Sunday, October 6, 2024
होमअपनी बातसंपादकीय - अमरीकी और यूरोपीय नौकरियों की चाबी

संपादकीय – अमरीकी और यूरोपीय नौकरियों की चाबी

हाल ही में एअर इंडिया ने अमरीका की बोइंग कंपनी व यूरोप की एयरबस कंपनी के साथ विश्व का सबसे बड़ा सौदा किया है। 115 बिलियन डॉलर के इस सौदे के तहत 470 विमानों का ऑर्डर दिया गया है। अब तो लगने लगा है कि भारत विश्व की अर्थव्यवस्था की धुरी बनने की प्रक्रिया में है।

भारत जब 1947 में स्वतंत्र हुआ तो अंग्रेज़ हमें लुटा-पिटा छोड़ कर गये थे। देश का बंटवारा हो चुका था और सांप्रदायिकता अपनी चरम सीमा पर थी। जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री पद संभाला होगा तो उनके और सरदार पटेल के दिमाग़ में एक ही बात चल रही होगी कि देश की गाड़ी को पटरी पर कैसे बैठाया जाए।
इस बीच इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह तक सभी भारत को एक समृद्ध राष्ट्र बनाने का प्रयास करते रहे। सपने सभी देखते रहे मगर भारत विकासशील देश के ठप्पे से मुक्ति पाने में सफल नहीं हो पा रहा था।
दूसरी ओर पड़ोसी चीन एक विशाल दैत्य की तरह सामने उभर रहा था और एक वैश्विक सुपर-पॉवर बन रहा था। अमरीका और यूरोप तो पहले से ही महाशक्तियां बन चुके थे। मगर जापान में निर्माण की लागत बढ़ने से चीन को विश्व का निर्माण केन्द्र बनने में आसानी हुई। आहिस्ता-आहिस्ता अमरीका और यूरोप में फ़ैक्ट्रियां बंद होने लगीं और दुनिया की हर बड़ी-छोटी चीज़ चीन में बनने लगी। आज हालत यह है कि अमरीका और यूरोप में शायद किसी भी चीज़ का निर्माण नहीं होता। हर वस्तु पर लिखा रहता है : ‘मेड इन चाइना’।
चीन जब विश्व के लिये ख़तरा बनने लगा तो अमरीका को भारत की याद आई। दो कदम आगे, तीन कदम पीछे करते-करते अंततः अमरीका को भारत के लोकतंत्र और बाज़ार की समझ आने लगी। विश्व भर की कारें ‘मेक इन भारत’ होने लगीं। आई.टी. सेक्टर में तो भारत की धाक जम ही रही थी। पिछले एक दशक से तो विश्व में भारत की उपस्थिति बहुत शिद्दत से महसूस होने लगी। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री की गणना विश्व के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में होने लगी।
मगर फिर भी कभी किसी ने यह नहीं सोचा था कि भारत के किसी निर्णय के कारण अमरीका, ब्रिटेन और फ़्रांस में वहां के नागरिकों के लिये नई नौकरियां पैदा हो जाएंगी। भारत का विपक्ष हमेशा भारत सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि सरकार भारत में नौकरियां पैदा नहीं कर पा रही और बेरोज़गारी चरम सीमा पर है।
हाल ही में एअर इंडिया ने अमरीका की बोइंग कंपनी व यूरोप की एयरबस कंपनी के साथ विश्व का सबसे बड़ा सौदा किया है। 115 बिलियन डॉलर के इस सौदे के तहत 470 विमानों का ऑर्डर दिया गया है। अब तो लगने लगा है कि भारत विश्व की अर्थव्यवस्था की धुरी बनने की प्रक्रिया में है।
इस सौदे के बाद अमरीका और फ़्रांस के राष्ट्रपतियों एवं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने जमकर भारत की तारीफ़ की है। अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने तो खुल कर घोषणा की है कि, “इस सौदे की वजह से अमेरिका के 44 राज्यों में करीब 10 लाख रोजगार पैदा होंगे और अहम बात यह है कि इसमे कईयों को तो चार साल की डिग्री की भी जरूरत नहीं होगी।”
वहीं फ़्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रॉन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा है कि वह भारत के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंनें हम पर आत्मविश्वास जाहिर किया है। इसी तरह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा कि इस करार की बदौलत देश भर में रोज़गार उत्पन्न होने में मदद मिलेगी और आर्थिक वृद्धि होगी।
यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि विश्व के तीन शक्तिशाली और सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों के यहां रोज़गार के अवसर पैदा किये हैं। ज़ाहिर है कि इस सौदे से इन तीनों देशों की अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिलेगी।
अपनी आदत के अनुसार विपक्ष ने इस सौदे पर भी सवालिया निशान लगा दिये। कांग्रेस पार्टी के मनीष तिवारी ने ट्वीट करते हुए लिखा है, “लोग टाटा कंपनी की एअरलाइन के इस सौदे पर फूले नहीं समा रहे, उनसे एक ही सवाल है – इस विमान सौदे से भारत में कितनी नौकरियां पैदा होंगी?… जवाब है शून्य! तो फिर हम किस बात की ख़ुशियां मना रहे हैं?”
मगर मनीष तिवारी को शायद एअरलाइन इंडस्ट्री के बारे में कुछ अधिक जानकारी नहीं है। एअर इंडिया डील से पायलट, सप्पोर्ट स्टाफ़ एअर होस्टेस,  क्रू मेंबर, और जहाज़ का तकनीकी रख-रखाव कर्मचारी, इंजीनियर, ईंधन भरने वाले, एमआरओ, एयरपोर्ट स्टाफ और अन्य कर्मचारियों की जरूरत होगी। इसके साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से अन्य कई नौकरियां सृजित होंगी। इसके साथ ही पर्यटन के क्षेत्र में कई नौकरियां बनेंगी जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी फ़ायदेमंद होंगी। मनीष तिवारी की टिप्पणी बौखलाहट से अधिक कुछ नहीं मानी जा सकती।
बोइंग और एअर बस इंडस्ट्री रख-रखाव और निर्माण की इकाइयों का भारत में गठन करने जा रही हैं। ज़ाहिर है कि इस सब से भारत में नौकरियों के लिये अवसर खुलेंगे। एअरलाइन के बारे में कहा जाता है कि जो दस प्रतिशत नौकरियां प्रत्यक्ष रूप से पैदा होती हैं उनके साथ-साथ पचास प्रतिशत अवसर अप्रत्यक्ष रूप से भी पैदा होते हैं।
हम पुरवाई के पाठकों को बताना चाहेंगे के अमरीका की बोइंग कंपनी पहले से ही भारत में टाटा के साथ साझे रूप से बंगलुरू में साझे रूप से काम कर रहा है जहां 8,000 करोड़ रुपये का सालाना व्यापार हो रहा है।
एअर बस ने गुजरात में अपनी इकाई खोलने की घोषणा की है। उस पर काम चल रहा है। लॉकहीड मार्टिन भी इस दिशा में सक्रिय है तो रूस भी भारत की शर्तों को मानने को तैयार हो रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की है कि भारत को विमानों के रख-रखाव के वैश्विक हब के रूप में तैयार किया जा रहा है।
जून 2022 तक के आंकड़ों पर नज़र डाली जाए तो एअर इंडिया में लगभग 12 हज़ार कर्मचारी कार्यरत हैं। इनमें से आठ हज़ार से अधिक स्थाई कर्मचारी हैं तो चार हज़ार के करीब काँट्रेक्ट कर्मचारी हैं। ज़ाहिर है कि निकट भविष्य में बहुत से कर्मचारी सेवानिवृत्त भी होंगे और बहुतों के काँट्रेक्ट भी ख़त्म होने वाले होंगे। इस तरह एअर इंडिया में बहुत सी नौकरियों के अवसर निकलने की संभावना प्रबल है। याद रहे कि इंडिगो जैसी दूसरी एअरलाइनें भी इस दिशा में शीघ्र ही कदम उठाने वाली हैं और अपने विमानों को अपग्रेड करने की योजना बना रही हैं।
ब्रिटेन के व्यापार और ट्रेड सचिव केमी बडेनोच एम.पी. ने कहा कि, भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था है जो 2050 तक एक अरब मध्यम वर्ग उपभोक्ताओं के एक चौथाई के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। ऐसे में दुनिया के बड़े एयरोस्पेस क्षेत्र में यह करार यूके के लिए एक अहम उपलब्धि है और इससे कुशलता के क्षेत्र में हज़ारों रोज़गार उत्पन्न होंगे जो देश की अर्थव्यवस्था की बढ़ोतरी में उल्लेखनीय योगदान प्रदान करेंगे।
हमारा मानना है कि यह सब जो भारत के साथ हो रहा है और जो भारत कर रहा है, एक भारतीय होने के नाते हमें गर्व महसूस होना चाहिये। जिस तरह अमरीकी निवेशक जॉर्ज सोरेस के बेवक़ूफ़ी भरे बयान पर भारतीय राजनीति के सत्ता पक्ष एवं विपक्ष ने मिल कर प्रतिक्रिया व्यक्त की है, ठीक उसी तरह देश की उन्नति के लिये उठाए गये कदमों पर सब को साथ खड़ा दिखाई देना आवश्यक है।
आज का भारत केवल 75 वर्ष पुराना है। मगर हमारे संस्कार बहुत सदियों पुराने हैं। हमें संस्कारों को बचाए रखना है मगर पूरी शिद्दत के साथ वर्तमान आधुनिक स्थितियों से निपटने के लिये नई सोच बनाए रखनी होगी। आलोचना केवल आलोचना के लिये नहीं होनी चाहिये। क्योंकि भारत में किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं इसलिये केन्द्रीय स्तर पर भी राजनीतिक दल हमेशा चुनाव मोड में ही सक्रिय दिखाई देते हैं। राष्ट्र-निर्माण विपक्ष के लिये भी उतना ही आवश्यक है जितना की सत्ता पक्ष के लिये।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
RELATED ARTICLES

32 टिप्पणी

  1. आदरणीय संपादक महोदय ,
    इस संपादकीय को पढ़कर दिल बाग़ बाग़ हो गया ,बोलचाल की भाषा में कहें तो आपके संपादकीय में (या लेखनी में?) ‘घी -शक्कर ‘। आपकी सब भविष्यवाणियां सत्य सिद्ध हों इसकी कामना हर भारत प्रेमी करेगा।
    धन्यवाद

  2. सामान्यतः एयर लाइन्स में प्रति एयर क्राफ्ट जितने व्यक्ति होने चाहिए उससे दस गुना ज्यादा व्यक्ति एयर इंडिया में हैं । आशा है नए एयर क्राफ्ट आने से और उम्र पाकर रिटायर होने वालों के कारण सीधे नई नौकरियां मिलेगी। आज अवश्यकता है एयर मेंटेनेंस हब की। और भारत की भौगोलिक स्थिति और मौसम इसके लिए बिल्कुल ठीक बैठता है। अगर इस पर धतं दिया जाय तो विश्वभर के विमान वार्षिक मेंटेनेंस के लिए भारत आ सकते हैं ।

  3. आज अनेक क्षेत्रों में भारत के क्रमिक विकास से हमें गर्व‌ है। आपने सही कहा कि सत्ता पक्ष के सकारात्मक कदमों में विपक्ष को भी राष्ट्र निर्माण में हाथ बंटाना चाहिए। बढ़िया संपादकीय! बधाई महोदय!

  4. सही लिखा आपने बस जरूरत है कि विपक्ष को जॉर्ज सोरेस मामले जैसे ही देश के विकास में भी एक सुर में बोलना चाहिए हालांकि ये मुमकिन नहीं

  5. आपके इस सारगर्भित लेख के लिए आपको बधाई. मेरे तीन सहपाठी मित्र पायलट हैं. एयर इंडिया से रिटायर हो चुके कमांडर राजेश भट्ट को एयर इंडिया ने दुबारा नियुक्ति दी है. इसलिए पचौरी जी का यह कहना उचित नहीं कि एयरलाइन्स में स्टाफ जरूरत से अधिक हैं.
    खुशी की बात है कि एयर इंडिया फिर से टाटा के पास है. इसके सद्परिणाम सामने हैं. भारत का यह क्षेत्र सबसे संभावनाशील है. इसीलिए सन् 1996 में लखनऊ से दिल्ली की जो टिकट 1800 ₹ की थी, वह आज 27 वर्ष बाद भी केवल 2700₹ की है. आज देश का निम्न वर्ग भी जहाज में उड़ सकता है.
    यूपी में इस समय आज आठ या नौ हवाई अड्डे नागरिक उड्डयन के लिए हैं. यह बाज़ार बहुत बड़ा है.
    इसमें रोजगार की अपार संभावनाएँ हैं. आपने जो गिनाए, उनके अलावा बस व ट्रैक्टर चालक, लोडर, सीआईएसएफ, शौचालय कर्मी, एयरपोर्ट की दुकानें, फूड कोर्ट, लाउंज स्टाफ, एयर कंडीशनिंग स्टाफ, मुद्रित सामग्री के प्रिंटर आदि दृष्टि से ओझल हो गये.
    इस उत्तम संपादकीय के लिए आपको पुनः बधाई.
    संभावनाएँ अपार हैं.

  6. बहुत ही सारगर्भित लेख के लिए बधाई . सकारात्मक सोच के साथ परिवर्तनों को स्वीकार करने की आदत डालनी चाहिए . भारतीय कौशल सर्वत्र अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है

  7. Your Editorial of today points out how even Indians will benefit from this Airbus Contract with France alongwith Americans n French and how India has today gained this position of a provider of jobs.
    It is certainly a matter of great pride n joy for us all.
    Regards
    Deepak Sharma

  8. आपका सम्पादकीय हमेशा की तरह प्रभावशाली और बहुत ही नपी-तुली समीक्षा के रूप में हमें अपने देश पर गर्व करने के अवसर देता है।
    बहुत कुछ नया जानने के लिए मिला।
    आभार।

  9. सारगर्भित संपादकीय के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई। हम सब कामना करते हैं कि, भले ही कुर्सियां आपस में टकराती रहें, राजनीतिक झड़प होती रहे, लेकिन उन्हीं झड़प में हमारे कर्मठ अगुआ हमारे देश का, “दिन दूना रात चौगुना” प्रगति का मार्ग प्रशस्त करें।

  10. भारत के आर्थिक विकास और रोजगार की
    संभावनाओं पर अच्छा विश्लेषण है ।
    एक क्रिया अनेक उपक्रियाओं को सृजित करती है यह बात “सूक्ष्म ” है ,रेखांकित करने वाला तथ्य है ।
    साधुवाद वंदे मातरम
    Dr Prabha mishra

  11. भारत अब विश्व में निर्णायक भूमिका अदा कर रहा है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आपका संपादकीय अत्यंत प्रभावशाली है शुभकामनाएं

  12. विपक्ष का एक मात्र एजेंडा है सत्ता पक्ष की बुराई दिखा कर जनता को गुमराह करना और वोट ले कर कुर्सी पर बैठ कर ऐश करना। कॉग्रेस ने कुछ किया होता तो 60 सालों में भारत विश्व की महाशक्तियों में होता। सुरक्षा पारिषद की स्थाई सदस्यता भी नेहरू ने दान दे दी। पूर्वज ऐसे तो मनीष तिवारी जैसे वंशज…???
    आपने यह आंकड़ों सहित, सकारात्मक लेख बहुत सही समय पर लिखा है। अभी केंद्र के चुनाव होने में 1वर्ष का समय है। प्रार्थना करती हूँ कि इस सम्पादकीय और इसी तरह के तथ्यों पर आधारित सूचनाओं से जनता को शासन के प्रयासों का ज्ञान हो और देश हित में सकारात्मक सोच पैदा हो।
    आपका लेख इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एविएशन के क्षेत्र में आपका दीर्घ कालीन निजी अनुभव है। आपकी लिखनी इसी तरह चलती रहे और हमारे जैसे पाठकों का सामान्य ज्ञान बढ़ता रहे। आत्मिक आभार।

  13. आज का आपका संपादकीय पढ़कर मन गर्व से भर उठा। भारत की टाटा कंपनी द्वारा यूरोपियन कंपनी एअरबस से 250 तथा अमेरिकी कंपनी से 220 नये विमान खरीदने पर राष्ट्रपति जो बाइडन, फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रो तथा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने न केवल ख़ुशी जताई वरन यह भी कहा कि इस सौदे से उनके देश में रोजगार के अवसर पैदा होंगे। ऐसे मैं मनीष तिवारी द्वारा प्रश्न उठाना विपक्ष की सत्ता पक्ष की नकारात्मक आलोचना ही है। विपक्ष को भी अपना दायित्वों का ध्यान रखना चाहिए। हर फैसले पर केवल आलोचना करनी है, इस सोच से बचना चाहिए।

    इसी समय अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरेस की टिप्पणी भारत के प्रति दुर्भावना से ग्रस्त है। यह सच है, आपके आलेख से भी यही प्रतिध्वनित हो रहा है कि आज का भारत इतना परिपक्व हो गया है कि वह हर दबाव और आलोचना को सहता हुआ आगे बढ़ता ही जायेगा।

  14. बहुत ही विस्तृत जानकारी आपने दी। पढ़ते-पढ़ते ख़ुशी और गर्व के मिले जुले भाव मन के भीतर तक उतर गए। आपका लेखन हमेशा ही प्रभावशाली होता है। आपको बहुत-बहुत बधाई सुंदर आलेख (संपादकीय) के लिए।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest