Saturday, July 27, 2024
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डॉ मुक्ति शर्मा की कविता – जाने क्या है…!

जाने क्या है?
खलिश है खला है जाने क्या है
ये कुछ मुझ में प्रज्वलित है
जाने क्या है…।
आंखों से दिल का हाल बयां हुआ है
होंठ क्यों सिले हैं जाने क्या है।
अभी तक कोलाहल में तल्लीन है यह कंपन
यही बस तरतीब है
जाने क्या है।
दुनिया की परवाह ना जाने क्या है…
पत्थर बना है मोम जाने क्या बला है।
जहां तक देखती हूं तुम ही तुम हो
मगर एक मध्यांतर है
जाने क्या है…।
बड़ी मासूम और भोली सी लगी
मोहब्बत क्या गजब है जाने क्या है।
मुझे बनाकर गुलाम खुदा आका
बन चला है
जाने क्या है…।
बसे घर में लगा कर आग खुद भी
फना होने चला है जाने क्या है।
मुर्दा शरीर में रुह फूंक
कली को फूल बना चला है
जाने क्या है…।
डॉ. मुक्ति शर्मा
डॉ. मुक्ति शर्मा
संपर्क - 9797780901
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