Friday, October 4, 2024
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डॉ सुनीता शर्मा की कहानी – अब हम भी…!

नेता जी के नाम से भव्य आयोजन किया जा रहा था l इस भव्य आयोजन की तैयारी बहुत दिनों से चल रही थी… कि नेताजी वृक्षारोपण करेंगे.. I ना जाने कहां-कहां से वृक्षों का ऑर्डर दे दिया गया था l मजदूर और माली भी पता नहीं कितने दिनों से भागदौड़ कर रहे थे l नेता जी के चेले चपाटों ने यूँ तो सारी तैयारी कर दी थी बस उन्हें इतनी हिदायत दी थी कि “तुम्हें कुछ ज्यादा करना नहीं है जमीन भी खोद दी गईं है, सारे वृक्ष आ चुके हैं, आपने तो बस एक दिखावा करना है जनता को बेबकूफ बनाना है कि आप कितने “ईनवायरमेंटल कॉन्शियस” हैं इसीलिए नगर व देश के विकास के साथ-साथ वृक्षारोपण भी कर रहे हैं l
आज वह भव्य दिन भी आ पहुंचा, नेताजी ने अपनी मरसडीज से बाहर कदम रखा तो उनकी महिमा का बखान करते हुए उनके खरीदे हुए लोगों ने उनके नाम के नारे लगाने शुरू कर दिए l
देश बचाओ पेड़ लगाओ
जीवन बचाओ पेड़ लगाओ
नेता जी ने एक नजर चारों ओर डाली और  इतनी मात्रा मे एकत्रित जन समूह को देख मुस्कुराते हुए धीरे से कहा
“इंतजाम तो बहुत अच्छा है, उहं पर आज धूप बहुत तेज है l क्या आपने पहले वेदर चेक नहीं किया था “
उनके पी. ए ने विनम्रता से जवाब दिया –
– “वेदर तो चेक किया था उनकी रिपोर्ट के अनुसार आज का मौसम ठीक रहेगा, ये वेदर विभाग वाले भी कहते कुछ हैं.. होता कुछ और ही है.. अब देखो न सर अब आज इतनी गर्मी..पर आजकल कुछ भी हो जाता है.. लगता है या तो वे अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहे या आजकल उन्हें परिणाम ही ठीक नहीं मिल रहे..l”
नेता जी के मुँह से एकाएक निकल गया..
– “मौसम भी आजकल महबूबा के मिजाज जैसा हो गया है पल पल बदलता है l लगता है आज तो उनकी तरह ही टेंपरेचर चढ़ा हुआ है l”
 तभी उनके दूसरे चेले ने जब उनको बताया
-“अरे सर यह क्या क्या आप भूल गये यह वही नई सड़क है जो आपने बनबाई हैं, आपने ही तो इस सड़क के द्वारा गांव को हाईवे से जोड़ा है l यहाँ पर तो पहले जंगल ही जंगल था.. कहीं वह दूर छोटी सी हरी- भरी पगडंडी होती थी l “
-“अच्छा इसका रंग रूप तो बहुत निखर गया मुझसे तो पहचाना ही नहीं गया..l” यह कहते हुए इधर उधर जनता को हाथ हिलाते व गले में मालाओं को संभालते हुए वह अपनी ही सफलता पर मुस्कुराए l
 तभी एक और नारा हवा में लहराया
 हो रही है कम सांसे..
आओ पेड़ हम लगाएं ..
उनका मन साथ में यह पंक्तियाँ जोड़ने का कर रहा था.. “पर धूप का क्या हम करें …?”
धीरे से फुसफसाते हुए अपने पी ए से उन्होंने कहा
– “ऐसा करना ,जब तक फोटो खींचने की पूरी तैयारी ना हो जाए तब तक सिर से छतरी मत हटाना l”
 यूँ तो नेता जी ने स्वयं तय किया था कि वे नंगे पाँव व सिर पर बड़ी सी पगड़ी लगा फोटो खींचाएंगे.. l चार वृक्षारोपण कर सोशल मीडिया पर लगाने के लिए वह अपनी तस्वीर खींचवाना ही चाहते थे पर न जाने क्यूँ वृक्ष बहुत मुरझाए और सूखे से लग रहे थे l मंत्री जी की कोशिश थी कि जब फोटो ली जाए तो वृक्षारोपण बहुत ही खुशनुमा लगे l सही फोटो लेने की इस कशमकश में समय कुछ ज्यादा ही लग रहा था l
पब्लिक भी खड़ी, उन्हें ही निहार रही थी, तो उन्हें झुंझलाते हुए भी मुस्कुराना पड़ रहा था l उन्हें ऐसा लग रहा था कि जाने क्यूँ वृक्ष भी उनके हाथ से आज तो जल ग्रहण नहीं कर रहे हैं, मानों रह रह के जैसे उनके सब्र का बांध टूट रहा है l यह क्या जैसे मिट्टी ने भी उनकी आँखों में जैसे धूल  झोंकते हुए और मुँह चिढ़ाते हुए कहीं वृक्षों को भी अपने साथ देने के लिए मना लिया हो l मिट्टी उनकी सफलता पर आज मुस्करा नहीं रही थी न जाने क्यूँ..?
देखते देखते ही एकाएक जैसे सारे वृक्ष हरहरा सूख कर मानों गिर ही पड़े .. I आज नेता जी को पता लग रहा था बिसलेरी की बोतल साथ में होते हुए भी पानी न पीने की विवशता कैसी होती है l
तभी दोबारा से नारा गूंजा..
हो रही है कम सांसे..
आओ पेड़ हम लगाएं ..
यह नारा बड़ा ही क्षीण सा उनके कानो में पड़ा..  अरे यह क्या, न जाने क्यूँ, अजीब सी बात यह हुई कि नेता जी भी जैसे वृक्षों के साथ भुरभूरा के गिर गये.. I एंबुलेंस बुलाई गई और उन्हें हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया l
हॉस्पिटल में कुछ बुडबड़ाते, बुदबुदाते हुए कभी वह अपनी आंखें खोल लेते तो कभी आंखें बंद कर लेते थे l ऐसा लग रहा था जैसे किसी भूत के साये ने उन्हें जकड़ लिया हो l पता नहीं स्वप्नलोक या यमलोक में भी उनकी अकड़ वैसी ही क़ायम थी जैसी जनता के बीच नेता की होती है l
 वैसे बार बार किसी जंगल-बगीचे की बात करते हुए वह कुछ ऐसा कह रहे थे
-“कुर्सी की कसम, झूठ तो हम नहीं बोलते..! क्या कहा..” जंगल कैसा जंगल..? बगीचा.. कैसा बगीचा..? क्या कह रहे हो मेरी उम्र से भी 100 साल पुराना..सदियों से पक्षियों का बसेरा जहाँ .!”
पता नहीं जैसे-कुछ सुनते ही कैसे उनका पूरा शरीर ठंड से काँपने लगा था .. चेहरा पीला पड़ गया ऐसा लगा ऐसे किसी से बतियाते हुए कह रहे थे ..
“हां मुझे पता है यहाँ एक प्यारा सा बगीचा होता था.. जहां आम के बाग अमरूद बरगद, नीम, अशोक होते थे l ” सगवान, शीशम, व दयाल के वृक्ष भी..! महुआ भी..!
-“क्या कह रहे हो तुम.?  कब हमने अपने लालच में धरती को ऐसे तपा डाला..जब पेड़ों पर आरा आर-पार चलवा डाला ?” कुछ भी यूँ ही.. मांगो क्या मांगते हो..?
अभी भी उनका बड़बड़ाना जारी था –
-“पियाउ की बात क्यूँ तुम मुझसे कर रहे हो.. मुझे भी पानी पीना है ढेर सारे मटकों में पानी और हैंडपंप..हाँ.. “
नर्स यह सुनकर उनके लिए पानी लेकर आ गईं..पर उनका बुडबड़ाना कम नहीं हुआ..
-“हाँ हम सब लोग यहां अपनी थकान मिटाते थे, विश्राम करते थे.. पेड़ों से फल खाते थे और कुछ तो उनकी छांव में सो भी जाते थे l मैंने भी तो यहां कितनी बार ऐसे विश्राम किया है और मैं भी यहाँ पर कितनी ही बार थककर सोया जब स्कूल से आता..था I”
 -“क्या कहा..? ऐसा कैसे..तुम सब कह सकते हो..?  हम तो सब ख़ुश हैं.. कहां  हमने अपनी खुशियों को कहीं यूँ ही मार दिया..जब तुम सब को कुल्हाड़ी से ऐसे ही काट दिया.. क्या कह रहे हो तुम सब ..!”
पर एकाएक ऐसे लगा जैसे उन्हें जुड़ी का बुखार चढ़ गया हो कंपकपी से कांपते व ठंड से दांत किटकटाते हुए बोले..
-पर मुझसे क्यों पूछ रहे हो मैंने क्या किया है.. “कहां हैं वे और सब..  मुझे  क्या पता..?”
– “क्या कहा.. क्या ऊलजलूल बकवास.. कि तुम सब तड़पे थे जब मैने तुम सबको काटा था .. अब मैं तडूपंगा क्यूंकि मैंने कितने ही बरगद, आम, नीम, दयार, शीशम सागवान के अस्सी सौ साल का साथ नहीं जन्मों का साथ एक पल में धराशाई कर दिया.. उन सब बगीचों व जंगल का शाप..लगेगा मुझे…l”
पर मैंने तो नहीं काटे कभी पेड़, मैंने तो कभी तुम्हें देखा तक नहीं मैं तो आज तुम्हारा वृक्षारोपण कर रहा था.. I.. हाँ.. विकास योजना के तहत मैंने तो बस बहुत सारी फाइल पर दस्तख्त भर किए थे l
एक पल को उनकी आंख खुली कहीं कोई नहीं.. आस पास बस डॉक्टर और नर्स दिखाई दिए.. पर वे फरिश्ते भी आज उन्हें यमदूत से लगे..
– “मैंने तुम्हारी बलि कहां दी..? नहीं ऐसा मत करो..!, नहीं मेरी बलि क्यूँ माँग रहे हो ..?-मेरी बलि मत चढ़ाओ “
 डॉक्टर ने थोड़ा हैरान होते हुए पूछा
– नेता जी कौन किस की बलि चढ़ा रहा है.. लगता है आज, बाहर धूप की लूं आपको लग गई है.. आपके सिर पर चढ़ गईं है l”
डॉक्टर अभी समझने का प्रयास कर रहा था l नेता जी अब बिस्तरे से उठ कर धरती पर ही बैठते हुए बोले.. अब वह थोड़े गंभीर  लग रहे थे..
-“तुम सारे वृक्ष क्यूँ मुझ पर थू-थू कर रहे हो मुझे कोसते हुए, क्यूँ गले लगाने के लिए आगे बढ़ने की बजाय दूर जा रहे हो ..?
-“हाँ, विकास तो बहुत जरूरी है..गांवों में विकास की पहल तो मैंने ही की थी l मैंने तो बहुत कुछ किया.. इस गांव के लिए..l”
उनका कहना अभी भी जारी था..
– “नेता हूँ तो गांवों के विकास के लिए यह सब करना पड़ता है l अपना घर भी भरना पड़ता है और सरकारी खजाना भी खाली करना पड़ता है l”
अब उनके मुंह से कुछ झाग से निकल रहे थे, पता नहीं एकाएक उन्हें क्या हुआ कि वे -“वृक्षों से बचाओ, मुझे बचाओ वृक्षों से ” का नारा लगाते हुए हॉस्पिटल के बेड से उठ खड़े हुए l
नर्स और डॉक्टर अभी उन्हें इंजेक्शन देना ही चाहते थे कि सब पर चिल्लाते हुए कह उठे
-“माफ़ी.. माफ़ी..कैसी माफ़ी..हम नेता हैं.. माफ़ी नहीं मांगते.. हम तो हमेशा सही ही होते हैं l जनता तो पूजा करती है मेरी .. मैं तो उनका प्रिय नेता हूं..l”
यह कहते हुए बढ़हवास से वे ऐसे भागने लगे जैसे अपनी जान किसी से छुड़ाना चाहते हो..
-“ऐसा हो ही नहीं सकता,  क्या कह रहे हो  अभिशाप लगेगा मुझे वह भी तीन महादेवों का.. न जल रहेगा-न जंगल-न जमीन.. चारों ओर इतना प्रदूषण ..  ये पृथ्वी के तीनों महादेव ही माफ नहीं करेंगे मुझे ..  नहीं ऐसा कैसे हो सकता..l ऐसा क्या किया मैंने..?”
क्या कह रहे हो तुम सब..?उनकी ऑंखें जैसे शून्य में ताकते हुए भी सिकुड़ गईं थी …
“जंगली, कुत्ता, दरिंदा.. आदमखोर..” अरे यह नाम तुम्हें कैसे पता लगे..? यह तो दूसरी पार्टियों के हमारे “टाइटल कोडवर्ड” हैं, जो हमने उन्हें दिए हैं.. इन गालियों से मुझे क्यूँ पुकार रहे हो..?
क्या कह रहे हो मेरे जैसे बहुत सारे जंगली आदमखोरों ने शिकार किया तुम्हारा.. I  मैं और आदमखोर..?  क्यूँ दे रहे यह उपाधि तुम मुझे….नहीं मैं नहीं मैं ऐसा नहीं ..!”
वे अपने गले पर हाथ  रखने  की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे थे तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई उनका गला दबा रहा हो, अब गिड़गिड़ाते से अंदाज में वह कह रहे थे
-“मुझे.. मुझे माफ करो, मुझे माफ करो.. “
पहली बार माफ़ी जैसा शब्द उनके मुँह से निकला तो डॉक्टर थोड़ा हैरान हुआ..
वह थोड़ा झुक कर वह सुनने की कोशिश करने लगा कि नेता जी क्या माँग रहे हैं..क्या कह रहे हैं ताकि इलाज में सुबिधा हो सके..
-“वह कहानी..हाँ जिसकी तुम बात कर रहे बचपन में मैंने सुनी थी, वह कहानी अपनी नानी से.. हाँ.. यहाँ तक कि पगडंडी भी  डरा करती थी जंगल के नाम से.. जिसमें वे बताती थी पेड़ों की पूजा का महत्व, इसीलिए जंगलों की पूजा की जाती थी उसमे प्रवेश करने से पहले l”
नेता जी का शून्य में ताकते हुए कहना अभी जारी था
 – “हाँ मानता हूं कहीं मेरी महत्वाकांक्षा की दौड़ ने, मेरी विकास की चिंगारी, मेरे क्या हमारे अरमानों की आग ने तुम सबको झुलसा दिया , तुम्हारी सारी दुनिया ही जला डाली..या लील लिया ! हमने  इस जंगल को बंजर धरती बना दिया..!  कंक्रीट सा जंगल बिछा दिया हमने चारों ओर l”
“मुझे माफ करो मुझे माफ करो..”
-” क्या कहा आजकल तुम सबसे ज्यादा डरते हो हम नेताओं के नाम से.. I सही कह रहे हो शायद तुम सब ..
 -“आजकल तुम सब “विकास योजना” का नाम सुनते ही दहशत से ही डर-मर जाते हो , कि अब हमारा क्या होगा.. आग लगेगी जंगल में.. ना जाने कौन-कौन से पेड़ों को काटा जाएगा.. कौन सा हाई वे बनेगा कौन सी सड़के कहां से निकलेगी , कौन सा विस्फोट… होगा अब..!”
-“माफ करो, मानता हूं, हाँ आजकल तुम डरते हो हमारे नाम से..गलती हमारी है, हाँ हम सबने तरक्की के नाम पर तुम्हारा  बहुत दोहन किया तुम सबका… हाँ मैं जान गया हूं, मानता हूं l”
नेता जी अभी भी बुदबुदा  रहे थे..
-“क्या.. अब हमें डरना होगा तुम सबसे..
 क्या तुम सब.. उजाड़ दोगे शहर के शहर.. घर  के घर..माफ करो.. पर मेरा परिवार मत उजाड़ो..!”
– क्या कहा अब हम तरसेंगे..क्यूँ तुम ऐसा कह रहे .. तरसोगे.. तुम भी तरसोगे ऑक्सीजन के लिए.. बताओ क्यूँ मैं… मत जाओ मुझे छोड़कर मत जाओ..
तुम जा रहे हो मुझे छोड़ कर , क्यूँ.. कहां जा रहो हो, मुझे सांसे  लेने में तकलीफ हो रही है..कहां लिए जा रहे हो सांसे मेरी ..?”
डॉक्टर झुका हुआ उन्हें नींद का इंजेक्शन देने की तैयारी में लगा हुआ था..
नेता जी का बड़बड़ाना अभी भी जारी था…
-” ऐसा मत कहो…क्यूँ ऐसा कह रहे हो “काटते रहे जीते जी अभी अब तक तुम  हमें, अब और नहीं जलायोगे तुम हम पेड़ों को जब तुम मरोगे.. बस अब और नहीं हम मरेंगे.. बदली अब चाल अपनी हमने…!
बस अब हम भी ..! “
क्या..?.. क्या कह रहे हो..?अपने पापों का भुगतान मुझे.. ओर हम सब को स्वयं ही करना पड़ेगा.. उनका लड़खड़ाता हुआ क्षीण स्वर कहीं खोता जा रहा था..
“वृक्षों मत जाओ, मत जाओ नहीं अभी अलविदा नहीं.. मत जाओ, मत कहो, मुझसे अलविदा ..कहां जा रहे हो..यह कह कर कि..हमारा भी अब दम अब घुटने  लगा है..तुम ही बताओ कहां जाए अब हम … बस अब और नहीं.. बस अब हम भी..”
बस जगती-मुंदती आँखों से नेता जी को न जाने क्यूँ लग रहा था-जैसे दूर जाते सारे वृक्ष ऑक्सीजन का खाली सिलेंडर खड़खड़ाते-मुस्कराते हुए कह रहे हैं ..”अब हम भी….!”
डॉ सुनीता शर्मा
डॉ सुनीता शर्मा
डॉ सुनीता शर्मा विविध विधाओं में लिखती हैं | इनकी कहानियां, कविताएं, हाइकु, संस्मरण, लघु कथा इत्यादि विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं | इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो हो चुकी हैं - 'मैं गांधारी नहीं' इनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह है| मिट्टी की सुगंध व कविता के प्रमुख हस्ताक्षर इनके साझा काव्य संग्रह हैं! "जागृति" कहानी संग्रह की कहानियाँ अनेकानेक प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं| " विश्व हिन्दी अकादमी मुंबई " द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इन्हें "लेखिका स्पेशल अचीवमेंट अवार्ड " दिया गया | हिन्दी महिला समिति द्वारा इनके कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए इन्हें "स्वयंसिद्धा अवार्ड" से सम्मानित किया गया| संपर्क - [email protected]
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1 टिप्पणी

  1. पुरवाई पत्रिका में प्रकाशित मेरी कहानी ” अब हम भी.. ” पत्रिका के संपादक “तेजिंद्र शर्मा “जी को कहानी प्रकाशित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत आभार

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