सौम्या और उसकी गाड़ी दोनों साथ-साथ मानो हवा से बातें करते। गुनगुनाती धूप तो  कभी पेड़ों की सहलाती छाया  सबको पार करते अपनी ही धुन  में सौम्या  जिंदगी के सफर  का  आनंद लेती चलती। मोटर गाड़ियों का शोर भी उसे संगीत के माधुर्य  सा प्रतीत होता  । एक्सीलेटर और ब्रेक को लयबद्ध तरीके से दबाती हुई सौम्या अपनी स्कूटी लेकर इस बड़ी सी दुनिया में छोटे- छोटे रास्ते और छोटी-छोटी मंजिलें तय करती ।  रास्ते कभी कॉलेज के गेट तक पहुंचते तो कभी सब्जी की दुकान पर तो कभी बच्चों के स्कूल तक।  
    साधन तो कई  हैं आवागमन  के, पैदल जा सकते हैं,ऑटो है अपनी कार भी है लेकिन जो आनंद सौम्या अपनी स्कूटी के साथ चलने में अनुभव करती वो किसी और में कहाँ !
“मां! चलो न मुझे ट्रेन पकड़नी है आज मैच है” आदित्य जोर से बोला 
“हाँ, चल रही हूँ बेटा !”   सौम्या ने   बैग टांगते हुए स्कूटी  की  चाबी  उठाई  और आदित्य को स्कूटी के पीछे बिठाया और स्कूटी स्टार्ट कर चल पड़ी। 
   बहुत खुश थी वह उस दिन  क्योंकि अगले दिन उसका जन्मदिन था ।भले ही घर गृहस्थी वाली हो गई हो, कॉलेज में पढ़ाती हो पर तो क्या हुआ मन तो उसका भी  सोलह साल ,बीस साल वाला ही है इसलिए जन्मदिन  को लेकर  आज भी उतनी ही उत्साहित  रहती है  ।
     रविवार  के  दिन  समाचार  पत्र  के राशिफल में सौम्या  ने  पढ़ा कि   इस बार  जन्मदिन के दिन  उसे विशेष उपहार मिलेगा  ।यही सब सोचती हुई सौम्या ने स्कूटी स्टेशन के पास खड़ी  कर दी  । लोकल ट्रेन में अपने बेटे आदित्य को बिठाकर वापस स्कूटी स्टार्ट कर घर की ओर चल पड़ी तभी रास्ते में ख्याल आया ‘केक का सामान लेती चलूं आखिर अपना जन्मदिन है तो सेलिब्रेट करना है….. खुद के लिए भी तो सेलिब्रेशन जरूरी है।’ सौम्या  ने अपनी स्कूटी  स्टेशन से मार्केट   की ओर मोड़ दिया । स्कूटी मुड़ी ही थी कि एक जोरदार टक्कर हुई, सौम्या बीचो- बीच सड़क पर गिरी हुई थी…’यह क्या हो गया …’ कुछ समझ ही नहीं आया ,एक शून्यता एक स्तब्धता चारों ओर व्याप्त हो गई …..यह हुआ क्या!!  लेकिन दूसरे ही पल सौम्या उठने की कोशिश करने लगी पर यह क्या, वह तो उठ ही  नहीं पा रही थी।  बैग, पैसे एटीएम कार्ड, घर की चाबी सब सड़क पर बिखर गए थे ,उसने फिर कोशिश की लेकिन उठना तो दूर वो अपने पैर भी नहीं हिला पा रही थी ।उसने चारों तरफ देखा तो बहुत सारे लोग इकट्ठा हो गए थे।
“काय झाला ताई!” एक व्यक्ति  मराठी में बोला..
“नहीं…बस लगता है …कुछ चोट आ गई है” सौम्या उठने की कोशिश करने लगी । सड़क  पर  लोगों  ने  उसे  घेर रखा था  ,सौम्या  को  बहुत अजीब लग रहा था  …. पर उसने  फिर कोशिश की उठने की पर नहीं उठ पाई.. … उसे  कुछ  समझ नहीं  आ रहा  था । वहीं खड़े एक लंबे चौड़े अजनबी व्यक्ति ने हाथ दिया ,सौम्या ने हाथ पकड़ा पर फिर भी नहीं उठ पाई। उस व्यक्ति ने सौम्या का कंधा पकड़ कर उठाया,  सौम्या दर्द से चीख उठी और उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे।
‘ये मुझे क्या हो  रहा है’ सौम्या  असहनीय पीड़ा से कराह रही थी। 
उसी भीड़ में से किसी एक व्यक्ति ने आकर  उसे पानी पिलाया। किसी तरह से उस लंबे चौड़े व्यक्ति ने सौम्या को उठाकर वहीं  पास  के हॉस्पिटल तक पहुंचाया ।
“यहां इस यहां इस बेड पर लेट जाओ”  एक व्यक्ति ने आकर हिदायत दी। 
उस लंबे चौड़े  अजनबी व्यक्ति ने  सौम्या को हॉस्पिटल के बेड पर लेटा दिया। एक दूसरे व्यक्ति ने आकर कहा” ताई यह लो अपना बैग, एटीएम कार्ड, पैसे,मोबाइल सब है देख लो “।
एक  अन्य  व्यक्ति ने  सौम्या   से पूछा ”  हस्बैंड का मोबाइल नंबर बताओ न ताई ! उनको इन्फॉर्म करने का है “।
सौम्या ने धीरे-धीरे से नंबर बताया । एक  नर्स  ने आकर दर्द का इंजेक्शन लगा दिया।सौम्या  को  कुछ समझ नहीं आ रहा था ,कुछ पल पहले  ज़िन्दगी  की तरंगों के साथ उछाले मार रही थी  और अब  इस हाल में  …  ऐसा  तो  सोचा ही नहीं  था….., जीवन  सम्भवतः  ऐसे  ही अप्रत्याशित घटनाओं  का  ताना- बाना  है  …..उसकी आंखों की कोरों से लगातार आंसू की बूंदे हॉस्पिटल  की सफेद  चादर  को  भिगोती जा रहीं थीं। 
थोड़ी ही देर में सौम्या के पति आ गए । उन दोनों अजनबी व्यक्तियों ने सौम्या के पति को सारा हाल बताया । सौम्या  के पति ने दोनों का धन्यवाद किया। सौम्या अब भी सदमे में थी। हाथ में उसे  भयंकर दर्द हो रहा था।  एक्स-रे के लिए उसे ले जाएगा ।एक्स- रे में पता चला कि उसके हाथ की हड्डी टूट गई है……’  यह क्या हो गया भगवान !    मेरा  हाथ … वो भी दायां  हाथ… मेरा  तो लिखना ही बंद हो जाएगा और  बाकी सारे  काम  …’ सौम्या की आंखों से आंसू की धारा बहने लगी । ……और कल तो उसका जन्मदिन है और आज यह सब …..और वह रविवार का राशिफल जिस में कहा था कि विशेष उपहार मिलेगा ….तो  यही था  विशेष  उपहार!! सौम्या के मस्तिष्क  के  तन्तु झनझना  रहे   थे ….।  
थोड़ी ही देर में  उसके परम मित्र वहां पहुंच गए  ।कोई सौम्या के लिए कपड़े ले आया तो कोई उसकी उल्टियां संभालने में लग गया ।सौम्या को घबराहट के कारण उल्टियां होने लगी थीं।  हॉस्पिटल के बेड पर लेटी सौम्या अपने दोस्तों को  देख कर और भी विह्वल  हो  गयी थी  ।
  ” सौम्या  ! आओ,   प्लास्टर  करवाना  है हाथ  में ” सौम्या के पति  के  शब्द स्नेह से पगे थे  ,उस पीड़ा  में भी सौम्या  इस मिठास को महसूस  कर  पा रही थी। प्लास्टर  के  बाद  उसे घर ले आया  गया  ।
“मां !तुम कैसी हो ?”lकहते हुए उसके बच्चे लिपट गए 
सौम्या  कुछ कह नहीं पायी  बस  आंखें बरसने लगीं ये सोचकर कि उसके बच्चे उसकी  वजह से  कितना  परेशान हैं  और  वो  उन्हें  ठीक से गले भी नहीं लगा  पा रही  ।
      सौम्या अब तक नहीं समझ पा रही थी कि यह सब क्यों हुआ कल उसका जन्मदिन और आज यह सब…. सोचा भी नहीं था कभी …फिर दुर्घटना ऐसे ही तो होती है लेकिन वो राशिफल  की बात  !! …  यूं तो सौम्या इन बातों  को  मानती नहीं  है  लेकिन अगले दिन जन्मदिन था इसलिए नजर चली गयी थी  ….अच्छी भविष्य वाणी  मान लेती थी  और  कुछ बुरा हो  तो  कहती “मैं ये सब  भविष्यवाणी  वगैरह नहीं मांगती  …”  पर  यहां अच्छा तो  क्या खाक हुआ  ……हाथ की हड्डी तुड़वा ली तो …ये है  जन्मदिन का उपहार ‘सौम्या   मन  ही मन  सोचती रही। 
“हैप्पी बर्थडे माँ ! ….हैप्पी बर्थडे  सौम्या !” सुबह-सुबह सौम्या के बच्चों  और  पति ने उसे फूल दिया । सौम्या फूल लेकर दर्द को छुपाते हुए मुस्कुरा दी  ।
वह  फ्रेश होकर प्लास्टर लगे हाथ  के साथ  ड्रॉइंग  रूम  में  बैठी ही थी की कॉल  बेल  बजी ‘अभी सुबह-सु8बह कौन आ सकता है…. बाई तो होगी नहीं…. पता नहीं कौन हो सकता है !!  सौम्या  ने  मन की परतों को उलटते-पलटते  बेटे  को पुकारा  ” बेटा!  जरा दरवाजा खोलना…कोई आया है  “
दोनों  ही  बच्चों  ने दौड़ कर दरवाजा खोला ” हैप्पी बर्थडे  टू यू ….हैप्पी बर्थडे टू यू ”    सौम्या  के  बहुत सारे छात्र केक ले कर,   फूल लेकर  उसे  जन्मदिन की शुभकामनाएं  दे  रहे थे  ।
” अरे!तुम सब  यहां  …,”सौम्या आश्चर्य  में  पड़ गयी 
 ” मैम! हमें पता चला  कि आप का एक्सीडेंट हुआ है इसलिए  हम  …….एंड वी नेवर फॉरगेट योर बर्थडे, आप कॉलेज नहीं आ सकती पर हम तो आपके  पास सकते हैं न ! ”  सारे  छात्र  एक साथ बोल पड़े  ।  ‘ शांत रहो …कीप.  क्वायट ‘ लेक्चर  में  होती तो शायद  सौम्या  चिल्लाती  ….पर सौम्या आज   नहीं चिल्ला पायी …आज तो वो निःशब्द  हो गयी थी । मन इतना  भावुक था  कि  एक शब्द भी यदि निकला  तो  वह फूट-फूट  कर रो पड़ेगी। 
   
     कॉलेज  के  छात्र  सौम्या के लिए  केक लेकर आए थे  ,अपनी  प्रिय  शिक्षिका  से  उन सब  ने  केक  कटवाया 
” मैम ! एगलेस केक है  .  .हमे पता है आप एग नहीं खाती ” कहते हुए छात्रों ने सौम्या को केक खिला दिया  और गाल पर लगा भी दिया  । सभी छात्र सौम्या के पैर छूने लगे।,सौम्या उन्हें मन भर  आशीर्वाद दे रही थी और  दे भी क्या सकती थी  उन छात्रों के प्रेम के बदले…प्रेम का प्रतिदान बस प्रेम होता है और कुछ भी नहीं स्वरुप चाहे कुछ भी हो। 
      सौम्या बार- बार  अपनी आँखों को छलकने से बचाने की कोशिश कर रही थी। परिवार के सभी सदस्य उसे प्यार से घेरे हुए थे    । सौम्या का  जन्मदिन अपने आत्मीय परिवार वालों के साथ,  स्नेहिल  छात्रों के  साथ मन गया था  ।   
    छात्रों के जाने के बाद  सौम्या अपने बिस्तर पर आ कर लेट गई । उसके सामने कल से  लेकर आज तक का सारा परिदृश्य ,सारा घटनाक्रम चलचित्र की तरह चलने  लगा  ..वो लंबा चौड़ा व्यक्ति जिसने सौम्या  को उठाया  उसके  स्पर्श में कहीं कोई अशिष्टता नहीं थी  सिवाय मानवता के , वह अनजान व्यक्ति जिसने पैसे ,एटीएम कार्ड  ,सारा सामान लाकर दे दिया उसका मानवीय दृष्टिकोण ,कोई लोभ ,कोई लालच नहीं ।उसी  अंजाने व्यक्ति ने  ही सौम्या  के पति को फोन किया  था दुर्घटना की  सूचना  देने के  लिए  ।” घबराओ मत  ताई  ” उसके शब्द  सौम्या  के कानों में घुले जा रहे  थे  । क्या जरूरत थी उसे यह सब करने की …  केवल  इंसानियत ही तो…. , कोई पानी पिला रहा था,  कोई सांत्वना दे रहा था उसे। कौन थे  ये लोग  ? ….अनजाने शुभचिंतक… अनजाने मानवीय बंधु ,मानवता की  गठरी हृदय में लिए समाज के सच्चे सिपाही और आज के  ये छात्र!…..कौन कहता है कि आज की पीढ़ी   शिक्षकों  का आदर नहीं करती !! इन  छात्रों का स्नेह तो अनमोल है और सौम्या के सच्चे  मित्र  जो    दौड़  कर  उसके  पास  आए  , उसके परिवार के सदस्य कितनी सदाशयता  से  उसका  ध्यान  रख  रहे हैं ….सौम्या की आंखें  नेह  के   समुंदर में  डुबकियां लगाने लगी थी।उसे  रविवार के राशिफल की बात याद आई  कि इस जन्मदिन उसे विशेष उपहार मिलेगा।  हाँ  सच  ! सौम्या को अंजाने शुभचिंतको, अपने स्नेही आत्मीय जनों का उपहार मिल गया था और उस अद्भुत  उपहार से बढ़कर भी क्या कुछ हो सकता था!!….शारीरिक पीड़ा के साथ भी सौम्या के चेहरे पर मुस्कान  खिल गयी थी। …जीवन के ये पल उपहार  ही तो हैं संजोने के लिए ।है न! 

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