सहायक प्राध्यापक , अंग्रेजी साहित्य , बचपन से पठन पाठन , लेखन में रूचि , गत 8 वर्षों से लेखन में सक्रीय , कई कहानियाँ , व्यंग्य , कवितायें व लघुकथा , समसामयिक लेख , समीक्षा नईदुनिया, जागरण , पत्रिका , हरिभूमि , दैनिक भास्कर , फेमिना , अहा ज़िन्दगी, आदि पात्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संपर्क - garima.dubey108@gmail.com
वाह क्या बातहै… अद्वैत… अद्भुत….. अद्वितीय….. उत्तम लेखनशैली न भूतो न भविष्यति……
गहराई है आपके अन्वेषण में कला की सम्वेदनाओं की पकड़ भी, बहुत अच्छी, बधाई और शुभकामनाएं
एक बिल्कुल अलग सी कहानी। प्रस्तुतिकरण भी बहुत ही शानदार। सच है, आर्ट चाहे कोई भी हो और कलाकार कितना भी बड़ा हो जीवन से बड़ा कोई आर्ट नहीं होता। कलाकार दर्द को बेचता है उससे वाह वाही पाता है, गुरूर करता है। जहां दर्द नहीं है वहां पर दर्द की बात करता है लेकिन वास्तव में जिन्हें वह दर्द है उसे दूर करने के लिए क्या कर पाता है। बहुत कुछ सोचने को विवश करती कहानी के लिए लेखिका को हार्दिक बधाई।