• डॉ कनक लता तिवारी

भों ……… मिल के साईरन की आवाज़ से कमरा भर उठा। सरिता ने चौंक कर घडी की तरफ देखा। तो नौ बज गए। उसने राहुल की तरफ देखा लेकिन बिस्तर पर निश्चेष्ट लेते शरीर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।
सरिता ने चारो तरफ निगाह डाली ,वही सफ़ेद ठंडी दीवारें ,हरे परदे ,सारा का सारा कमरा बेजान सा। वह राहुल के पास रखी अलमारी को देखने लगी। ये भी उसी ठण्डे बेलाग से सफ़ेद रंग से पुती है। अलमारी के एक कोने पर पेण्ट थोड़ा उखड सा गया है और अंदर से पुराना  मटमैला रंग झांक रहा है। मानो इंसान की ऊपरी चमक दमक से उसके मन की अस्वच्छता झाँक रही हो। सरिता असहज हो उठी। कमरे में उसका दम जैसे घुटने लगा। वह बाहरबरामदे में निकल आयी। बाहर   आकर बरामदे की रौशनी में उसे थोड़ा सुकून मिला। बंद कमरे में आत्मा भी जैसे घुटने सी लगती है ,लेकिन उसका राहुल भी तो पड़ा  है  वहां। हाँ पड़ा है कहना ही ठीक रहेगा उस जिन्दा पड़े लाश शरीर को वो लेटा है  कैसे कहे ?प्राण रक्षक मशीनों से चलती सांस कब रुक जाये पता नहीं। ओह! राहुल पता नहीं ऐसा सोच कर मैं तुम्हारे प्रति विश्वासघात कर रही हूँ। क्या करू मैं ,क्या करूँ?
सरिता बालकनी से बाहर  झांकने लगी। हॉस्पिटल के बगल में एक ग्राउंड है ,वहां कुछ बच्चे फुटबॉल खेल रहे हैं। उनकी हर्ष ध्वनियाँ सरिता के कानों में गर्म शीशे की तरह पड़ने लगी.ये फुटबॉल का खेल जो राहुल का जीवन था और आज उसके सम्भावित अंत का भी जिम्मेदार।
राहुल उसका राहुल ,कल तक जो था एक जीवंत और प्राणवान शरीर। पोर पोर ऊर्जा से भरा हुआ,चमकता चेहरा दमकती काठी ,बिलकुल फिटनेस फ्रीक ,व्यायाम से बनाया था उसने अपना सुन्दर शरीर।
पहली बार राहुल और सरिता की मुलाकात फुटबॉल ग्राउंड पर ही हुई थी एक मैच में खेल रहा था राहुल। गोआल के लिए किक लगते समय बॉल सीधे सरिता की गोद  में आ गिरी थी। उसे उठाने आया था राहुल और साथ में ले गया था सरिता का मन। जाने उसके चमकते चेहरे और मुस्कुराती आँखों में सरिता ने क्या देखा की वो राहुल के पीछे दुनिया ही भूल बैठी।
पहली बार राहुल और सरिता की मुलाकात फुटबॉल ग्राउंड पर ही हुई थी एक मैच में खेल रहा था राहुल। गोआल के लिए किक लगते समय बॉल सीधे सरिता की गोद  में आ गिरी थी। उसे उठाने आया था राहुल और साथ में ले गया था सरिता का मन। जाने उसके चमकते चेहरे और मुस्कुराती आँखों में सरिता ने क्या देखा की वो राहुल के पीछे दुनिया ही भूल बैठी।
सरिता आज भी याद  करती है ब्राह्मण पिता का वो क्रोध “नालायक अपने यहाँ क्या लडके नहीं जुटते जो तू उस पंजाबी से शादी करने पर आमादा है। कौन हमारे यहाँ आएगा?नाक कटा दी तू ने। “
सरिता ने भी छूटते ही जवाब दिया,”आप किस सदी की बात कर रहे हैं ?अब तो ये सब कॉमन है. बुराई क्या है राहुल में ?बैंक में क्लास वन अफसर है। नेशनल टीम में खेलता है। लोग तो ढूंढ  कर भी ऐसा दामाद नहीं ला पाएंगे। मैं  तो बिन मांगे मोती दे रही हूँ।”
सरिता की उद्धतता से क्रोधित पिता उसके ऊपर हाथ ही उठा बैठते लेकिन माँ और भाई के हस्तक्षेप ने उसे बचा लिया.
विचारों के भूत में डूबी सरिता को नर्स की पदचाप ने वर्तमान में बुला लिया।
सरिता नर्स का चेहरा देखने लगी। किस तरह सपाट भावहीन चेहरे से राहुल को सिरिंज दे रही थी। क्या कभी इस मुख पर भावों  का उद्वेग जागता होगा या यूँ ही मशीनी तत्परता से ही अपना काम निपटiती रहती होगी।
सरिता फिर सोचने लगी। अभी कल की ही तो बात हो जैसे ,दोनों बच्चे स्कूल से आकर कपडे बदल रहे थे. तभी राहुल धड़धड़ाता हुआ आ गया था। ‘ चलो मूवी की टिकट्स लाया हूँ। “
सरिता ने प्रतिवाद भी किया था ,”अरे अभी इनलोगों ने अपना होमवर्क नहीं किया है। “
” तुम भी मम्मी ,डैड का मूड कितना अच्छा है ,”दोनों बच्चे मचल उठे थे।
सरिता ने मुंह फुलाए हुए ही कपडे बदले। रस्ते में राहुल कहने लगा ,”सरिता ,क्यों नाराज हो यार। अरे जब तक माता पिता हैं तब तक बच्चे सुख उठा लें। फिर पता नहीं जीवन में कितनी परेशानियां झेलनी पड़ें। “
राहुल तुम जानते थे क्या यही होना है ?
उस दिन तुम मुझे जबरदस्ती बैंक के कागजों और अपनी पॉलिसीस के बारे में समझा रहे थे ,तब क्या तुम्हे भान हो गया था भविष्य का ? क्या क्या नहीं यद् आ रहा है आज।
तभी बेयरे के बुलाने पर सरिता का ध्यान टूटा।
“मैडम डॉक्टर आपको अपने रूम में बुला रहे हैं। “
‘ चलो आती हूँ ” सरिता ने कहा।
खूब जानती है सरिता क्यों बुला रहें है वे उसे।
इस अनजानी जगह में राहुल फुटबॉल खेलने आया था. और उसके जीवन का खेल आज समाप्त होने को है।
मर्सी किलिंग के बारे में सुन रखा था सरिता ने लेकिन इन परिस्थितियों में इ शब्द उसके सामने आएगा ये नहीं जानती थी।
मैदान में खेलते समय जब राहुल के ललाट पर गेंद लगी थी तब डॉक्टर्स भी नहीं समझ पाए थे की चोट इतनी घातक है।
सरिता को तो सपने में भी ये गुमान नहीं था की दौड़ते हुए गेंद पकड़ता उसका पति एक बार गिरेगा तो फिर नहीं उठेगा.
चोट लगने के बाद स्ट्रेचर पर राहुल को ले जाते हुए वार्डबॉय ,घबराई हुई सरिता और साथ में टीम के अन्य लोग। अभी भी सरिता सोचती है तो लगता है जैसे कोई धीमी और मूक फिल्म चल रही हो।
चोट लगाने के बाद राहुल बेहोश हो गया था। बेहोशी फिर कोमा में पहुँच गयी. डॉक्टर्स की टीम ने तुरंत मष्तिष्क का ऑपरेशन किया लेकिन व्यर्थ हो गयी साडी भागदौड़। राहुल को न होश आना था न आया। तब से कई दिन हो गए। प्राणरक्षक मशीने उसका दिल धड़का रही हैं।
कल रात को डॉक्टर्स के एक पैनल ने अपनी बैठक की थी। उनका विचार था की राहुल का मष्तिष्क अब मृत हो चूका है और अब उस में जीवन का स्पंदन लौटना असंभव है। अ त:इस तरह उसका पड़ा रहना उसके प्रति अत्याचार है। उन्होंने सरिता को समझाया की बेहतर होगा की राहुल को प्राणरक्षक यंत्रों पर भ्रम में न रखते हुए उसके शरीर को उनसे हटाकर तकलीफ से मुक्ति दे दी जाये।
इसी निर्णय के लिए वे सरिता को बुला रहे थे।
जानती है सरिता लेकिन क्या तुम जानते हो डॉक्टर तुम  किससे  ये निर्णय लेने के लिए कह रहे हो। अपने सुहाग के लिए भिक्षा मांगती सरिता कैसे अपने ही मुंह से उसे मृत्युदंड सुना दे।
धीमें कदमों से सरिता डॉक्टर्स रूम की तरफ चल दी। डॉक्टर चौधरी उसी का इंतजार कर रहे थे।
“मिसेज राहुल ये कागजात हैं ,”वो थोड़ा हिचके। ” आप इन पर सिग्न कर देंगीं तो राहुल का शरीर उन मशीनो से हटा दिया जायेगा। “
“मैं थोड़ा सोच लूँ। “सरिता की आवाज काँप रही थी।
” हाँ हाँ… कागज आप लेती जाएँ। हमें फिर इन्फॉर्म कर दीजियेगा। “डॉ चौधरी बोले।
सरिता ने डगमगाते हाथों से पेपर्स ले लिए। वहां से राहुल के रूम का रास्ता उसके लिए कितना भारी  हो गया। उसे लग रहा था जैसे वो एक अंधी सुरंग में धंसती जा रही है जहाँ थोड़ा भी उजाला नहीं है।
धीमे से सरिता कमरे में दाखिल हुई। बिस्तर पर निश्चेष्ट राहुल. सरिता धीरे से उसके पास बैठ गयी और उसे अपने आलिंगन में ले लिया। अंतिम आलिंगन ,अंतिम स्पर्श।
मेज पर फड़फड़ा रहे पन्ने  उसके हस्ताक्षरों की प्रतीक्षा में थे।
डॉ. कनक लता तिवारी

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