तीर्थ नगरी प्रयाग राज में लगने वाले कुंभ स्नान मेलेे की तैयारियां कुछ समय पूर्व सरकार द्वारा बड़े जोर शोर से कराई जा रही थी ! अब की साल बारह वर्ष उपरान्त वहां पूर्ण कुंभ लग रहा था ! मान्यता यह है कि वहां पतित पावनी गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम में कुंभ स्नान करने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं !
मनुष्य मृत्यु उपरांत मोक्ष प्राप्त करता है , स्वर्गलोक में स्थान पाता है , मनचाही मुरादे पूरी होती हैं ! आस्था का पर्व है और आस्था पर कोई प्रश्न नहीं किये जाते !
इसी पावन परम्परा , जन आस्था , मान्यता , विश्वास के चलते घुरहू की मां भी आस्था नगरी प्रयागराज में जब जब कुंभ लगता था तब तब वह कुंभ स्नान करने के लिए जरूर वहाँ पहुंच जाती थीं !
घुरहू के बाप जब तक जिन्दा थे तब दोनों प्राणी वहां पूर्ण कुंभ लगने पर सवा महीने का कौल (करार) वास किया करते थे ! जो व्यक्ति किसी इच्छा पूर्ति के लिए कौल-वास की मनौती मानता है वह अवश्य पूरा होता है !
( सवा महीने तक कुम्भ स्नान स्थल पर पंडा बाबा के यहां तंबू में रहकर नित्य स्नान – ध्यान करना , भजन- कीर्तन करना , सुनना )
पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए पति-पत्नी दोनों ने बहुत मन्नते मांगी थी गंगा मैया से ! तब जाकर लगातार पैदा हुई चार बेटियों के बाद घुरहू पैदा हुआ था ! घुरहू चार बडी बहनों का अकेला , पेट-पोछना , छोटा भाई था ! अपने मां बाप की इकलौता दुलारा संतान था पुत्र !
लोक मान्यता के अनुसार जिससे बंश चलता है और माता-पिता भवसागर पार उतर जाते हैं! बिना बेटा के इस मृत्यु – लोक से मुक्ति नहीं प्राप्त होती ! सदियों से यही मान्यता है यही विश्वास है लोगों का ! ये भी माना जाता है कि वंश वृद्धि बेटे से होती है बेटियों से नहीं ! ऐसे में बेटियां पूछती हैं कि…….., हम बेटियों से वंश परंपरा क्यों नहीं चलती ? वंश केवल पुत्र है पुत्री नहीं हो सकती क्या ? खानदान पुत्र से ही तरता है पुत्री से नहीं क्या ? ये पहाड़ जैसे प्रश्न आज भी अनुत्तरित है !
आज भी ये समाज द्वारा बेटियों को दिए गए जख़्म खंजर नुमा प्रश्न के रूप में समाज की हठी, निर्दई आत्मा पर वार करते हैं ! मगर अभी असरहीन हैं ये चोट, वही समाज जो देवी लक्ष्मी , सरस्वती , आदि शक्ति मां दुर्गा का श्रद्धा और भक्ति से पूजन करता है और देवियों का प्रतीक मानकर कन्याओं का भी पूजन करता है, वही स्थापित तथाकथित सभ्य , उन्नत समाज इन प्रश्नों का उत्तर देने से कतराता है !
शायद पुरुष सत्तात्मक समाज आधी आबादी के स्वतंत्र व्यक्तित्व को स्वीकार करना नहीं चाहता है ! स्त्री अस्मिता पर लगते जख़्म दर जख़्म इस समाज की दोहरी मानसिकता की गवाही चिल्ला चिल्ला कर देते हैं !
मगर चार बेटियों से जन्म के बाद पैदा हुआ इस परिवार का कुलदीपक घुरहू ऐसा बदनसीब पुत्र है जिसे विरासत में अपने पिता से मुफ़लिसी की समृद्धि जागीर में अभावों की विरासत मिली थी !
यहां किसी बच्चे का घुरहू राम नाम इसलिए रखा जाता है कि , वो बच्चा जीएछ हो जाए (अर्थात बच्चा जीवित बचा रहे लंबी उम्र तक) बच्चा जीएछ तब होता है जब परंपरा और विश्वास के चलते जन्मजात शिशु को डलिया या मउनी में रखकर अपने घूर पर कुछ वक्त के लिए रखा जाता है ! ( घूर वह स्थान जहां नित्य कूड़ा , कचरा , गोबर डालते हैं जो पूरे सावन-भादो की बरसात में सड़कर खाद बन जाता और खेतों में डाल डाल दिया जाता ! ऐसे कंपोस्ट खाद से मिट्टी उपजाऊं हो जाती है ! )
ग़नीमत यह थी कि पुत्र से पहले चारों संतान बेटियां इसलिए बच गई क्योंकि , तब गर्भ में पल रहे शिशू का लिंग जानने के लिए अल्ट्रासाउंड नहीं होते थे न तो क्न्या भ्रूण हत्या का ही प्रचलन था , शायद बेटे के इंतजार में पैदा हुई चार बेटियां तभी जीवित बच पाईं !
एक-एक करके चारों बेटियों का विवाह हो चुका है ! वो अपने-अपने घर परिवार में रम गयी हैं ! उन सभी के भी बाल-बच्चे हो गए हैं !
सदियों से लोक आस्था में , जनमानस में प्रयाग राज में लगते कुंभ स्नान का विशेष महत्व है ! इस बार यहां कुंभ मेले में मौनी अखाड़ा द्वारा उनके अनुवाइयों साधु संतों द्वारा एक बहुत बड़ा धर्म सभा का आयोजन भी होने वाला है !
प्रयागराज जो आस्था का प्रतीक, मोक्ष दायिनी धार्मिक तीर्थ स्थली है , जहां पर गंगा , यमुना , सरस्वती के संगम स्थल के विराट रेतीले क्षेत्र पर कुंभ का मेला का आयोजन किया जाता है !
जहां लाखों लोग बड़े कुंभ मेले में कुंभ स्नान के लिए इकट्ठे होेते हैं ! यहां लगता कभी अर्धकुंभ का तो कभी पूर्ण कुंभ में किए किए गये स्नान का विशेष महत्व है !
रावल खेड़ा गांव का निवासी गरीबी से त्रस्त इस घुरहू की वृद्ध , विधवा , लाचार , बीमार मां कुंभ स्नान के लिए जिद्द करती थी कि, जब जब प्रयागराज में कुंभ लगे तब तब बेटा उसे कुंभ स्नान कराने को ले जाये ! और हर बार यही होता था कि, मां की जिद्द पर जब जब तीर्थ नगरी प्रयागराज में कुंभ लगता था तब वह कुंभ स्नान के लिए बेटा कर्जा-कुआम लेकर मां को कुंभ स्नान कराने के लिए जरूर ले जाता था !
अब तो घुरहू का भी विवाह हो चुका था , पत्नी और दो बच्चे थे ! परिवार में बीमारी पर इलाज का खर्च बच्चों की पढ़ाई पर खर्च बढ़ गया था और आमदनी के नाम पर केवल उसकी मजदूरी थी !
कुछ दिनों से इधर परिवार में सास बहू के बीच गृह कलह चरम सीमा पर पहुंच चुका था , घुरहू की पत्नी बहुत दुष्ट स्त्री थी ! वह अपनी वृद्ध बीमार लाचार सासु मां फूटी आंख से भी नहीं देखना चाहती थी !
ऐसे में कुंभ स्नान जाने की जिद पर अड़ी सास पर वह और जल भुन रही थी ! अपने दोनों बच्चों को भी अपनी बुढ़िया दादी मां के पास फटकने नहीं देती थी !
घर के कोने में पड़ी अधटूटी खटिया पर बीमारी से बिसूरती , असहाय , अशक्त मां को घुरहू की औरत रोटी के टुकड़े को ऐसे फेंक आती थी जैसे दया करके किसी कुत्ते को फेंक रही हो !
घुरहू की चारों बहनों में से कोई – कोई कभी मां की देखभाल के लिए मायके आती तो बुढिया को अच्छे से खाना पानी मिल जाता था, तब घुरहू की पत्नी अपनी ननदों से भी रार ठान कर लड़ाई करती रहती ताकि वह ननद आजिज आकर अपने घर चली जाए !
इस प्रकार घुरहू की घरैतिन से अजीज बेटियां भी परेशान व मजबूर हो कर कुछ ही दिनों में मायके से वापस लौटकर अपने ससुराल वापस चली जातीं !
सास-बहू के झगड़े मे शुरू से ही घुरहू राम अपनी पत्नी की बात सुनकर उसे ही सही मान लेता और मां व बहनों को ही दोषी करार देता था !
वह जब से ब्याह कर घर में आई , उसके कुछ महीनों बाद से ही , किसी न किसी बहाने से , अपनी सासु मां का , बात , बिना बात अनादर व अपमान करना ,और तिरस्कार करना शुरू कर दी !
अब तो वह चाहती है कि बुढ़िया को कल मरना है तो आज ही मर जाए और उससे छुटकारा मिले ! या कोने में पड़ी चारपाई पर सोये सोये ही मर जाए ! बहू का बस चले तो वृद्धा को जहर खिलाकर उसकी इह लीला समाप्त कर दे !
उसकी दिली ख़्वाहिश थी कि, अपनी ही मां बहनों को अपने यहां बुला कर रखे और निश्चिंत , निर्द्वन्द , अमन चैन से रहे!
जब भी अपनी बूढ़ी मां दवाई या किसी अन्य आवश्यकता पर चार पैसा घुरहू खर्च करता तो उसकी पत्नी को बहुत अखरता था , उसकी जान निकलती थी !
इस बार भी मां इसी जिद पर बैठी थी कि उसे कुंभ स्नान के लिए उसका बेटा ज़रूर से ज़रूर लेकर चले! मगर इस बार घुरहू अपनी बेहद खराब आर्थिक स्थिति के कारण मां को कुम्भ स्नान घर आने के लिए तैयार नहीं था!
क्योंकि उसके टेंट में एक भी पैसा नहीं था !
वह खुद भी कुछ समय से बीमार चल रहा था ! इस कारण उसकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चली थी ! पहले ही वह कर्ज से लदा था इसलिए उसे कर्ज भी बहुत मुश्किल था !
परिवार के भरण पोषण , बच्चों की पढ़ाई लिखाई , बीमारी में इलाज के खर्च के लिए उसे मजदूरी में मिला पैसा पूरा ही नहीं पड़ता था !
परिवार पर ज़रूरी खर्चों के लिए पैसा कम पड़ने पर गांव के जमींदार , बड़े बाबू साहब के यहां से और बड़े सेठ के यहां से कर्ज लेना घुरहू की नियति बन चुकी थी ! इस तरह वह कर्ज में आकंठ डूब चुका था !
गांव के बड़े बाबू साहब के अधिया बटाई खेत से तो सिर्फ खाने को अन्न , नमक तेल वाह काम चलाऊ रोटी , कपड़ा बमुश्कुल ही मिल पाता था ! परिवार का गुजारा हो जाता था !
आजकल बच्चों की पढ़ाई भी तो कितनी महंगी हो गई है! घुरहू अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिलवाना चाहता था ! क्योंकि वह अपने जैसे अपने बच्चों को मजदूर या हलवाह कतई नहीं बनाना चाहता था !
इधर जीवन यापन में उपयोग की हर वस्तु महंगी हो गई है ! जिसने आम इंसानों की कमर तोड़ दिया है ! गरीबों का तो और बुरा हाल हुआ है !
फिर भी मां को कुंभ स्नान कराने ले जाने के लिए अपने गांव के जमींदार और साहूकार के यहां कर्ज लेने के लिए गया !
लेकिन दोनों जगह से कर्ज में आकंठ डूबे घुरहू को कर्ज नहीं मिल सका , क्योंकि जमींदार और सेठ दोनों समझते थे कि अब घुरहू कर्ज चुकता नहीं कर सकता ! सच है जो कर्ज चुकता ना कर सके उसे कर्ज क्यों देना ? कोई नहीं देता गांव में !
सही भी है जो इंसान गरीबी में पीस रहा हो और रूग्णता से घिरा हो , जहां खाने , पहनने के लाले पड़े हो वह कर्ज कैसे भर सकता है ! इधर मां है कि कुंभ स्नान की रट लगाए पड़ी है !
मुफ़लिसी सुरसा के खुले विशालकाय मुंह की तरह मुंह बाये घुरहू को दबोचे उसके वजूद को लील रही थी ! अब.तो वह पूरी तरह से टूट चुका है !
डूबते को तिनके भी सहारा नहीं मिल पा रहा है !
गांव के जमींदार के यहां हलवाही करके , उनका खेत अधिया बटाई जोत – बो कर के अपनी पत्नी और बच्चों का गुज़ारा करने वाला घुरहू बेचारा कितना बदनसीब है किस्मत का मारा !
उस पर विधवा , वृद्ध , अस्वस्थ मां व रुग्ण पत्नी का और अपने बीमारी का खर्च बच्चों की पढ़ाई पर खर्च से वह बेहाल हो चुका है , अब तो इनमें से किसी का इलाज कराना भी असम्भव सा लगने लगा है !
तिस पर मां की कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज चलने की जिद्द जैसे उसके उपर वज्रपात होने से कम नहीं महसूस हो रहा है !
कभी कभी घुरहू के मन में इस सूरत – ए – हाल से परेशानी से निजात पाने के लिए उसके मन में आत्महत्या करने का ख्याल भी आता है !
महंगाई के जमाने में कतर ब्योंत कर किसी तरह ज़िंदगी चल रही थी ! एक एक पैसे के मोहताज घुरहू को कहां-कहां से इंतजाम करना पड़ता था वह समझता है या उसका ईश्वर जानता है !
अमीरों के चोचलों से दूर , मजदूर आदमी के लिए परिवार का भरण पोषण , दवा दर्पन , जरूरी खर्चे करने के साथ दो जून की रोटी का जुगाड़ करना ही मर मर के जीने के बराबर होता है !
अभी तो इलाज कराने के लिए लिया गया कर्जा ही घुरहू के सिर पर पहाड़ सरीखे पड़ा पल-पल मौत दे रहा है ! उस पर से मां जिद कि, उसे कुंभ स्नान के लिए हर हाल में ले चलना है………., नहीं तो अनर्थ हो सकता है, अब क्या अनर्थ होगा………. ? घुरहू सोचता है ! गरीबी और बीमारी जैसी बद्दुआ , विपत्ति या अनर्थ कुछ और हो सकता है क्या इंसान के लिए !
अब जब कहीं से रुपयों का इंतजाम ना हो सका तब मां की जिद्द के आगे बेबस , थक हारकर घुरहू व उसकी बहुरिया ने आपस में कुछ विचार-विमर्श किया…………, और बुढ़िया को कुम्भ स्नान कराने ले जाने का दृढ़ निश्चय कर लिया , पर इन दोनों के हाव भाव से इनके इरादे अच्छे नहीं दृष्टिगत हो रहे थे………!
कर्जा न मिलने पर घुरहू की पत्नी ने अपने गले का अंतिम बचा आर्थिक सहारा अपना सुहाग चिन्ह……….. मंगलसूत्र बेचने को दे दिया घुरहू उसे बेचकर दूसरे ही दिन कुंभ स्नान के लिए अपनी विधवा , वृद्धा मां को कुंभ स्नान के लिए लेकर प्रयागराज तीर्थ चला!
उसकी ज़मीनी हकीकत से कोई नहीं मुकर सकता है क्या कि ,
गरीबी की मार से तो उसकी रीढ़ की हड्डी टूट चुकी थी , बचपन से किशोरावस्था व उसके बाद कब वह जवान हुआ और कब अधेडा़वस्था पार कर गया….. उसे पता ही नहीं चला…………..,
कोल्हू के बैल की तरह खटना , मेहनत,मजदूरी करना उसकी क्रूर नियति के खेल थे ……..! मुफ़लिसी का मारा , बीमार , लाचार, बेचारा घुरहू अब तो मानसिक रूप से विक्षिप्त सा लगने लगा था !
चिंताओं में डूबा कभी-कभी तो उसका दिमाग काम करना बंद कर देता था। मन में ऊहापोह की स्थिति -और चेहरे पर अनजाने भय की रेखाएं बेवक्त झुर्रीदार पिचके निष्तेज मुंह , ललाट पर चिंताओं के साथ साफ उभरती थी……….. !
परेशानियों व दु:ख , के मकड़जाल में पूरी तरह जकड़ा अब वह हमेशा बेचैन दिखने लगा……था !
मां को संगम पर कुंभ स्नान कराने ले जाते, बस यात्रा करते हुए रास्ते भर उसकी सोचों के घोड़े दौड़ रहे थे !
कभी झुर्रियों , झाइयों से भरे वृद्ध मां के निरीह , निष्प्रभ चेहरे नज़र पडती तो ना जाने क्या सोचकर घुरहू सिहर उठता, कभी अपने भीतर उपजते कुत्सित विचारों में उलझता , व्यथित ह्रदय से कसमसाता , व्याकुल हो उठता !
उसे मगर अपनी हार्दिक दयनीय हालत से निवृत्ति का कोई रास्ता नहीं सूझता! अंततः अपने दिल को कठोर करके दृढ़ निश्चय के साथ तय करता कि……….,
“ उसे करना है वही जो उसने तय कर लिया है, किंतु अगले पल ही वह उद्दीग्न होकर सोचता ……..
ऐसा करूं …………या नहीं…………!
उसके अंतर्मन में कभी धर्म बुद्धि और पाप बुद्धि का द्वंद से तूफान मचा होता कभी मां के लिए दिल में उपजा मोह घेरता तो आंखों में सैलाब आता…….. जो उसके पूरे वजूद को तहस-नहस कर देता ! वह पाप के भय से कांप उठता………… !
उसके भीतर की विह्वलता उसे झकझोर रही थी ……………………. जिंदा रहकर वह चलती फिरती लाश नज़र आता था , अपने निर्णय पर अडिग रह सकेगा कि नहीं वह…………. संदेह व अनिर्णय स्थिति से घिरा मजबूर घुरहू…………?
फिर कुछ लम्हे सरकते ही सोचता…….. ,
” न न न न नहीं जो मुझे करना है ,जो करने आया हूं वही करूंगा………….मैं, या संगम स्थल तक पहुंचने वाले बीचोबीच बने बड़े पुल के ऊपर से स्वयं ही गंगा , जमुना , सरस्वती के संगम में बीच धारा में छलांग लगाकर अपनी इह
लीला समाप्त कर लूंगा……….. ! “
मेरा सब झंझट तुरंत एक पल में खत्म हो जाएगा !
और मां को भी अपनी आत्महत्या से पहले ही उठाकर वहीं उसी बीच धारा में फेंक दूंगा ! “
किन्तु घुरहू राम की चेतना फिर थोड़ी कसमसाई ,
“ नहीं…. , नहीं…., नहीं , मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं ,
कदापि नहीं कर सकता मैं ………ऐसा… “
इस निर्णय की स्थिति में बस में सीट पर बैठे बैठे सो सोए होने का नाटक करता हुआ घुरहू एकबारगी चिंहुक कर उठ गया ……………! “
जैसे वो कोई भयावह स्वप्न देख रहा हो ,
भय से चिहुंक उठा वो……….!
बेटे के साथ कुंभ स्नान के लिए यात्रा कर रही वृद्ध ,लाचार मगर निश्चिंत होकर बैठी विधवा मां इन सब बातों से बेख़बर थी कि …………,
” उसका सीधा , सहज , सरल बेटा घुरहू क्या…. क्या… सोचता जा रहा है , किस धर्म संकट में है …….? ”
उसे क्या पता……..?
मां तो बस इसलिए खुश थी कि वह कुंभ स्नान के लिए जा रही है अपने बेटे के साथ!
बस में बैठे- बैठे सोए बेटे को चिहुंक कर हड़बड़ाये हुए उठता देख कर मां ने एक साथ कई प्रश्न उछाल दिया…………. ,
” क्या है ?…… बेटा क्या हुआ ? ……… क्यों ?
कैसी ये अकुलाहट दिख रही है तुम्हारे चेहरे पर …..
सो गए थे क्या ?……. कोई डरावना सपना तो नहीं देखा ………………… ? , चेहरे पर कैसी हवाईयां उड़ रही हैं………? ” क्यों……?
“ कक्क क..क.. कुछ नहीं मां आप ठीक से बैठ जाइए ! “ मुझे कुछ नहीं हुआ……..!
हकलाते हुए हड़बड़ा कर मां से बोला घुरहू…….!
बस में बैठा घुरहू फिर आंख बंद कर लिया और सोचता रहा……….. .!
वक्त के पहिए पर दौड़ता मेरा मन और अपने रास्ते पर दौड़ती बस दोनों अपने गंतव्य के बहुत नजदीक पहुंच रहे हैं ……… . .!
इसी दरम्यान बस में यात्रा कर रही घुरहू की मां भी अपने अतीत की दरिया में डुबकी लगाने लगी थी……. !
“पता नहीं अगली बार कुंभ स्नान के लिए आ पाती हूं या नहीं ! जिंदगी का क्या भरोसा पके आम की तरह हूं ! कब टपक जांऊ कौन जानता है ………?
कब इन्तकाल हो मेरा क्या पता …….? गृह कलह से त्रस्त व उससे उत्पन्न अत्यधिक , मानसिक क्लेश में , तथा मुफ़लिसी से मिली सौगात ( दरिद्रता )से , अपनी ऐसी नारकीय ज़िंदगी से निजात पाने को , वह भी हमेशा भगवान से अपनी मौत की भीख मांगती रहती थी………..!
सूरज ढलने के साथ ये सफर पूरा हुआ ! अब मां बेटे दोनों भावना के सागर में गोते लगाते लगाते, अच्छा- बुरा , पाप-पूण्य के विचारों में फंसे , अपने गंतव्य स्थान कुंभ मेले में पहुंच चुके थे !
शाम गहराती जा रही थी , मगर कार्तिक पूर्णिमा की धर्म की रात को चांद पूरे शबाब पर था ! यहां कुंभ मेले में कुछ ज्यादा ही चहल पहल दिख रही थी , लोगों का हुजूम मेले की तरफ बढ़ता जा रहा था !
दूसरी तरफ से बजते ढोल नगाड़ों संग व्यवस्था ऐसी कि , पूरी भव्यता के साथ संगम स्थल तक जा रहा शाही अखाड़े का जुलूस अपने पूरे शबाब पर दिख रहा था !
अलग-अलग रास्तों से , तरह-तरह के संत महंतों का जुलूस के शक्ल में साधुओं की बारात चल रही थी !
नागा साधुओं का भी विशाल और अनोखा जुलूस देखने लायक था……. ….!
जहां चारों तरफ बिजली की रंगीन रोशनी से कुंभ मेले का जर्रा जर्रा प्रकाशमान था , वही जनसैलाब के शोर से यह कुंभ मेला गुलजार हो रहा था ! प्रकाश का बहता सागर ऐसा कि भूमि पर कहीं कोई सुई भी गिर जाए तो दिखाई दे दे………….!
ऐसी जगमगाती रोशनी की रौनक हर जगह विराजमान थी! धार्मिक अखाड़ों में भजन कीर्तन चल रहा था ! साधु संतों के प्रवचन सुनाई दे रहे थे !
यहां अद्भुत आध्यात्मिकता का पावन मनभावन दृश्य उभरता था ………!
ये अनायास ही नहीं पूरे विश्व में प्रयागराज के कुंभ मेले की भव्यता की चर्चा हो रही है ………..!
कुंभ मेले में पहुंचकर घुरहू मां को साथ लेकर उस स्थान पर बैठना चाहता था जहां थोड़ा अंधेरा हो क्योंकि आत्मग्लानि से भरा मगर धोखे के कुत्सित विचारों में छटपटाते उसके मन में तम का फैला साम्राज्य पूरा विस्तार पा रहा था…..!
उजालों का सामना करने साहस उसके भीतर मर चुका था ! उसमें भी जीने की इच्छा शेष नहीं थी !
बस उसे क्या करना है इतना ही याद है……….!
सोचते सोचते फिर एक ही पल में वो इस पाप कर्म के भय से कांप उठता था ! रह रह कर उसकी आत्मा उसे धिक्कारती थी……….. कि ,
वह जो पाप करने जा रहा है उसका प्रायश्चित है ही नहीं…………. !
पर अगले ही पल वो अपनी परेशानियों के अंत का सबसे सुलभ तरीके से हल करने को दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाता था अपने जीवन का अंत करके! हाय रे ! मुफ़लिसी की बेमुरव्वती……… . . !
मेले में घूमते हुए …….,
अंत में एक जगह घुरहू को कुछ मन माफिक जगह मिली अपनी पोटली खोल कर वह पुरानी फटी चादर बिछाकर मां को बैठाया और खुद भी बैठ गया !
” मां बेटे दोनों को जोर की भूख लगी थी
पोटली में कुछ खाना बनाकर उस की बहुरिया ने दिया था डिब्बे में पानी था पहले अपने मां को खाने को दिया !
फिर अपनी छुधा तृप्ति की , अगले पल ही व्याकुलता में अधीर होकर अपनी जन्म दात्री
मां का चेहरे को ध्यान से देखने लगा……….! अजब मन: स्थिति दिमाग पर एक अजीब छटपटाहट तारी होने लगी………… !
घुरहू दिमागी तौर से तो पहले ही थक चुका था मगर शारीरिक रूप से भी थका मांदा वह अब कुछ आराम करना चाहता था आंख बंद करके अपना गमछा बिछा कर संगम भूमि पर ही लेट गया…….!
अपने इकलौते पुत्र की अजीब दु:खी मनोदशा देखकर……….के,
“मां का कलेजा फटा जा रहा था मगर वह समझ नहीं पाती थी कि बेटे को कैसी परेशानी है ……? “
जब बेटा सोने लगा तो…………,
मां ने अपने थके सोये बेटे का सिर पर अपने कमजोर जंघे पर रख लिया ! वात्सल्य प्रेम से ओतप्रोत होकर उसका सिर सहलाने लगी ! और ममता भरी दृष्टि से उसे निहारने लगी……….. निहारती रही …..!
मां के हाथ का स्नेहास्पर्श पाकर घुरहू पूरी तरह नींद के आगोश में चला गया ! मां की गोद औलाद के लिए किसी रजगद्दी से ज्यादा ही सुकून दायक होती है, हर औलाद इस से ज़रूर वाकिफ है !
मां तो मां होती है इसके जैसा कोई नहीं वह अपने बेटे का निस्पृह , पिचका , रौनकहीन चेहरा निहारती रही , उसका हृदय पिघला जा रहा था……….., मन ही मन
भुनभुन , फुसफुसाने लगी………….!
क्या भगवान …….. ……….!
” मेरे बेटे को क्या हो गया ? इसका सब दुख हर लो प्रभु ! कुछ सुख चैन की जिंदगी इसे भी नसीब हो जाए मेरे जीते जी तो………
मैं भी शांति से प्राण त्याग दूंगी
गरीबी की सौगात अमानत के तौर पर हमारे बेटे के हिस्से ही आख़िर क्यों दिया…….. ? “
किसका क्या बिगाड़ा था हमने?
बेटे की दुर्दशा देख कर उसकी बूढ़े सिलवट पड़े माथे के पास , जर्फ , मिचमिचाती आँखें आंसुओं से सराबोर हो रही थी ! ग़मों से दूर मां की गोद में निश्चिंत सोया बेटा बिल्कुल अनजान था ! “
डेढ़ घंटे सोने के पश्चात घुरहू अपनी दोनो आंख भींचते अचकचा कर उठ बैठा…………. वो मेरी नींद मैं कोई भयावह ख़्वाब देख रहा था!
पर ख़ामोश रहा……… !
फिर दोनों मां-बेटे चाय के साथ घर से लाई रोटी बोर बोर कर खाये ! और मेले में उसी जगह रात के कुछ घंटे बीताकर भोर के साढे तीन बजे संगम स्थल पर ” कुम्भ स्नान ” किया ! जहां आलम लोग स्नान कर रहे थे , संगम में गंगा जमुना सरस्वती की आराधना करने के बाद मां- बेटे फिर उसी जगह आकर बैठ गए !
आस्था से भरी मां को एक बार फिर एहसास हुआ प्रयागराज में गंगा , जमुना , सरस्वती के संगम पर कुम्भ स्नान करके तर गई वह ! अब मां के दिल में कोई मलाल नहीं है ! बेेटे घुरहू को खूब मन भर आशीर्वाद दिया ………. .,
“ दूधो नहाओ पूतों फलो बेटा “ गंगा मैया तुम्हारी हर विपदा दूर कर दें……….!
” ऐसा बेटा भगवान सबको दे ! ” कुंभ स्नान करके बुढिया भगवान से , आज आदिशक्ति मां से , भगवान से बेटे के खुशहाल दीर्घ जीवन की कामना करती रही …………….. !
सुबह घुरहू मां को ब्रेड और चाय ला कर खिलाया ! थोड़ी देर तक मां के पास बैठा रहा …………. !
वह अब ज्यादा अधिक उद्दीग्न दिख रहा था न जाने किस धर्म संकट में पड़ा था।…………..!
मां की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था …………!
फिर ना जाने क्या सोचकर थोड़ी देर पश्चात घुरहू मां से बोला ………………..,
” मां मैं अभी आता हूं घूम कर संगम स्थल पर जरा
एक बार फिर कुंभ स्नान का भव्य नज़ारा देखकर आता हूं ……… पहले तो शाही अखाड़े के साधु संत स्नान ध्यान करने की तो पेशवाई चल रही है………..!
यह प्रसिद्ध कुंभ मेला पंडित पुजारियों के मंत्र उच्चारण , साधु संतों के पूजा पाठ ,लाउडस्पीकरों से होते भजन कीर्तन से गुलजार है !
शाही स्नान के बाद अन्य अखाड़ों की पेशवाई क्रमश” होगी ! ” घुरहू यह सब अनाउंसमेंट सुन रहा था
बेटे की जाते ही मां निश्चिंत होकर बैठ गयी ……..!
आख़िर उसे क्यों , किसी बात की चिंता होगी ?
उसका बेटा उसके साथ जो था……… !
” पूरी तरह से आश्वस्त होकर बैठी थी मां………वहां
मगर सुबह से गया बेटा दोपहर के बाद भी नहीं आया ! तीसरा पहर ढलने को था………. शाम हो जाएगी ”
अब तक बेटा क्यों नहीं आया……….?
मां का हृदय व्यग्र हो गया वह दुश्चिंता से भरी अपनी गठरी वही छोड़कर बेटे को इधर-उधर घूम कर ढूंढने लगी ………….?
घुरहू जाने से थोड़ी देर पहले ही मां के लिए कुछ फल , कुछ खाने का और सामान एक पैकेट ब्रेड मां को लाकर दे दिया था…………. …! मगर बेटे के इंतजार में बैठी भूखी प्यासी मां चिंता में पड़ी थी , पोटली से अभी तक कुछ नहीं खाया था !
अब तो बेटे को ढूंढते ढूंढते सुबह से दोपहर ढलने लगी है , बेटा नहीं लौटा अपनी मां के पास ! वो बुढ़िया , ( घुरहू की मां ) विक्षिप्त पागल सी , डरी डरी इधर उधर मेले में घूमकर बेटे को ढूंढने लगी……….!
यह कहती कि, उसका बेटा कहीं खो गया या कहीं मर खप गया ! क्या हुआ ?आखिर मेरा बेटा मेरे पास लौटा क्यों नहीं……..? किसी ने मार तो नहीं डाला मेरे बेटे को ……….? अब शाम ढलकर रात के आगोश में समा चुकी थी ! निराश होकर मां अब ज़ार बेज़ार रो रही थी !
इस बूढ़ी मां को क्या पता कि बेटा घुरहू तो अपनी कुटिल दुष्ट पत्नी से सलाह मशविरा से पर इसमें सम्मिलित अपनी इच्छा से भी मां को “कुंभ स्नान ” कराने के बहाने घर से धोखा देने ही चला था ! उसे तो इरादे के तहत मां को इस कुंभ मेले में ही छोड़कर ही घर वापस लौटना था……………!
मेले में काफी देर तक घूम कर……..अब घुरहू
मां को यहां असहाय छोड़ कर घर वापसी की राह पकड़ने ही वाला था…………..कि न जाने कैसे उसका दिल क्यों उतावला हुआ………
उसके हृदय में अचानक मां के प्रति प्रेम का ज्वार भाटा उठने लगा………..,
घर के लिए बस पकड़ने से पहले दिल हाहाकार करने लगा……….. !
” कैसे…….कैसे…..मैं मां को छोड़ कर जा सकता हूं …….. ? नहीं… नहीं …..नहीं………..!
मां को यहां लावारिस बनकर भीख मांगने के लिए छोड़कर कदापि नहीं जा सकता…………!,
” मां मुझे बड़े होने तक कैसे अपने सीने से लगाकर अपना दूध पिलाती …….. सब याद है मुझे………..,
कैसे दुलार करती थी …….., मुझे गले लगा कर झूमती चाटती मुस्कुराती मां को ….. पूरे जहां का खजाना मिलता था………… मैं कैसे भूल सकता हूं ………?
बड़े होने तक मैं पेशाब कर देता था बिस्तर पर
किंतु मां …..मां खुद गीले में सोती थी मुझे सूखे में सुलाती थी जाने की रातों में उफ् तक नहीं करती !
उसे अपना बचपन याद आने लगा ……..!
ओह मैं कैसा पापी , कृतघ्न, कुत्सित इंसान हूं ऐसा बेटा भगवान किसी मां को ना दे ………..!
खुद को ही कोसने धिक्कारने लगा ………. . ..!
मां के वात्सल्य , प्यार और दूध का कर्ज इस घोर पाप से चुकाने चला था ……….वाह रे मैं……..!
मां का ऐसा कृतघ्न बेटा……… !
अपना तन मन धन हृदय सब कुछ निछावर कर मां कितना दुलार प्यार करती थी और एक मैं मां से छुटकारा पाने के लिए क्या करने जा रहा था …………एक जघन्य पाप……….?
मैं मरने के बाद भी नहीं कभी नहीं विस्मृत कर सकूंगा………….! मां हो सके तो मुझे माफ़ कर दे मन ही मन देर तक फुसफुसाता रहा घुरहू………….! वह आत्मग्लानि से भर गया ! “
उसके दिल में मां के प्रति प्यार धधक उठा या मां की ममता का , वात्सल्य के चुंबकीय आकर्षण का , मां के प्यार का अद्भुत अप्रत्याशित चमत्कार हुआ कि ,
बेटा घर जाने की राह पकड़ने के बजाय तुरंत मेले में मां को ढूंढने के लिए प्रेरित हो गया, मां के फिर अचानक बहुर आये प्रेम में पागल दीवाने जैसा बौखलाया , व्याकुल घुरहू मां के लिए रोते , विसुरते , वह मां को अब सच्चे दिल से ढूंढ रहा था !
सोचता जाता है वो ,
” यदि मां न मिली तो क्या होगा मैं मां के बिना कैसे रह पाऊंगा ? अभी तो यहीं मेले में मां का जांघ पर सुलाकर सिर पर बड़े लाड-प्यार से सहलाना उसे बार-बार याद आ रहा था !
मां का वात्सल्य धिक्कार रहा था ऐसे बेटे को !
मां का प्यार उसे जितना याद आता दिल की धड़कने उतनी ही बेकाबू होतीं रहीं मां के लिए ,
मां कहां है ? किस हाल में है ? “
मेले में हर तरफ मां को ढूंढते ढूंढते उसे कई घंटे गुजर गए ! वह थक कर चूर हो गया शरीर बेजान हो गया था खुद के प्रति घृणा का गुबार ऐसा की आत्मा मलिन हो गई थी और ,
“दूसरी तरफ बेहाल , बेकरार बेसुध, मां का दिल बेटे के ना मिलने पर बैठा जा रहा था !
भूख की मारी बिचारी वृद्ध मां इधर-उधर भटकती ज़ार-बेज़ार रोये जा रही थी !
रात का पहर , एक जगह भीड़ में कुछ लोग इस अनजान बुढ़िया को घेरे अपनी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे ,
” हाय….हाय….. करते हुए कुछ लोग भूखी प्यासी बूढ़ी मां को कुछ खाने को देते , मगर वह खाद्य पदार्थ को हाथ लगाना तो दूर देखती भी नहीं ! रोते हुए सिर्फ अपने बेटे की रट लगा रखी थी ! कहां चला गया उसका बेटा…..?
” अपने परिजनों से बिछड़ कर एक बुढ़िया खो गयी ,पता नहीं कहां की है ये बूढ़ी मां ! “
” लग रहा है कोई जानबूझकर महीना को छोड़ गया है स्कूल मेले में ! कैसे-कैसे हृदय हीन लोग हैं “
मेले की भीड़ में से कोई कुछ कहता कोई कुछ कहता ,
तभी अचानक उधर से गुज़र रहा घुरहू……… ,
भीड़ देखकर वहां पहुंच गया देखा…… तो
लोगों का तमाशा बनी उसकी मां ही निढाल , बौराई ,
वहां रोती , विसुरती , बेहाल , बेसुध भूमि पर पड़ी थी !
घुरहू मां…मां …..पुकारते हुए…………,
भीड को चीरते बदहवास सा………,
अपनी बूढ़ी , असहाय मां को
अपने अंक जकड कर मां का सिर , हाथ , पांव , चेहरा सहलाते मां की दुर्दशा पर वह भी छोटे बालक की तरह ज़ार बेज़ार रोने लगा………. !
मां बेटे को पकड़कर अपने बेटे को अपने छोटे बाल की भांति अपने सीने में चिपका दिया और बुक्का फाड़कर रोती रही……..रोती रही…………!
थोड़ी देर के बाद मां बेटे दोनों को तसल्ली हुई कि ……
घुरहू को अपनी खो गई मां मिल गयी और मां को अपना खोया बेटा मिल गया……………!
तब दोनों के जान में जान आई…………… !
शायद एक तरफ निढाल , भूखी प्यासी मां की अधीर , व्यग्र ममता का उमड़ा वात्सल्य , प्यार ….. और दूसरी तरफ बेटे के ह्रदय में लहरा उठे प्यार के समंदर ने मां बेटे को फिर से मिला दिया !
अब कुछ देर सकून की सांस लेने के पश्चात घुरहू मां से सफाई देने लगा…………..,
” मां ”
” मां मेरी मां कहां थी तुम ?
मैं तुझे ढूंढता रहा……… बहुत परेशान हुआ मां…..ं ! आपके बिना मैं जिंदा नहीं रह पाता आदि आदि…न जाने क्या क्या बात बनाता रहा……. !
मैं तो दूसरी तरफ चला गया था आपको ढूंढते ढूंढते बहुत परेशान रहा …….,
निराश हालत में खुद ही रस्ता भूल गया ! मेरी तो रूह कांप गई कि ………,
मेरी भोली भाली प्यारी मां कहां खो गई ! “
वह सफेद झूठ बोला…………,
(जबकि वह तो पक्के इरादे के तहत मां को कुंभ स्नान के बहाने कुंभ मेले में ही छोड़ने ही आया था !)
इधर बेटे के कुत्सित इरादे से अनजान बूढ़ी मां तो बेटे को पाकर निहाल हो गई ! आंसुओं से भरी आंख लिए अपने बेटे से लिपट गयी ! अपने दिल के टुकड़े बेटे का सिर , मुंह , हाथ सब चूमती -चाटती मिलने की खुशी में फूले नहीं समा रही थी……….! मां अब छोटे बच्चे की तरह फिर सब कुछ भूलकर मां बेटे को सहलाने लगी , दुलारने लगी , वात्सल्य का सागर बहाने लगी बेटे पर !
कहावत है न “मां का दिल गायी (गाय), बेटे का दिल कसाई !”
मां के लिए दुनियां की सबसे अमूल्य निधि , उसका बेटा जो उसे मिल गया ! अब उसे किस बात की चिंता ? अब तक बेज़ार यतीम सी बिलखती मां की हर चिंता काफ़ूर हो गई थी !
अब तक तीन पहर से अधिक रात बीत चुकी थी अब भोर होने में कुछ वक्त शेष था मगर मेले में बिजली की जगमगाहट से मिलकर कार्तिक पूर्णिमा का दूधिया प्रकाश यथावत था ! बेटे के दिल में भी अब उजाला फैल गया था ……….. !
अबकी बार घुरहू ने अपनी भूखी प्यासी मां को अंधेरे में नहीं बल्कि बिजली की रोशनी में बैठाकर सच्चे दिल से अच्छी मिठाई व ढेर सारा फल खरीद कर खिलाया , पानी पिलाया , खुद भी खाया !
इस तरह थोड़ी सी शेष रात खुशी-खुशी गुज़र गयी !
ऐसे कुंभ स्नान के बाद मां बेटे दोनों खुशी खुशी घर की राह लिए! कहा भी गया है अंत भला तो भला तो सब भला !