Tuesday, October 8, 2024
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रजत सान्याल की पांच कविताएँ

उदास सुबह

एक उदास सुबह में निःशब्द , स्तब्ध हूँ

सुबह इस समय में अकेले बैठा हूँ

धूप जो हमारे जीवन में एक संभावना देती हैं

जीना सिखाती हैं

धूप भी खिड़की के आकर रुक जाती हैं

कभी कभी खिड़की से आदमी भी

दिखाई देते है

कभी कोई छाया जैसा

मन के अंदर बहुत कुछ चलता रहता हैं

कभी सुनता हूँ कोई शब्द ,समुंदर की लहरों की पुकार

फिर महसूस करता हूँ कि मैं खड़ा हूँ 

एक अलग समय के पास,डरा हुआ

और प्यार छू कर जाती है एक 

अनंत आकाश के नीचे

तन्हाई की साया

फागुन से आरंभ  होते हैं 

या तो बहुत ठंड में 

उससे भी आगे 

हर मौसम में, हर साल में 

प्रकृति के नियमों से 

कोई एक छोटी से मिट्टी के घर 

जिसे ढक कर रखा है 

यहाँ पर धरती सिकुड़ जाती है 

एक बूंद पानी के अभाव से 

नहीं देख सकते हवा के साथ 

एक सुंदर सजा हुआ बुना हुआ 

एक संकल्प की गंध 

फूलों के साथ एक संगीत की धुन 

ना जाने कब बारिश की पानी से 

या पांच साल पहले कोई अधूरी एक ख्वाब 

तरह बारिश की बूंदे दिखाई दिए थे 

तब पेड़ो में प्राण थे, एक सादगी थी 

अब आकाश में एक तन्हाई की साया है 

मुसाफिर

मैं एक मुसाफिर हूँ

अंधेरे से गुजरते हुए 

कितना कुछ देखा मैंने 

एक बिखरती रात, बिरान सी रात

एक  उच्चे पहाड़ पर जब पहुंचा

तब दिखाई दी एक रोशनी

एक रुकी हुई तन्हाई 

सिमट लिया है इस संध्या को

कितने घूमते घूमते चलते चलते

कितने नदी, समुद्र को पीछे रक कर आया

इसके पीछे था एक उदासी, आँसू

और तुम नहीं मिले

एक तारों की रात रोशनी के साथ

इट के दीवार पर कितने छुपे हुए रंग 

या कोई दाग खून के

इस अंधकार में एक बात है

मैं फिर भी चलता रहा

एक मुसाफिर की तरह

कभी भी मैं इस निःशब्दता को टूटने नहीं दिया।

एक अहसास

तुम एक अहसास

तुम्हारी सुगंध , महक सभी मैंने

महसूस किया मैंने तुम्हारे चुम्बन में

तुम घोलती हो एक संगीत

तुम्हारे चुम्बन में मैं देखती हूँ

एक ईश्वरीय प्रेम

मैं सहसा जग उठती हूँ

एक बिजली छू कर जाती है

झंकृत कर देती मेरे जीवन की तार

अनवरत मेरे जीवन में हर पल में

मुझे लगता है मैं भीग जाती हूँ

लगता मैं एक समुद्र में समा गई हूं

नहा लेती हूँ मैं एक चाँदनी रात की

अखंड आद्रता से चांदनी को छू कर

शब्द

क्या तुम सुन सकती  हो मेरे शब्द

यह शब्द जो एक धारा से बहती है

एक युग से, शताब्दी से

कभी कभी सुनाई नहीं देती है यह शब्द

जब तुम समुद्र के पास होती तब

लहरों में कहीँ खो जाती है शब्द

बिखरे हुए होते है एक टुकड़े की तरह

एक घंटी बजती रहती है 

जैसे अपने ही नशे में होते है

तुम छु लेती हो आपने मुलायम हाथों से

तुमारा हाथ एक नरम फल की तरह है

मैं दूर से देखता हूँ अपने शब्दों को

तुम्हें अधिक प्यार है इन शब्दों से

रजत सान्याल
रजत सान्याल
पत्र-पत्रिकाओं और संकलनों में कविताएँ प्रकाशित. फिल्म राइटर्स असोसियेशन मुंबई के फेलो मेंबर. संपर्क - [email protected]
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