सलाह लेना, साहित्य पर चर्चा करना हमारा रोज़ का काम हो गया था। मोहिनी छोटी छोटी बातों में आनंदित रहने वाली, ख़ुशमिज़ाज और मिलनसार लड़की थी। अपने मधुर व्यवहार और अपनी प्रतिभा से बहुत कम समय में ही उसने सहकर्मियों के बीच अपनी अच्छी जगह बना ली। उसे इंदौर शहर अच्छा लगने लगा था। मैडम भाटिया को मेरा चेहरा देखकर यह समझ में आ गया था कि मैं मोहिनी को पसंद करने लगा हूँ। भाटिया मैडम ने मोहिनी से मेरे बारे में पूछकर हम दोनों की शादी फिक्स कर दी। अचानक हमारे घर में एक ख़ुशनुमा माहौल छा गया। एक छुट्टी के दिन मोहिनी के और मेरे पेरेंट्स को बुलाकर होटल श्रीमाया में हमारा रोका कर दिया। भाटिया मैडम तो ख़ुशी से खिली पड़ रही थी। उनके उत्साह का ज्वार पूर्णिमा की लहरों-सा ऊपर ही ऊपर उठता जा रहा था। भाटिया मैडम ने मुझे मानस पुत्र मान लिया था और उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे मैडम के नाम से सम्बोधित मत किया करो, मुझे आंटी के नाम से बुलाया करो। मेरी शादी मोहिनी के साथ इंदौर में बड़ी धूमधाम से हुई और शादी का पूरा खर्चा भाटिया मैडम ने उठाया। शादी की रात को आंटी का बंगला हरसिंगार की ख़ुश्बू से महक रहा था। हम आंटी के साथ नीचे ही रहने लगे थें। आंटी ने हमें उनका अपना एक बेड रूम दे दिया था। मोहिनी भोजन बहुत स्वादिष्ट बनाती है। अब कुक को कुछ समय के लिए छुट्टी दे दी गई है। भाटिया आंटी सरल स्वभाव की संस्कारी बहू को पाकर निहाल हो गई थी। समय कहाँ रुकता है। दिन महीने गुजरते गए और 1 दिसंबर 2022 को मेरा प्रमोशन हो गया और मेरा स्थानांतरण नीमच हो गया। मोहिनी ने भी अपना स्थानांतरण नीमच करवाया। हम रिलीव होकर नीमच चले गये। घर से जाते समय भाटिया आंटी की आँखों से आँसुओं का सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा था। हम दोनों की आँखें भी भीगी हुई थीं। उनसे दूर जाते हुए मन भारी-सा हो रहा था। आंटी मुझे और मोहिनी को गले लगाते हुए बोली, “तुम्हारा ही घर है आते रहना।” फिर वे अपलक हमें निहारती रही। हमारे दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़ गये थें। देर तक वे मेरी आँखों में बनी रही, ओझल होने के बावजूद भी। पूरे रास्ते भाटिया आंटी का चेहरा आँखों के सामने बार-बार आ रहा था। वक़्त के साथ-साथ बहुत कुछ छूट जाता है, कुछ रिश्ते, कुछ जगहें, कुछ वादे और कुछ सपने, बस कुछ नहीं छूटता तो वह है, कुछ पुरानी आदतें। बस, मुझे चाय पीने की आदत थी लेकिन भाटिया आंटी के साथ रहकर ब्लैक कॉफ़ी पीने की आदत हो गई थी। अब जब भी मैं ब्लैक कॉफ़ी पीता हूँ, मुझे भाटिया आंटी की याद आ जाती है। मुझे पिछले चार सालों में कहीं से नहीं लगा था कि मैं भाटिया आंटी के यहाँ पेइंग गेस्ट के रूप में रह रहा था।
करतल ध्वनि से पूरा सभागृह गूँज उठता है…! कहानी संग्रह का विमोचन हो चुका है। मैंने और मोहिनी ने पुस्तक की प्रत्येक कहानी पर सारगर्भित चर्चा की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार दीनानाथ चौबे ने अपने वक्तव्य में कहा, “लेखिका अपने आसपास के परिवेश से चरित्र खोजती है। वे आम जीवन से अपने पात्र उठाती हैं। कहानियों के पात्र की अपनी चारित्रिक विशेषता है, अपना परिवेश है जिसे लेखिका ने सफलतापूर्वक निरूपित किया है। डॉ. भाटिया एक ऐसी कथाकार है जो भारतीय जनमानस की पारिवारिक पारम्परिक स्थितियों, मानसिकता, पीढ़ीगत अंतराल के कई पक्षों को यथार्थ की कलम से उकेरती है और वे भावनाओं को गढ़ना जानती हैं। लेखिका के पास गहरी मनोवैज्ञानिक पकड़ है।” इस कार्यक्रम के अध्यक्ष ने अपने उद्बोधन में कहा, “कथाकार ने जीवन के यथार्थ का सहज और सजीव चित्रण अपने कथा साहित्य में किया है। कहानियों के पात्र अपनी जिंदगी की अनुभूतियों को सरलता से व्यक्त करते हैं। कहानियों के चरित्र वास्तविक चरित्र लगते हैं, कृत्रिम या थोपे हुए नहीं। कथाकार कथानक के माध्यम से पात्रों के अतल मन की गहराइयों की थाह लेती हैं।”
मेरा और मोहिनी, दोनों का कहानी संग्रह अभी अधूरा है। दोनों के कहानी संग्रह का नाम भी “पेइंग गेस्ट” ही रहेगा। मोहिनी शादी के बाद भाटिया आंटी को मम्मीजी बोलने लगी थी। इसलिए मैं भी आंटी को मम्मीजी बोलने लगा हूँ। आज मैं और मोहिनी नीमच जा रहे हैं। हमारे साथ कुछ दिनों के लिए मम्मीजी भी नीमच जा रही है।